पूर्व कांगे्रसी और गांधी परिवार के करीबी नेता नटवर सिंह की आत्मकथा की शक्ल में आई किताब ‘वन लाइफ इज नौट एनफ’ औपचारिक तौर पर रिलीज भी नहीं हुई थी फिर भी किताब की 50 हजार प्रतियां बुक हो चुकी थीं. ऐसा भी नहीं था कि नटवर सिंह बहुत बड़े साहित्यकार या बैस्टसैलर हों. बावजूद इस के उन की इस किताब की डिमांड समकालीन लेखकों को काफी पीछे छोड़ गई. कुछ इसी अंदाज में पिछले दिनों क्रिकेटर और भारतरत्न सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा के साथ हुआ. ‘प्लेइंग इट माइ वे’ नाम की उन की किताब औपचारिक तौर पर बाजार में आने से पहले अपने कुछ अंशों, जिन्हें प्रकाशक कंपनी ने लीक किया था, के चलते न सिर्फ चर्चा में आई बल्कि रातोंरात उस की प्रीबुकिंग भी बढ़ी.

ऐसा ही कुछ पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की किताब ‘जिन्ना : इंडिया पार्टिशन इंडिपैंडेंस’ के साथ हुआ. उन्हें इस किताब के लिए भले ही अपनी ही पार्टी की आलोचना झेलनी पड़ी हो, लेकिन किताब के कुछ अंशों को विवादित बना कर इस की 3 सप्ताह में ही करीब 49 हजार प्रतियां बिक गई थीं, जिन में 13 हजार प्रतियां अकेले पाकिस्तान में बिकी थीं. इसी तरह कुलदीप नैयर की विवादित किताब ‘बियौंड द लाइन्स’ की भी 1 माह से कम समय में 20 हजार से अधिक प्रतियां बिकी थीं. दरअसल, इन तमाम किताबों की जोरदार बिक्री व चर्चा के पीछे जिस रसायन ने उत्प्रेरक का काम किया वह था कंट्रोवर्सी पैदा करना. इन किताबों की तरह, यह फार्मूला इस से पहले कई प्रकाशक कंपनियां अपना चुकी हैं और हर बार उन का तीर निशाने पर लगा है. सचिन ने जहां अपनी किताब में तत्कालीन भारतीय क्रिकेट टीम के कोच गे्रग चैपल के सौरभ गांगुली जैसे सीनियर प्लेयर के अपमान, राहुल द्रविड़ की कप्तानी पर नजर, मंकी गेट विवाद और टीम को तोड़ने जैसे खुलासे किए तो वहीं नटवर सिंह ने सोनिया गांधी के पीएम न बनने के फैसले पर खुलासा कर हंगामा मचा दिया.

यही हंगामा हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब ‘द ऐक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ पर मचा, जब संजय बारू ने किताब में मनमोहन सिंह को कमजोर पीएम और सोनिया गांधी को ताकतवर बताया. स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की एक किताब ‘द रैड साड़ी’ (एल सारी रोजो) भी ऐसी ही किताब थी. सोनिया गांधी की जिंदगी पर आधारित इस किताब में दावा किया गया था कि राजीव गांधी की मौत ने सोनिया को झकझोर कर रख दिया और उस के बाद ही वे सबकुछ समेट कर वापस अपने मुल्क जाने की सोचने लगीं.

भारत में आने से पहले ही विवादों में घिर गई किताबों में स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की किताब ‘द रैड साड़ी’, रिकी पोंटिंग की आत्मकथा ‘पोंटिंग ऐट द क्लोज औफ प्ले’, मैथ्यू हेडन की ‘स्टैंडिंग माया ग्राउंड’, डोनिगर की पुस्तक ‘द हिंदूज : ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’, तसलीमा नसरीन की आत्मकथा ‘निर्वासन का बुधवार’ और भारतीय मूल के कनाडाई लेखक रोहिन्टन मिस्त्री की किताब ‘सच ए लौंग जर्नी’ के नाम लिए जा सकते हैं. इन सभी किताबों ने बाजार में आने से पहले विवादों की पब्लिसिटी चखी और खासी बिक्री की.

मार्केटिंग और प्लानिंग का खेल

जैसे टीवी को टीआरपी और फिल्मों को बौक्स औफिस के पैमाने पर तौला जाता है वैसे ही किताबों की दुनिया में बैस्टसैलर नाम के टर्म ने मार्केटिंग रूपी सांड को खुला छोड़ दिया है. किताब अच्छी हो या बुरी, उसे बेचने के लिए हर तरह की रणनीति बनाई जाती है. मसलन, संबंधित धर्म की आड़ ले कर. सारा ध्येय सिर्फ किताब की बिक्री को बढ़ाने को ले कर होता है. यहां नैतिकता की कोई जगह नहीं होती. यही वजह है आज लेखक किताब लिखने से पहले प्रकाशक फर्म से ले कर पब्लिक रिलेशन के दफ्तरों के चक्कर लगाता है, फिर उन के बनाए मार्केटिंग प्लान्स के आधार पर लिखता है. कई बार तो ये फर्में लिखीलिखाई किताब में अपने हिसाब से काटछांट तक कर देती हैं.

अगर किसी बड़ी शख्सीयत ने अपनी जिंदगी की किताब लिखी है तो उस के विवादित अंशों को सब से पहले जारी किया जाता है. इस से नए पाठक तो मिलते ही हैं, विवाद को सुर्खियां बना कर किताब की बिक्री को भी बढ़ा लिया जाता है. प्रकाशक को फायदा होता है वह अलग. पहले जब नई किताब बाजार में आनी होती थी तो रिलीज के वक्त तक गुप्त रखी जाती थी. तब लेखक की प्रतिभा और बाजार में उस की साहित्यिक छवि के मुताबिक अमुक किताब बिकती थी. प्रचार के नाम पर पाठकों के बीच साहित्य के गलियारों में पोस्टरबाजी हो जाती थी. अब किताबों के बाजार में मार्केटिंग का खेल शुरू हो गया है जिस की किताब पर जितना हंगामा, वही बैस्टसैलर्स बन जाता है.

क्रिकेटरों की कंट्रोवर्सी

सचिन तेंदुलकर की किताब को ले कर कई लोगों का मत है कि उन्होंने रिटायरमैंट के बाद इसे बेचने के लिए वे खुलासे किए जो उन्हें पहले करने चाहिए थे. उन की इस कवायद को पब्लिसिटी स्टंट मानते हुए आस्ट्रेलिया में फौक्स स्पोर्ट्स पर छपे लेख में रौबर्ट क्रेडौक ने सचिन को खुदगर्ज और ‘पौलिटिकल एनिमल’ कह डाला. हालांकि इस तरह की आलोचना किताब की डिमांड बढ़ा ही रही है. इस से पहले भी कई क्रिकेटरों ने किताबें लिखीं और कंट्रोवर्सी का तड़का लगाया. जहां इंगलैंड क्रिकेटर केविन पीटरसन की आत्मकथा में पूर्व कोच और खिलाडि़यों पर बदसलूकी का आरोप लगा वहीं आस्टे्रलिया के पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग ने अपनी आत्मकथा में मंकी गेट विवाद पर बीसीसीआई और भारतीय टीम की आलोचना की. शोएब अख्तर ने अपनी आत्मकथा में पाक क्रिकेट की पोल खोली तो हर्शल गिब्स ने अपनी किताब ‘टू द पौइंट’ में सीनियरों पर गुटबाजी के आरोप से ले कर टीम होटल में लड़कियों के बेरोकटोक आने की कहानी लिखी. मैथ्यू हेडन ने आत्मकथा के जरिए बताया कि कैसे स्लेजिंग आस्ट्रेलिया क्रिकेट का एक बड़ा हिस्सा रहा है. आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर एडम गिलक्रिस्ट ने ‘ट्रू कलर्स’ में लिखा कि सचिन तेंदुलकर में खेलभावना की कमी है. जौन राइट ने ‘इंडियन समर्स’ नाम की किताब में इंडियन टीम के ड्रैसिंगरूम की कई बातें जगजाहिर कर दीं.

धार्मिक विवाद बेचती किताबें

सिर्फ खेल के मैदान के खिलाड़ी ही किताबों को विवादों में लपेट कर नहीं बेच रहे हैं बल्कि राजनेता भी अपने आखिरी दिनों में अपने अनुभव का इस्तेमाल कर सियासी राज खोल कर बैस्टसैलर बन जाते हैं. संजय बारू ने ‘द ऐक्सीडैंटल प्राइम

मिनिस्टर’ उस वक्त लिखी जब वे मनमोहन सिंह के बेहद करीब थे. जाहिर है, उन्होंने काफी कुछ देखा होगा. स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की किताब ‘द रैड साड़ी’ के लेखक को कांगे्रस की तरफ से कानूनी नोटिस भेजा गया है. विवादों ने इसे भी बाजार में गरम कर दिया. लिहाजा, किताब का इतालवी, फ्रैंच और डच भाषा में अनुवाद भी हुआ. यह किताब अंतर्राष्ट्रीय बैस्टसैलर का मुकाम हासिल कर रही है.

इसी तरह पेंगुइन द्वारा प्रकाशित डोनिगर की पुस्तक ‘द हिंदूज : ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ भी ऐसे ही विवादों के चलते सुर्खियों में रही. बीच में ज्यादा विरोध होता देख इस का कवरपेज बदल दिया गया. गौरतलब है कि शिक्षा बचाओ आंदोलन संगठन ने इस किताब पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था. बाद में दोनों ने अदालत के बाहर समझौता कर लिया था. मामला मुनाफे को ले कर था, लिहाजा सब शांत हो गए.

विवादास्पद लेखिका तसलीमा नसरीन तो धर्म और पोंगापंथियों की पोल खोल कर सब से विवादित लेखिका बन गईं. उन की लिखी ‘लज्जा’ दुनियाभर में मशहूर हुई और उस ने उन का कद बढ़ाया. पिछले दिनों उन की आत्मकथा ‘निर्वासन का बुधवार’ भी इसी तरह विवादों से घिरी और नतीजा देखिए कि विवादों के बीच विमोचन होने के बाद इस की बिक्री आसमान छू रही है. भारतीय मूल के कनाडाई लेखक रोहिन्टन मिस्त्री की किताब ‘सच ए लौंग जर्नी’ भी ऐसी ही किताब रही. इस मसले पर नटवर सिंह कह चुके हैं कि आलोचनाओं से उन की किताब को काफी फायदा मिला.

प्रचार और विदेशी रुझान

सूचना और प्रौद्योगिकी के आगमन से देश में सिर्फ स्मार्टफोन, कंप्यूटर और डिजिटल मीडिया ही पैदा नहीं हुआ बल्कि इस ने जंग लग चुके किताबों के बाजार को भी औनलाइन प्लेटफौर्म में ला कर उसे जिंदा कर दिया है. आज कोई भी किताब लेने के लिए बुक स्टाल जाना नहीं पड़ता बल्कि औनलाइन बाजार में कोई भी किताब और्डर कीजिए और घर बैठे पढि़ए. इस का एक फायदा यह भी है कि पहले यदि किसी किताब पर बैन के चलते उसे पढ़ना मुश्किल होता था तो अब बैन होने पर भी पाठक औनलाइन उन्हें पढ़ सकते हैं.

मैडबुक्स डौट कौम, सैकंडहैंड बुक्स इंडिया डौट कौम, इन्फीबीम डौट कौम, बुक अड्डा डौट कौम और फ्लिप्कार्ट, अमेजन जैसी न जाने कितनी वैबसाइटें सस्ते दामों पर देशविदेश की किताबें मुहैया कराती हैं. देश के बड़े पब्लिशर्स, किताब के बाजार में आने से पहले औनलाइन बुकिंग और बिक्री शुरू कर देते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में किताबों का कारोबार करीब 2 अरब डौलर का है जो करीब 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इस पूरे उद्योग में 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पुरानी किताबों का होता है. एक आंकड़े के मुताबिक, अमेरिका में वर्ष 2008 में 24.3 अरब डौलर और ब्रिटेन में 3 अरब पाउंड मूल्य की किताबों की बिक्री हुई लेकिन वर्ष 2007 की तुलना में यह क्रमश: 6 और 2.5 फीसदी कम थी, जबकि बीते सालों में भारत के पुस्तक बाजार में उत्साहजनक वृद्धि हुई है.

इंगलिशविंगलिश की डिमांड

भारत की राष्ट्रभाषा भले ही हिंदी हो लेकिन यहां के लिटरेचर बाजार में अंगरेजी की किताबों और लेखकों का ही बोलबाला है, फिर चाहे वे भारतीय लेखक हों या विदेशी. अंगरेजी भाषा की किताब ही बिक्री में अव्वल रहती हैं. चेतन भगत, सलमान रुश्दी, तसलीमा नसरीन, शोभा डे, किरण मेहता जैसे नाम अंगरेजी नौवेल्स के दम पर खास मुकाम पा चुके हैं. इस के पीछे के कारणों की बात करें तो पहली वजह, भारतीयों का अंगरेजी के प्रति बढ़ता रुझान है और दूसरी, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का व्यावसायिक कारणों से भारतीय बाजार में पुस्तकों के प्रकाशन और विक्रय में रुचि लेना है.

यूके ट्रेड ऐंड इन्वैस्टमैंट के शोधकर्ताओं द्वारा लंदन बुक फेयर में किए गए शोध के मुताबिक, पब्लिशर्स एसोसिएशन का अनुमान है कि वर्ष 2007 में भारत में पुस्तक बाजार लगभग 1.25 अरब मूल्य का था जिस में आधे से अधिक अंगरेजी पुस्तकों का था. किताबों के बढ़ते बाजार में फिल्में भी अहम भूमिका निभा रही हैं. आएदिन किसी न किसी किताब पर आधारित फिल्म रिलीज हो ही जाती है. अंगरेजी फिल्मों में लगभग हर दूसरी फिल्म किसी किताब पर आधारित होती है, जैसे ‘लाइफ औफ पाई’, हैरी पौटर’, ‘लौर्ड औफ द रिंग्स’ आदि. इन फिल्मों के रिलीज होते ही मूल किताबों की बिक्री में जबरदस्त उछाल देखा गया था.

अगर हिंदी फिल्मों की बात करें तो चेतन भगत अंगरेजी के ऐेसे लेखक हैं जिन के लगभग सभी उपन्यासों पर या तो फिल्में बन चुकी हैं या बन रही हैं. जैसे ही इन के किसी नौवेल पर फिल्म बनने की खबर आती है, उस की बिक्री एकदम से बढ़ जाती है, फिर चाहे वह ‘फाइव पौइंट समवन’, ‘थ्री मिस्टेक्स औफ माई लाइफ’, ‘टू स्टेट्स’ और ‘वन नाइट इन कौलसैंटर’ हो या हालिया रिलीज ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ हो, सब बैस्टसैलर्स हैं. भारत इस समय एक बड़ा बाजार है जहां बहुराष्ट्रीय प्रकाशक कंपनियां पुस्तकों के प्रकाशन और विक्रय में रुचि ले रही हैं. इस कारण भारत में प्रकाशन अब एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है.

लिहाजा, प्रकाशक हर पुस्तक को बैस्टसैलर बनाने के साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके अपनाने से गुरेज नहीं करते. इस के लिए भले ही किसी की छवि खराब की जाए, पोल खोली जाए, धार्मिक विवादों को हवा दी जाए या फिर गड़े मुरदे उखाड़े जाएं. ‘जो दिखता है वह बिकता है’ की बाजारू मानसिकता यहां भी काम कर रही है.

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