बौलीवुड में दलितों और निम्नजाति वालों पर उच्च जाति वालों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों पर तो कई फिल्में बनी हैं परंतु पुरुषों द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों पर ज्यादा फिल्में नहीं बन पाई हैं, यदाकदा किसी फिल्म में इस तरह की एकाध घटना दिखा दी जाती है. लेकिन ‘गुलाब गैंग’ में निर्देशक सौमिक सेन ने महिलाओं द्वारा अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने की बात कही है.

महिलाओं पर हो रहे अत्याचार आज की बात नहीं है. ये अत्याचार तो पौराणिक काल से होते आए हैं. हमारे धर्मग्रंथ महिलाओं को निकृष्ट बताते हैं, उन्हें पाप की गठरी तक कहा गया है. यजुर्वेद में तो महिलाओं की तुलना पशुओं तक से की गई है और उन का घोड़े से संभोग कराने की बात कही गई है.

यथा : महीधरभाष्य: तौ त्वमहं च

उभौ चतुर: पद: पादनांवा संप्रसारयाव तव द्वौ यम द्वौ एवं संवेशन प्रकार… अधीवासेनाश्वमहिष्यौ छादयति अध उपरिष्टाच्चाच्छाद-नक्षमंवासोऽधीवास:… महिषी स्वयमेवाश्व शिश्नमाकृष्य स्वयोनौ स्थापयति. अश्वदेवत्यम्. वाजी अश्वो रेतो दधातु मयि वीर्य स्थापयतु कीदृशोऽश्व: वृषा सेक्ता रेतोधा: रेतो  दधातीति रेतोधा: वीर्यस्य धारयिता.    (यजुर्वेद 23/21)

अर्थात हे घोड़े और मुख्य पत्नी, तुम दोनों 2-2 टांगों को फैलाओ. फिर अध्वर्यु कहता है कि यज्ञभूमि को ढक दो, शामियाना वगैरह लगा दो. तब यजमान की मुख्य पत्नी घोड़े के लिंग को खींच कर अपनी योनि में स्थापित करती है और कहती है कि यह वीर्य सींचने वाला घोड़ा मुझ में वीर्य स्थापित करे.

महिलाओं से जबरन बलात्कार तो हमारे देवता भी किया करते थे. इंद्र देवता ने भेष बदल कर ऋषि पत्नी अहल्या के साथ अनैतिक संबंध बनाए थे. धर्म के नाम पर नियोग प्रथा और देवदासी प्रथा के कारण महिलाओं का खूब यौन शोषण हुआ. हमारे धर्मग्रंथ आज भी महिलाओं को दासी मानते हैं और शादी के वक्त उन्हें यह शिक्षा दी जाती है कि दासी बन कर पति व सासससुर की सेवा करना.

आज भी हमारे देश में कई जगहों पर महिलाओं को नंगा कर के गांव में घुमाया जाता है. दहेज न लाने पर उन्हें जलाया जाता है. और तो और, शहरों में भी पढ़ेलिखे लोग अपनी पत्नियों पर अत्याचार करते हैं. कई महिलाओं के चेहरों पर तेजाब फेंक कर उन्हें बदशक्ल बना दिया जाता है.

धर्म के धंधेबाज हर समय महिलाओं को यह कह कर बहकाते रहते हैं कि यह सब तो तुम्हारे भाग्य में लिखा है और भाग्य के लिखे को कोई नहीं टाल सकता. महिला दिवस पर प्रदर्शित हुई यह पहली फिल्म है जिस की दोनों प्रमुख किरदार महिलाएं हैं. फिल्म दर्शकों को बांधे तो रखती है परंतु कहींकहीं इस की धीमी गति दर्शकों को खलती है.

निर्देशक ने यह संदेश दिया है कि महिलाओं को अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को चुपचाप सहन नहीं करना चाहिए बल्कि उस का डट कर विरोध करना चाहिए. यह फिल्म महिलाओं को गुलामी की जंजीर से निकल कर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. इस फिल्म की कहानी उन औरतों की कहानी है जो मर्दों के जुल्मों से तंग आ कर हाथों में हथियार उठा लेती हैं.

कहानी उत्तर भारत के एक गांव की है, जहां रज्जो (माधुरी दीक्षित) महिलाओं के लिए एक आश्रम चलाती है. इस आश्रम में मर्दों के जुल्मों से पीडि़त महिलाएं अपना कुटीर उद्योग चलाती हैं. रज्जो इन महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाती है. रज्जो का बढ़ता प्रभाव गांव की प्रभावशाली राजनीतिबाज सुमित्रा देवी (जूही चावला) को खटकने लगता है. वह रज्जो को बहलाफुसला कर अपनी राजनीति चमकाना चाहती है. परंतु रज्जो उस के प्लान पर पानी फेर देती है. सुमित्रा और उस के गुर्गे रज्जो के गुलाब गैंग को खत्म करने के लिए हमला कर देते हैं. हमले में गुलाब गैंग की कई सदस्याएं मारी जाती हैं. रज्जो सुमित्रा के पेट में कटार घोंप देती है. पुलिस उसे पकड़ लेती है. उसे सजा हो जाती है. सुमित्रा बच जाती है परंतु अदालत उसे सरकारी पद के दुरुपयोग, धोखाधड़ी और हथियारों से लैस उस के गुर्गों द्वारा हमला करने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाती है.

फिल्म की यह कहानी वास्तविक जीवन से प्रेरित लगती है. यह कहानी गांव में रहने वाली एक अनपढ़ महिला  संपत पाल की कहानी से प्रेरित है, जिस ने गांव की कुछ औरतों को संगठित कर बुंदेलखंड में ‘गुलाबी गैंग’ गठित किया था. उस के इस ‘गुलाबी गैंग’ पर डौक्यूमैंट्री फिल्म भी बन चुकी है. मध्यांतर से पहले फिल्म बहुत धीमी है लेकिन क्लाइमैक्स जोरदार है. माधुरी दीक्षित ने जबरदस्त ऐक्शन दृश्य दिए हैं. जूही चावला नैगेटिव रोल में है. कई दृश्यों में तो वह माधुरी पर भारी पड़ी है. अन्य महिला किरदारों में तनिष्ठा, प्रियंका बोस और दिव्या जगदाले ने भी अच्छा परफौर्म किया है.

फिल्म का निर्देशन ठीकठाक है. निर्देशक ने संपत पाल के ‘गुलाबी गैंग’ से अपनी इस फिल्म को अलग ही रखा है. उस ने इस फिल्म को मसाला रीमिक्स जैसा बनाया है, जिस में इमोशंस तो हैं, साथ ही राजनीति है, होली है, औरतों की दास्तान है, कोर्ट सीन है, सरकारी राशन की चोरबाजारी है और गोलीबारी भी है. निर्देशक ने फिल्म में कई जगह द्विअर्थी गालियों का भी इस्तेमाल किया है. फिल्म का संगीत कमजोर है. छायांकन अच्छा है.

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