मैं अपने पति के साथ मुजफ्फरपुर से पटना जा रही थी. रास्ते में एक दुकान पर हम ने चायनाश्ता किया. लगभग 20-25 किलोमीटर जाने के बाद पति को याद आया कि उन का बैग, जिस में पैसे और अन्य महत्त्वपूर्ण कागज थे, उसी चाय की दुकान पर छूट गया. हम तुरंत वापस लौटे. रास्ते भर हम परेशान रहे. दुकान पर पहुंचते ही पति ने दुकान के मालिक से बैग के विषय में पूछा. मालिक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘घबराइए नहीं, आप का बैग यहीं है.’’ फिर उन्होेंने एक 18-20 साल के लड़के को बुलाया और कहा, ‘‘यह मेरी दुकान का आदमी है. इसे ही आप का बैग मिला, तो इस ने आ कर मुझे दे दिया.’’

पति ने उस का धन्यवाद करते हुए कहा, ‘‘इस बैग में मेरे सारे जरूरी कागज और पैसे थे. नहीं मिलता तो बहुत मुसीबत हो जाती.’’ उस लड़के ने कहा, ‘‘सर, आज तक इस दुकान से किसी का सामान गायब नहीं हुआ है. आप के सामान को अगर मैं ले लेता तो मैं अपनी नजरों से ही गिर जाता. मैं जितना कमाता हूं उस में बहुत खुश हूं. अपने साथसाथ मुझे अपने मालिक की प्रतिष्ठा को भी बचाए रखना था. मैं ऐसा कोई काम नहीं करता हूं जिस से मेरे मालिक की प्रतिष्ठा पर आंच आए. ये मेरे अन्नदाता हैं.’’ पति ने उसे कुछ पैसे देने चाहे तो उस ने नहीं लिए और कहा, ‘‘सर, आप का सामान आप को मिल गया, मेरे लिए यही बहुत है.’’ हम ने उन दोनों का फिर से शुक्रिया अदा किया और वहां से चल दिए. रास्ते भर यही सोचते रहे कि आज की दुनिया में भी ऐसे लोग हैं जो पैसों से ज्यादा इंसानियत को महत्त्व देते हैं.

मधु श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर (बिहार)

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मैं कोलकाता के लेकटाउन में रहने के लिए कुछ ही दिन पहले आई थी. मेरे पति अचानक बीमार पड़े और उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा. मुझे खाना पहुंचाने के लिए अस्पताल जाना था, सो, बस में सवार हो गई. मुझे उल्टाडांगा स्टेशन पर उतरना था पर वह आ ही नहीं रहा था. बहुत देर हो गई तो मैं ने कंडक्टर से संपर्क किया. उस ने बंगाली भाषा में कहा, ‘‘आप दूसरी बस में बैठ गई हैं.’’ उस ने मुझे केस्टोपुर स्टेशन पर उतार दिया. रात होने को आ गई थी. पति भूखे थे. अनजानी जगह, मुझे बहुत डर लग रहा था  मैं ने एक बंगाली भाई से पूछा, ‘‘दादा, यहां से साल्टलेक जाने का कोई रास्ता है क्या?’’ वह आदमी बहुत भला था. उस ने मुझे हाथ पकड़ कर एक बड़ा नाला पार कराया. फिर साथ चल कर मुझे फुटब्रिज दिखाया और कहा, ‘‘दीदी, यहां से आप औटो पकड़ कर अस्पताल चली जाइए.’’ मैं रात को 8 बजे अस्पताल पहुंची. उस बंगाली भाई का मन ही मन धन्यवाद कर रही थी. 

निर्मला जैन, कोलकाता (प.बं.) 

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