उस के सांवले चेहरे पर दुनियाभर की मासूमियत साफसाफ झलकती है. उस की उम्र तो किसी को ठीकठाक नहीं मालूम पर किशोर वय रमजान के चेहरे पर अब रंगत लौटने लगी है. उसे लगने लगा है कि जल्द ही वह अपने मुल्क में अपने पिता मुहम्मद काजल खान के आगोश में या फिर मां रजिया के आंचल में होगा जिन के लिए वह मुद्दत से तरस रहा है. अपनों की जुदाई का दर्द तो उसे तभी समझ आ गया था जब वह सरहद पार कर पाकिस्तान से बंगलादेश और वहां से भारत आया था. 23 अक्तूबर, 2013 को जब वह भोपाल रेलवे स्टेशन पर आवारा, बदहवास सा घूम रहा था तब मामूली पूछताछ के बाद रेलवे पुलिस वालों ने उसे ‘चाइल्ड लाइन’ संस्था को सौंप दिया था.

तब तक दुनियाभर की तमाम ठोकरें खा चुका रमजान हताश हो गया था लेकिन जल्द ही चाइल्ड लाइन के दूसरे अनाथ बच्चे और स्टाफ ही उस के अपने हो गए. सरहद ज्यादा बेरहम होती है या फिर सौतेली मां के सितम, यह रमजान शायद ही बता पाए पर इतना तय है कि नवंबर के महीने में उसे दूसरा जन्म मिला जब यह सुगबुगाहट हुई कि उस को पाकिस्तान ले जाने की तैयारियां हो रही हैं.

बीते 22 नवंबर को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज रमजान से मिलीं, उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे अपने मांबाप के पास भेजने का भरोसा दिलाया तो उस के मन की तमाम आशंकाएं दूर हो गईं. वह जानता था कि यह भरोसा दिलाने वाली शख्सीयत बहुत बड़ी हस्ती है, इसलिए उन से मिलने जाने से पहले वह सलीके से तैयार हुआ था और अपनी पसंदीदा टीशर्ट पहनी थी.

भोपाल में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज रमजान के साथ मीडिया से रूबरू हुईं और बताया, ‘‘हम ने रमजान की वापसी की खुद आगे बढ़ कर पहल की है. हमारे हाईकमीशन के अधिकारी इस की मां से मिल कर उन की सहमति भी ले आए हैं. हम इस की मां को वीजा देने को भी तैयार हैं लेकिन पाकिस्तान ने इस मामले पर कोई ध्यान नहीं दिया है अगर पाकिस्तान को रमजान के पाक नागरिक होने में कोई शक है तो वह मांबेटे का डीएनए टैस्ट करा के तसल्ली कर ले.’’ यह बात कतई सियासत की नहीं थी. भारत हाईकमीशन ने फोन पर रमजान की बातचीत उस की मां रजिया से करवाई थी तो रमजान रुंधे गले से मां ही बोल पाया था. अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है कि वह रमजान को वीजा दे तभी उस की घर वापसी मुमकिन होगी. सुषमा ने उदारता दिखाते हुए यह भी कहा कि पाकिस्तान रजिया का ब्लड सैंपल भेज दे तो हम यहां उस का रमजान के डीएनए से मिलान कर सकते हैं.

इस पर रमजान को लगा कि इन के जरिए उस का भटकाव और अकेलापन दूर होने वाला है. सुषमा स्वराज उसे जरूर उस की सगी मां रजिया तक पहुंचा देंगी. इस के बाद वह मां के आंचल में सिर छिपा कर 3 साल की पीड़ा भूल जाएगा. घर और मुल्क से भागने की जो गलती उस ने की थी, वह सुधर जाएगी.

फिल्मों सी कहानी

हलके घुंघराले बालों वाले रमजान की कहानी का अंत क्या होगा, यह अभी भविष्य के गर्त में है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि कहानी का फिल्मों जैसा ही सुखद अंत होगा क्योंकि रमजान बहुत कच्ची और कम उम्र में उम्मीद से ज्यादा दुख, तनाव और परेशानियां झेल चुका है. दरअसल, पाकिस्तान के कराची के मूसा कालोनी के मामूली परिवार में जन्मे रमजान का बचपन मांबाप की कलह की भेंट चढ़ा. इस कलह से हमेशा सहमा रहने वाला रमजान अब्बा और अम्मी दोनों को ही बराबरी से चाहता था. उस की मां रजिया और पिता का तलाक हुआ तो वह पिता के हिस्से में आया जो उसे बंगलादेश ले आए. वहां अब्बा ने दूसरी शादी कर ली. वहीं से रमजान पर मुसीबतों और दुश्वारियों का पहाड़ टूटा. सगी मां का लाड़प्यार और ममता वह भूल नहीं पाया. भूल सकता था बशर्ते सौतेली मां सौतेली मांओं जैसी क्रूरता नहीं दिखाती. उस ने नन्हे रमजान पर सितम ढाने शुरू कर दिए. महज 10 साल के रमजान ने सौतेली मां की जरूरत से ज्यादा ज्यादतियां सहीं और एक दिन हद हो गई जब सौतेली मां ने उस पर चोरी का झूठा इलजाम मढ़ दिया.

स्वाभिमानी रमजान से यह आरोप बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी सगी मां के पास वापस पाकिस्तान जाने का न केवल फैसला ले लिया बल्कि उस पर अमल भी कर डाला. इस उम्र में मां की सब से ज्यादा जरूरत बच्चे को होती है, लेकिन उस की सगी मां तो सरहद पार थी. फैसला तो ले लिया पर रास्ता रमजान को नहीं मालूम था फिर भी उसे उम्मीद थी कि पाकिस्तान ज्यादा दूर नहीं है, जैसेतैसे पहुंच ही जाएगा. हवाई जहाज से आते वक्त तो 2 घंटे ही लगे थे.

दुखी रमजान एक अनजाने सफर पर निकल पड़ा. उस वक्त उस की जेब में महज 85 रुपए थे जो एक बच्चे को बहुत लगते हैं. बौर्डर पर उसे भटकता देख कुछ लोग उसे पानी के रास्ते पार करवाने ले गए. वहां से रमजान असम के लवलीन स्टेशन पर आ गया. अब वहां से कहां, कैसे जाना है, यह उसे नहीं मालूम था. उस की हालत मेले में भटके बच्चे जैसी थी जो पूछपूछ कर कदम रख रहा था. जिस ने जिधर उंगली उठा दी, उधर ही चल पड़ा. असम से पाकिस्तान जाना मुमकिन नहीं था. लिहाजा, वहां के लोगों ने उसे रांची जाने का रास्ता दिखा दिया. ट्रेन में बैठ कर वह रांची पहुंच गया और लावारिसों सरीखा 3-4 दिन स्टेशन पर ही भटकता रहा. भूखाप्यासा, घबराया वह ढूंढ़ता था किसी भले चेहरे को जिस से पूछ सके कि अब कहां, कैसे जाऊं. एक सज्जन ने उस की कहानी सुन उसे ट्रेन के जरिए मुंबई जाने की सलाह दे डाली. रमजान ट्रेन में बैठ कर मुंबई जा पहुंचा. लेकिन भटकाव का सिलसिला यहां भी खत्म नहीं हुआ. मुंबई में भी वह लवलीन, और रांची की तरह भटकता रहा. शहर बदल रहे थे पर हालात जस के तस थे. जो मिल जाता, उस से पेट भर लेता. जहां जगह मिल जाती, रात गुजार लेता था.

मुंबई की भीड़भाड़ से घबराए रमजान की हालत जंगल में भटके पक्षी सरीखी हो चली थी. वह टूटने भी लगा था कि तभी किसी अनजान हमदर्द ने उसे दिल्ली जाने का रास्ता दिखा दिया. दिल्ली में वह हजरत निजामुद्दीन स्टेशन उतरा और सीधा दरगाह पर जा पहुंचा. वहां उस ने मां से मिलने की गुहार लगाई.

मुंबई के मुकाबले दिल्ली वाले नरमी से पेश आए. जिस किसी ने उस से जानकारी ली, रमजान ने बेहिचक बता दिया कि वह पाकिस्तानी है. इस जवाब पर उसे समझाइश यह मिली कि हमें तो बता दिया पर किसी और को यह बात मत बताना वरना मुश्किल में पड़ जाओगे. कइयों ने तो उसे तुरंत दिल्ली छोड़ देने की सलाह दे डाली. दिल्ली से भाग कर वह कहांकहां हो कर भोपाल आया था. उसे यह याद नहीं. लेकिन इतना उस के बालमन को समझ आ गया था कि दुनिया बेहद क्रूर है. 23 अक्तूबर, 2015 को जीआरपी वालों की निगाह उस पर पड़ी तो उन्होंने उसे लावारिस बच्चों को पनाह देने वाली संस्था ‘चाइल्ड लाइन’ को सौंप दिया.

चाइल्ड लाइन ने दी छत

इत्मीनान और सुकून देने वाली बात यह थी कि चाइल्ड लाइन में उसे छत और आराम दोनों मिल गए. वक्त पर खानेपीने को मिलने लगा और उसी की तरह भटके अनाथ हमउम्र बच्चे भी मिले जिन के संग खेलतेबतियाते वक्त कुछ बेहतर तरीके से कटने लगा. हालांकि वतन और मां की याद आते ही वह उदास और गुमसुम हो उठता था. जल्द ही चाइल्ड लाइन वालों ने उस का दाखिला अयोध्या नगर इलाके के एक प्राइवेट स्कूल में करा दिया. इस के पहले रमजान कभी स्कूल नहीं गया था लेकिन उस की मानें तो स्कूल जाना उस के लिए अब तक के सुखद अनुभवों में से एक था जहां सभी उस से प्यार और सहानुभूति से पेश आते थे. वतन पहुंच कर अम्मी से मिल पाने की उम्मीद टूटने लगी थी.

इस बीच, चाइल्ड लाइन ने अपनी जिम्मेदारी निभाते उस के घरवालों को ढूंढ़ने की मुहिम जारी रखी और इस बाबत मीडिया का सहयोग लिया. रमजान ने अब तक जो अपने बारे में बताया था, उस की बिना पर कराची के सोशल वैलफेयर डिपार्टमैंट को उस का फोटो भेजा गया. बीते सितंबर में उस के दादा ने यह फोटो देखा और पहचान की दावेदारी जता दी. शुरुआती पूछताछ और कार्यवाही में साबित हो गया कि रमजान कराची का ही रहने वाला है और अपने बारे में जो बता रहा है वह सच है. अब उसे पाकिस्तान भेजने की कवायद शुरू हो गई. इस दौरान मीडिया ने उस के बारे में छापा और दिखाया तो भोपाल में वह अजूबा सैलिब्रिटी हो गया. इन्हीं दिनों सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था, लिहाजा हर कोई चाहने लगा कि जैसे भी हो, रमजान को उस के घर भेजने के इंतजाम किए जाने चाहिए.

इस बाबत कोशिशें जारी हैं और मुमकिन है जल्द वह घर पहुंच भी जाए. भारतीय अधिकारियों ने जब उस की सगी मां रजिया से संपर्क किया तो उस ने कहा कि वह भारत आने को तैयार है लेकिन माली हालत आड़े आ रही है. उस के पास भोपाल आनेजाने के लिए पैसे नहीं हैं. दोनों देशों में से किसी एक देश की सरकार यह खर्च उठाए तो वह भोपाल आने को तैयार है. बकौल रजिया, ‘‘इतनी हमदर्दी देख मेरे मन में भारत को ले कर जो डर था, वह खत्म हो गया है. मैं यह नहीं समझती कि भारत एक इसलामविरोधी देश है.’’ लेकिन अब कानून आड़े आ रहा था. मां से बात कर रमजान खुश था और 23 नवंबर को उस ने कहा कि पाकिस्तान जा कर बताऊंगा कि भारत बहुत अच्छा देश है और यहां के लोग बहुत भले हैं.

संयोग से इस दिन अभिनेता आमिर खान के उस बयान पर देशभर में खासा बवाल मचा हुआ था जिस में उन्होंने पत्नी के हवाले से कहा था कि अब बच्चों को ले कर भारत में रहने में डर लगने लगा है. बात अजीब और विरोधाभासी थी जिस पर सियासत होती रही. दोनों धर्मों के लोग सोशल मीडिया पर जहर उगलते रहे. लेकिन मासूम रमजान को इस से कोई सरोकार नहीं था. वह भारत देश के लोगों का शुक्रगुजार और एहसानमंद था जिन्होंने पनाह दी, प्यार दिया और जो उसे मां के पास पहुंचाने की कोशिशें व सहयोग कर रहे थे. पर अब तक रजिया कानूनन यह साबित नहीं कर पाई थी कि रमजान उस का ही बेटा है और पाकिस्तानी नागरिक है. इस पर रमजान की मदद के लिए कानूनी हाथ उठने लगे. कुछ दिनों पहले ही भारत की युवती मूकबधिर गीता को देश लाने में अहम रोल निभाने वाले पानीपत के वकील मोमिन मलिक साथ देने को तैयार हो गए. बकौल मलिक, अब यह मामला अदालत से ही सुलझ सकता है.

दस्तावेजी दीवार मांबेटे की बीच खड़ी हो चुकी थी. जाहिर है इस मामले में जज्बातों से काम नहीं चलने वाला था. कानून के अलावा, दूसरी वजह देश का माहौल है जिस में विवादों और बयानों का जहर घुला है. भोपाल के लोगों को पाकिस्तान के रवैए पर हैरत होती रही कि वह जिम्मेदारी से कागजात तैयार करवाने में रजिया और रमजान की मदद क्यों नहीं कर रहा. यह सुषमा स्वराज की पहल का ही नतीजा कहा जाएगा कि मां को तरसते रमजान से पूछताछ करने के लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के सचिव खादिम हुसैन भोपाल आए और भारतीय अधिकारियों के साथ तकरीबन 1 घंटे बंद कमरे में रमजान से पूछताछ की. मकसद तय है, रमजान की नागरिकता साबित करना था. इस बातचीत का ब्योरा जाहिर नहीं किया गया लेकिन इकलौती बात प्रमुखता से यह बताई गई कि जब रमजान से यह पूछा गया कि क्या चाहते हो, तो उस का जवाब था ‘मुझे मां के पास ले चलो.’

वापसी का इंतजार

रजिया का पासपोर्ट इन शब्दों के लिखे जाने तक नहीं बना था और बन भी जाए तो वह भोपाल आ कर सिवा बरसों के बिछड़े बेटे के मिलने के कुछ खास नहीं कर पाएगी. एक मां के पास यह साबित करने का कोई जरिया नहीं है कि उस का बेटा, उस का ही है. मुमकिन है एहतियात बरतते चाइल्ड लाइन वाले ही रजिया को रमजान से न मिलने दें क्योंकि 22 नवंबर को ही कराची से भोपाल आई एक महिला ने खुद को रमजान की मौसी बताते हुए उस से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की थी. सबरुन्निशा नाम की इस कथित मौसी के रमजान से मिलने जाने की खबर आम हुई तो कई मीडियाकर्मी भी चाइल्ड लाइन पहुंच गए. सबरुन्निशा के मुताबिक, वह कराची के मूसा कालोनी में रहती है, जहां रमजान रहता है. मीडियाकर्मियों के होहल्ले से बात बिगड़ गई. चाइल्ड लाइन की संचालक अर्चना सराय से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह महिला अपनी पहचान की जानकारी नहीं दे सकी, इसलिए पुलिस को बुलाना पड़ा.

यानी रमजान की वापसी में उम्मीदों के संग अड़ंगे भी हैं लेकिन रमजान इतना खुश है कि उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया है. वह कहता है, अब पाकिस्तान जा कर ही पढ़ूंगा और वहां अपनी तालीम के बारे में बताऊंगा. रमजान के लिए सुकून देने वाली दूसरी खबर बीती 25 नवंबर को आई. पाकिस्तान के अंसार बर्नी ट्रस्ट ने भागादौड़ी कर यह साबित करने में कामयाबी हासिल कर ली कि रजिया और रमजान पाकिस्तान के ही रहने वाले हैं और उन की पहचान से संबंध रखते कागजात इस ट्रस्ट ने सरकार को सौंप दिए. देर इसलिए हुई कि रजिया का परिवार बंगलादेश से माइग्रेट हो कर पाकिस्तान आया था लेकिन उस ने वक्त रहते पाकिस्तान की नागरिकता हासिल कर ली थी. यानी कानूनी उलझन एक हद तक सुलझ गई है और रमजान के घर जाने का सही रास्ता अब खुल और मिल गया है.

अब रमजान एकएक दिन गिन रहा है कि कब ये कानूनी अड़चनें सुलझें और वह मां से मिले. इस से ज्यादा उस को कोई मतलब किसी बात से नहीं, न ही किसी से सरोकार है. चाइल्ड लाइन में अब दोस्तों के साथ उस की बातचीत का एक ही मुद्दा रहता है कि वह जल्दी पाकिस्तान जाएगा और वहां से फोन पर दोस्तों से खूब बातें करेगा और यहां की बातें वहां बताएगा. उस की मासूमियत में अब उम्मीद के पर लग गए हैं. एक नन्हे बच्चे ने बहुत कम उम्र और वक्त में देशदुनिया, सरहदों और रिश्तों का सच देख लिया है. अच्छी बात यह है कि एक सुरक्षित संस्था में आ कर उस का भटकाव खत्म हुआ और उसे पनाह भी मिली. अब इंतजार, बस वापसी का है.

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