इस देश के देशवासियों की यह आदत भी है कि वे सोचते हैं कि कोई पुजारी, ओझा या इंस्पैक्टर देश में हो रहे सभी गलत कामों को रोक देगा. घरों में सुख लाने के लिए पंडितों, मुल्लाओं, पादरियों की बरात तैयार रहती है, बीमारियों के लिए झाड़फूंक करने वालों की व कामकाज के लिए इंस्पैक्टरों की. मोटे शास्त्रों की तरह मोटे कानून बने हैं जिन में पाप करने पर पश्चात्ताप की तरह जुर्मानों व कैद के प्रावधान हैं.
देश का हर नागरिक, इंस्पैक्टरों की लंबी लाइन का गुलाम है और देश की जनता को, अफसोस है, विश्वास है कि ये इंस्पैक्टर ही व्यवस्था कायम रखते हैं. असल में इंस्पैक्टर धर्म के एजेंटों की तरह धूर्त और बेईमान हैं और उन का काम व्यवस्था बनाना नहीं बल्कि बिगाड़ना है. वे जहां पहुंच जाएं, वास्तु विद्वान की तरह, तोड़फोड़ के आदेश देने शुरू कर देते हैं. दुकान आप की, घर आप का, कारखाना आप का, काम करने वाले आप के, मशीनें आप की पर हर पर इंस्पैक्टर की नजर रहती है, जैसे पुजारी की कि क्या पहनो, किस हाथ से आचमन करो, क्या खाओ आदि पर दृष्टि रहती है.
नरेंद्र मोदी की सरकार मंदिरों के रथों पर चढ़ कर बनी है पर आश्चर्य है कि नरेंद्र मोदी इंस्पैक्टरराज को कम करने पर आमादा हैं. यदि यह हृदयपरिवर्तन है तो सुखद है क्योंकि धर्मनिरपेक्ष कांगे्रस पार्टी पुजारी, पादरी को चाहे हार न पहनाए,इंस्पैक्टरों को अपार शक्ति देने में विश्वास रखती थी. नरेंद्र मोदी सरकार 40 से कम कर्मचारियों की फैक्टरी को केवल एक कानून में लाने की सोच रही है ताकि बारबार फौर्म न भरने पड़ें. विष्णु, हनुमान, साईं बाबा, वैष्णो देवी, दुर्गा, काली सब एक ही जगह उपलब्ध. एक चढ़ावा सब के लिए पर्याप्त. यह बहुत अच्छा है.
इस में संदेह नहीं कि फैक्टरी मालिक श्रमिकों को दबाने की कोशिश करते हैं पर यह नहीं भूलना चाहिए कि श्रमिक जो बनाते हैं वह चीज प्रतियोगी बाजार में बिकती है और अगर वे लागत कम न रखेें तो उन के कारखाने में किसी की नौकरी सुरक्षित नहीं रहेगी. फैक्टरी मालिक जजमान नहीं हैं कि उन्हें लूटा जाए. वे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं. उन का आदर किया जाना चाहिए. उन पर इंस्पैक्टरी भेडि़ए न छोड़े जाएं. अगर सरकार अपना यह एजेंडा पूरा कर सकेगी तो देश में रिश्वतखोरी तो कम होगी ही, पाखंडबाजी भी कम होगी क्योंकि इंस्पैक्टरों से त्रस्त मालिक ही दीये और मोमबत्तियां जलाने पहुंचते हैं.