हम लोग अपने एक मित्र से मिलने उन के घर गए. वे घर पर नहीं थे. पता चला अचानक उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें दिल्ली के एक हौस्पिटल में ऐडमिट किया गया था. हम सब बहुत चिंतित हुए. लंबे समय के बाद वे स्वस्थ हो कर वापस आए. हम मिलने गए. उन्होंने अपनी बीमारी का कारण शुगर का बढ़ जाना और हीमोग्लोबिन का बहुत कम हो जाना बताया. वे कहने लगे, बहुत से लोगों ने उन्हें डाइबिटीज से छुटकारा दिलाने के उपाय बताए. किसी ने मेथी का तो, किसी ने करेले का सेवन करने को कहा. किसी ने बोगनवेलिया (फूल) के पत्ते को रोज चबाने को कहा और एक अन्य हितैषी ने तो शर्तिया इलाज बताते हुए कहा, ‘मैं जो कहता हूं वह कीजिए, बीमारी का नामोनिशान नहीं रहेगा. सदाबहार फल को एक हफ्ते तक अपने पैर के नीचे रखिए फिर देखिए इस का चमत्कार.’ उन्होंने सब की बातें मानीं. प्रतिदिन च्यवनप्राश, बादाम भी खाते रहे लेकिन फिर भी उन्हें डाक्टर और हौस्पिटल की शरण में जाना पड़ा.

नीरू श्रीवास्तव, मथुरा (उ.प्र.)

मेरी एक कमजोरी है. मेरे परिचितों के मुताबिक वह एक बीमारी है. उस बीमारी का नाम है, समय की पाबंदी. एक शादी के कार्ड में आशीर्वाद समारोह का समय रात 8 बजे से था. हम 1 घंटा देरी से यानी 9 बजे पहुंचे. दूल्हादुलहन अभी तक स्टेज पर पधारे ही नहीं थे क्योंकि दुलहन अभी पार्लर से ही नहीं आई थी और दूल्हे मियां भी तैयार ही हो रहे थे. हजार डेढ़ हजार लोगों का एकएक घंटा मिला लें तो भी डेढ़ हजार घंटे बरबाद हुए. लेकिन इस का किसी को भी कोई गिला नहीं था, ये सब तो चलता रहता है. भई, यह इंडियन टाइम है.

एक सगाई की रस्म का आयोजन दोपहर 4 बजे का था. मैं 1 घंटा देरी से यानी 5 बजे पहुंचा. सगाई हो चुकी थी. जलपान चालू था. सभी कहने लगे, ‘तुम तो समय के पाबंद हो. तुम ने आने में देर कैसे कर दी?’ अब मेरा सिर पीटने को मन कर रहा था. सही समय पर जाओ तो सिर्फ कैटरर्स मिलते हैं स्वागत करने के लिए. थोड़ा भी देरी से जाओ तो पता चलता है कि कार्यक्रम हो गया. आखिर करें तो क्या? लोग खुद तो समय का महत्त्व समझते नहीं और ऊपर से बदनाम करते हैं इंडिया को, ‘इंडियन टाइम’ कह कर. अरे, यह इंडियन टाइम है जो कभी सही नहीं रहता. अब आप ही बताइए, मेरी इस बीमारी का इलाज.

एस संजय कुमार, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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