शेयर बाजार में अस्थिरता का माहौल

शेयर बाजार में अस्थिरता का माहौल है. देश के कई आर्थिक मोरचों, जैसे मुद्रास्फीति की दर घटने, तिमाही परिणाम बेहतर रहने, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भारतीय अर्थव्यवस्था के साकार रहने की भविष्यवाणी व वित्तमंत्री के विकास दर में सुधार के अनुमान के बाद भी शेयर सूचकांक में उथलपुथल हो रही है. इस की वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कमजोर स्थिति को माना जा रहा है. हमारा शेयर बाजार अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के इशारे पर घटताबढ़ता ज्यादा नजर आ रहा है. किसी भी मजबूत बाजार के लिए इतनी संवेदनशील स्थिति उचित नहीं है.

यदि हमें मजबूत होना है तो मजबूती का आधार इस तरह की संवेदनशीलता पर ठीक नहीं है. यह अच्छा है कि बाजार को प्रधानमंत्री पर भरोसा है. महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव के बाद एक्जिट पोल भाजपा के पक्ष में आए तो बाजार में 3 दिन की सुस्ती टूटी और वह तेजी पर बंद हुआ. चुनाव की तारीख के दिन तो बाजार 350 अंक टूट कर 2 माह के निचले स्तर पर पहुंचा. रुपए का भी यही हाल रहा. बाजार को मोदी से उम्मीद है तो यह उम्मीद बरकरार रहनी चाहिए.

एक देश एक मोबाइल का तोहफा

मोबाइल अखिल भारतीय पोर्टेबिलिटी पर पिछले 3 साल से संशय की स्थिति बनी हुई है. हर साल उपभोक्ता को उम्मीद रहती है कि इसी वर्ष से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी लेकिन कुछ न कुछ अड़चन सामने आ जाती है. मोबाइल पोर्टेबिलिटी सेवा प्रदाता को बदलने की तो लागू हो चुकी है लेकिन एक देश एक मोबाइल का मुद्दा अभी सुलझा नहीं है. हाल ही में दूरसंचार आयोग ने कह दिया है कि अगले वर्ष मार्च के बाद से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी. इस व्यवस्था के लागू होने के बाद सेवा प्रदाता को 2 दिन में नए शहर में उपभोक्ता को यह सेवा उपलब्ध करानी होगी. इस व्यवस्था के लागूहोने से उपभोक्ता के लिए उस का मोबाइल नंबर एक तरह से दूसरी पहचान बन जाएगी. मोबाइल हर एक का उपकरण बन गया है और यह सुविधा देश के हर नागरिक की जरूरत बन गई है इसलिए जितना हो सके उसे इस से जुड़ी सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए. सेवा प्रदाता मनमानी नहीं करें, इस पर भी कड़ी नजर रखी जानी चाहिए.

कीमत घटने का लाभ कौन डकार रहा है

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 5 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने वाला है. थोक सूचकांक की दर भी सितंबर में 5 साल के निचले स्तर 2.38 फीसदी पर दर्ज की गई और खुदरा बाजार में भी मुद्रास्फीति की दर में लगातार गिरावट आ रही है. यह माहौल बन गया है कि सबकुछ सस्ता हो गया है. आंकड़ों का यह खेल हमेशा भ्रम पैदा करता है जबकि यह पूरी तरह से गुमराह करने वाला काम होता है. सियासत के लिए आंकड़ों की बाजीगरी जनमत जुटाने की शतरंजी चाल होती है और सत्ता के लोलुप नेता इन आंकड़ों पर खूब सियासत करते हैं.

महंगाई घटने का आंकड़ा तो आता है लेकिन बाजार में सामान्य उपभोक्ता की जेब पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, उसे तो जो कीमत महंगाई बढ़ने के दिन चुकानी पड़ी थी उसी दर पर महंगाई का आंकड़ा घटने की खबर वाले दिन भी चुकानी पड़ती है. डीजल की कीमत बढ़ती है तो बस, आटो व अन्य सार्वजनिक यातायात संचालक किराया बढ़ा देते हैं लेकिन जब तेल 5 साल में सब से कम कीमत पर उतर आता है तो किराया नहीं घटाया जाता है. यह हालत सरकारी बसों में भी है और निजी वाहन मालिक भी ऐसा ही करते हैं. बढ़े किराए को घटाना किसी भी संगठन को रास नहीं आता है. तेल कंपनियां अंधाधुंध मुनाफा कमा रही हैं. अपने कर्मचारियों को मालामाल कर रही हैं. जनता सिर्फ लूट का निशाना बनी हुई है. तेल कंपनियां अपने कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर वेतन, भत्ते या ओवरटाइम देने के लिए तैयार नहीं हैं. आम जनता को लूट रही तेल कंपनियों पर नियंत्रण क्यों नहीं है. संभव है कि ट्रांसपोर्ट मालिकों से कमीशन पहुंचता हो, इसे देखा जाना चाहिए.

रियलिटी बाजार पर नियामक जरूरी

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी सूचना छिपाने के 2007 के एक मामले में देश के सब से बड़े बिल्डर डीएलएफ के अध्यक्ष के पी सिंह तथा कंपनी के 6 निदेशकों पर 3 साल तक शेयर बाजार से पूंजी जुटाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. सेबी के पूर्णकालिक सदस्य राजीव अग्रवाल के 44 पेज के इस आदेश के साथ ही भारतीय रियलिटी बाजार में भूचाल आ गया है. कंपनी को अब पैसा जुटाने के लिए अपनी संपत्ति को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. डीएलएफ पर आए इस संकट के साए से इस क्षेत्र के लिए एक नियामक की जरूरत की मांग को बल मिला है. इस क्षेत्र के लिए कहा जाता है कि यहां पैसा बहता है और उस पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है. अंसल जैसे कुछ बिल्डर भी पहले शीर्ष पर चढ़ कर जमीन पर उतरे हैं. शेयर बाजार में डीएलएफ के शेयरों की कीमत जमीन पर उतर आई है. सेबी ने 2007 के जिस इश्यू को जारी करते समय सूचना छिपाने के लिए डीएलएफ को झटका दिया उस समय बिल्डर ने रिकौर्डतोड़ पैसा जुटाया था. बिल्डरों पर नकेल कसने की व्यवस्था नहीं है. उच्च न्यायालय ने चारमंजिले भवन के एक निर्माता को बुकिंग कराने वालों का पैसा लौटाने का आदेश दिया है.

इसी तरह से मुंबई की कोका कोला सोसाइटी के 100 फ्लैट तोड़े गए और फिर हाल ही में एक अन्य मामले में प्रतिस्पर्धा आयोग के फैसले को सही ठहराते हुए प्रतिस्पर्धा अपीलीय न्यायाधिकरण ने डीएलएफ पर 630 करोड़ रुपए का दंड लगाया. रियलिटी बाजार के लिए नियामक होता तो शायद लोगों को बड़े स्तर पर लूट का शिकार नहीं होना पड़ता. हालत यह है कि रियलिटी क्षेत्र के कारोबारियों के सब से बड़े संगठन रियल एस्टेट डैवलपर एसोसिएशन औफ इंडिया के एक शीर्ष पदाधिकारी का एक अखबार में बयान आया कि रियलिटी क्षेत्र पर सेबी के प्रतिबंध का असर नहीं पड़ेगा क्योंकि 94 प्रतिशत बिल्डर शेयर बाजार से जुड़े नहीं हैं. सवाल है कि इतना पैसा कहां से जुटाया जा रहा है? बैंक बिल्डरों को खूब कर्ज दे रहे हैं. पूंजी जुटाने के परंपरागत तरीके शेयर बाजार से रियलिटी एस्टेट दूर भागता है तो पैसा बनाने वाली इस मशीन के मूल तक पहुंचने के प्रयास सरकारी स्तर पर क्यों नहीं होते हैं? सरकार ने बिल्डरों को लूटमार करने की खुली छूट किसलिए दे रखी है? रियलिटी बाजार में छोटेबड़े काम के लिए पंजीकरण को अनिवार्य किया जाना चाहिए.

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