18 साल की पूजा का अपनी बहन से किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ. पूजा के मांबाप ने दोनों बहनों की बातचीत सुनी और पूजा को डांट लगाई कि छोटी बहन के साथ झगड़ा न करे. गुस्से में पूजा अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. घंटों गुजर जाने के बाद जब पूजा बाहर नहीं निकली और न ही कमरे का दरवाजा खुला तो पिता प्रदीप ने दरवाजा खटखटाया. अंदर से कोई जवाब नहीं मिलने पर प्रदीप ने घर वालों की मदद से दरवाजा तोड़ा तो देखा कि पूजा पंखे से लटकी हुई है. पुलिस आई और पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज कर जांच आदि में लग गई. पूजा ने खुदकुशी कर एक बार फिर इस सवड्डाल को खड़ा कर दिया कि मांबाप की डांटफटकार से नाराज हो कर बच्चे क्यों जान देने पर उतारू हो जाते हैं? पटना के कदमकुआं महल्ले की चूड़ी मार्केट के मिश्रा लेन में प्रदीप अपनी बीवी और 2 बेटियों के साथ रहते हैं. पूजा बीए पार्ट वन की स्टूडैंट थी. पिता की डांट से नाराज हो कर खुदकुशी कर उस ने अपने मांबाप और परिवार वालों को पुलिस व अदालत के चक्कर दर चक्कर लगाने की सजा दे दी. बेटी की मौत से आहत परिवार के लिए कानूनी पचड़ों में फंसना और भी ज्यादा तकलीफ देने वाला होता है.

कई लड़का इम्तिहान में कम अंक लाने की वजह से पिता से डांट खाने के बाद किसी पुल से नदी में छलांग लगा रहा है. किसी लड़के की मोटरसाइकिल या स्मार्ट फोन की फरमाइश पूरी करने से पिता ने मना कर दिया तो वह सल्फास की गोली खाने में जरा भी देरी नहीं करता है. लड़की के चक्कर में पड़ कर पढ़ाई पर ध्यान नहीं देने के लिए जब मांबाप किसी बच्चे को फटकार लगाते हैं तो कोई अपार्टमैंट की छत से कूद कर जान देता है तो कोई ट्रेन के आगे कूद कर. मांबाप की डांट से आहत या नाराज हो कर और बातबेबात खुदकुशी करने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं.

आखिर इतना गुस्सा क्यों और कैसे होता है कि अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली जाए? समाजशास्त्रियों का मानना है कि आम आदमी में सहनशक्ति में कमी आना, जरा से विरोध और डांट को प्रतिष्ठा का विषय बना लेना और समझौता करने की मानसिकता में कमी आने की वजह से बातबेबात खुदकुशी की वारदातें बढ़ रही हैं. मांबाप कोई भी गलत कदम उठाने से लड़केलड़कियों को रोकते हैं तो युवा खुदकुशी जैसा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं.

पटना हाईकोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि खुदकुशी करने वाले यह सोचतेसमझते नहीं हैं कि खुद को मिटा कर वे क्या पा लेते हैं. खुदकुशी न तो किसी परेशानी का हल है और न ही यह हिम्मत वालों का काम है. यह तो साफसाफ कमजोरों की गलत और गैरकानूनी हरकत है. खुदकुशी कर बच्चे अपने मांबाप को जिंदगी भर रोने और कोर्ट के चक्कर लगाने के लिए छोड़ जाते हैं. वे एक मिनट भी यह नहीं सोचते हैं कि उन की गलत हरकत से उन का परिवार कितनी बड़ी मुसीबत में फंस सकता है. 

बच्चे यह नहीं समझते हैं कि उन के मांबाप उन्हें डांटफटकार उन के ही भले के लिए लगाते हैं. उन की कमियों को दूर करने, उन्हें अच्छा और कामयाब इंसान बनाने, उन्हें सही रास्ते पर लाने और उन की गलत हरकतों को छुड़ाने के लिए ही वे बच्चों को डांटफटकार लगाते हैं. कोई बच्चा अगर पढ़ाईलिखाई के समय को बरबाद करता है तो अभिभावक को गुस्सा आना जायज है. मांबाप अपने बेटे को बड़ा अफसर बनाना चाहते हैं. उन्हें कामयाब होते देखना चाहते हैं. बच्चों को राह से भटकते देख कर ही वे डांट लगाते हैं.

पटना के एक सरकारी स्कूल की टीचर रेखा पोद्दार कहती हैं कि बच्चों के पढ़ाई में ध्यान नहीं देने, किसी विषय में कम अंक आने या फेल होने पर अभिभावक को बच्चों के साथ सख्त रवैया नहीं अपनाना चाहिए. बढ़ती उम्र के बच्चों का मन बहुत ही कोमल व अपरिपक्व होता है, ऐसे में उन से कोई गलती होने पर ठंडे दिमाग और प्यार से समझाना चाहिए. यह तरीका पिटाई और डांट से ज्यादा कारगर होता है.

अभिभावक के सख्त रवैए से डर कर या नाराज हो कर ही बच्चे खुदकुशी करने जैसा गलत तरीका अपना रहे हैं. हर बड़ेछोटे शहर में खुदकुशी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इस के पीछे की सब से बड़ी वजह क्या है? कोई इसे कच्ची उम्र की वजह बताता है तो कोई तेजी से बदलती जीवनशैली को. कोई बच्चों के प्रति उन के अभिभावकों की लापरवाही व उपेक्षा को दोष देता है तो कोई बच्चों में हर चीज को तुरतफुरत पाने के उतावलेपन को जिम्मेदार ठहराता है. परिवार के लोगों के बीच बढ़ती संवादहीनता को कोई खुदकुशी की बड़ी वजह करार देता है. 

मनोविज्ञानी अजय मिश्र कहते हैं कि आज के युवा जरा सी डांटफटकार या किसी नाकामी को इज्जत का सवाल बना लेते हैं और उस के बाद उन्हें जीवन ही बेकार लगने लगता है. ऐसे लोग खुदकुशी कर अपने जीवन को खत्म कर लेते हैं पर अपने परिवार वालों के लिए समाज में अपमान और आंसू छोड़ जाते हैं. खुदकुशी करने से पहले युवाओं को ठंडे दिमाग से यह सोचना चाहिए कि खुदकुशी किसी भी समस्या का हल नहीं है. समस्या से लड़ कर ही उस का हल निकाला जा सकता है, न कि उस से भाग कर. खुदकुशी करने वाले अपने परिवार वालों के लिए कई मुसीबतें और समस्याएं छोड़ जाते हैं.

पिछले साल 25 अक्तूबर को पटना में 21 साल की लड़की आर्या की खुदकुशी के बाद से उस के परिवार वाले पुलिस, अदालत, वकीलों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. आर्या के मां और पिता दोनों नौकरी करते हैं और अब वे जबतब काम से छुट्टी ले कर थानाकचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. रिश्तेदारों और पड़ोसियों की तिरछी नजरों का सामना नहीं कर पा रहे हैं.

रिटायर्ड पुलिस अफसर आर के सिंह कहते हैं कि बच्चों और अभिभावकों के बीच तालमेल की कमी से न बच्चे अपने मांबाप से खुल कर बातें कर पाते हैं न ही मांबाप के पास बच्चों की दिक्कतों को सुनने व समझने की फुरसत है. ऐसे हालात में तो बच्चे सही और गलत के बारे में सोचे बगैर ही कोई फैसला ले लेते हैं. आज बच्चों की तुनकमिजाजी आम होती जा रही है. जरा सी उन के मन के लायक बात नहीं हुई तो उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता है.

इस तरह की ढेरों वारदातें हमारे आसपास घटित हो रही हैं. खेलने और पढ़ने की उम्र में बातबेबात किसी की जान लेने, खुदकुशी करने की वारदातें इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि हर परिवार भय के माहौल में जीने लगा है. पता नहीं कब किस बात पर उन का बच्चा कोई गलत कदम उठा ले. मासूमों में आखिर इतना गुस्सा कैसे बढ़ गया है कि वे जान लेने या जान देने में जरा भी नहीं हिचकते हैं. ऐसे मामलों को रोकने के लिए कानून से ज्यादा अभिभावकों को समझने और समझाने की जरूरत है.

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