अयोध्या के राममंदिर विवाद के दौरान मंदिरमसजिद की राजनीति कर कई नेताओं ने न सिर्फ अपनी सियासत चमकाई बल्कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बन बैठे. इसी दरम्यान मंदिर के नाम पर किसानों से उन की जमीनें कौडि़यों के भाव ली गईं. मुआवजे की आस में बैठे किसान इंसाफ के लिए आज तक अदालतों के चक्कर काट रहे हैं. ऐसे ही एक किसान के दर्द को साझा कर रहे हैं शैलेंद्र सिंह.
अयोध्या के राममंदिर विवाद ने राजनीतिक पार्टियों, मुकदमा लड़ने वाले वकीलों और नेताओं को कुरसी व पैसा दोनों का लाभ कराया. मंदिर व मसजिद की राजनीति करने वाले कई नेता मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बन गए. राममंदिर बनाने के लिए किसानों की जमीनें मिट्टी के भाव ली गईं. उन का तय मुआवजा तक नहीं दिया गया. ऐसी 29 एकड़ जमीन के मालिक कई किसान परिवार पिछले 22 साल से मुआवजे हासिल करने की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
अयोध्या के 3 गांव के 20 से ज्यादा किसान मंदिर के लिए जमीन के अधिग्रहण का दर्द पिछले 22 सालों से झेल रहे हैं. ये गांव अवध खास, कोट रामचंद्र और जालवानपुर परगना हवेली अवध, तहसील सदर, जिला फैजाबाद का हिस्सा हैं. यहां के रहने वाले किसान अमरजीत, रामजीत, कृष्णकुमार, विनोद कुमार, रामदुलारी, रामानंद, परशुराम, तुलसीराम, राजकुमार, राजितराम, रामबहादुर, शिवकुमार, रामप्रसाद और विनीत मौर्य के खेतों में आलू, टमाटर, गोभी, बैगन, लौकी जैसी सब्जियां और गेंदा, गुलाब जैसे फूलों की खेती
होती थी. यही इन के रोजीरोजगार का साधन था. इन के घरपरिवार इसी पर अपना गुजरबसर कर रहे थे. फूलों की खेती साल भर होती थी. अयोध्या में फूल बेच कर इन का गुजारा हो जाता था.
वर्ष 1988-89 में उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने रामकथा पार्क बनाने के लिए 3 चरणों में 43 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया. इस में 29 एकड़ जमीन खेती की थी. किसानों से वादा किया कि 15 रुपए प्रति वर्गफुट के हिसाब से इस जमीन का मुआवजा दिया जाएगा. जिन परिवारों से जमीन ली गई है उन के परिवार से एक आदमी को नौकरी दी जाएगी. सरकार ने इन किसान परिवारों को केवल 2 रुपए 40 पैसे प्रति वर्गफुट के हिसाब से मुआवजा दिया. किसी भी किसान के परिवार को कोई नौकरी नहीं दी गई. बाद में यही जमीन मंदिर बनाने के लिए अधिगृहीत कर ली गई. इस के बाद भी किसानों के मुआवजे पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
कब मिलेगा न्याय
इस लड़ाई को लड़ रहे किसान विनीत मौर्य कहते हैं, ‘‘हम सभी किसान खेती कर के अपने परिवार का पालनपोषण करते थे. आज हमारे पास न तो खेती के लिए जमीन रह गई है और न ही कोई दूसरा काम. ऐसे में हमारे परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं.
बच्चों की पढ़ाईलिखाई नहीं हो पा रही है. हमें मजदूरी कर के अपना पेट पालना पड़ रहा है. हम सभी किसान मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, कानूनमंत्री और राष्ट्रपति तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं पर कोई भी सुनने को तैयार नहीं है. हम जिला न्यायालय में यह मुकदमा लड़ रहे हैं.
‘‘कोर्ट में लड़ाई इतनी सुस्त गति से चल रही है कि 22 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ. हमारी एक पीढ़ी तो गुजर गई. बच्चे बडे़ हो गए. कब हमें न्याय मिलेगा, पता नहीं. जो जमीन अधिग्रहण के पहले सब्जी और फूलों से लहलहाती थी, अब जंगल बन गई है. इसे देख कर दुख होता है. सरकार की लालफीताशाही के चलते हम और हमारे परिवार भूखों मरने के कगार पर हैं.’’
कई किसान तो मुआवजे के इंतजार में दुनिया छोड़ चुके हैं. अब उन के परिवार वाले संघर्ष कर रहे हैं. रामकथा पार्क के लिए ली गई जमीन का राममंदिर बनाने के लिए अधिग्रहण कर लिया गया. तब से मामला केंद्र्र सरकार के पाले में चला गया है. अब उत्तर प्रदेश सरकार यह कह रही है कि जमीन की मालिक केंद्र्र सरकार है. वह ही तय करे, क्या करना है? विनीत मौर्य कहते हैं, ‘‘हम किसानों से जमीन प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने ली थी. हमें मुआवजा और नौकरी देने की बात भी प्रदेश सरकार ने की थी. ऐसे में वह मसला केंद्र्र के पाले में क्यों डाल रही है. हमारी जमीन केंद्र्र को देने के पहले राज्य सरकार को हम किसानों से किया गया वादा पूरा करना चाहिए था.’’
सरकार की मनमानी
विनीत मौर्य कहते हैं, ‘‘हम ने सूचना अधिकार के तहत राज्य सरकार से इस अधिग्रहण के कानूनी पहलू की जानकारी मांगी तो पर्यटन विभाग ने किसी भी तरह की जानकारी देने से इनकार कर दिया. उस का कहना है कि उस के पास इस जमीन से जुड़ा कोई कागज नहीं है.’’
किसानों की जमीन को ले कर सरकार कैसे उस का मनमाना उपयोग करती है, इस का भी उदाहरण यहां देखने को मिलता है. जिन किसानों की जमीन पर्यटन विभाग ने रामकथा पार्क बनाने के लिए ली थी उस को 1 रुपए सालाना की दर से रामजन्मभूमि न्यास को पट्टे पर दे दिया. रामकथा पार्क दूसरी जगह पर बना लिया गया.
विनीत मौर्य आगे कहते हैं, ‘‘केंद्र्र सरकार कहती है कि जब उस ने जमीन का अधिग्रहण किया तो वह रामकथा पार्क की जमीन थी. उस में किसी भी किसान का नाम नहीं था. प्रदेश का पर्यटन विभाग अब अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है. ऐसे में हम सभी किसानों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिख कर मांग की है कि अगर हमें 26 जनवरी, 2014 तक जमीन का मुआवजा नहीं मिलेगा तो हम सभी किसान अनिश्चितकालीन धरना देने के लिए मजबूर होंगे.’’
इस संबंध में जब राज्य के पर्यटन विभाग से उन का पक्ष जानने की कोशिश की गई तो पर्यटन विभाग ने बात करने से मना कर दिया. उन का तर्क था कि किसान जमीन के मुआवजे की लड़ाई अदालत में लड़ रहे हैं. जैसा अदालत का फैसला होगा, हम करेंगे.
धर्म को आधार बना कर लड़ाई लड़ने वाले सभी दल इन किसानों से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. उन को इन की कोई चिंता नहीं है. कांग्रेसी सांसद निर्मली खत्री हों या समाजवादी पार्टी के विधायक और मंत्री तेज नारायण पांडेय या भारतीय जनता पार्टी के नेता विनय कटियार, इन किसानों की लड़ाई लड़ने की पहल कोई नहीं कर रहा है.
इन किसानों को अब केवल अदालत का भरोसा रह गया है. इन किसानों की लड़ाई भी राममंदिर विवाद जैसी लंबी हो गई है. सरकार न तो किसानों की जमीन उन को वापस दे रही है और न उस का मुआवजा ही.