करीब डेढ़ दशक पहले तक हर नौकरीपेशा व्यक्ति आयकर में छूट पाने के लिए सरकारी लघु बचत योजनाओं में निवेश करने के लिए पोस्ट औफिस और बैंकों में लाइन लगाए रहता था. इस के जरिए लोग अपने भविष्य के लिए गाढ़ी और मेहनत की कमाई से बचत कर लेते थे. राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेट (एनएससी), किसान विकास पत्र (केवीपी), वरिष्ठ नागरिक बचत योजना तथा एफडी (फिक्स्ड डिपौजिट) के खासे प्रचलन के साथ ही इसे ले कर लोगों में खासा उत्साह भी देखने को मिलता था. इन सब योजनाओं के लिए सरकार साढ़े 8 प्रतिशत से ज्यादा ब्याज देती थी और यह ब्याज दर आज भी लागू है.

पहले इस तरह के बचतपत्र पर 5 साल बाद दोगुना पैसा मिलता था. फिर करीब 8 साल में दोगुना होने लगा. इन बचत योजनाओं की जीडीपी में अच्छीखासी हिस्सेदारी होती थी. वर्ष 2008 में जीडीपी में इन योजनाओं की हिस्सेदारी 38.1 प्रतिशत थी जो 2012-13 में घट कर 30.1 प्रतिशत रह गई. कई संगठनों का मानना है कि सरकार को जीडीपी में इन पत्रों की भागीदारी बढ़ानी चाहिए. एचएसबीसी ने एक रिपोर्ट में कहा है कि सरकार को यह हिस्सेदारी 35 प्रतिशत अवश्य बढ़ानी चाहिए. इधर चर्चा थी कि सरकार इन योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती करने पर विचार कर रही है. इस पर सरकार ने विचार तो जरूर किया लेकिन ब्याज दरों में कमी करने का फैसला बदल दिया. इन में सुकन्या समृद्धि जैसी योजना आज भी अत्यधिक लोकप्रिय है. इस योजना के तहत सरकार ने 70 लाख खाते खोले हैं. बाद में यह योजना सरकार की बेटी बचाओ योजना का हिस्सा बन गई.

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