कहते हैं दीवारों के भी कान होते हैं लेकिन मैं दीवारों को कान नहीं बल्कि घर का आईना मानता हूं. जब यह आईना साफसफाई के बाद चमकतादमकता है तो घर भी उस चमक में रोशन हो जाता है. घर की यह चारदीवारी जितनी रंगीन और रोशन होती जाती है, घर का मिजाज भी उतना ही खुशनुमा और रंगीन हो जाता है. यों तो साल भर हम कई त्योहार मनाते हैं लेकिन जो इंतजार दीवाली उत्सव को ले कर होता है वह शायद ही किसी और के लिए होता हो. इस उत्साह की अपनी वजहें भी हैं. दीवाली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस में घर की साफसफाई और पुताई पर जोर दिया जाता है. वरना बाकी त्योहार तो हुड़दंग और गंदगी फैलाने का मौका तो खूब देते हैं लेकिन सफाई की वकालत सिर्फ दीवाली पर की जाती है. सिर्फ साफसफाई ही नहीं बल्कि सजावट और रोशनी से सराबोर दीवाली मन के अंदर की तमाम अंधेरी गलियों को रोशन करने का संदेश देती है. घरद्वार की साफसफाई से रंगाईपुताई तक और मन को उजालों से भरने वाले त्योहार दीवाली को मनाने का अंदाज ही निराला होता है.
पुताई और रंगों का बाजार
दीवाली के कुछ दिन पहले से ही इस की तैयारियों का दौर शुरू हो जाता है. जाहिर है इस में रंगाईपुताई से ही शुरुआत होती है. लेकिन आजकल बढ़ती महंगाई और बाजारी रंगों के दामों में हुई अनापशनाप वृद्धि ने रंगाईपुताई को ले कर भी दिक्कतें बढ़ा दी हैं. साथ ही पुताई करने वालों ने भी अपने दामों में अनापशनाप तरीके से वृद्धि कर दी है. आजकल दिहाड़ी पुताई वाले अमूमन एक कमरे के लिए 500 से 1 हजार रुपए तक वसूल रहे हैं. जबकि ठेकेदार 25 हजार रुपए एकदो कमरों के फ्लैट के लिए मांगते हैं. हालांकि यह बजट महानगरों के लिए है और पेंटों की डिजाइन व इस्तेमाल होने वाले सामान के आधार पर घटताबढ़ता रहता है. जबकि कलर्स काउंसलर की मदद से घर की रंगाईपुताई का काम और महंगा पड़ता है. उस पर सामान खुद खरीद कर देना पड़ता है. पिछले साल की अपेक्षा इस साल रंग और पेंट्स के दामों में तकरीबन 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसलिए इस से बचने के तरीके निकालने जरूरी हैं. कितना बढि़या हो इस दीवाली घर की रंगाईपुताई आप खुद करने की ठानें.
जरूरी नहीं है कि बाजार से खरीदे महंगे पेंट ही इस्तेमाल करें बल्कि चाहें तो चूना, खरी और मामूली रंगों के घालमेल से भी बेहतर परिणाम पाए जा सकते हैं. डिजाइन बदल कर भी क्वालिटी पेंट जैसा परिणाम पाया जा सकता है. लेकिन सब से बेहतर है कि बाजार की चीजों और मजदूरों पर निर्भर न रहा जाए बल्कि कुछ जरा हट कर आजमाया जाए. अगर रंग से बचना चाहें तो आजकल वालपेपर भी नए विकल्प बन कर उभरे हैं. इस के अलावा कोई दीवार किसी रंग की वजह से अच्छी न लगे तो उस हिस्से को पेंटिंग्स या घर की तसवीरों का इस्तेमाल कर उस कमी को ढका जा सकता है. इस दीवाली आप भी अपने घर की रंगाईपुताई की योजना बना रहे होंगे. अमूमन तो लोग विज्ञापनों की चमकधमक और हर रंग कुछ कहता है की जुमलेबाजी में आ कर बाजार से महंगे पेंट खरीद कर घर चमकाने की सोचते हैं. लेकिन यह तरीका न सिर्फ काफी महंगा पड़ता है बल्कि दीवाली का बजट शुरुआत से ही असंतुलित करने लगता है. अगर इस महंगे खर्चे को बचा लिया जाए तो दीवाली पर और भी जरूरी खर्चे पूरे किए जा सकते हैं. और रही घर की रंगाईपुताई की बात तो इस के लिए इस बार जरा खुद ही हाथ आजमाएं. इस के 2 फायदे हैं. पहला तो आर्थिक मोरचे पर बचत होगी लेकिन दूसरा और सब से जरूरी फायदा यह कि रंगाईपुताई के जरिए न सिर्फ अपने घर को सजाएंगे बल्कि रिश्तों के मोरचे पर प्रगाढ़ता आएगी. वह ऐसे कि जब सब मिल कर कोई काम हंसीखुशी करेंगे तो मन में माधुर्य छलकेगा ही.
बीते दौर का मजा
जरा सोचिए, पुराने दिनों की तरह किसी आर्ट क्लास का असाइनमैंट पूरा करते समय आंगन में अपनों के साथ कलर्स और क्राफ्ट का काम कितने मजे से पूरा हो जाता था और परिवार की अहमियत भी समझ आती थी. लेकिन अब चूंकि न्यूक्लियर फैमिली का जमाना है और उस में भी वर्किंग क्लास और तकनीकी दखल ने कोई काम ऐसा छोड़ा ही नहीं जो सपरिवार मिलजुल कर मस्ती में पूरा किया जाए. हर कोई अकेले ही स्मार्ट फोन और कंप्यूटर में अपनेअपने कमरों में आंखें फोड़ रहा है. किचन में कामवाली बाई खाना बनाती है और बाकी लोग टीवी सीरियल से फुरसत नहीं पा पाते. ऐसे में इस दीवाली के दौरान रंगाईपुताई वह मौका है जब रंगों की कसरत में आप अपने रिश्तों में भी नई जान फूंकेंगे.
अकसर यह सवाल जेहन में आता है कि त्योहार से पहले इतने बड़े पैमाने पर साफसफाई भला जरूरी क्यों हैं. दरअसल, इसी त्योहार के बहाने साल में एक बार घर के कोनेकोने को पूरी तरह साफ कर लिया जाता है. घर की धूलगंदगी दूर हो जाती है. इस के अलावा कार्तिक मास से पूर्व बारिश का समय रहता है. लिहाजा कई जगह दीवारें सीलन पकड़ लेती हैं और उन से चूना आदि झड़ने लगता है. साफसफाई और रंगाईपुताई की परंपरा के बहाने इन का भी समाधान हो जाता है. सफाई के दौरान सर्दियों के कपड़ों को धूप दिखाने का काम भी हो जाता है. वास्तविकता तो यह है कि इतनी सफाई और रंगाई के बाद घर एकदम नया सा लगने लगता है. कई बार गैरजरूरी सामान जो बेकार में पड़ा होता है सफाई के बहाने निकल आता है और किसी जरूरतमंद को देने के काम भी आ जाता है. तीजत्योहारों का असल मकसद आपसी संबंधों में सौहार्द पैदा करना और बीते साल की कमियों और बुराइयों को दूर कर नए सिरे से नई शुरुआत करना होता है. हर दीवाली हम अपने घरों की सफाई तो करते हैं लेकिन जिस तरह सफाई और रंग करने से घर में एक अलग चमक आ जाती है वैसे ही अगर हम अपने मन की सफाई करें तो जीवन में नई उमंग आ जाए.
जब तक मन साफ नहीं है, बाहर की सफाई और सौंदर्य व्यर्थ है. कितना अच्छा हो यदि हम अपने भीतर का भी सौंदर्यीकरण करें. अपने मन की उलझनों और पुराने विचारों को बाहर निकाल कर नकारात्मक विचारों के जाले साफ करें. घर की सजावट और रोशनी की झालरों के साथ मन के अंदर सद्विचारों की झालर लगाएं, फिर देखें कि कितनी रोशनी होती है मन की संकरी गलियों में. इस दीवाली कुछ सार्थक करें तभी सही माने में उत्सव का आनंद मिलेगा.