पप्पू, पापा और ग्रैंड पा

उत्तर प्रदेश के नोएडा विकास प्राधिकरण के मुख्य अभियंता यादव सिंह की अकूत दौलत देख सभी की तरह सपा नेता अमर सिंह भी हैरान थे. इसी हैरानी में उन्होंने एक कायदे की बात यह कही कि यादव सिंह तो पप्पू है, उस के पापा को ढूंढ़ो. बात सच है यादव सिंह जैसे अधिकारी दलाल भर होते हैं. भ्रष्टाचार का परनाला नीचे से ऊपर की तरफ बहता है जिस में सभी का वाजिब हिस्सा तय रहता है. परदे के पीछे असल बौस की तरफ इशारा करते, दर्जनों कंपनियों के डायरैक्टर अमर सिंह ने दिल की बात भी कह ही डाली कि मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश की बागडोर अपरिपक्व हाथों में सौंप दी है. अब हकीकत इस तजरबेकार उद्योगपति व नेता से बेहतर कौन जानसमझ सकता है कि टैंडरों का खेल बेहद सधे ढंग से खेला जा रहा था. गड़बड़ तो किसी दादानुमा व्यक्ति ने की है जिस के गरीबान तक कानून शायद ही पहुंचे.

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बात और बतंगड़

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बेदाग छवि किसी सुबूत की मुहताज नहीं. लोग उन्हें तेजतर्रार, समझदार और एक सीमा तक कट्टरवाद से मुक्त नेत्री मानते हैं लेकिन उन्होंने बैठेठाले एक मुसीबत यह मांग उठाते हुए मोल ले ली है कि क्यों न गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कर दिया जाए. न मौका था न मौसम और न ही दस्तूर था लेकिन सुषमा स्वराज ने खासा बवाल मचवा दिया और साबित भी कर दिया कि भगवा आतंकवाद दरअसल क्या और कैसा होता है. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष खासतौर से कांग्रेसी अकर्मण्य जनता पर तिलमिलाए हुए हैं जो सचमुच गीता को ज्ञान का भंडार मान रही है. सच है अब लोगों के हाथों में एके-47 की जगह गीता होनी चाहिए. वह भी तो आखिरकार एक तरह का हथियार ही है.

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श्मशान में डिनर

कर्नाटक के आबकारी मंत्री सतीश जरकिरोली का नाम कारोबार की दुनिया में भी इज्जत से लिया जाता है. इस की एक वजह उन के कारोबार का सालाना टर्नओवर 600 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का होना है, वह भी उस सूरत में जब वे लक्ष्मीपूजा नहीं करते, यानी नास्तिक हैं. बीती 8 दिसंबर की रात सतीश जरकिरोली कर्नाटक में सदाशिव नगर के सब से पुराने श्मशान वैकुंठधाम में थे और उन्होंने रात्रिभोज भी वहीं लिया. मंशा नेक थी कि लोगों के दिलोदिमाग में श्मशान को ले कर अंधविश्वास व गलतफहमियां दूर हों. गौरतलब है कि उन्होंने विधानसभा में अंधविश्वास विरोधी विधेयक लाने का समर्थन भी किया है. उम्मीद है इस श्मशान डिनर का वाजिब असर पड़ेगा पर बड़ी जरूरत औघडि़यों और तांत्रिकों से सावधान रहने की भी है.

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हैरान हैं जशोदा बेन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदा बेन के पास देश के कोनेकोने से पत्र पहुंच रहे हैं. कोई उन के त्याग की तारीफ करता है तो कोई उन्हें नम्रतापूर्वक अपने साथ रखना चाहता है. कुछ दिन पहले सुरक्षा घेरे से तंग आ कर अपने अधिकारों के बाबत सवाल पूछने वाली जशोदा बेन को हर कोई जानता है कि वे एक सभ्य सौम्य और शांत महिला हैं.वे हैरान हैं कि आखिर क्यों पतिदेव उन्हें दिल्ली नहीं ले जा रहे. नरेंद्र मोदी के बड़े बनने में उन का त्याग व योगदान अहम है. पुराने जमाने में बातबात पर और कभीकभी तो यों ही लोग पत्नी को त्याग देते थे. शायद आज भी माहौल ज्यों का त्यों है और महिला सशक्तीकरण व स्त्री अधिकार आदि सब कहने मात्र को हैं.

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