त्योहारों में दामों में इजाफा होने के आसार जारी है दालों और प्याज का कहर
नई दिल्ली : यकीनन दालें और प्याज आम आदमी की रोजाना की जिंदगी से जुड़ी अहम चीजें हैं. इन चीजों की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लग जाता?है कि इन की किल्लत से तमाम राजनीतिक समीकरण गड़बउ़ा जाते?हैं. आजकल भी कुछ ऐसा ही आलम है. घटिया मानसून की वजह से पैदावार कम होने और त्योहारों के मौसम की वजह से मांग में इजाफा होने से तमाम दालों की कीमतों में 10 से 15 फीसदी तक और इजाफा होने का अंदेशा?है. गड़बड़ाए हालात से निबटने के लिए सरकार को 1 करोड़ टन दाल का आयात करना पड़ सकता?है. ऐसा ही हाल प्याज का भी लगातार बना हुआ है. पिछले महीने भर से प्याज के तेवर लगातार तने हुए हैं, उन में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया?है. प्याज की कीमतें लगातार 80 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम पर टिकी हुई हैं. सड़ागला प्याज तक 50 रुपए प्रति किलोग्राम से कम में नहीं मिल रहा है. पिछले महीने भर से सरकार आम लोगों की इन खास चीजों के दाम कम करने की कोशिश में लगी है, मगर नतीजा सिफर रहा है. प्याज 60 और 80 रुपए प्रति किलोग्राम पर अटका है, तो तमाम दालों के दाम 140 से 160 रुपए प्रति किलोग्राम पर टिके हुए हैं. यानी इन चीजों की कीमतें पहले के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा हो गई हैं.
अगस्त महीने की शुरुआत में प्याज के दाम बढ़ने शुरू हो गए थे, तब सरकार ने प्याज का आयात करने का फैसला लिया था. केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय, उपभोक्ता मामले मंत्रालय व वाणिज्य मंत्रालय के मंत्रियों सहित कई बड़े अफसरों की बैठक में दाल व प्याज के 10-10 हजार टन के आयात का फैसला लिया गया था. प्याज व दाल के दामों पर नजर रखने के लिए सरकार की ओर से बाकायदा एक कमेटी भी बनाई गई?थी, मगर करीब डेढ़ महीने गुजर जाने के बावजूद दाल व प्याज की कीमतों पर लगाम लगाने की सरकार की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं. अगस्त महीने के अंत में प्याज आयात के लिए मुकर्रर सार्वजनिक कंपनी एमएमटीसी की ओर से बताया गया कि 10 सितंबर तक आयातित प्याज की पहली खेप आ जाएगी, मगर अब अक्तूबर महीने के पहले हफ्ते में आयातित प्याज के आने की उम्मीद की जा रही?है. दाल के मामले में वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मानसून सीजन में औसत से कम पानी बरसने से देश के खास दाल उत्पादक सूबों में पैदावार घटने का अंदश्े है. इन हालात में दलहनों की कुल पैदावार 1.7 करोड़ टन तक सिमट सकती?है, जबकि इन की जरूरत 2.7 करोड़ टन है.
ऐसे आलम में दशहरे से क्रिसमस तक दालों की मांग में तेजी रहने से दालों की कीमतों में 15 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है. मौजूदा वक्त में बाजार में अलगअलग दालों की कीमतें 100 रुपए से 160 रुपए प्रति किलोग्राम तक हैं, जो दीवाली व क्रिसमस तक काफी आगे तक जा सकती हैं. तमाम लोग आजकल दालों की बजाय छोले व राजमा ज्यादा खा रहे हैं, मगर इन से दालों की कीमतों पर खास असर नहीं पड़ने वाला. हालांकि ये चीजें करीब आधे दामों पर उपलब्ध हैं. छोले व राजमा फिलहाल 80 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहे?हैं. भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सूबों में दलहन का ज्यादा उत्पादन होता?है, मगर सामान्य से 18 फीसदी कम बरसात होने की वजह से इस बार पैदावार काफी घटने के आसार हैं. वैसे देश के कुल दलहन उत्पादन में इन सूबों का दखल करीब 70 फीसदी होता है, जो इस बार काफी घट सकता?है. कुल मिला कर प्याज व दालों के मामले लगातार गड़बड़ाए हुए?हैं और जनता के साथसाथ सरकार का चैन भी छीने हुए?हैं. देखने वाली बात?है कि कब तक हालात काबू में आते हैं.
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प्याज पर नेताजी की नसीहत
जयपुर : महंगा प्याज वैसे भी आम आदमी की पहुंच से दूर होता जा रहा है, वहीं तुर्रा यह कि प्याज नहीं खाओगे, तो मर नहीं जाओगे. यह बात आम नागरिक नहीं कह रहा, बल्कि प्रदेश के कृषि मंत्री कह रहे हैं. राजस्थान के कृषि मंत्री प्रभुलाल ने एक बैठक में यह कह कर सभी को चौंका दिया कि प्याज नहीं खाओगे तो मर नहीं जाओगे. हुआ यों कि एक बैठक में कृषि मंत्री प्रभुलाल ने एक किसान से पूछा कि सब से ज्यादा खाई जाने वाली चीज क्या है?
इस पर उस किसान ने जवाब दिया कि प्याज. उस किसान का इतना कहना ही था कि कृषि मंत्री प्रभुलाल नाराज हो गए. वे किसान को नसीहत देने लगे कि प्याज नहीं खाओगे तो मर नहीं जाओगे. इतना कह कर वे यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि किसानों को प्याज के 2 रुपए ज्यादा मिलने लगे, तो इस में परेशानी क्या है. इस पर एक किसान ने कहा कि हमें दुख इसी बात का है. प्याज की बोरियां कारोबारियों के गोदामों में लगी हैं. किसान के घर में प्याज है ही नहीं. बहरहाल, मंत्री की बात मुनासिब नहीं कही जा सकती.
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सलाह
‘इफको’ ने कराई किसान गोष्ठी
जोधपुर : इंडियन फार्मर्स फर्टीलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड यानी इफको द्वारा 19 सितंबर को श्री नगाराम, भवाल में एक किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिस में कृषि विशेषज्ञ डाक्टर तखतसिंह ने फसलों में लगने वाले रोगों व कीटों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि रसायनों का इस्तेमाल कम करते हुए जैविक नियंत्रण किया जाना चाहिए ताकि मानव व पशु स्वास्थ्य के साथसाथ खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य भी बना रहे. इफको के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक दिलीप कुमार सीवर ने किसानों को बताया कि यूरिया का अंधाधुंध इस्तेमाल देश की अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा?है. इस के कारण ग्रामीण क्षेत्र में अनेक प्रकार की बीमारियां पनप रही हैं. खेती के लिए मिट्टी जांच के बाद ही उर्वरक इस्तेमाल करें. खेती में गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, जैव उर्वरक का इस्तेमाल बहुत जरूरी है. दलहन व तिलहन फसलों में अच्छी उपज व बीमारी और कीड़ों से बचाव के लिए सल्फर व पोटाश का इस्तेमाल किया जाना बहुत जरूरी है.
‘इफको’ किसान संचार के गोपाराम ने वर्तमान मोबाइल युग में कृषि के लिए लाभदायक जानकारी हासिल करने का सही माध्यम इफको किसान संचार को बताते हुए कहा कि हर किसान के पास कृषि से संबंधित नई जानकारी हासिल करने के लिए इफको किसान संचार का सिम जरूर होना चाहिए. इस में मौसम, मंडी भाव, फसलों में रोग व कीट नियंत्रण, उन्नत किस्में, कृषि रसायन, संतुलित उर्वरक, मिट्टी की जांच, रोजगार, पशुपालन व कृषि विभाग की विभिन्न योजनाओं की जानकारी से संबंधित 5 संदेश रोजाना मुफ्त में दिए जाते हैं.
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सख्ती
कुएं सूखे मिले तो होगी कार्यवाही
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के लघु सिंचाई, भूगर्भ एवं पशुधन मंत्री राजकिशोर सिंह ने बापू भवन सभागार में लघु सिंचाई विभाग की समीक्षा बैठक में निर्देश दिए कि किसानों के बीच जागरूकता फैलाई जाए कि पाइप द्वारा सिंचाई करने से कितनी मात्रा में पानी की बचत होती है और पानी की बचत से उन को क्या फायदा मिलेगा.लघु सिंचाई मंत्री ने बैठक में कहा कि मुख्यमंत्री पेयजल योजना में अभियंताओं द्वारा दिलचस्पी नहीं ली जा रही है और शासन को कोई प्रस्ताव अभी तक नहीं भेजा गया है. उन्होंने योजना के बारे में शासन को प्रस्ताव भेजने के लिए 15 दिनों का समय दिया. राजकिशोर सिंह ने इस अवसर पर राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत चौकडैम निर्माण, तालाबों का निर्माण व जीर्णोद्धार, मुफ्त बोरिंग और सामूहिक नलकूपों के उर्जीकरण एवं जल वितरण योजनाओं की गहन समीक्षा की. उन्होंने कहा कि यदि कुएंतालाब सूखे पाए गए तो संबंधित अभियंताओं के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी. उन्होंने कुओं के गहरीकरण के लिए 15 दिनों का समय दिया और नलकूपों के ऊर्जीकरण के सत्यापन का काम पूरा करने के लिए 10 दिनों का समय तय किया.
उन्होंने कहा कि तमाम इंजीनियर ऊर्जा विभाग की ऊर्जीकरण की रिपोर्ट पर ही अपनी रिपोर्ट तैयार कर लेते हैं, जो कि सही नहीं है. निरीक्षण में यह रिपोर्ट गलत मिलती है. उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर योजनाओं के सत्यापन के लिए अवर अभियंता व अधिशासी अभियंता के साथसाथ अधीक्षण भी बराबर के उत्तरदायी माने जाएंगे.
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कसौटी
कोक और स्लाइस ड्रिंक में हैं खामियां
लखनऊ : अभी तक नैस्ले कंपनी की मैगी पर ही गाज गिरी थी, भले ही उसे मुंबई हाईकोर्ट से राहत मिल गई हो, पर अब कोक और स्लाइस जैसी कोल्ड ड्रिंकों पर भी गाज गिरी है. फैजाबाद जिले में कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली 2 बड़ी कंपनियों कोका कोला और पेप्सी में गड़बडि़यां पाई गई हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2 तरह के कोल्ड ड्रिंक खाद्य पदार्थ के मानक पर खरे नहीं उतरे. बता दें कि कोल्ड ड्रिंक कोका कोला व स्लाइस की पैकेजिंग और लेबलिंग में खामी पाई गई है. दोनों ब्रांड के फ्रेंचाइजी को खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की ओर से 2 लाख रुपए जुर्माने का नोटिस भेजा गया है. फैजाबाद में कोका कोला के फ्रेंचाइजी अमृत बाटलर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कोक की सप्लाई की जाती है. 13 जुलाई, 2015 को एफएसडीए की छापामारी में पैकेजिंग व लेबलिंग में खामी मिली थी. इस पर बोतलों को सील करने के साथ ही एक नमूना गोरखपुर लैब में भेजा गया. 13 अगस्त को आई रिपोर्ट में कोक की क्वालिटी में तो कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई, मगर नए कानून के मुताबिक पेय पदार्थ के मानकों का विवरण बोतल पर होना चाहिए, जो नहीं था, परंतु यह विवरण क्वार्क यानी ढक्कन के अंदर मिला.
कार्यवाही के बाद 90 फीसदी ऐसी बोतलें बाजार से हटा ली गई हैं, मगर अब जुर्माने का मुकदमा चलाने का नोटिस भेजा जा रहा है. इसी तरह 16 मई, 2015 को शहर से सटे गद्दोपुर स्थित पेप्सी के डिपो से स्लाइस कोल्ड ड्रिंक का नमूना सील किया गया. इस के बैच नंबर में गड़बड़ी मिली. 3 सितंबर, 2015 को लैब से रिपोर्ट आई, तो यह शीतल पेय भी लेबलिंग के मानक पर खरा नहीं उतरा. उम्मीद है कि अब ऐसा नहीं होगा.
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अजीब
तेंदुए के पेट से निकलीं तमाम चीजें
देहरादून : पिछले दिनों गढ़ी कैंट इलाके के सैप्टिक टैंक के ऊपर कांटेदार तारों में फंस कर मरे तेंदुए की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने वन अधिकारियों को चौंका दिया है. चौंकाने वाली बात यह है कि तेंदुए के पेट से पानमसाले के तमाम पाउच निकले हैं. साथ ही कचरा और कीड़े भी पाए गए हैं. तेंदुए के डीएनए सैंपल, कीड़ों और बिसरा को जांच के लिए वन्य जीव संस्थान भेजा गया है. परंतु सवाल यह है कि पान मसाले के पाउच उस के पेट में कैसे पहुंचे? 4 साला तेंदुए की मौत पेट में कांटेदार तार घुसने से हुई है, परंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत खून का अधिक बह जाना पाई गई. वन विभाग के कुछ अफसरों को शक था कि कहीं तेंदुए की मौत किसी के जहर देने से तो नहीं हुई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अब यह बात साफ हो गई है कि उसे जहर नहीं दिया गया था, मगर उस के पेट से पानमसाला, कचरा और कीड़े निकलने से मामला उलझ गया है. वन अधिकारियों को आशंका है कि कहीं तेंदुए ने भूख की वजह से कचरा तो नहीं खाया, वहीं यह भी कयास लगाया जा रहा है कि उस ने कुत्ता, सूअर या कोई गायभैंस खाई होगी, जिस से उस के पेट में पानमसाला पहुंच गया होगा.
कहीं तेंदुए ने पूरा कुत्ता या सूअर तो नहीं खाया होगा, ऐसे में पानमसाले के पाउच और कचरा अंदर कैसे पहुंचा? इस सवाल का हल ढूंढ़ने के लिए वन्य जीव संस्थान उस के पेट से निकले कीड़ों, डीएनए और बिसरा पर जांच करेगा. वाकई यह हादसा अजीबोगरीब है और तमाम सवाल खड़े करता है. आमतौर पर तेंदुआ कचरा वगैरह नहीं खाता है. खतरनाक तेंदुआ तो मार कर ताजा मांस खाना पसंद करता?है. खैर, मामले का खुलासा जांच की रिपोर्ट आने पर होगा. ठ्ठ
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नेकी
दादी की रसोई : गरीबों की भलाई
नोएडा : दादी की रसोई का नाम सुनते ही आंखों में एक नई चमक उभर आती है. क्योंकि यहां का खाना ऐसा होता है, जो अपने घर की याद दिला देता है. जहां एक ओर महंगाई की मार से आम जनता परेशान है. उन्हें भरपेट खाना नहीं मिल पाता है. ऐसे में अगर कोई 5 रुपए में गरीबों का पेट भर दे, तो वह वाकई मसीहा होने का काम कर रहा है. 5 रुपए में भरपेट खाना खिलाने की बात सुन कर भले ही आप को अपने कानों पर भरोसा न हो, लेकिन यह सच बात है. 5 रुपए में भरपेट खाना खिलाने का बीड़ा उठाया है समाजसेवी अनूप खन्ना ने. समाजसेवी अनूप खन्ना का इस बारे में कहना है, ‘मेरी दादी मां ने एक बार मुझ से कहा था कि अब तो मैं सिर्फ खिचड़ी खाती हूं, मेरे ऊपर होने वाले खर्च में काफी बचत होती है, उस से तुम गरीबों को खाना खिलाओ. ‘दादी की बात मान कर मैं ने गरीबों के लिए कम पैसों में खाना खिलाने का बीड़ा उठाया है.’
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योजना
गोरखपुर विश्वविद्यालय में कृषि संकाय
गोरखपुर : पूर्वी उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा का केंद्र गोरखपुर विश्वविद्यालय अब कृषि विभाग में छात्रों को पढ़ाई का अवसर मुहैया कराएगा. इस के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा शासन से अनुमति मांगी गई थी, जिस की मंजूरी मिलने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कृषि संकाय के संचालन के लिए शहर के चरंगांवा में जमीन तलाश कर के 94 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा गया?है. गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार ने बताया कि गोरखपुर व बस्ती मंडल के छात्रों को कृषि की पढ़ाई के लिए अब गोरखपुर से ही डिगरी मिल सकेगी. उन्होंने कहा कि कृषि संकाय खुल जाने से यहां नएनए शोध होंगे, जिस से किसानों का फायदा होगा. कई सालों से विश्वविद्यालय प्रशासन से कृषि संकाय खोलने की मांग की जा रही थी. उसी के तहत यह फैसला लिया गया है. कुलपति प्रो. अशोक कुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय में नब्बे के दशक में 2 सालों तक कृषि की पढ़ाई हुई. भवन भी बन रहा था, लेकिन बाद में उस बिल्डिंग में वनस्पति विज्ञान की पढ़ाई होने लगी. विश्वविद्यालय से जुड़े मात्र 3 महाविद्यालयों में कृषि विषय की पढ़ाई हो रही थी, जिन में गोरखपुर, बस्ती व देवरिया के 1-1 महाविद्यालय शामिल हैं. कृषि संकाय शुरू हो जाने से छात्रों को दूर के शहरों में जाने से नजात मिलेगी.
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वापसी
आटे के नूडल्स लाएंगे चेहरों पर खुशियां
हरिद्वार : जिधर देखो उधर मैगी ही दुकानों में लटकी दिखाई देती थी. मैगी का बाजार चरम पर था. लाखोंकरोड़ों रुपए का कारोबार था. कइयों की रोजीरोटी का जरीया था. मैगी बच्चों की जबान पर चढ़ चुकी थी और जल्दी बनने वाली मैगी हर किसी की चहेती बनी हुई थी. अचानक ही मैगी के कुछ सैंपल जांचे गए और उस के मसाले में लैड की ज्यादा मात्रा पाए जाने पर रातोंरात मैगी बाजार से बाहर हो गई. मैगी न मिलने से बच्चे बेहद मायूस से दिखते थे. नैस्ले की मैगी तो मैदे से बनती थी, पर छोटे बच्चों की ख्वाहिश को ध्यान में रखते हुए पतंजलि योगपीठ ने आटे से तैयार नूडल्स बनाने की जोरशोर से तैयारी कर ली है, क्योंकि मैदे से बनने वाले नूडल्स बच्चों के पेट खराब करते थे, साथ ही सेहत भी नहीं बनती थी. पर अब बाबा रामदेव खुद बच्चों के लिए आटे से बने नूडल्स बाजार में लाने जा रहे हैं. पतंजलि योगपीठ आटे से बने नूडल्स बाजार में उतारने जा रहा है. पतंजलि योगपीठ का दावा है कि आटे से बने नूडल्स खाने से बच्चों की सेहत ठीक रहेगी और वे सेहतमंद भी बने रहेंगे.
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मुहिम
सोलर पावर बिजनेस देगा एक नई दिशा
नई दिल्ली : नए कारोबारी आगे आएं, हम उन्हें काम देंगे.
यह बात भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में एक बार कही थी, जो शायद अब लोगों को याद भी न हो. पर सच यही है कि जनता से किए गए वादे अब निभाए जा रहे हैं. जो कहा, वह किया के वादों में से एक है सोलर पावर बिजनेस. यह बिजनेस आम लोगों की जिंदगी से जुड़ा है. सरकार की योजनाओं का फायदा लेते हुए नए चैनल पार्टनर सोलर प्लांट लगाने में मदद करेंगे. इन सोलर प्लांट को ग्रिड से जोड़ कर ये चैनल पार्टनर 7 रुपए प्रति यूनिट की दर से अपनी बिजली बेच सकेंगे. जी हां, यह सच कर दिखाया है मोदी सरकार ने. सोलर पावर बिजनैस के बारे में मोदी सरकार जो सोच रही है, अगर सही साबित हुआ तो साल 2022 तक हर घर को बिजली मिलने की उम्मीद है. सरकार की योजना है कि नए कारोबारियों को चैनल पार्टनर बना कर सोलर पावर बिजनेस शुरू किया जाए. इस योजना का दायरा बढ़ाने के लिए सरकार ने औनलाइन प्रक्रिया शुरू की है. नए चैनल पार्टनर बनने की प्रक्रिया औनलाइन करने के लिए मंत्रालय ने अलग से एक नया साफ्टवेयर तैयार किया है. इस साफ्टवेयर को मंत्रालय की वैबसाइट पर अपलोड किया जाएगा.
स्पिन नाम का यह साफ्टवेयर केवल नए चैनल पार्टनर के लिए होगा, जिस में चैनल पार्टनर बनने के लिए कारोबारी आवेदन करेंगे, बल्कि इसी साफ्टवेयर पर मंत्रालय की ओर से आवेदन मंजूरी की सूचना भी दी जाएगी. इतना ही नहीं, चैनल पार्टनर बनने के बाद कारोबारियों को इसी साफ्टवेयर पर अपने प्रोजेक्ट अपडेट करने होंगे. सोलर पावर बिजनेस कितना कामयाब रहेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बता पाएगा.
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जज्बा
शौचालय तो बनवाया, पर अपनी बकरियां बेच कर
छत्तीसगढ़ : कलक्टर का आदेश हुआ कि कोई खुले में शौच नहीं जाएगा. शौचालय अपने घरों में ही बनवाएं, वरना उचित कार्यवाही की जाएगी. कलक्टर का फरमान सुनते ही 104 साल की बुढि़या ने अपनी बकरियां बेच सब से पहले खुद के लिए शौचालय बनवाया, साथ ही, दूसरे लोगों को भी शौचालय बनाने के फायदे समझाए. छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिले में गंगरेल तालाब के पास कोटाभर्री गांव है. जिला मुख्यालय धमतरी से यह गांव महज 14 किलोमीटर दूर है. धमतरी के कलक्टर की अपील पर गांव की 104 साल की बुढि़या कुंवर बाई यादव सब से पहले शौचालय बनवाने के लिए आगे आईं. उन की इसी सोच ने आज गांव की तसवीर बिल्कुल बदल कर रख दी है. बकरियां चरा कर अपनी जिंदगी गुजारने वाली कुंवर बाई ने 22 हजार रुपए में बकरियां बेच कर गांव में सब से पहले शौचालय बनाया. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से प्रेरित हो कर कुंवर बाई ने बाकायदा घरघर जा कर लोगों को शौचालय बनवाने के लिए कहा और गांव वालों को इस के फायदे समझाने में कामयाब हुईं. आज यह गांव खुले में शौच करने नहीं जाता है. जिंदगी के आखिरी पड़ाव में कुंवर बाई की मजबूत इच्छाशक्ति लाजवाब है. उन के द्वारा गांव में शौचालय बनवाना नई पीढ़ी के लिए यादगार बन गया है. आज कोटाभर्री गांव के सभी घरों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत शौचालय बन चुके हैं. इतना ही नहीं, जंगल ऊपरपारा में रह रहे 30 परिवारों ने भी स्वच्छता और शौचालय की अहमियत को समझा और अपने घरों में शौचालय बनवा लिए. 30 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. इस गांव में जिले के कलक्टर ने चौपाल लगा कर स्वच्छता के प्रति लोगों की सोच बदल दी है. गांव कोटाभर्री के लोग खुले में शौच करने के बजाय घरों में शौच के लिए जाते हैं. महिलाएं भी अब खेतों में लोटा ले कर नहीं जाती हैं.
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मुद्दा
बकरी का दूध ज्यादा कीमती
नई दिल्ली : चाहे आंखें फाड़ो या हैरानी जताओ, पर है तो सच कि बकरी का दूध अब आम इनसानों के बजाय डेंगू के मरीजों को दवा के रूप में मिलने लगा है, वह भी आसमान छूती कीमतों पर. बकरी का दूध पीने में पहले भले ही हम नाकभौं सिकोड़ते रहे हों, पर अब यही दूध गायभैंस के दूध से भी ज्यादा कीमत चुकाने पर मिलता है. इस के दाम को सुन कर अच्छेअच्छों के पसीने आ जाएं. बकरी का दूध बेचने वालों से उस की कीमत पूछोगे, तो सीधे कहेंगे कि 2000 रुपए लीटर. मरता क्या न करता. मरीज की जिंदगी बचाने की खातिर लोगों को खरीदना पड़ रहा है इतना महंगा बकरी का दूध. डेंगू के मरीज को दुरुस्त रखने की वजह से इन दिनों बकरी का दूध 2 हजार रुपए प्रति लीटर बिक रहा है. हालांकि पैसे देने के बाद भी मरीजों को महज 50 ग्राम से ले कर 100 ग्राम ही दूध मिल पा रहा है. डेंगू के इलाज के लिए सब से ज्यादा मुफीद बकरी का दूध दिल्ली के अलावा गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव में जा कर लोग तलाश रहे हैं. वैसे तो डेंगू बुखार में पपीते के पत्ते का रस, नारियल का पानी, मौसमी का जूस व अनार का सेवन मरीजों को काफी फायदा पहुंचाता है. इस वजह से इन चीजों के दाम भी काफी महंगे हो गए हैं. मगर इस मामले में बकरी के दूध की अहमियत सब से ज्यादा है.
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मुहिम
बिहार की पंचायतें होंगी शौचमुक्त
पटना : बिहार की 38 पंचायतों को 2 अक्तूबर तक पूरी तरह से साफ बनाने की कवायद शुरू कर दी गई?है. राष्ट्रीय सफाई अभियान के तहत उन पंचायतों में खुले में शौच पर पूरी तरह से पाबंदी लग जाएगी. बिहार सरकार ने इस अभियान के तहत सब से पहले राज्य के सभी 38 जिलों में 1-1 पंचायत को पूरी तरह से साफ बनाने की योजना पर काम शुरू किया है. गौरतलब है कि अब तक 12 गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा चुका है. खगडि़या जिले के घोघरी प्रखंड की रामपुर पंचायत को सब से पहले पिछली 10 अगस्त को पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था. उस के बाद 15 अगस्त को गया जिले के शेरघाटी प्रखंड के हरना और मंझौली गांवों व दरभंगा की बनौली ग्राम पंचायत को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया. सफाई अभियान के तहत राज्य की कुल 8534 पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त बनाना?है. राज्य सरकार का दावा है कि हर रोज 1 हजार शौचालय बनाए जा रहे?हैं. जल्द ही रोजाना 5 हजार शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है.
इस अभियान की देखभाल के लिए हर जिले में जिलाधीश की अगवाई में ‘जिला जल एवं स्वच्छता समिति’ बनाई गई है. खुले में शौच को बंद करने के लिए गांव वालों को जागरूक करने के लिए स्वयं सहायता समूहों समेत कई एनजीओ की मदद ली जा रही है. वे लोग प्रभातफेरी के जरीए लोगों को खुले में शौच न करने को ले कर जागरूक कर रहे हैं. बिहार सरकार की यह मुहिम वाकई काबिलेतारीफ है. वाकई कंप्यूटर व इंटरनेट के आधुनिक जमाने में लोटा ले कर जंगल जाने की बात अटपटी ही नहीं शर्मनाक भी लगती है. ऐसे में सरकार का कमर कसना बेहद सही कदम?है.
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सलाह
कलेक्टर ने संभाली खेतीबारी
सिरोही : जिला कलेक्टर वी सरवन कुमार ने किसानों को नई व उन्नत खेती अपनाने की सलाह दी?है. इस के लिए उन्होंने विभागीय अधिकारियों को भी नई तकनीकी खेती में किसानों की भरपूर मदद करने की हिदायत दी?है. उन्होंने कहा है कि खेती व उद्यान महकमे के अफसर दफ्तरों से बाहर निकल कर किसानों के खेतों में जाएं व उन्हें कम पानी की उन्नत खेती के बारे में बताएं. उन्होंने हर गांव में किसानों को कृषि विभाग से जोड़ने के लिए एसएमएस सेवा शुरू करने पर भी जोर दिया और किसान पोर्टल से भी किसानों को सीधा जोड़ने की खेती व उद्यान महकमे के अफसरों को सलाह दी. कृषि व आत्मा परियोजना के तहत होने वाले कार्यक्रमों की समीक्षा करते हुए कलेक्टर ने कहा कि इस तरह का माहौल बनाया जाए, जिस से कि गांवों में खेती की फायदेमंद योजनाओं से किसान अपनेआप जुड़ें. कलेक्टर महोदय का काम वाकई काबिलेतारीफ है.
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अजूबा
खुद को ही खाने की कोशिश
फ्लोरिडा : कोई जीव अपना पेट भरने के लिए दूसरे जीव को खाए, यह तो आम बात है, लेकिन अगर वह खुद को ही खाने की कोशिश करे, तब क्या होगा. मियामी शहर के एक बाशिंदे टोड रे के पास दोमुंहा सांप है. यह सांप कई बार अपने मुंह के साथ वाले दूसरे मुंह को देखता है, तो उसे ही खाने की कोशिश करता है. मेडुसा नाम के इस सांप के अलावा टोडरे के पास 2 मुंह के जानवरों का नायाब कलेक्शन है. इस कलेक्शन में 2 मुंह वाला मेढक और 2 मुंह की छिपकली भी हैं. वे कहते हैं कि दूसरे जीवों की तुलना में 3 फुट लंबा मेडुसा सब से ज्यादा ऐक्टिव है. टोड रे का नाम गिनीज बुक में भी दर्ज है.
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गेहूं बीज कुदरत 8 छोटा पौधा उपज कमाल
वाराणसी : कुदरत बीज श्रृंखला के जनक प्रकाश सिंह रघुवंशी के पास ‘कुदरत 8’ के नाम से गेहूं बीज की खास प्रजाति है. इस गेहूं की बाली की लंबाई 9 इंच है, जिस में तकरीबन 80 से 100 दाने निकलते?हैं. गेहूं का दाना मोटा और चमकदार?है. इस की पैदावार 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़?है. फसल पकने का समय 120 दिन का है और बोआई में 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ लगते हैं. राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रगतिशील किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी ने बताया कि ‘कुदरत 8’ बौनी किस्म की प्रजाति है. यह प्रजाति मौसम के उतारचढ़ाव को सहने की कूवत रखती?है और इस किस्म में बीमारी लगने की बहुत कम संभावनाएं हैं. रघुवंशी ने बताया कि उन के द्वारा विकसित की गई कुदरत बीज प्रजाति को देश के कोनेकोने में लाखों किसान अपने खेतों में लगा रहे?हैं और अधिक उत्पादन भी पा रहे?हैं. किसान ही किसानों से बीज खरीद रहे?हैं और किसानों को घर बैठे कुदरत बीज से रोजगार भी मिल रहा?है. रघुवंशी का मानना है कि ‘किसान का पैसा किसान के हाथ, गांव का पैसा गांव में’. अगर कोई किसान बीज उत्पादन का तकनीकी प्रशिक्षण व जानकारी चाहता?है तो मोबाइल नंबर 09839253974 पर जानकारी ले सकता है.
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बेईमानी
बेंतफल की हो रही तस्करी
महाराजगंज : जंगलों में उगने वाले बेंतों में बाघ व तेंदुए अपने घर बनाते हैं. बेंतफल महंगे सौंदर्य प्रसाधनों व सजावट की वस्तुओं के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं. इसी वजह से इन की तस्करी की जाती है. महाराजगंज जिले के सोहगीबरवा वन्य प्रभाग में नेपाल से निकलने वाली गंडक नदी के इलाके शिवपुर, निचलौल व मधवलिया रेंज में उगने वाले बेंतफलों की तस्करी जोरशोर पर है. तस्करों द्वारा यहां के आसपास के लोगों को मुंहमांगे दाम दे कर बेंतफल तोड़वाए जाते हैं और फिर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेच दिया जाता है. बेंतफल नेपाल, बिहार व पश्चिम बंगाल के रास्ते विदेशों में भेजे जाते हैं. सोहगीबरवा वन्य क्षेत्र में अब तक पकड़े गए बेंतफलों से यह साबित हो गया है कि वनविभाग की लाख कवायदें भी इन बेंतफलों के तस्करों को रोकने में नाकाम रही हैं. मधवलिया रेंज के सिंहपुर में ट्रकों में लाद कर ले जाते हुए 500 बोरी बेंतफल बरामद हुए थे. उस वक्त मुख्य वनसंरक्षक के थामस ने मौके पर पहुंच कर एक वनदरोगा को निलंबित कर दिया था.
सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग महाराजगंज के डीएफओ शिवाजी राय ने बताया कि कुछ लोग जंगलों से सटी अपनी निजी जमीन पर बेंतफल की खेती करते हैं, जिस की आड़ में बेंतफल तोड़ने का परमिट ले कर तस्कर वनकर्मियों की मिलीभगत से वन क्षेत्र के बेंतफल तोड़ लेते हैं. वन क्षेत्र में बेंतफल तोड़े जाने में शामल वनकर्मियों के खिलाफ भी जरूरी कार्यवाही की जा रही?है. शिवाजी राय ने बताया कि तस्करों द्वारा बेंतफल के 10-12 फल वाले गुच्छों को तोड़ कर धूप में सुखाया जाता है और फिर उन्हें पैक कर के गंडक डोमा, नेपाल, बिहार, पश्चिम बंगाल के रास्ते दूसरे देशों तक पहुंचा दिया जाता है.
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सुविधा
फोन से किसानों की समस्याओं का हल
बस्ती : अब किसानों को फसल में रोग लगने की दशा में कृषि वैज्ञानिकों के पास चक्कर नहीं काटना पड़ेगा. इस के लिए कृषि विभाग ने मोबाइल फोन के जरीए किसानों की समसया हल करने की पहल की है. बस्ती जिले में इस की शुरुआत की जा चुकी?है. यह काम भारत सरकार द्वारा देश भर के किसानों को विशेषज्ञों से मोबाइल से जोड़ने की योजना के तहत शुरू किया गया?है. किसान मोबाइल फोन के जरीए जान सकेंगे कि उन्हें फसल में कब और कितनी मात्रा में खाद का इस्तेमाल करना है. इस के अलावा किसानों को 5 दिन पहले ही मौसम की जानकारी मिल जाएगी. इस के अलावा अगर किसान की फसल में कोई रोग लगा है और वह उस का इलाज चाहता?है, तो उसे अपनी रोगग्रसत फसल का फोटो खींच कर वाट्सऐप नंबर से विभाग द्वारा मुहैया कराए गए नंबरों पर भेजना होगा. इस के अलावा खेती की अन्य जानकारियों के लिए विभाग के नंबरों पर एसएमएस करना होगा. बस्ती जिले के उपनिदेशक कृषि डा. पीके कन्नौजिया ने बताया कि इस काम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान भी अपना पूरा सहयोग देगा. इस प्रकार मोबाइल आधारित सेवा के जरीए किसान को उस की समस्या का समाधान आसानी से मिल सकेगा.
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घपला
बूंदबूंद सिंचाई में भ्रष्टाचार की बूंदें
जयपुर : किसानों के लिए वरदान बनी प्रदेश की बूंदबूंद सिंचाई योजना में अब भ्रष्टाचार की बूंदें भी नजर आने लगी हैं. योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी में हेरफेर के ऐसे कई मामले बीकानेर व चुरू जिलों में सामने आए हैं. दोनों ही जिलों में पिछले दिनों?भ्रष्टाचार निरोधक टीम ने?छापा मार कर विभागीय अनुदान पत्रावलियां जब्त की?हैं. विभागीय अफसरों ने बूंदबूंद सिंचाई व फव्वारा सिस्टम के अनुदान में कार्यकारी एजेंसियों से मिलीभगत कर करोड़ों रुपए का घपला किया है. जानकारी के मुताबिक बीकानेर में साल 2014-15 के लिए चयनित 234 किसानों की फाइलें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने जब्त की हैं. एसीबी के अपर पुलिस निदेशक परवत सिंह के मुताबिक 4.84 करोड़ रुपए का अनुदान कार्यकारी एजेंसी व फर्मों को फरवरी 2015 में जारी करने का जिक्र?है, जबकि मौके पर काम ही नहीं हुआ?है. इसी तरह चुरू जिले में भी एसीबी के सीआई लीलाधर जांगिड़ के मुताबिक जिले के उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने किसानों के खेतों में बिना फव्वारा सिस्टम लगाए ही कार्यकारी एजेंसियों व फर्मों को बड़ी रकम का भुगतान कर दिया. एसीबी टीम ने यहां भी सारे रिकार्ड जब्त कर लिए.
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नकेल
सहकारी समितियों पर कसा शिकंजा
पटना : बिहार की सभी सहकारी समितियों में लूटखसोट और अफसरों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सभी समितियों के काम की निगरानी करने का फरमान जारी कर दिया गया है. सहकारी समितियों में होने वाली गड़बडि़यों की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए बहुराज्यीय सहकारी समितियों, क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटियों और चिट फंड कोऔपरेटिव सोसाइटियों के कामकाज की छानबीन शुरू की गई है. सहकारिता विभाग के सूत्रों के मुताबिक विभागीय छानबीन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट को आर्थिक अपराध इकाई को सौंपा जाएगा. मल्टी स्टेट बचत व साख सहकारी समितियों के कामों की समीक्षा का काम भी शुरू किया गया है. सरकार को कई ऐसी शिकायतें मिली हैं कि नियमों का उल्लंघन कर के समितियों के सदस्य अवैध तरीके से आम लोगों की बचत की रकम जमा रखते?हैं और उन्हें ज्यादा सूद देने का झांसा दे कर शिकार बनाते हैं. फ्राड समितियों द्वारा जनता से मोटी रकम ले कर फरार होने की वारदातों में भी तेजी आई?है. इस बात की भी जांच की जा रही है कि पिछले 3 सालों में सहकारी समितियों ने कितने लोगों को कर्ज दिए हैं. सरकार को रिपोर्ट मिली है कि राज्य में सैकड़ों फर्जी समितियों का जाल फैला हुआ?है, जबकि सरकारी रिकार्ड में केवल 23 मल्टी स्टेट सहकारी समितियां ही रजिस्टर्ड हैं.सहकारी समितियों का मकसद आम लोगों व किसानों की मदद करना होता?है, मगर तमाम समितियां अपने मकसद से भटक रही?हैं. अमूमन समितियों की साख उस के सदस्यों व कर्मचारियों से बनती?है, मगर अकसर बेईमान लोग फिजां ही बिगाड़ देते हैं.
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सहूलियत
5 साल में चुकाएं कर्ज
जयपुर : अकसर देखा जाता है कि बाढ़ व सूखे जैसे कुदरती कहर के चलते खेत के खेत तबाह हो जाते हैं. किसानों की आंखें झरना बन जाती हैं और दिल पत्थर. ऐसे हालात में राज्य भी उन की नहीं सुनता, लेकिन अब किसानों के लिए राहत की खबर है. रिजर्व बैंक किसानों के लिए राहत की सौगात ले कर आया है. रिजर्व बैंक ने कहा है कि बाढ़ व सूखे जैसे कुदरती कहर के चलते फसल में 50 फीसदी खराबी होने पर कर्ज चुकाने की मियाद 5 साल तक बढ़ाई जा सकती है. यदि 33 फीसदी फसल खराब हुई, तो कर्ज चुकाने की मियाद 2 साल तक बढ़ाई जा सकती है. इस में 1 साल तक कर्ज वापसी पर रोक भी शामिल है. रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है कि 33 फीसदी या उस से ज्यादा फसलों को नुकसान होता?है, तो राज्य स्तर की बैंकर्स कमेटी को बैंकों को कर्ज चुकाने के शिड्यूल में हालात के मुताबिक जरूरी बदलाव करने का पूरा हक होगा.
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मुहिम
बांसवाड़ा बनेगा मैंगो हब
बांसवाड़ा : वागड इलाके के आमों की बेहतरीन किस्मों को संरक्षण देने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं. जिले को मैंगो हब के तौर पर विकसित करने के लिए जनजातीय क्षेत्रीय विकास महकमे ने कमर कस ली है. इस कोशिश के तहत अगले 3 सालों में इलाके में आम के कई बगीचे नजर आएंगे. फिलहाल बांसवाड़ा जिले में दशहारी, लंगड़ा, मल्लिका और आम्रपाली आमों की 4 खास किस्में हैं. वहीं बाम्बे ग्रीन, केसर और चौसा किस्म के आमों की भी भरपूर पैदावार होती है. गौरतलब है कि मल्लिका व आम्रपाली आमों की पैदावार इलाके में हर साल भरपूर मात्रा में होती है, वहीं बाकी किस्मों के आमों की पैदावार 1 साल ज्यादा, तो 1 साल कम की दर से होती है. क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र वागड अंचल के मुताबिक, अगले 3 सालों में आम के बागों का रकबा बढ़ाया जाएगा. इस योजना में छोटे किसानों को?भी शामिल किया जाएगा. किसानों को आम के बगीचे लगाने के लिए सब्सिडी राशि भी दी जाएगी. इलाके में कोल्ड स्टोरेज भी बनाए जाएंगे.
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कहर
बारिश की दगाबाजी से सूखे खेत
पटना : बिहार में इस साल भी बारिश की दगाबाजी की वजह से किसानों और खेती का काफी नुकसान होना तय है. बारिश न होने की वजह से राज्य के 2 लाख हेक्टेयर खेल खाली रह गए हैं. किसानों ने किसी तरह से 95 फीसदी खेतों में धान और 90 फीसदी खेतों में मक्के की फसल की बोआई कर दी है, लेकिन ज्यादातर पौधों का पानी की कमी में सूखना तय माना जा रहा है.ऐसा अनुमान है कि इस साल किसानों को 4 लाख टन धान का नुकसान होगा, जिस की कीमत 28 अरब रुपए के करीब होगी. राज्य में अब तक 20 फीसदी कम बारिश हुई है. 18 जिलों में करीब 30 फीसदी कम पानी हुआ. सूखे की हालत को देखते हुए सरकार ने डीजल पर अनुदान देने का ऐलान किया?है, लेकिन धान की अच्छी फसल के लिए बारिश का पानी काफी जरूरी?है. इस के साथ ही जिन इलाकों में धान की रोपनी देरी से हुई है, वहां भी उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा. गौरतलब है कि राज्य में 34 लाख हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन 32 लाख हेक्टेयर में ही रोपनी हो सकी है. 4 लाख 75 हजार हेक्टेयर में मक्के की खेती का लक्ष्य था, पर 4 लाख 25 हजार हेक्टेयर में ही बोआई हो पाई.
– मधुप सहाय, भानु प्रकाश, अक्षय कुलश्रेष्ठ, बीरेंद्र बरियार, मदन कोथुनियां और बृहस्पति कुमार
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सवाल किसानों के
सवाल : आम, जामुन व नीबू के पेड़ों की कलम कैसे तैयार करते हैं? सहजन के पेड़ के बारे में भी जानकारी दें?
-दिलीप महाजन, बैतूल, मध्य प्रदेश
जवाब : आम की कलम द्वारा पौधे तैयार करने के लिए इनार्चिंग व वेज या स्लैफ्ट ग्राफ्टिंग तरीका अपनाया जाता है. नीबू में कटिंग या गुटी बांध कर नए पौधे तैयार किए जाते हैं. जामुन में व्यावसायिक तौर पर पेंच बडिंग अपनाई जाती है. सहजन की कटिंग लगा कर या बीज द्वारा नए पौधे तैयार कर सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग हासिल करें.
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सवाल : मिर्च की फसल को कीटों व बीमारियों से कैसे बचाएं?
-ओम नारायण उरांव, चांपा, छत्तीसगढ़
जवाब : मिर्च की फसल में ज्यादातर बिल्ट रोग व मोजैक रोग लगता है. मिर्च को एफिड व जैसिड कीटों द्वारा ज्यादा नुकसान होता है. बिल्ट व मोजैक रोग की रोकथाम के लिए रोग अवरोधी प्रजातियां बोएं और ट्राइकोडर्मा द्वारा खेत को उपचारित करें. ऐफिड, जैसिड व सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए नीम का तेल व इमिडाक्लोरप्रिड का इस्तेमाल करें.
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सवाल : मेरी गाय अकसर सानी खाना काफी कम कर देती है. ऐसा क्यों होता?है? कभीकभी गाय का शरीर हलका गरम लगता है, ऐसे में क्या इलाज करना चाहिए?
-सुनीता, कानपुर, उत्तर प्रदेश
जवाब : किसान भाई, गाय के चारा न खाने के कई कारण हो सकते हैं. इस मौसम में पशुओं को पेट के कीड़े मारने की दवा हर 3 महीने के अंतराल में देनी चाहिए. साथ में पशु को 60 ग्राम खनिज मिश्रण एग्रीमिन फोर्ट चेल्टेड रोजाना दाने में मिला कर दें और 50 ग्राम सादा नमक भी खिलाएं. पशुओं को जुओं और किल्ली से होने वाले रोगों से बचाने के लिए पशु चिकित्सक से संपर्क कर के दवा देनी चाहिए. गाय का बदन गरम लगे तो उसे निकट के पशुचिकित्सक को दिखाएं. पशु चिकित्सक थर्मामीटर से गाय का बुखार चेक कर के उस के मुताबिक मुनासिब दवा दे देगा. वैसे आप थर्मामीटर के जरीए खुद भी गाय का बुखार देख सकती हैं.
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सवाल : क्या बकरीपालन फायदे का काम?है? इस बारे में पूरी जानकारी दें?
-बबलू, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
जवाब : बकरीपालन काफी फायदे का काम?है. 1 बकरा व 1 बकरी खरीद कर भी यह काम शुरू किया जा सकता?है. बकराबकरी की तादाद बहुत तेजी से बढ़ती है. मीट के लिहाज से भी बकरे काफी महंगे बिकते?हैं और बकरी का दूध भी महंगा बिकता है.
– डा. अनंत कुमार, डा. प्रमोद मडके, डा. देवेंद्र पाल
कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद