मैं 22 वर्षों से दिल्ली सरकार के स्कूल में प्रधानाचार्या के पद पर कार्य कर रही थी. मुझे अपने कार्य के लिए हमेशा सराहा गया और दिल्ली सरकार की ओर से स्टेट अवार्ड भी मिला.
रिटायर्ड होने से 3 महीने पहले, जब 10वीं व 12वीं के फौर्म भरे जाते हैं तो मेरे विद्यालय के 2 बच्चों को परीक्षा में बैठने की अनुमति सीबीएसई ने यह कह कर नहीं दी कि छात्राओं के पास एक विषय हिंदी का होना आवश्यक है. उन दोनों ही छात्रों ने पंजाबी विषय लिया था और 11वीं में भी उन्होंने पंजाबी ही पढ़ी थी.
यह एक बड़ी भारी समस्या थी क्योंकि उन 3 महीनों में ही छात्राओं को 11वीं व 12वीं की हिंदी का पूरा कोर्स कराना था. मैं ने मन को समझाया कि संसार में असंभव कुछ नहीं होता. मेरा अपना विषय हिंदी है, सो मुझे किसी अध्यापिका से भी कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि वह इन छात्राओं को हिंदी पढ़ा दे.
मैं ने दोनों छात्राओं को अपने औफिस में बुलाया और उन्हें इस स्थिति से पूरी तरह से अवगत करा दिया. साथ ही, उन से कह दिया कि वे यदि मन में ठान लें तो यह कार्य असंभव नहीं होगा. अगले दिन से मैं ने उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया. मैं ने उन्हें यह हौसला दिया कि यदि वे मेरे कथनानुसार कार्य करेंगी तो मैं उन्हें अच्छे अंकों से पास करवा दूंगी.
उन दोनों छात्राओं ने भी लगातार पूरी मेहनत की. और वे 12वीं कक्षा के योग्य हिंदी सीख गईं.
पुष्पा गुलाटी
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हमें अचानक किसी जरूरी काम से हैदराबाद जाना पड़ा. मेरे पति और मैं ट्रेन के जनरल डब्बे में बैठ गए. हमारे सामने वाली सीट पर 2 नौजवान बैठे थे. जगह के कारण उन में और मेरे पति में तूतूमैंमैं हो गई. मेरे पति कुछ ज्यादा ही बोल रहे थे. मेरे समझाने पर भी समझ नहीं रहे थे. बात कुछ ज्यादा बढ़ गई. हालांकि फिर सब चुप हो गए.
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