कंगना राणावत की एक फिल्म आई थी ‘तनु वेड्स मनु’. उस फिल्म में कंगना ने खुल कर ऐक्टिंग की थी. उस का खिलंदड़ापन और डांस दर्शकों ने खूब ऐंजौय किए थे. कंगना का वही खिलंदड़ापन आप ‘क्वीन’ में भी पाएंगे. वैसे फिल्म देखते वक्त वह कहीं से भी क्वीन नहीं लगती. दिल्ली की एक मिडल क्लास लड़की लगती है, न कोई मेकअप, न चेहरे पर लुनाई. घर में दादी, मांबाप और भाई की हां में हां मिलाने वाली, ज्यादा अंगरेजी आती नहीं, क्योंकि ज्यादा पढ़ीलिखी जो नहीं है. लेकिन फिर भी है बहुत स्वीट. यह ‘क्वीन’ आप को निराश नहीं करेगी, आप को हंसाएगी और खुश कर देगी.
पूरी फिल्म कंगना ने संभाल रखी है. क्या आप ने कभी सुना है कि कोई लड़की अकेली ही अपने हनीमून पर विदेश गई हो, वह भी हनीमून के लिए पाईपाई जोड़ कर, बैंक में रखे पैसे ले कर? नहीं न. ‘क्वीन’ में आप देखेंगे तो मजा आएगा.
फिल्म की कहानी की शुरुआत होती है शादी के माहौल से. रानी (कंगना) की शादी लंदन से लौटे युवक विजय (राजकुमार राव) से तय हुई है. घर में मेहमान जुटे हैं. मेहंदी की रस्म हो रही है. तभी शादी से एक दिन पहले विजय शादी से मना कर देता है. रानी पर मानो पहाड़ टूट पड़ता है. जब आंसू सूखते हैं तो सब से पहले वह शादी के लिए पैक किए गए लड्डू खाती है, उस के बाद तय करती है कि बैंक में जोड़े गए पैसे निकाल कर अकाउंट बंद करा कर वह पैरिस और एम्सटर्डम अकेली ही हनीमून मनाने जाएगी. उस के मम्मीपापा उसे जाने देते हैं. पैरिस में उसे काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. तभी उस की मुलाकात वहां एक हाफ इंडियन लड़की विजयलक्ष्मी (लिजा हेडन) से होती है, जो एक होटल में काम करती है. उस का एक बेटा भी है, जो उस के बौयफ्रैंड से है. रानी उस के साथ खुल कर मिलती है, मस्ती करती है और खिलखिलाती है.
अब रानी एम्सटर्डम रवाना होती है. वहां उसे 3 युवकों के साथ कमरा शेयर करना पड़ता है. इन युवकों में एक जापानी है, एक अंगरेज और एक अफ्रीकी. जल्दी ही ये तीनों उस के दोस्त बन जाते हैं. इधर दिल्ली में राजेश की अक्ल ठिकाने आती है तो वह रानी को ढूंढ़ता हुआ एम्सटर्डम पहुंचता है. वह रानी को वापस चलने को कहता है मगर रानी उसे समझाबुझा कर लौटा देती है. कुछ दिनों बाद दिल्ली वापस लौट कर रानी राजेश को सगाई की अंगूठी लौटा कर बे्रकअप कर लेती है. अब वह आत्मविश्वास से भरपूर लगती है.
फिल्म की इस कहानी में रानी के आत्मविश्वास को सिलसिलेवार डैवलप होते दिखाया गया है. कंगना राणावत ने अपनी बेहतरीन ऐक्ंिटग से अपने किरदार को संवारा है. शुरू में तो वह एकदम सीधीसादी लड़की लगी है लेकिन पैरिस पहुंच कर मानो उस के सपनों को पर लग जाते हैं. वहां वह शराब पीती है, सड़कों पर अपनी दोस्त के साथ मस्ती करती है, डांस करती है. और तो और, एक गुंडे द्वारा उस का पर्स छीनने पर उस का मुकाबला भी करती है. वह अपनी वर्जिनिटी को भूल कर लिप टु लिप किस भी करती है. निर्देशक विकास बहल ने यह सब बहुत खूबसूरती से दिखाया है.
निर्देशन अच्छा है. कहानी व पटकथा भी कसी हुई है. क्लाइमैक्स में रानी जब राजेश को गले लगाती है तो लगता है जैसे सबकुछ ठीक हो गया. लेकिन जब वह सगाई की अंगूठी लौटाती है तो दर्शक सन्न रह जाते हैं.
फिल्म को कई जगह जबरन खींचा गया लगता है. लिजा हेडन का काम भी अच्छा है. राजकुमार राव कंगना के मुकाबले कमजोर है. गानों का फिल्मांकन अच्छा है परंतु गाने याद नहीं रह पाते. छायांकन अच्छा है. पैरिस और एम्सटर्डम की लोकेशनें सुंदर बन पड़ी हैं.