आप के पोर्टफोलियो का झुकाव इक्विटी की ओर है तो एक बात तय है कि शेयर बाजार में उतारचढ़ाव से आप की नींद उड़ी रहती होगी. निवेश के पोर्टफोलियो में इक्विटी का शामिल होना अहम तो है लेकिन इस की हिस्सेदारी निवेशक के जोखिम लेने की क्षमता, उम्र और निवेश के लक्ष्य के आधार पर तय होनी चाहिए. इस के साथ ही आप के पोर्टफोलियो में फिक्स्ड इन्कम वाले इंस्ट्रूमैंट का शामिल होना भी बहुत जरूरी है. फिलहाल डेट इंस्ट्रूमैंट में निवेश करना आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है क्योंकि बाजार में कई सारे ऐसे प्रोडक्ट उपलब्ध हैं. इन में निवेश से आप अच्छा रिटर्न हासिल कर सकते हैं.

इक्विटी में निवेश से अच्छा रिटर्न मिलता है लेकिन उस में जोखिम भी होता है. अगर आप की उम्र ज्यादा है और आप रिटायरमैंट की ओर बढ़ रहे हैं तो ज्यादा जोखिम लेना आप के लिए ठीक नहीं है. ऐसी स्थिति में फिक्स्ड इन्कम वाले इंस्ट्रूमैंट का चुनाव करना ठीक रहता है. सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर अजय बजाज के मुताबिक, बाजार में फिक्स्ड इन्कम वाले कई निवेश विकल्प मौजूद हैं जिन में निवेश कर के निवेशक जहां अच्छा रिटर्न कमा पाएंगे वहीं वे टैक्स बचत भी कर सकते हैं.

बैंक और कौर्पोरेट एफडी

भारतीय निवेशकों के लिए फिक्स्ड डिपौजिट हमेशा से ही निवेश का बेहतरीन विकल्प रहा है. इस में सब से खास बात यह है कि आप को निश्चित दर पर रिटर्न मिलेगा और जोखिम बिलकुल नहीं है. हालांकि इस निवेश से मिलने वाले ब्याज पर निवेशकों को टैक्स चुकाना पड़ता है. ऐसे में जो लोग निचले टैक्स स्लैब में आते हैं उन के लिए यह निवेश का बेहतरीन विकल्प है. जो लोग रिटायरमैंट के नजदीक हैं वे भी इस में निवेश कर सकते हैं.

बैंक की जिन एफडी का लौकइन पीरियड 5 साल का होता है उन पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत टैक्स छूट का फायदा भी मिलता है. इस के बावजूद बैंक के फिक्स्ड डिपौजिट में निवेशकों को उतना रिटर्न नहीं मिलता जितना कौर्पोरेट एफडी में मिलता है. कौर्पोरेट एफडी की बात करें तो इस की ब्याज दरें बैंक एफडी से 1 से 2 फीसदी ज्यादा होती हैं. इस के बावजूद निवेशकों को उन कौर्पोरेट एफडी में निवेश से बचना चाहिए जिन की रेटिंग अच्छी न हो फिर चाहे उन पर आप को 15 फीसदी तक रिटर्न क्यों न दिया जा रहा हो. जिस एफडी की रेटिंग अच्छी है पर रिटर्न थोड़ा कम हो, उस में निवेश करने में समझदारी है.

फिक्स्ड इन्कम म्यूचुअल फंड

डेट इंस्ट्रूमैंट के बीच फिक्स्ड इन्कम म्यूचुअल फंड सब से ज्यादा डाइवर्सिफाइड फंड हैं. इन में मौजूदा ब्याज दरों और शेयर बाजार की अनिश्चितता को देखते हुए आमतौर पर निवेशकों को फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान, शौर्ट टर्म डेट फंड और गिल्ट फंड में निवेश करने की सलाह दी जाती है. निवेशकों के लिए ये योजनाएं बेहतर मानी जाती हैं क्योंकि इन में एफडी से ज्यादा ब्याज मिलता है और मैच्योरिटी पीरियड के लिए 3 महीने से 3 साल का विकल्प मौजूद होता है. फंड हाउस ने कुछ ऐसी स्कीमें भी लौंच की हैं जिन का मैच्योरिटी पीरियड 370 से 390 दिन के बीच है. इन में निवेश करने से टैक्स के साथ महंगाई को भी समायोजित करने का मौका मिलता है.

हाइब्रिड या स्ट्रक्चर्ड प्रोडक्ट

कई फंड हाउस और प्राइवेट ऐसे हाइब्रिड प्रोडक्ट औफर कर रहे हैं जिन में डेट इंस्ट्रूमैंट की ज्यादा हिस्सेदारी होती है और इक्विटी का हिस्सा कम होता है. इन में कर्ज पर आधारित हाइब्रिड फंड स्कीम शामिल हैं. कैपिटल प्रोटैक्शन फंड और मंथली इन्कम प्लान इसी श्रेणी में आते हैं. इस तरह का निवेश करने में एक ओर जहां आप का निवेश डेट इंस्ट्रूमैंट के जरिए सुरक्षित रहता है वहीं दूसरी ओर इक्विटी में निवेश से आप का रिटर्न भी बढ़ता है. इस पर भले ही ज्यादा रिटर्न न मिलता हो पर इस से होने वाले टैक्स फायदे और कम जोखिम के चलते यह छोटे निवेशकों के लिए पसंदीदा विकल्प है. विशेषज्ञों की मानें तो निवेशकों को अपने निवेश का कम से कम 20 से 40 फीसदी, फिक्स्ड इंस्ट्रूमैंट में लगाना चाहिए.

कौर्पोरेट बौंड और नौनकनवर्टिबल डिबैंचर्स

बड़ी कंपनियां अपने फंड की जरूरत को पूरा करने के लिए बौंड जारी करती हैं. आमतौर पर इन बौंड के रिटर्न पर निवेशक को टैक्स चुकाना पड़ता है. हालांकि कई बार सरकार कुछ कंपनियों को छोटे निवेशकों के लिए टैक्सफ्री बौंड जारी करने की अनुमति भी देती है. बौंड द्वारा कमाए गए मुनाफे पर निवेशक को आय के स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.

फायदे

फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट में निवेश करने से सब से बड़ा फायदा यह है कि आप को हर दिन रिटर्न मिलता है, जबकि इक्विटी लिंक्ड प्लान में रिटर्न शेयर बाजार पर निर्भर करता है.

शेयर बाजार का रुख अगर नीचे हो, तो हो सकता है कि आप को अपने निवेश पर भारी नुकसान भी उठाना पड़े, जबकि फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट में आप को पहले ही दिन से यह स्पष्ट होता है कि साल के अंत में कितना रिटर्न मिलेगा.

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