आडवाणी के बोल
वृद्धावस्था में आदमी लाख चाहे, व्यावहारिक बातें नहीं कर पाता. इसीलिए लोग उन के लिए बुढ़ापा और सठियाना जैसे विशेषणों का प्रयोग करते हैं. भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी अरसे बाद कुछ बोले और जो बोले उस का सार यह था कि धर्मग्रंथों-रामायण व महाभारत में ज्ञान, जीवन सार और आध्यात्म की बातें हैं, लोगों को इन्हें जरूर पढ़ना चाहिए.इत्तेफाक से उसी वक्त सस्ती धार्मिक पुस्तकें छापने वाली सब से बड़ी दुकान गोरखपुर की गीता प्रैस में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच विवाद के चलते ताले पड़े. लिहाजा, सुनने वालों ने आह सी भरी कि अब कैसे पढें, वैसे भी धर्म का सार गलीचौराहों पर मुफ्त में मिल ही जाता है. इसलिए किसी ने आडवाणी की सलाह पर ध्यान नहीं दिया.
रिटर्न गिफ्ट
बच्चों के जन्मदिन समारोह में बच्चों को व शादियों में बरातियों को रिटर्न गिफ्ट क्यों दें की समस्या हल करना आसान नहीं है. फिर यह तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौरे की बात है जिस का रोमांच देशभर में महसूस किया जा रहा है कि वे कहां ठहरेंगे, क्या खाएंगे और वे कौन हस्तियां होंगी जिन्हें उन से मिलने का मौका मिलेगा.दिसंबर के तीसरे हफ्ते में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया दिल्ली के रामलीला मैदान में लगी प्रदर्शनी देखने आईं तो वहां उन्हें गांधीजी की एक प्रतिमा इतनी पसंद आई कि उसे तुरंत पैक करवा कर उन्होंने पीएम हाउस इस आग्रह के साथ भेज दिया कि ओबामा को रिटर्न गिफ्ट देने के लिए यह मूर्ति बेहतर रहेगी. मोदी-ओबामा के रिश्ते बेहतर हों न हों पर वसुंधरा-मोदी के रिश्ते इस पहल से सुधर सकते हैं. उधर, मुमकिन है ओबामा भी मार्टिन लूथर किंग की प्रतिमा उपहार में ला रहे हों.
मफलर मैन
मफलर बड़े काम की चीज है. सर्दियों में यह हवा से बचने के लिए कान ढंकने के काम आता है, लेनदारों से मुंह छिपाया जा सकता है, बहती नाक भी पोंछी जा सकती है व गरमियों में पसीना और बारिश में भीगे बालों को भी मफलर से पोंछा जा सकता है पर शर्त यह है कि इसे बारहों महीने गले में लटका रखो. लेकिन आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल तो मफलर से पैसा कमा रहे हैं. वे जगहजगह एक नए अवतार में जा रहे हैं जिसे उन के अनुयायियों ने मफलर मैन नाम दिया है. हालांकि पहले की तरह केजरीवाल को हाथोंहाथ नहीं लिया जा रहा फिर भी कामचलाऊ पैसा लोग उन्हें दे ही रहे हैं. अरविंद केजरीवाल यानी मफलर मैन के संग लंच या डिनर जिन्हें लेना होता है वे बोली लगाते हैं और जेब ढीली होने के बाद उसे टटोलते हैं कि मफलर खरीदने लायक पैसा बचा या नहीं.
हरहर गंगे
लोगों को यकीन नहीं होता कि उमा भारती सरीखी नेता इतनी खामोशी व गुमनामी की जिंदगी जीने को भी राजी हो सकती हैं. मानो उन के होने के कोई माने न हों. केंद्रीय जल संसाधन और गंगा पुनरुद्धार जैसे चलताऊ मंत्रालय से वक्त काट रही उमा अपना ज्यादातर वक्त दिल्ली के बजाय गंगा किनारे गुजारती हैं. शांति की तलाश में उमा कड़़कड़ाती ठंड में 14 दिसंबर, 2014 को इलाहाबाद पहुंचीं तो संतों ने उन्हें घेर लिया. मुद्दा था, गंगा का गंदा पानी. इस पर उमा खामोश रहीं तो संत समुदाय बिफर पड़ा कि सरकार सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ा रही है. इन संतों को शायद उमा यही बताना चाह रही थीं कि असल सरकार वे नहीं, कोई और है.