राजस्थान के भीलवाड़ा के ज्योतिषी पंडित नाथूलाल व्यास जिंदगीभर की कमाई खर्च कर भी उतनी शोहरत हासिल नहीं कर सकते थे जितनी एकदिन में मुफ्त में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने उन के घर जा कर दिला दी. इस रात न्यूज चैनल्स हल्ला मचाते रहे कि स्मृति ईरानी के बारे में इसी ज्योतिषी ने मंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी और अब उन के राष्ट्रपति बनने की भविष्यवाणी की है. दूसरे दिन के तमाम अखबार इसी समाचार से रंगे रहे. कुछ लोगों, खासतौर से विपक्षी दल कांग्रेस, ने स्मृति ईरानी पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप मढ़ा तो एवज में एक न्यूज चैनल ने कुछ पुराने फोटो दिखा कर यह साबित करने की कोशिश की कि अकेली स्मृति का दोष ही नहीं, ज्योतिषियों, पंडों और तांत्रिकों के पास तो कांग्रेस सहित तमाम दलों के नेता जाते रहे हैं.

2 दिन कोशिश कुल जमा यह थी कि सारा फोकस राजनेताओं पर ही रहे और एक हद तक ऐसा हुआ भी. दरअसल, यह कोशिश एक तरह की साजिश थी कि आम लोगों का ध्यान ज्योतिष पर बिछे जाल की तरफ न जाए क्योंकि ज्योतिषी अब मीडिया को करोड़ोंअरबों रुपए के इश्तिहार देते हैं. ऐसे में भला कौन हिम्मत करता, यह कहता कि ज्योतिष एक छलावा है, ठगी है.

स्मृति ईरानी ने वाकई नया या अजीब कुछ नहीं किया, उन्होंने वही किया है जो देश के अधिकांश लोग कर रहे हैं. इन में पढ़ेलिखे, बुद्धिजीवी और तर्कशास्त्रियों तक से ले कर अनपढ़देहाती भी शामिल हैं. अपने बौद्धिक और आर्थिक स्तर के हिसाब से सभी ने ज्योतिषी चुन रखे हैं. भविष्य तो तोते भी बता रहे हैं और कंप्यूटर भी. नाथूलाल व्यास पुराने जमाने के ज्योतिषी हैं, धोतीकुर्ता वाले. नए जमाने के हाईटैक ज्योतिषी सूटबूट पहनते हैं, अंगरेजी में भविष्य बताते हैं. उन की फीस लाखों में होती है. वे तेजी से फलतेफूलते इस कारोबार के बडे़ ब्रैंड हैं. लेकिन 11 रुपए की फीस वाले ज्योतिषियों का जमाना भी अभी लदा नहीं है.

शिक्षित लोगों की मूर्खताएं और दिमागी दिवालियापन जिनजिन कामों से प्रदर्शित होता है, ज्योतिष उन में सब से अहम है. यह इतना बड़ा हो चला है कि देश की 95 फीसदी आबादी इस की गिरफ्त में है. जो 5 फीसदी आबादी बचती है उस में से 4 फीसदी ही अपने दम और आत्मविश्वास पर जीती नजर आती है. शेष एक फीसदी वे लोग हैं जो ज्योतिष के कारोबार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जुड़े हुए हैं.

गहरी साजिश

हर वह सेवा या उत्पाद जिस का प्रचार इश्तिहारों के जरिए करना पड़े, कारोबार होता है. आजकल ज्योतिषी अरबों रुपया अपने धंधे के प्रचारप्रसार पर फूंक रहे हैं. इस से साफ है कि वे एवज में खरबों रुपए कमा भी रहे हैं. न्यूज चैनल्स पर ज्योतिषी स्क्रीन पर बैठे लोगों को ग्रहनक्षत्रों की चाल और गणना की बिना पर परेशानियों को दूर करने के उपाय बता रहे हैंकोई भी अखबार उठा लें ज्योतिष उस में जरूर मिलेगा. दैनिक राशिफल से ले कर वार्षिक भविष्यफल तक बताया जाता है. कहीं लोग विश्वास करने से इनकार न करने लगें, इस के लिए कुछ अखबार तो 2-3 तरह के भविष्य और राशिफल छाप रहे हैं. एक फलित ज्योतिष तो दूसरा अंक और तीसरा टेरो कार्ड वाला यानी कोई न कोई तो आप की परेशानियों के नजदीक होगा ही. ये भविष्यफल सट्टे के नंबर के सरीखे होते हैं. इन में से जो आप को माफिक बैठे, उसे मान लो.

इतने बड़े पैमाने पर ज्योतिष का प्रचारप्रसार कभी नहीं हुआ था. सीधी सी बात यह है कि ठगी के इस धंधे में अब प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है. कल तक पंडे और ब्राह्मण ही भविष्य और भाग्य बांचते थे, अब हर कोई यह काम कर पैसा कमा रहा है. दिलचस्पी की बात यह है कि ज्योतिष के धंधे में अब महिलाएं भी तेजी से आ रही हैं. इन्हें घर में बैठी रहने वाली महिला ग्राहकों को रिझाने में सहूलियत रहती है. वैसे भी, किसी कारोबार या ठगी पर अब पुरुषों का ही एकाधिकार नहीं रह गया है.नए जमाने के ये हाईटैक ज्योतिषी ऐरेगैरे नहीं हैं. ये पूरे आत्मविश्वास से बताते हैं कि आप की परेशानी का हल क्या है. मसलन, एक चैनल पर युवा ज्योतिषी टेबल पर लैपटौप ले कर बैठता है. कार्यक्रम शुरू होता है तो एंकर ज्योतिषी की ब्रह्मा तक पहुंच का बखान कर एकएक कर फोन सुनती है. एक फोन करने वाली जिसे कौलर कहा जाता है, पूछती है कि पंडितजी, मेरे बेटे का जन्म 14 अगस्त, 1992 की रात 11.40 बजे हुआ है. उस का कैरियर क्या होगा? उसे किस तरह की नौकरी मिलेगी?

पंडितजी की-बोर्ड के बटन खटखटा कर कुछ ही सैकंडों में कुंडली नाम के सौफ्टवेयर की कृपा से जन्मकुंडली बना कर धीरगंभीर आवाज में बताते हैं कि आप के बेटे को नौकरी किसी सौफ्टवेयर कंपनी में मिलेगी. उस का बुध थोड़ा कमजोर है, बेटे को पन्ना नग पहनाएं और गणेश का पूजन करें. फोन करने वाली मां यह सुन कर धन्य हो जाती है कि बेटे की नौकरी पक्की हो गई. वह दूसरे दिन 4 रत्ती का पन्ना ला कर बेटे की उंगली में ठूंस देती है और खुद गणेशपूजा में जुट जाती है. दूसरे कौलर बेटी की शादी को ले कर परेशान हैं. फोन करते हैं, पंडितजी तुरंत जन्मपत्री देखते हैं और बताते हैं कि आप की बिटिया को आंशिक मंगल है, लिहाजा, शादी में मामूली अड़चन आएगी. लेकिन ये उपाय करें और निश्ंिचत रहें. शादी अप्रैल 2016 तक हो जाएगी. फोन करने वाला पिता गद्गद हो जाता है कि जरा सी अड़चन है फिर 2 साल बाद शादी हो ही जाएगी, इसलिए बताए गए उपाय करने में हर्ज क्या है.

इस तरह की ढेरों शाश्वत चिंताएं और परेशानियां टैलीविजन वाले पंडित को बताई जाती हैं. वह फुरती से ग्राहकों को निबटाता जाता है. उस का यह विज्ञापनीय कार्यक्रम सालछह महीने चलता है, फिर हैरानपरेशान लोग उस ज्योतिषी के स्क्रीन पर बताए गए फोन नंबरों पर संपर्क करते हैं और हजारों रुपए फीस के दे कर अपनी कथित समस्या का कथित हल निकलवाते हैं. अगर निर्मल बाबा छाप टोटकों से ग्राहक संतुष्ट नहीं होता तो ये तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर भी पैसे ऐंठने में चूकते नहीं.ये हल वही हैं जो सालों पहले हुआ करते थे पर अब नए तरीके और नए अंदाज में पेश किए जा रहे हैं. लोगों की अंधविश्वासी और शौर्टकट ढूंढ़ने की मानसिकता पर धड़ल्ले से रोज करोड़ों का व्यापार होता है जिस में कौलर ठगा जा रहा है, फलफूल रहे हैं तो यजमान से फीस लेने वाले ज्योतिषी और उन से विज्ञापनीय कार्यक्रम का शुल्क लेने वाले चैनल्स जिन्हें समाज से या लोगों के भले से कोई सरोकार नहीं.

अखबार और पत्रिकाएं भी इस में पीछे नहीं हैं. हर अखबार में वर्गीकृत से ले कर बडे़बड़े विज्ञापन ज्योतिषियों के छप रहे हैं जिन में सैकंडों में आप की समस्या के समाधान की गारंटी ली जा रही है.ये सब क्या है? लोग जरा भी बुद्धिमानी और तर्क से सोचें तो पाएंगे, निरा खोखलापन है जिस का दूसरा पहलू बड़ा दिलचस्प है कि लोग धर्म और भगवान को नहीं मानते हैं. जो यह कहता है कि ब्रह्मा गर्भ में ही भाग्य रच देता है, उस का लिखा अटल है. आजकल के भगवान तो ये ज्योतिषी हैं जो ब्रह्मा का लिखा भी पलट देने का दावा करते हैं क्योंकि ये बेहतर जानते हैं कि ब्रह्मा कहीं है ही नहीं तो लिखेगा क्या, इसलिए भरपूर फायदा उस के न लिखे जाने का उठाया जाए.

शिविर लगाने का नया फंडा

धंधा बनाए रखने और बढ़ाने के लिए अब ये ज्योतिषी तरहतरह के नामों से संगठन बना कर शिविर लगाते हैं और ग्राहकों को पटाते हैं. अकेले भोपाल में हर दूसरे महीने कोई दर्जनभर ज्योतिषी इकट्ठा हो कर शहर के अलगअलग इलाकों में निशुल्क परामर्श शिविरों में व्याख्यान देने लगे हैं.ज्योतिष शिविरों में हर तरह के लोग आते हैं. एक शिविर में यह प्रतिनिधि गया और पूरे दिन नजारा देखा तो समझ आया कि किसी का दांपत्य कलह भरा है, किसी की पत्नी या पति कहीं अफेयर में फंस गया है तो कोई बेटी के गलत लड़के से प्रेमप्रसंग को ले कर तनाव में है. बेटे के जौब के बारे में जानने के लिए भी लोगों की भीड़ उमड़ती है. कोई असाध्य बीमारी से छुटकारा पाने के लिए शिविर में आया है तो कोई दफ्तर में बौस या सहकर्मी से तंग है. ऐसी ढेरों समस्याओं पर ज्योतिषियों ने निशुल्क परामर्श दिया लेकिन पुख्ता व गारंटीशुदा समाधान के लिए विजिटिंग कार्ड दे कर अपने दफ्तर में आने को कहा.

यह शिविर कहने को ही निशुल्क होते हैं, मकसद ग्राहकों की भीड़ इकट्ठा कर, बाद में उन्हें निचोड़ने का होता है और इस में वे कामयाब भी होते हैं. ये सभी ज्योतिषी पढ़ेलिखे और अधिकांश सरकारी पद पर सम्मानजनक नौकरी कर रहे थे और कुछ रिटायरमैंट के कगार पर थे जो आने वाले वक्त में मुफ्त की मलाई जीमने का इंतजाम कर रहे थे. इन का व्यक्तित्व और वाक्पटुता देख लोग प्रभावित थे पर यह नहीं सोच पा रहे थे कि यह शुद्ध ठगी है. लैपटौप और कंप्यूटर का दुरुपयोग करते ये ज्योतिषी किसी और का भले ही भविष्य न संवार पाएं, अपना भविष्य जरूर संवार चुके थे. 8-10 टेबलों पर बैठे इन ज्योतिषियों में कोई आपसी बैर नहीं था. इन की हालत अदालत के बाहर बैठे मुंशियों और दस्तावेज लेखकों जैसी थी कि जो जिस के पास आ गया वह उस का स्थायी ग्राहक हो कर रह गया.

क्या है सच

परेशानियां हैं, इस में कोई शक नहीं. और वे रहेंगी भी. लेकिन पढ़ेलिखे लोग ज्यादा आत्मविश्वास की कमी के शिकार हैं. उन के दिलोदिमाग में यह बात गहरे से बैठी है कि कोई सुप्रीम पावर है जो उन्हें और दुनिया को संचालित करती है. वही इन ज्योतिषियों के जरिए उन की समस्याएं हल करेगा, इसलिए हमें कोई कोशिश नहीं करनी है. जबकि हकीकत यह है कि लोग खुद कोशिश करते हैं और उसी के दम पर कामयाब होते हैं. लेकिन हैरानी यह है कि वे श्रेय ज्योतिषी के सुझाए उपायों को देते हैं. जाहिर है ये लोग ही अकर्मण्य और जीवन की वास्तविकताओं से भागने वाले हैं. वे बगैर मेहनत किए पैसा चाहते हैं और असल बात जिम्मेदारियों से कतराते हैं.ये ज्योतिषी बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से ग्राहक को घेरते हैं और साबित करने की कोशिश करते हैं कि ज्योतिष एक विज्ञान है, सूर्य समेत तमाम ग्रहनक्षत्र जिंदगी को प्रभावित करते हैं. बुरे दिनों या हालात से छुटकारा पाना मुश्किल काम नहीं है, जरूरत ग्रहनक्षत्रों को अपने अनुकूल करने की है जो कुछ हजार रुपयों में हो जाते हैं.

तगड़ी मुरगी हो तो ज्योतिषी एक एलबम निकालते हैं जिस में नामीगिरामी नेता, फिल्मकार, व्यापारी, उद्योगपति, प्रोफैसर, डाक्टर, पत्रकार और दूसरे लोग इन के साथ होते हैं. इस का वाजिब असर पड़ता है और लोग यही सोचते हैं कि कुछ न कुछ तो सच इस में होगा जो अपने क्षेत्र के कामयाब लोग इन के पास आते हैं.स्मृति ईरानी इस की ताजा और चर्चित उदाहरण हैं. उन का अमेठी संसदीय क्षेत्र में राहुल गांधी से चुनाव हार जाने के बाद भी मंत्री बन जाना अप्रत्याशित बात थी जिस का श्रेय उन के राजनीतिक गुरु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न जा कर नाथूलाल व्यास को गया, जिस के पास अब ग्राहकों की भीड़ बढ़ना तय है. ज्योतिषियों के संगठन और विज्ञापन अंधविश्वास को बहुत ज्यादा फैला रहे हैं. ये शक्तिवर्धक दवाइयों की तरह हैं कि एक बार आजमा कर देखने में हर्ज क्या है. ये वैसे इश्तिहार हैं जिन्हें देख लोगों को खुदबखुद ही कमजोरी का एहसास होने लगता है.

हर्ज यह है कि इस से समाज पिछड़ रहा है. लोगों की मेहनत और कोशिशों का श्रेय ठगों के खाते में जा रहा है. नई पीढ़ी को भी अंधविश्वासी बनाया जा रहा है ताकि वह बाकी जिंदगी ज्योतिष पर पैसा लुटाती रहे. जिन लोगों के काम हो जाते हैं वे स्मृति ईरानी की तरह अपने ज्योतिषी का प्रचार करने में जुट जाते हैं और जिन के नहीं होते वे कथित किस्मत को कोसते किसी बड़े ज्योतिषी की गिरफ्त में जा फंसते हैं. जो हस्तरेखाएं देखे, जन्मकुंडली बांचे या अंक ज्योतिष का सहारा ले, वह ग्राहक को निचोड़ने में रहम नहीं करता.

कोई कानून ऐसा नहीं है जो इन कुकुरमुत्ते से उगते इश्तिहारी ज्योतिषियों की गिरहबान पकड़े. अगर है भी तो लोग उस का सहारा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. किसी डाक्टर की लापरवाही से मरीज मर जाए या खतरे में पड़ जाए तो उस की पिटाई कर दी जाती है, और अदालत का दरवाजा खटखटाया भी जाता है. डाक्टर चूंकि जानकार होता है इसलिए उसे चुनौती दलीलों के जरिए दी जा सकती है ज्योतिषी को नहीं क्योंकि उस की कोई जिम्मेदारी अपने कथित ज्ञान और विद्या के बाबत नहीं बनती और न ही ज्योतिष के कारोबार का कोई सबूत या वजूद होता है.

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