दुनियाभर में धीरेधीरे समलैंगिकों को बराबरी के हक दिए जा रहे हैं. जो कानूनी मान्यता एक स्त्रीपुरुष को विवाह करने पर मिलती है वैसी ही अब 2 समलैंगिकों को मिलने लगी है और एक तरह से इन जोड़ों पर वे विवाह कानून लागू होने लगे हैं जो स्त्रीपुरुष के विवाह में हो रहे हैं.

यानी अब समलैंगिक जोड़े यदि शादी करेंगे तो तलाक ले कर ही दूसरे या दूसरी को पा सकेंगे. एक युवक या युवती किसी और युवती या युवक से सैक्स करे तो यह विवाह नियमों का उल्लंघन होगा यानी अप्राकृतिक संबंध तो जायज होगा पर प्राकृतिक गैरकानूनी. यह बहुत मजेदार बात होगी जब एक औरत अपनी सहेली औरत के किसी पुरुष के साथ संबंध बना कर गर्भवती होने पर विवाह की शर्तों का उल्लंघन माने और विवाहित पत्नी के बच्चे को साझा मानने से इनकार कर दे.

समलैंगिकों के बारे में भारत में अभी कानून पुराना ही है जो मैकाले के दंड विधान की देन है. उस से पहले कानून तो स्थानीय पंडे काजी का तय हुआ होता था और 2 पुरुषों या 2 औरतों का प्यार वैध था या अवैध जानना कठिन है. पर पिछले 150 साल से जो कानून चला आ रहा है, उसे उच्च न्यायालय ने तो गलत ठहरा कर असंवैधानिक करार दिया था पर न जाने क्यों सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने इसे पुनर्स्थापित करा दिया.

अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने अपने देश में सेमसैक्स विवाहों को मान्यता दे दी है पर अब भी वहां ऐसे लोगों की कमी नहीं जो बाइबल का हवाला दे कर धार्मिक कारणों से इसे गैरसामाजिक मान रहे हैं.

विवाह मूलत: व्यक्तिगत संबंधों का फैसला है जिसे समाज मान्यता दे देता है ताकि बच्चों को सुरक्षा मिल सके पर धर्म इस में क्यों कूद पड़ा और जबरन कानून बनवा डाले, यह उस की साजिश है. विवाह का धर्म से कोई नाता नहीं और सेमसैक्स संबंध धर्म विरोधी हैं या नहीं, उस की सीमा से बाहर है.

अब भारत में अमेरिका की तर्ज पर समलैंगिक कानूनों को फिर लागू करने की मांग उठ रही है और गंभीर पुरातनपंथी, धार्मिक पर समझदार लोग भी उस निजी फैसले में सरकारी कानूनी दखल को गलत मान रहे हैं. पिछले दिनों वित्तमंत्री अरुण जेटली और पूर्व वित्त व कानून मंत्री रहे पी चिदंबरम ने भी इस मांग को जायज ठहराया.                                      

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