बतौर कलाकार सैफ अली खान का कैरियर सफलता के ऊंचे पायदान पर है. यह अलग बात है कि वे ‘हमशकल्स’ जैसी असफल फिल्म का हिस्सा रहे हैं. अदाकारी के साथ वे निर्माता के रूप में भी सफल हैं. हाल में उन की फिल्म ‘हैप्पी ऐंडिंग’ रिलीज हुई है. शांतिस्वरूप त्रिपाठी ने उन से फिल्म निर्माण, सोशल मीडिया व लव जिहाद जैसे मुद्दों पर खुल कर बातचीत की. पेश हैं उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश :
जब आप ने फिल्म ‘हमशकल्स’ की तो क्या उस वक्त आप को यकीन था कि ‘हम तुम’ या ‘ओमकारा’ जैसी फिल्मों में आप को पसंद करने वाले लोग हमशकल्स में भी पसंद कर लेंगे?
लोगों को मुझ से शिकायत थी कि मेरी फिल्में 100 या 200करोड़ रुपए नहीं कमातीं. लोग मुझे सलाह दे रहे थे कि मुझे कोई मसाला फिल्म करनी चाहिए. उस निर्देशक के साथ काम करना चाहिए जिस की फिल्में 100-200 करोड़ रुपए कमाती हैं तो मुझे लगा कि ‘हाउसफुल’ जैसी सफलतम फिल्म जिस ने बनाई है उस के साथ काम किया जाए. इसलिए साजिद खान के साथ ‘हमशकल्स’ करने के लिए राजी हुआ.
आप ने ‘हमशकल्स’ की रिलीज के बाद साजिद खान के साथ कभी काम न करने की बात कही थी?
साजिद खान मेरे अच्छे दोस्त हैं. ‘हमशकल्स’ के दौरान वे किसी की सुन नहीं रहे थे. फिल्म बहुत खराब लगी थी, इसलिए ऐसा कह दिया था. पर वे मेरे दोस्त हैं और दोस्त रहेंगे.
आप को किस तरह की कौमेडी पसंद आती है?
मेरे लिए कौमेडी के माने हैं कि इंसान को हंसी आए. उस के चेहरे पर एक मुसकान आए. कौमेडी को हम डिफाइन नहीं कर सकते. अमिताभ बच्चन हों या गोविंदा, अच्छी कौमेडी करते रहे हैं. मुझे कौमेडी की समझ है, ऐसा मैं मानता हूं.
आप की पिछली फिल्म ‘गो गोआ गौन’ को भी बौक्स औफिस पर सफलता नहीं मिली थी, जिस का आप ने निर्माण भी किया था?
पहली बात तो सब को खुश करने वाली फिल्में अलग होती हैं. मेरी राय में ‘गो गोआ गौन’ इंटरवल से पहले अच्छी थी. कौमेडी फिल्म थी, लेकिन इंटरवल के बाद जब जौंबी आए तो भारतीय दर्शक उस से रिलेट नहीं कर पाए. हमारे यहां जौंबी का कोई कल्चर भी नहीं है. बाद में मुझे भी कुछ अजीब सा लगा पर मैं आप को बता दूं कि हम ‘गो गोआ गौन’ का सीक्वल बनाना चाहते हैं, मगर यह सीक्वल फिल्म जौंबी के बगैर बनेगी.
क्या आप को लगता है कि जौंबी पर ‘गो गोआ गौन’ जैसी फिल्म बनाने से पहले लोगों को जौंबी के प्रति प्रशिक्षित करना जरूरी था?
ऐसा नहीं है. शायद हमारे जौंबी कुछ अच्छे नहीं थे. जौंबी यूनिवर्सल होने चाहिए. जैसे कि बे्रट किप ने अपनी फिल्म में जौंबी इंट्रोड्यूस किया था, वह काफी अच्छा था. उन्होंने एक बीमारी दिखाई थी. पर हमारी फिल्म में ऐसे जौंबी थे जिन से लोग रिलेट नहीं कर सके.
आप के लिए सफलता क्या माने रखती है?
सफलता का मतलब होता है कि लोग आप की फिल्मों को पसंद करें और उस के साथ आप कुछ अच्छा काम भी कर रहे हों. यानी कि गुणवत्ता वाला काम होना चाहिए. मसलन, हम पटौदी खानदान से हैं पर टैगोर खानदान से भी हैं तो हमें इन दोनों खानदानों की मर्यादा को बनाए रखते हुए काम करना चाहिए. मेरे लिए सफलता के माने ये हैं कि हम अपनेआप से खुश हों. हम हर विभाग में अच्छा काम करें. अपने काम के साथसाथ हम अपने परिवार, अपनी पत्नी व बच्चों के साथ भी अच्छे ढंग से रहें. काम में भी विविधता होनी चाहिए, सिर्फ पैसों के लिए काम नहीं होना चाहिए बल्कि सिनेमा के लिए भी काम होना चाहिए.
आप के पापा बहुत बड़े क्रिकेटर रहे हैं पर आप क्रिकेट से बहुत दूर हैं. इन दिनों कई कलाकार क्रिकेट की टीम या दूसरी कोई टीम खरीद रहे हैं. आप ने इस दिशा में कुछ सोचा?
मेरा मानना है कि हर इंसान को वही खेल खेलना चाहिए जिस में वह माहिर हो. टीम खरीदने वाली बात मेरी समझ से परे है. मुझे लगता है कि हर काम का एक वक्त होता है. इन्वैस्टमैंट करने के लिए भी एक वक्त होना चाहिए. सही आइडिया होना चाहिए. जो लोग देर से इन्वैस्टमैंट शुरू करते हैं उन्हें उतना फायदा नहीं मिलता है. मेरे पास भी एक टैनिस टीम खरीदने का औफर आया है पर मुझे यह बात समझ में नहीं आई. जब लोग मुझे औफर देते हैं कि हम आप को 10 या 20 प्रतिशत देंगे और आप सिर्फ अपना नाम दीजिए या कुछ अपियरैंस दीजिए, तो मुझे ‘दाल में काला’ नजर आता है. उस वक्त मुझे लगता है कि मेरा नाम भुनाया जा रहा है और उसे फायदा हो रहा है. मुझे कोई फायदा नहीं हो रहा. जो लोग पैसा देने का वादा करते हैं, उन से तो मैं दूर रहता हूं.
फिल्मी दुनिया में कौर्पोरेट सिस्टम आने से रचनात्मकता पर कितना असर पड़ा है?
मेरी राय में तो फायदा हो रहा है. पुराने जमाने में सिर्फ फिल्म का निर्माता कंट्रोल करता था. यह बुरी बात है कि एक इंसान पूरी टीम को कंट्रोल करता है. उस वक्त निर्माता कलाकार को पैसे भी नहीं देता था. वह कहता था कि यह बहुत बड़ी बात है कि हम ने तुम्हें अपनी फिल्म में काम दिया है. वह गलत सिस्टम था. अब थोड़ी सी ईमानदारी आ गई है. पारदर्शिता आ गई है. जिस का जो हक है वह उसे मिल रहा है.
कुछ कलाकार कौर्पोरेट सिस्टम में जा रहे हैं. हर माह एक फिल्म बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं?
सच कहूं तो ये सारे लोग कौर्पोरेट कौर्पोरेट चिल्ला रहे हैं पर यह कौर्पोरेट सिस्टम है नहीं. पहले बहुत गलत सिस्टम चल रहा था. किसी की समझ में सही बात आ नहीं रही थी. ब्लैक मनी, व्हाइट मनी, पता नहीं क्याक्या बातें हो रही थीं. अब फिल्म का बिजनैस नौर्मल हो गया है. वैसे अभी और नौर्मल होना चाहिए. कौर्पोरेट के नाम पर ही सही, सिस्टम से काम हो तो वह अच्छी बात है.
कुछ समय पहले ‘लव जिहाद’ को ले कर एक नया मसला खड़ा हुआ जिस पर आप ने किसी अखबार में एक पत्र भी लिखा. उस के बाद क्या हुआ?
‘लव जिहाद’ को ले कर लोगों ने मेरा मतलब समझ लिया. लोगों ने मान लिया कि मैं ने अच्छा काम किया है. पर एक कलाकार कुछ बोल रहा है, इस से क्या फर्क पड़ता है?
क्या आप मानते हैं कि ‘लव जिहाद’ का मुद्दा पूरी तरह से पौलिटिकल है?
हमारे देश में हर चीज पौलिटिकल बन जाती है. वहीं, भारत के बारे में यदि हम कहें कि यह हिंदुस्तानी मुसलिम या हिंदुस्तानी हिंदू है, तो इस के क्या माने हुए? यह विभाजन क्यों? यह सब नहीं होना चाहिए.
क्या आप को लगता है कि नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो बौलीवुड के लोगों के साथ जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं? इस से पहले लोगों ने सिर्फ बौलीवुड का उपयोग करने का प्रयास किया?
मैं वही कह रहा हूं कि पहले किसी ने कुछ किया ही नहीं. हम ‘फादर फिगर’ को वोट करते हैं. मेरे हिसाब से नरेंद्र मोदी बेहतर फादर फिगर हैं. उन के कुछ साइंटिफिक विचार रोचक भी हैं.
आप सोशल मीडिया से दूर रहना चाहते हैं. इस की कोई खास वजह?
सब से पहली बात तो मैं इस भेड़चाल का हिस्सा नहीं बनना चाहता. हमारी फिल्म में गोविंदा ने अभिनय किया है. उन्हें तो पब्लिसिटी ही समझ में नहीं आती है. उस जमाने में कलाकार इतनी बातें नहीं किया करते थे. आप को पता होगा कि एक समय वह था जब अमिताभ बच्चन ने कुछ समय के लिए मीडिया को बैन कर दिया था. मैं सोशल मीडिया में यकीन इसलिए नहीं करता क्योंकि सभी कर रहे हैं. मुझे लगा कि मेरी अपनी अलग बात होनी चाहिए. फिर मुझे लगा कि मैं क्या ट्वीट करूंगा? मैं यह नहीं कहता कि ट्वीट करना जरूरी है. पर हर दिन कुछ ट्वीट करना जरूरी हो सकता है. फिर मुझे लगा कि ट्वीट शुरू करने के बाद फैन्स बढ़ेंगे, उन के ट्वीट का जवाब देना और फिर फैन्स को बढ़ाने की चूहादौड़… फेसबुक पर लाइक्स बढ़ाने की चूहादौड़…आखिरकार, मैं ने सोचा कि मुझे इस चक्रव्यूह में नहीं फंसना है.
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर दीपिका पादुकोण व कुछ दूसरे कलाकारों को काफी गालियां मिलीं. इस पर आप क्या कहेंगे?
गालियां तो मिलेंगी ही. यही तो खासीयत है सोशल मीडिया की. आप अच्छाबुरा जो कुछ बोलोगे, सबकुछ लोगों के पास जाएगा. लोग उस पर रिऐक्ट करेंगे. मुझे अच्छा लगा जब सोनम कपूर ने कहा, ‘आप क्या क्लीवेज के बारे में बात कर रहे हो? जब अभिनेत्रियां खुद दिखाएंगी, तो लोग लिखेंगे.’ यह सच कहने के बाद सोनम खुद फंस गई. मेरी राय में सोनम ने बहुत सही बात कही.