विदेश में बसने का सुहाना सपना किस का नहीं होता. जब पूरा हो जाए तो इंसान बहुत खुशी महसूस करता है. धीरेधीरे मांबाप भी सपने संजोने लगते हैं, काश, वे भी विदेश देख लें. युवाओं के जीवन का यह बड़ा परिवर्तन कभीकभी उन्हें संघर्ष की भट्ठी में झोंक देता है. जो कदम अपनी जन्मभूमि पर ही पूरे नहीं टिकते थे, विदेशी धरती पर मंजिल से पहले राह या पगडंडियां तलाशते चूकने लगते हैं और समय के साथ सभी ढल जाते हैं. छोटा परिवार या न्यूक्लियर परिवार आज का मुख्य नारा है. और ऐसे परिवारों में मातापिता का स्थान थोड़ा संकुचित सा लगने लगता है. युवा पूरी नहीं तो काफी अधिक स्वतंत्रता तो चाहते ही हैं. समय बदल गया है.

युवा बच्चों के साथ रहते मांबाप आज इसी भावना को रखते हैं तो काम चल सकता है, वरना नहीं. कुछ दशक पहले युवा बच्चे मांबाप के साथ आजीवन रहते थे. पर आज बच्चों के यौवन को अपने साधन और बुद्धि के अनुसार सही दिशा दे कर आजाद कर देना अब अनिवार्य हो गया है. युवा बच्चों से उन के अपने गृहस्थ में पूरी तरह व्यस्त हो जाने पर आशाएं रखना अधिक उचित नहीं. बड़े यह मत सोचें कि हमारा समय ऐसा था, वैसा था. वह जैसा भी था, बीत चुका है.

सदी बदल गई. अपने विचार, सोच को बदलो. युवा बच्चों के लिए मन को छोड़, तन व धन को इतना लुटाओ कि तुम्हारे पास अपने लिए भी कुछ बच जाए. कारण स्पष्ट है, आप की सेहत अपनी है. इस के नायक आप हैं, ढलती उम्र से पहले ही सावधान हो जाओ. कारण कि अस्वस्थता या लंबी बीमारी के समय बच्चे हर पहलू से कितने लाचार हो जाएंगे, आप सोच भी नहीं सकते. 50 की आयु से पहले ही अपनी सेहत के सहज पहरेदार बन जाओ, बेहतरी इसी में है. आप का मेहनत से कमाया धन आप की धरोहर है. उसे कहीं भी खर्च करने में कोई पूछताछ या किसी को आपत्ति नहीं होगी, न होनी ही चाहिए. इसलिए अपने मुश्किल के दिनों के लिए जरूर थोड़ाबहुत बचा कर रखें.

वसीयत बनाने की नसीहत न भूलें ताकि आप के जाने के बाद आप की अमूल्य कमाई किसी अन्य की सौगात न बन जाए. दिन में अपने लिए समय निकालना एक और महत्त्वपूर्ण पहलू है. देश हो या विदेश, घर के बुजुर्ग प्यार या मजबूरीवश ‘ब्याज’ से इतने अधिक समर्पित हो जाते हैं कि अपने लिए वे समय ही नहीं बचाते. आमतौर पर नई पीढ़ी उन की दयालुता के भाव का दुरुपयोग कर जरूरत से ज्यादा फायदा उठाना शुरू कर देती है. बेचारे मोहवश या दुनियादारी निभातेनिभाते चकनाचूर हो जाते हैं. यह उचित नहीं.

पड़ोस में मिसेज गिल हैं जिन की कमर दुहरी हो गई अपने बेटे के छोटे बच्चों की देखभाल करते लेकिन उन के अपने बेटों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

जीवन सार्थक व सफल बनाएं

सामाजिक तौर पर जैसा भी आप का रुझान हो लेकिन जब शारीरिक, मानसिक बल है तभी सतर्क हो जाएं. मित्रता का दायरा बहुत संकुचित न रखें. कभीकभी मुसीबत में खून के रिश्ते फीके, मित्रता के मीठे साबित होते हैं. दूरदर्शन या रेडियो से भी मधुर रिश्ता बनाए रखें, जैसी रुचि हो. स्वाध्याय का शौक पालें तो समाचारपत्रों, पत्रिकाओं को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं. मैं ने देखा है हमारी कालोनी में सीनियर्स ने टैक्सी का प्रबंध किया हुआ है. मिलजुल कर उस का बिल देने में उन्हें कोई संकोच नहीं पर इस से सुविधा बहुत है. एकाकी जीवन जीना या रहना पड़े, अपने को इस के लिए पहले से ही ढालना सीखें. मौत व उम्र तो निश्चित है, बहुत ही कम जोड़े हैं जो इकट्ठे आए और इकट्ठे गए. आप का सामाजिक परिपे्रक्ष्य यदि आज्ञा या निर्देश दे तो जरूरत के समय एकाकी जीवन का कोई ‘हल’ ढूंढ़ने के लिए मन बना कर रखें, किसी और से प्रेम भी पालें. सारांश में एक ही परिपक्व सुझाव है, आज वह समय आ गया है कि युवा को उन की जवानी का आनंद लेने दें और अपना बुढ़ापा खुशनुमा, आबाद, आजाद रखें. मानव जीवन सर्वोत्तम व दुर्लभ है. इसे यथासंभव सफल एवं सार्थक बनाने की चेष्टा करें.

जहां रहें स्वस्थ और सुखद रहें

बडे़ अपने समय की बातें करते नहीं भूलते, बच्चे वर्तमान समय की करते व दलील देते नहीं थकते. ऐसे में तनाव, कशमकश होना स्वाभाविक है. मिसेज वर्मा ने अपना सारा जीवन भारत में संयुक्त परिवार में व्यतीत किया. बड़ों का आदर, मान, दिशानिर्देश सब पालन किए, लेकिन कनाडा आ कर लगभग सब नदारद. पूछना तो दूर, बताना भी गवारा नहीं. एक अन्य मामला जो अत्यंत पेचीदा बन रहा है या बन गया है कि यदि मांबाप ने बेटे की शादी कर के बहू को घर की शोभा या सदस्य स्वीकारा है तो उन का रवैया अकसर रोबीला रहता है. यदि युवा ने मांबाप को स्पौंसर कर अमेरिका या कनाडा बुलाया है तो बहू या दामाद हावी रहते हैं. सप्ताह में अकसर 40-50 बुजुर्गों से मेरा वास्ता पड़ता है जिन में कुछ बोल कर, कुछ मौन भाषा में अपने दिल की बात कह देते हैं. हो सकता है भारतीय बहुएं भी विदेश में अपने बुजुर्गों के साथ रहती हुई अपने अंदर का दर्द किसी से साझा करती हों? वास्तव में यह जीवन सफर ही ऐसा है कि किसी के हिस्से संघर्ष, पीड़ा तो किसी के हिस्से सुख, समृद्धि, संतुष्टि और न जाने क्याक्या आया है. हमेशा यही सोचें, जितना भी जीवन मिले, निरोग तथा शांतिसुखद हो. मस्ती में खुद जिएं औरों को आजादी से जीने दें

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