सामान्य हो सकने वाली डिलीवरी के केस में भी औपरेशन करने वाले डाक्टरों के बीच आजकल सक्सैसफुल सिजेरियन का रिकौर्ड बनाने की होड़ सी लगी है. इसे ये अपने प्रोफाइल में तो जोड़ते ही हैं, साथ ही इस से अपनी और अपने मालिकों की जेबें भी भरते हैं. अमीर हो या गरीब, इन के चंगुल में एक बार आ जाने पर मुश्किल से ही निकल पाता है. स्वास्थ्य सुविधाओं का निजीकरण होने के बाद सरकारी अस्पताल तो अनाथ बच्चों की तरह पल रहे हैं. उन में न तो सही ढंग के वार्ड बचे हैं और न  ही बैड.

दिल्ली के एक मैटरनिटी होम में प्रैग्नैंसी टैस्ट कन्फर्म होने के बाद ज्योति और विकास का जोड़ा घर पहुंचा. उस मैटरनिटी होम के बारे में विकास ने अपने साथियों और रिश्तेदारों से बड़ी तारीफ सुन रखी थी, ऐसे में उन्हें अपने पहले बच्चे के जन्म के लिए वही अस्पताल सब से उपयुक्त लगा. पहली बार वहां की गाइनी डाक्टर से मीटिंग हुई. दोनों को डाक्टर का स्वभाव बड़ा अच्छा लगा. कभी कोई परेशानी न हो इस के लिए डाक्टर ने अपना पर्सनल नंबर भी दे दिया. तमाम टैस्ट व आएदिन अस्पतालों के चक्कर काटना तो जैसे ज्योति और विकास के लिए आम हो गया था. प्रसव का समय आया तो विकास ने अपनी पत्नी के गर्भ की नियमित जांच ठीक एक दिन पहले भी कराई थी. खैर, भरती होने के बाद डाक्टर ने ज्योति के डिलीवरी केस को काफी कौंप्लिकेटेड बताते हुए उसे सिजेरियन डिलीवरी कराने की सलाह दी.

सवाल उठता है कि ठीक एक दिन पहले तक ज्योति के सारे टैस्ट सामान्य थे और बच्चा भी स्वस्थ बताया गया था. लेकिन मात्र रात बीतने के बाद उस की डिलीवरी में अड़चनें क्यों बताई गईं. ज्योति और विकास को डाक्टरों ने इस तरह भयभीत किया कि बच्चे के सिर में गर्भनाल फंस गई है, जिस से बच्चे के गले में फंदा भी लग सकता है आदि. डर कर और पहले बच्चे की चाह में उन्हें सिजेरियन डिलीवरी करानी पड़ी. देखा जाए तो अकेले ज्योति और विकास के साथ ही ऐसा नहीं हुआ बल्कि आएदिन डाक्टरों के जाल में लोग फंसते रहते हैं. दिल्ली एनसीआर के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, निजी अस्पतालों में लगभग 75 से 80 फीसदी बच्चे औपरेशन से पैदा होते हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में केवल 40 फीसदी सिजेरियन होते हैं. बड़े शहरों में लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी होती है. कइयों को ज्यादा उम्र के कारण नौर्मल डिलीवरी में परेशानी होती है. डाक्टरों के मुताबिक, नौर्मल डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा होती है.

सिजेरियन प्रसव की सलाह निजी अस्पतालों में यों ही नहीं दी जाती. सामान्य डिलीवरी कराने के उसे 15 हजार रुपए के बीच मिलते हैं तो वहीं सिजेरियन करने पर यही रेट 25 से 50 हजार रुपए और इस से ऊपर तक वसूल लिए जाते हैं. दुनियाभर में औपरेशन के जरिए प्रसव के चलन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिंता जताते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया तभी अपनाई जाए जब मैडिकल तौर पर जरूरी हो. औपरेशन के जरिए होने वाले प्रसव का मां और बच्चा दोनों पर बुरा असर पड़ता है. किसी भी देश के लिए 10-15 फीसदी के बीच सिजेरियन मामले उचित हैं लेकिन इस से ज्यादा मामले खतरनाक संकेत देते हैं. 5 में से 1 महिला सिजेरियन डिलीवरी के रास्ते को चुनती है. कई देशों में औपरेशन के जरिए प्रसव की महामारी देखी जा रही है. यहां तक कि कई ऐसे केसों में औपरेशन कर दिए जाते हैं जबकि इस अप्राकृतिक डिलीवरी की जरूरत नहीं होती है. सिजेरियन करते समय पेट पर चीरा लगा कर बच्चे को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है. सामान्य प्रसव में महिला को 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है जबकि सिजेरियन में कम से कम उसे 5 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है.

कब जरूरी है सिजेरियन

कैलाश अस्पताल, नोएडा की गाइनोकोलौजिस्ट डा. दीप्ती मैथानी के अनुसार :

-गर्भवती महिला का ब्लडप्रैशर बढ़ने या दौरा पड़ने की स्थिति में सिजेरियन औपरेशन किया जाता है वरना दिमाग की नसें फट सकती हैं और लिवर व किडनी खराब हो सकते हैं.

-कभीकभी देखा गया है कि छोटे कद वाली महिलाओं के कूल्हे की हड्डी छोटी होने के कारण बच्चा सामान्य तरीके से नहीं हो पाता.

-कई बार दवाओं से बच्चेदानी का मुंह नहीं खुल पाता, ऐसे में सर्जरी करनी पड़ती है. ज्यादा खून बहने पर भी सिजेरियन औपरेशन करना पड़ सकता है.

-बच्चे की धड़कन कम होने या गले में गर्भनाल लिपटी होने, बच्चे का आड़ा या उलटा होना, कमजोरी या खून का दौरा कम होने पर भी औपरेशन किया जाता है.

-बच्चा जब पेट में ही गंदा पानी (मल-मूत्र) कर दे तो उसे मिकोनियम कहते हैं इस स्थिति में भी तुरंत औपरेशन कर बच्चे की जान बचाई जाती है.

सिजेरियन और भ्रांतियां

समाज में सिजेरियन डिलीवरी के बाबत काफी भ्रम है, जिन में से कुछ ये हैं:

पहला बच्चा सिजेरियन हो तो दूसरा सामान्य नहीं होता? ऐसे में सिजेरियन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि दूसरी बार प्रसव पीड़ा के दौरान टांके फटने का डर रहता है. पर यह जरूरी नहीं कि पहला केस अगर अप्राकृतिक हो तो दूसरा सामान्य नहीं हो सकता.

आम धारणा बन गई है कि सिजेरियन के बाद महिला बस पूरा आराम ही करे. माना कि सर्जरी के बाद महिला को ज्यादा से ज्यादा आराम की जरूरत होती है लेकिन 1 महीने के बाद उसे अपने रोजमर्रा के काम करना शुरू कर देना चाहिए. डाक्टर द्वारा बताए गए व्यायाम भी करें अन्यथा महिला मोटी हो सकती है.

सिजेरियन डिलीवरी के बाद बौडी फूलती ही है? ऐसा नहीं है कि औपरेशन होने के बाद आप मोटी हो ही जाएंगी. यह गलत धारणा है. सब का बौडी स्ट्रक्चर अलगअलग होता है.

कब जरूरी है डिलीवरी?

गाइनोकोलौजिस्ट डा. दीप्ती मैथानी के मुताबिक, डिलीवरी 37 हफ्ते और 40+1 हफ्ते के बीच होनी उचित रहता है. यह चक्र कंपलीट है और बच्चा पूरा स्वस्थ रहता है. कम हफ्ते में डिलीवरी होने पर मां और बच्चे दोनों को कई प्रकार के कौंप्लिकेशंस हो जाते हैं. इसलिए ध्यान रखिए और समयानुसार खाइए पीजिए और डाक्टर की सलाह अनुसार ही चलिए.

वहीं, बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस को देखते हुए देर से बच्चे को जन्म देना एक ट्रैंड सा बन गया है. विज्ञान शादी की उम्र तो नहीं बताता पर बच्चे को जन्म देने के लिए 20 से 35 वर्ष के बीच की उम्र सही बताई गई है. 18 साल से कम आयु में बच्चे के जन्म के लिए शरीर तैयार नहीं होता. वहीं, 35 साल के बाद बच्चे के जन्म में कई तरह की मैडिकल परेशानियों खड़ी हो सकती हैं जो मां और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.

शरीर में बदलाव

सिजेरियन डिलीवरी के बाद में शरीर में कई बदलाव देखे जा सकते हैं, जैसे :

गर्भवती होने पर वजन का बढ़ना स्वाभाविक है. सिजेरियन डिलीवरी होने पर मोटापा कुछ कम तो होता है पर इतना नहीं. त्वचा फीकी पड़ने लगती है और पूरा शरीर थुलथुला हो जाता है. टांके कटने के बाद डाक्टर से सलाह कर के व्यायाम करना शुरू करें. ध्यान रखें ऐसी ऐक्सरसाइज न करें कि जिस से शरीर में खिंचाव या दर्द महसूस होने लगे. हां, यह सच है कि हारमोंस के प्रभाव से जोड़ों में ढीलापन और दर्द हो जाता है व पेट की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं.

सामान्य डिलीवरी वाली महिलाएं 6 हफ्तों के बाद किसी भी तरह की ऐक्सरसाइज करना शुरू कर सकती हैं और अगर आप की डिलीवरी सिजेरियन है तो 3 महीनों के बाद ही ऐक्सरसाइज शुरू करें. अगर डिलीवरी के बाद नियमित रूप से उचित ऐक्सरसाइज और उचित खानपान का ध्यान रखा जाए तो शायद आप का वजन बढ़े ही नहीं.

सिजेरियन करवाने के शौकीनों को याद रखना चाहिए कि औपरेशन बिना जोखिम के नहीं होता. इस औपरेशन में अधिक रक्तस्राव होता है. यह संक्रामक भी हो सकता है. दवाएं रिऐक्ट कर सकती हैं. बच्चे को जितने इक्विपमैंट्स से निकाला जाता है उन से भी चोट लग सकती है. जीवनभर वजन उठाने में परेशानी हो सकती है.

अस्पताल में सामान्य डिलीवरी का जहां खर्च 5 हजार से 15 हजार रुपए तक आता है तो वहीं सिजेरियन का यही खर्च इस का चौगुना हो जाता है. यदि इस में एनेस्थीसिया, सहायक, पेडियाट्रिशियन और अस्पताल का खर्च को शामिल कर दिया जाए तो 50 हजार रुपए के ऊपर तक का बिल समाने आ जाता है. आजकल निजी अस्पतालों से जुड़े कुछ गाइनी डाक्टर अपना वेतन नहीं लेते, वे जो सिजेरियन करते हैं उन में उन की मोटी फीस शामिल होती है. ये कमाई दो नंबर की होती है. मुंबई के एक उपनगर घाटकोपर में एक गाइनी के घर आयकर का छापा पड़ा तो उस महिला ने गद्दे में रुई के स्थान पर नोट ठूंस रखे थे. आजकल अधिकांश गाइनी की कमाई सिजेरियन औपरेशनों और गर्भपातों से खूब हो रही है.

सिजेरियन बना बाधा

डाक्टरों द्वारा मरीजों के परिजनों को इस कदर भयभीत किया जाता है कि वे खुद कह उठते हैं, ‘जैसा आप ठीक समझें. डाक्टर साहब आप पैसों की चिंता न करें, बच्चे को बचा लीजिए.’ ज्यादातर डाक्टर जो परिजनों को डराते हैं वे कुछ इस तरह से हैं जैसे गर्भनाल में बच्चा फंस गया है, बच्चा उलटा है, बच्चा मूवमैंट नहीं कर रहा, धड़कन नहीं आ रही बच्चे की, बच्चे के मुंह में मल चला गया है. बच्चे का सिर बहुत बड़ा है और ऐसे में उस के बाहर आने में कौंप्लिकेशंस हो सकते हैं, गर्भवती महिला हमारे साथ सपोर्ट नहीं कर पा रही है, बच्चा बेहद कमजोर है इसलिए फौरन ऐक्शन लेना पड़ेगा आदि. दरअसल, सिजेरियन औपरेशन करना डाक्टरों का पैसा कमाने का धंधा बन गया है. डर कर लोग अपनी पत्नी या बच्चे को बचाने के लिए भावुक हो उठते हैं. आप के साथ कभी ऐसा हो तो सोचसमझ कर ही व सारे पहलुओं को जान कर ही उचित निर्णय लें.

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