रोमांचप्रेमी घुमंतू उत्तराखंड के जिम कौर्बेट नैशनल पार्क के जानवरों की अनोखी दुनिया से ले कर उत्तर प्रदेश के दुधवा नैशनल पार्क के शेरों की आनबानशान मध्य प्रदेश के टाइगर अभयारण्यों में वनराज की दहाड़ और केरल के जंगलों की प्राकृतिक सुंदरता की विस्तृत जानकारी के साथ उत्तर से दक्षिण तक के रहस्य व रोमांच से भरे जंगलों की यात्रा का आनंद हमारे साथ उठाएं.

जिम कौर्बेट नैशनल पार्क

उत्तराखंड की तलहटी में स्थित जिम कौर्बेट नैशनल पार्क में प्रकृति ने जम कर अपना वैभव बिखेरा है. जिम कौर्बेट नैशनल पार्क को देश का पहला राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव प्राप्त है.

क्या देखें

जिम कौर्बेट नैशनल पार्क की जैव विविधता देखते ही बनती है. यदि आप का दिन अच्छा है तो हो सकता है घनी झाडि़यों के पीछे छिपे रहने वाले बाघ, तेंदुए और भालू भी आप को नजर आ जाएं. यहां और जानवरों की तुलना में भालुओं और हाथियों की संख्या ज्यादा है. हाथी की सवारी करते हुए जंगल के राजा से साक्षात्कार का अनुभव यहां आने वाले पर्यटकों की नसों में रोमांच भर देता है. पार्क में मौजूद हजारों लंगूर और बंदरों की उछलकूद बच्चों का खूब मनोरंजन करती है. यहां एक संग्रहालय भी है जहां जिम कौर्बेट की स्मृतियों को संजो कर रखा गया है. संग्रहालय के अलावा आप पार्क में कालागढ़ बांध देखने भी जा सकते हैं. यह बांध अपनेआप में एक अजूबा है क्योंकि इस का निर्माण सिर्फ मिट्टी से किया गया है. कौर्बेट पार्क के आसपास गर्जिया मंदिर, कौर्बेट फौल्स और झीलों की नगरी नैनीताल केवल 66 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां से टैक्सी ले कर आप इन स्थानों पर जा सकते हैं.

कब जाएं

कौर्बेट नैशनल पार्क अथवा टाइगर रिजर्व की सैर 15 नवंबर से 15 जून के बीच कभी भी की जा सकती है. नवंबर से फरवरी के मध्य यहां तापमान 25 से 30 डिगरी, मार्चअप्रैल में 35 से 40 तथा मईजून में 44 डिगरी तक पहुंच जाता है. इन में से आप अपना पसंदीदा मौसम चुन सकते हैं.

कैसे जाएं

यह सभी प्रमुख शहरों से सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है. दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से गाजियाबाद, हापुड़ हो कर मुरादाबाद पहुंचने के बाद वहां से स्टेट हाइवे 41 को पकड़ कर काशीपुर, रामनगर होते हुए यहां पहुंच सकते हैं. लखनऊ से भी राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से सीतापुर, शाहजहांपुर, बरेली होते हुए मुरादाबाद और वहां से उपरोक्त मार्ग से कौर्बेट नैशनल पार्क पहुंचा जा सकता है. निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर है जो दिल्ली, लखनऊ और मुरादाबाद से जुड़ा हुआ है. वायुमार्ग से यहां पहुंचने के लिए फूलबाग (पंतनगर) निकटतम हवाई अड्डा है जो जिम कौर्बेट नैशनल पार्क से 115 किलोमीटर दूर है.

प्रमुख नगरों से दूरी : दिल्ली 290 किलोमीटर, लखनऊ 503 किलोमीटर, देहरादून 203 किलोमीटर.

इन से जरूर बचें : जंगल में हाथियों को उकसाने का प्रयास न करें. हमेशा वन विभाग के प्रशिक्षित महावत के साथ ही जंगल की यात्रा करें. जंगल में शोर न मचाएं और न ही तेज म्यूजिक का प्रयोग करें. हमेशा इस बात को याद रखें कि यह जू नहीं, जंगल है, इसलिए वन्य प्राणियों की इज्जत करें और उन्हें परेशान न करें.

दुधवा नैशनल पार्क

उत्तर प्रदेश में नेपाल की सीमा से सटा, तराई के दलदली किनारों, घने जंगलों के बीच में 490 वर्ग किलोमीटर में फैला दुधवा नैशनल पार्क अपने प्राकृतिक सौंदर्य और अनोखे वन्य जीवन के लिए दुनियाभर में मशहूर है. प्रकृति के इस अनोखे करिश्मे को देखने के लिए हर वर्ष हजारों पर्यटक यहां पहुंचते हैं. दुधवा पद्मश्री व पद्मभूषण से सम्मानित टाइगर हैवन बिली अर्जन सिंह नामक एक स्वतंत्र वन्यजीवन संरक्षणवादी के लिए भी जाना जाता है. 1959 में सेना की नौकरी छोड़ने के बाद से बिली वन्य पशुओं, विशेषकर तेंदुओं व बाघों की भलाई में जुटे रहे. आज बिली तो नहीं हैं पर उन की पुस्तक ‘टाइगरटाइगर’ आज भी बेहद लोकप्रिय है. पुस्तक में दुधवा के नरभक्षी बाघों का सजीव चित्रण है. यह पार्क पर्यटकों के लिए 15 नवंबर से 15 जून तक खुला रहता है.

क्या देखें

सिर पर सींगों का मुकुट सजाए बारहसिंगा दुधवा की बेशकीमती सौगात है. हिरणों की यह विशेष प्रजाति स्वैंप डियर अथवा सेर्वुस डुवाउसेलि कुवियेर भारत और दक्षिण नेपाल के अतिरिक्त दुनिया में और कहीं नहीं पाई जाती है. नाम के अनुरूप सामान्यतया यह माना जाता है कि इस जाति के हिरणों के बारह सींग होंगे लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. बारहसिंगा के सिर पर 2 सींग होते हैं और वे ऊपर जा कर अनेक शाखाओं में विभक्त हो जाते हैं. दुधवा के कीचड़ वाले दलदली इलाकों में बारहसिंगा के झुंड नजर आते हैं. दुधवा में बाघ देखना दूसरे अनेक राष्ट्रीय उद्यानों की अपेक्षा अधिक सुगम है. इस की वजह यह है कि यहां बाघों की काफी आबादी निवास करती है. यहां 400 से ज्यादा किस्म की चिडि़यां भी निवास करती हैं. जंगल की सैर के समय कई  अपरिचित चिडि़यों से मुलाकात हो जाती है. कई प्रकार के सांप, विशालकाय अजगर, मछलियां और मगरमच्छ भी यहां काफी संख्या में पाए जाते हैं. बारहसिंगा के अतिरिक्त यहां हिरणों की 6 और प्रजातियां भी पाई जाती हैं. उत्तर प्रदेश की धरती से गैंडों के लुप्त होने के करीब 100 वर्ष बाद दुधवा नैशनल पार्क में देश की पहली गैंडा पुनर्वास परियोजना शुरू की गई. प्रकृति दर्शन के लिए दुधवा के जंगलों में आप ऊंचेऊंचे मचानों से वन्यजीवों का अवलोकन कर सकते हैं, कुछ बेहतरीन दृश्यावलोकन के लिए भादी ताल का मचान, ककहरहा ताल पर स्थित मचान, बांकेताल पर स्थित 2 मचान व किशनपुर वन्यजीव विहार में झादी ताल के किनारे रिंग रोड पर मौजूद 2 मचानों से वन्य सौंदर्य निहार सकते हैं.

इन से बचें : केवल वनविभाग के प्रशिक्षित हाथी, सफारी वाहन और कुशल पथप्रदर्शकों की ही सहायता लें क्योंकि उन्हें अच्छी तरह मालूम होता है कि कौन सा जानवर किस स्थान पर होगा, लोकल गाइडों और टैक्सी चालकों से बचें.

कैसे पहुंचें

दुधवा नैशनल पार्क के समीपस्थ रेलवे स्टेशन पलिया और मैलानी हैं. यहां आने के लिए दिल्ली, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहांपुर तक ट्रेन द्वारा और इस के बाद 107 किलोमीटर सड़क यात्रा करनी पड़ती है, जबकि लखनऊ से भी पलियादुधवा के लिए ट्रेन मार्ग है. लखीमपुर, शाहजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ, बरेली, दिल्ली आदि से पलिया के लिए रोडवेज की बसें एवं पलिया से दुधवा के लिए निजी बस सेवा उपलब्ध हैं. लखनऊ, सीतापुर, लखीमपुर, गोला, मैलानी से पलिया हो कर दुधवा पहुंचा जा सकता है.

कान्हा किसली

मध्य प्रदेश अपने 9 नैशनल पार्क और 25 अभयारण्य पर खूब इतराता है. इसलिए इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इस राज्य को टाइगर स्टेट कहा जाता है क्योंकि यहां बाघों की संख्या सब से ज्यादा है. इन में नैशनल पार्कों में सब से ज्यादा चर्चित है बांधवगढ़ नैशनल पार्क क्योंकि 940 वर्ग किलोमीटर में फैला राज्य का यह पहला नैशनल पार्क है. इस नैशनल पार्क को 1974 में टाइगर अभयारण्य क्षेत्र घोषित किया गया.

क्या देखें 

टाइगर प्रेमियों को यह जंगल कभी निराश नहीं करता. दरअसल, कान्हा में बाघ दर्शन ने पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है. कान्हा, किसली और मुक्की में वन विभाग के पालतू हाथी सुबहसवेरे 5 बजे ही घने जंगलों में बाघ की तलाश में निकल पड़ते हैं. वर्षों के अनुभव से महावत बाघ की खोज में माहिर हो गए हैं. कान्हा में एक सनसैट पौइंट भी है जिसे बमनी दादर कहते हैं. यह पौइंट इस जंगल का सब से सुंदर स्थान है. कान्हा में 200 से अधिक पक्षियों की नस्लें निवास करती हैं और हिरणों की सामान्य किस्म के अलावा बारहसिंगा की एक दुर्लभ प्रजाति पंकमृग (सेर्वुस बांडेरी) भी पाई जाती है. बाघ और बारहसिंगा के अतिरिक्त यहां भालू, जंगली कुत्ते, काला हिरण, चीतल, काकड़, नीलगाय, गौर, चौसिंगा, जंगली बिल्ली और सूअर भी पाए जाते हैं. इन वन्य प्राणियों को हाथी की सैर अथवा सफारी जीप के जरिए देखा जा सकता है.

जीप और हाथी की सवारी : पार्क में घूमने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन की जिप्सी या हाथी की सहायता ले सकते हैं. हाथी की सवारी पर्यटक आमतौर पर टाइगर देखने के लिए करते हैं.

कैसे पहुंचें

कान्हा नैशनल पार्क जाने के लिए 2 मुख्य मार्ग हैं. पहला, खटिया से, जो किसली से 3 किलोमीटर की दूरी पर है. और दूसरा, मुक्कीजबलपुर से चिरई डोगरी हो कर. इस रोड से किसली गेट 165 किलोमीटर पड़ता है. कान्हा बालाघाट से 89 किलोमीटर, नागपुर से 159 किलोमीटर दूर स्थित है. वायुमार्ग से निकटतम एअरपोर्ट जबलपुर 160 किलोमीटर पहुंच कर यहां सड़कमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है. निकटतम रेलवे स्टेशन बिलासपुर और जबलपुर हैं.

बांधवगढ़

विंध्य क्षेत्र के 488.85 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ सब से ज्यादा टाइगर की संख्या वाला बांधवगढ़ नैशनल पार्क को सफेद शेरों की जन्मस्थली भी माना गया है. यह पार्क विशाल खड़ी चट्टानों से घिरा है. सब से ऊंची चट्टान पर बांधवगढ़ का किला है. किले के आसपास कई गुफाएं हैं जिन में कई शिलालेख पाए गए हैं. बांधवगढ़ नैशनल पार्क बनने के पहले यह रीवा के महाराजाओं की शिकारगाह थी. 1968 में इसे नैशनल पार्क बनाया गया.

क्या देखें

जंगल के अंदर एक भव्य किला है. यह किला निर्माण और स्थापत्य की दृष्टि से देखने लायक है. यहां आने वाले पर्यटक इस किले और विंध्य की घाटियों की तारीफ किए बिना नहीं रह सकते. यहां कई घाटियां हैं जो आपस में एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं. ये सभी घाटियां घास के एक मैदान पर जा कर खत्म होती हैं, जिसे स्थानीय लोग बोहेरा कहते हैं. यहां के जंगल में 22 से अधिक जातियों के जानवर और 250 पक्षियों की जातियां पाई जाती हैं. टाइगर के अलावा बंगाल लोमड़ी, लकड़बग्घा, तेंदुआ, चीतल, सांभर चौसिंगा, नीलगाय और चिंकारा पाए जाते हैं.

बांधवगढ़ का खानपान : मध्य प्रदेश पर्शियन और हिंदुस्तानी दोनों संस्कृतियों को अपने दामन में समेटे हुए है. यह यहां के खानपान में भी दिखता है. अगर आप ने बांधवगढ़ में भुट्टा की कीस, मावाबाटी कबाब और खोपरापाक नहीं खाया तो फिर आप की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

कैसे पहुंचें

हवाई, रेल और सड़कमार्ग से बांधवगढ़ पहुंचा जा सकता है. यहां का सब से नजदीकी एअरपोर्ट जबलपुर, 190 किलोमीटर है. खजुराहो 237 किलोमीटर है. रेलसेवा से कटनी रेलवे स्टेशन 102, सतना 120 और उमरिया 35 किलोमीटर पड़ता है. सड़क द्वारा भी आप उमरिया और कटनी से नियमित बस सेवा और टैक्सी द्वारा बांधवगढ़ पहुंच सकते हैं. अक्तूबर से मार्च के बीच बांधवगढ़ घूमना सब से अच्छा माना जाता है.

पन्ना नैशनल पार्क

प्रकृति को करीब से देखने वाले लोगों के लिए पन्ना नैशनल पार्क एकदम सटीक जगह है. यहां आप को देश में विलुप्ति के कगार पर खड़े बाघ शान से चहलकदमी करते दिखाई देंगे. यहां के मंदिर भारतीय शिल्प कला की नायाब धरोहर हैं. इसी के साथ आप पन्ना में जंगली जानवरों की दिनचर्या को करीब से देख कर अपनी यात्रा को संपूर्णता प्रदान कर सकते हैं. यह खजुराहो से 32 किलोमीटर की दूरी पर 543 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है.

क्या देखें

यदि आप रोमांच से भरी यात्रा करना चाहते हैं तो एक बार यहां की नाइट सफारी का लुत्फ अवश्य उठाएं. यहां आप को सफारी पहले से बुक कराना होता है ताकि आप को वहां पहुंचने पर बेवजह विलंब न हो. हाथी की सवारी कर आप यहां टाइगर, नीलगाय, चिंकारा, चौसिंघा, जंगली सूअर और चीता देख सकते हैं. पक्षियों की भी 200 प्रजातियां यहां देखने को मिलती हैं. पार्क से हो कर गुजरने वाली केन नदी पार्क की खूबसूरती में चारचांद लगा देती है. इसे घडि़याल अभयारण्य भी घोषित किया गया है. कई रिजौर्ट तो नदी के किनारों के पास हैं जो नदी के बीच उभरे टापू पर कैंडल लाइट डिनर और फिशिंग की सुविधा देते हैं. पार्क के मुख्य आकर्षणों में एक आकर्षण खूबसूरत पांडव फौल है,  इस के अलावा इस पार्क के पास स्थित चंद्रनगर कसबे में राजगढ़ पैलेस है, जो कि कला व शिल्प का अद्भुत नमूना है.

इन से बचें : चटख रंगों वाले कपड़े पहन कर पार्क में न जाएं, मधुमक्खियां आप के पीछे पड़ सकती हैं. हमेशा जंगल में शांति बनाए रखें, किसी जानवर को परेशान न करें.

कैसे पहुंचें

पन्ना नैशनल पार्क, नैशनल हाईवे 75 पर स्थित है. पन्ना से खजुराहो की दूरी 57 किलोमीटर, सतना की दूरी 105 किलोमीटर भोपाल की दूरी 727 किलोमीटर, दिल्ली की दूरी 889 किलोमीटर, खजुराहो से दिल्ली, मुंबई और वाराणसी के लिए डेली फ्लाइट सुविधा है. पन्ना से 61 किलोमीटर की दूरी पर खजुराहो रेलवे स्टेशन है जहां से सभी प्रमुख स्थानों के लिए ट्रेन सेवा उपलब्ध है.

पेरियार नैशनल पार्क

चप्पेचप्पे पर बिखरी हरियाली, हरेभरे वृक्षों से ढके पर्वत, नदियों और झीलों की इस धरती केरल पर प्रकृति ने खुले हाथों से सुंदरता लुटाई है. पश्चिमी घाट की खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा पेरियार नैशनल पार्क 777 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. पार्क के बीचोबीच केरल की सब से लंबी पेरियार नदी पर एक कृत्रिम झील बनाई गई है. 26 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली इस झील के चारों ओर घने जंगल पसरे हुए हैं, जहां वन्य प्राणियों की आवाजें जंगल की खामोशी को भंग करती हैं.

क्या देखें

नील गाय, सांभर, भालू, चीता तथा तेंदुआ आदि जंगली जानवर यहां पाए जाते हैं. पर्यटकों को यहां झील में बोटिंग करना बहुत लुभाता है. उद्यान की सैर के लिए हालांकि यहां प्रशिक्षित हाथियों की समुचित व्यवस्था है लेकिन इस प्रचलित तरीके से घूमने के बजाय मोटरबोट से यहां भ्रमण का एक अलग ही मजा है. झील में नौकायन के दौरान तटवर्ती क्षेत्र में जंगली जानवर खासतौर पर हाथी, गौर और हिरणों के झुंड नजर आ जाते हैं.   

कुमिली और क्रैडोमम :पेरियार से 4 किलोमीटर दूर स्थित कुमिली एक बडे़ पर्यटन स्थल के रूप में उभर रहा है. इस छोटे शहर का मुख्य व्यवसाय मसालों का है. पेरियार व कुमिली से आप केरल की खूबसूरती क्रैडोमम को देख सकते हैं. आप का गाइड आप को जीप या टैक्सी द्वारा क्रैडोमम हिल्स जाने को प्रेरित करेगा, यदि आप समूह में हैं तो एक अच्छी यात्रा पर खर्च भी कम पड़ेगा. इन स्थलों की ओर जाते समय रास्ते में आप को नारियल, रबड़, कौफी और कालीमिर्च के बागान भी देखने को मिलेंगे.

कब जाएं

इस पार्क में जाने का सब से सही समय अक्तूबर से जून के बीच का है. इस समय यहां का मौसम बेहद सुहाना होता है.

कैसे जाएं

रेलमार्ग से पेरियार पहुंचने के लिए पहले कोट्टायम जाना होता है. वहां से पेरियार उद्यान की दूरी 118 किलोमीटर है. सड़कमार्ग से कोट्टायम, अर्नाकुलम व मदुरै से चलने वाली बसें पेरियार राष्ट्रीय उद्यान के सब से नजदीकी शहर कुमिली तक जाती हैं. हवाईमार्ग से आने के लिए यहां के नजदीकी हवाई अड्डे कोच्चि 200 किलोमीटर और मदुरै 145 किलोमीटर हैं.

 

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