प्रधानमंत्रीजी, नमस्कार.

 

हमें पूरी उम्मीद है कि आप अपने विदेशी दौरों पर मस्तव्यस्त होंगे. हमें तो हमें, अब तो आप की पार्टी वालों को भी आप के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं. किसी खास मौके पर आप अपने घर में दिख गए तो दिख गए, वरना टैलीविजन पर ही कभी इस देश, तो कभी उस देश देख कर हम संतोष कर लेते हैं कि चलो जहां भी हैं, अपने प्रधानमंत्रीजी सेहतमंद हैं. मैं ने जितनी बार भी आप के बंगले की ओर देखा, बंद ही पाया. हां, वहां पर काम करने वाली हरदम आप के कपड़े प्रैस करती जरूर मिली. आप का पता ही नहीं चलता कि आप कब घर आए और कब विदेश हो लिए.

मैं अपने पति से तो कई बार यह निवेदन कर चुकी हूं, लेकिन उन्होंने तो अब मेरी बात सुनना ही बंद कर दिया है. वे कहते हैं, ‘अब अगर दाल की बात करोगी, तो खुदकुशी कर लूंगा. मैं बाजार से सबकुछ ला सकता हूं, पर तुम्हारी दाल नहीं.’ अब उन से बाजार से दाल लाने को कहते हुए भी मैं डरने लगी हूं. हमारा बेटा मुन्नू अगर दा… भी कहता है, तो उन को लगता है कि वह कहीं दा के बाद ल न कह दे, इसलिए उस के दा कहने के तुरंत बाद वे उस के मुंह पर हाथ रख देते हैं. कहीं वह दाल कहना ही न सीख पाया तो…? कहीं वे ऐसावैसा कुछ कर गए तो…? इसी डर से उन के आगे दा से शुरू होने वाले हम ने सारे शब्द ही कहनेसुनने बंद कर दिए हैं. न रहेगा दा और न बनेगी दा से दाल.

प्रधानमंत्रीजी, मेरे पास तो लेदे कर एक बस यही पति हैं. भला है, बुरा है, जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है. शाम को दफ्तर से जब घर लौट कर आता है, तो ऊपर की कमाई के सौपचास ऊपए औरों से छिपाबचा कर चुपचाप मेरे हाथों पर वरदी बदलने से पहले ही रख देता है. बिना किसी झिझक के. ऐसा पति मुझे हर जनम में मिले. पर मेरी और सभी बहनों से दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि मेरे इस कथन को किसी धर्म से जोड़ कर न देखा जाए. केवल और केवल पतिपत्नी के संबंध से जोड़ कर ही देखा जाए.

प्रधानमंत्रीजी, आप जिस देश में भी हों, आप से दोनों हाथ जोड़ कर बस एक ही गुजारिश है कि आप अब के जब विदेश से स्वदेश के लिए कोई बड़ी डील ले कर आएं, तो प्लीज, विदेश से आते हुए 2 किलो साबुत मूंग, एक किलो साबुत उड़द, 2 किलो बिना छिलके वाली चने की दाल, 2 किलो अरहर, 2 किलो राजमा, 2 किलो लोबिया भी साथ ले कर आएं. और आप जब एयरपोर्ट पर उतरें, तो हमें फोन कर दें. मैं अपने पति को एयरपोर्ट पर आप से दालें लेने भेज दूंगी. आप की कसम, अब बिन दाल और नहीं रहा जाता. पहले कमर में ही दर्द रहता था, पर अब घुटनों में भी दर्द होने लग गया है.

याददाश्त तो अब धीरेधीरे मुझे धोखा देने ही लग गई है. पर सच मानें, अब तो हमारे घर में बच्चे भी दालों के रंग भूलने लग गए हैं. उन्हें कितना ही रटाओ कि मूंग हरे रंग की होती है, पर दूसरे दिन पूछो तो मूंग का रंग काला ही बताते हैं. उन्हें याद ही नहीं रहता कि चने भूरे रंग के होते हैं, तो धुली मसूर का रंग लाल होता है. याद तो तब रहे, जो उन्हें ये देखनी भी नसीब हों. उन को रटातेरटाते मर गई कि उड़द धुली सफेद रंग की होती है, तो अरहर पीले रंग की. पर पूछने पर सब गलत कर जाते हैं. कमबख्त दाल न हुई, हिसाब की किताब के मूलधन, दर, समय और ब्याज के मौखिक सवाल हो गए.

वाह, क्या जमाना था वह भी, जब कोई किताब न होने के बाद भी मेरी मां ने हमें रंगों की पहचान दालों से ही कराई थी. अब आप ही बताओ कि मैं अपने बच्चों को रंगों की जानकारी किस से दूं? इधर हरे रंग के जंगल बिल्डरों ने काट दिए, तो उधर उद्योगों के धुओं के चलते गांवशहर से लाललाल सूरज ही गायब है. ऊपर से मुए शिक्षा बोर्ड ने रहीसही कमी पूरी कर दी है. उस ने किताबें ऐसी छापी हैं कि काले हाथी का लाल चूहा बना दिया है, तो शेर किताबों में बिल्ली की तरह कालाफटा कोट पहने दुबका दिखता है, बाहर के कुत्ते के तलवे चाटता हुआ.

धुली मसूर का रंग किताब छापने वालों ने लाल की जगह काला कर दिया है. ऐसे में बच्चे दुविधा में हैं कि शिक्षा बोर्ड की किताबों पर यकीन करें कि अपने मांबाप पर? हे प्रधानमंत्रीजी, अच्छे दिनों की बाट जोहतेजोहते अब तो आंखों की जोत जाने लगी है. पर कलेजा तब कुछ ठंडा हो जाता है, जब आप अच्छे दिनों के प्रति अपने वचन को दोहराते हो. आप के इसी वचन के आसरे ही तो बिना दाल रोटी खाए जा रहे हैं, आप के गुण गाए जा रहे हैं.

दाल के इंतजार में आप के देश की आम गृहिणी.     

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