कहते है कि शिक्षा सभ्यता को जन्म देती है. भारतीय लोगों में अपनी संस्कृति की तारीफ करने की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही देखी जाती है. देश में समय समय पर ऐसी तमाम घटनायें होती है जिनमें हमारी इस संस्कृति की पोल खुलकर सामने आ जाती है. देश की सबसे हाईटेक सिटी बेंगलुरू में तंजानिया की लडकी के साथ जो हुआ वह कबीलों की संस्कृति की याद दिलाने के लिये काफी है. 31 जनवरी की शाम 7 बजे एक सडक दुर्घटना में 35 साल की महिला की मौत के बाद गुस्साई भीड ने कार में सवार अफ्रीकी मूल के युवकों को पकड लिया. इनके साथ 2 लडकियां भी थी. गुस्साई भीड ने यह भी समझने की कोशिश नहीं की कि घटना में उन युवतियों का क्या रोल है ?

भीड ने लडकी को 20 मिनट तक सडक पर दौडा कर पीटा, उसके कपडे फाड दिये. जब उस लडकी ही हालत देखकर एक युवक उसे अपनी शर्ट देने लगा तो भीड ने उस युवक को कपडे नहीं देने दिया और उसकी पिटाई भी कर दी. इससे शर्मनाक बात यह है कि बेंगलुरू पुलिस ने सही एक्शन लेने के बजाये घटना पर लीपापोती करने लगी. पुलिस ने लडकी के कपडे फाडने और उससे बदसलूकी को न मानते हुये मारपीट की साधारण घटना बताया. जब मामले ने तूल पकडा तब केन्द्र सरकार ने कडा रूख अपनाया.

कर्नाटक में कांग्रेस के नेता सिद्वरमैया मुख्यमंत्री हैं. कांग्रेस हाईकमान के मामले में हस्तक्षेप करने के बाद मुख्यमंत्री सिद्वरमैया हरकत में आये, जिसके बाद हमला करने वाले 5 लोगों को पकडा गया. मुख्यमंत्री ने पुलिस की गलती को भी संज्ञान में लिया.

घटना का दूसरा पक्ष हमारी संस्कृति पर बदनुमा दाग सा है. इस घटना में शामिल लोगों को पुलिस पकड लेगी उनको सजा भी मिल जायेगी. भारतीय संस्कृति पर इस घटना ने जो दाग लगाया है उसका साफ होना बहुत मुश्किल है. घटना के बाद तंजानिया की उस युवती ने बयान दिया कि अब उसे हर भारतीय को देख कर डर लगता है. आधुनिक से दिखने वाले समाज में भी औरतों और महिलाओं को अनैतिक समझा जाता है. जरा सा मौका हाथ लगते ही उनके शरीर पर हमला करने से परहेज नहीं किया जाता है. भीड में शामिल हर चेहरा यह सोचता है कि कानून उसकी पहचान नहीं कर पायेगा और उसको सजा नहीं हो पायेगी. ऐसे में वह कबिलाई संस्कृति पर उतर आता है. जहां महिला के शरीर पर हमला कर अपनी हवस पूरी करने की कोशिश होती है.

अगर मौका अलग संस्कृति के लोगों के साथ हो तो मामला और भी अध्कि संगीन हो जाता है. एक हमारे देश की सभ्यता पर सवाल खडा होता है, दूसरी तरफ देश में काम कर रही वैधनिक संस्थायें कानून की रक्षा करने के बजाय मामले को दबाने में उतर आती है. किसी घटना को हम सबक के रूप में नहीं लेते. यही वजह है कि एक के बाद दूसरी घटना हमें शर्मसार करती है. जरूरत है कि हम राजनीति से उपर उठ कर कानून के राज की बात करे तभी इस तरह की घटनाओं से मुक्ति मिल सकेगी. सभ्य संस्कृति की दुहाई भर देने से ऐसे मामले रूकने वाले नहीं है.

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