‘गोरी तेरे प्यार में’ लाइट मूड की रोमांटिक फिल्म है जिस में नायक को नायिका का प्यार पाने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं. यहां तक कि नायिका को हासिल करने के लिए उसे शहर की चकाचौंध भरी लाइफ को छोड़ कर गांव में जा कर रहना पड़ता है और गोबर से भरी सड़क पर चलते हुए, रूखीसूखी खा कर एक पुल का निर्माण करना पड़ता है. मरता क्या न करता, गोरी के प्यार को जो पाना था.
फिल्म का निर्माण करण जौहर ने किया है. वर्ष 2010 में ‘कभी खुशी कभी गम’ फिल्म में करण जौहर के सहायक रहे पुनीत मल्होत्रा के स्वतंत्र निर्देशन में बनी यह दूसरी फिल्म है. पुनीत मल्होत्रा ने इस फिल्म की शुरुआत तो ठीक ढंग से की है लेकिन मध्यांतर के बाद उस ने आशुतोष गोवरिकर की फिल्म ‘लगान’ और ‘स्वदेश’ की कौपी करने की कोशिश की है. इस कोशिश में वह नाकाम रहा है और फिल्म फुस्स हो कर रह गई है.
फिल्म की कहानी बेंगलुरु में रहने वाले एक तमिलियन आर्किटैक्ट श्रीराम (इमरान खान) और दिल्ली में रहने वाली एक पंजाबन दीया (करीना कपूर) की है. दीया एक एनजीओ के साथ जुड़ी है और समाजसेवा करती है. दोनों की मुलाकात होती है और प्यार हो जाता है. उधर श्रीराम के घर वाले उस की शादी एक तमिल लड़की वसुधा (श्रद्धा कपूर) से कराना चाहते हैं, जो एक सिख युवक से प्रेम करती है और श्रीराम से शादी से मना करने को कहती है. श्रीराम शादी के मंडप से भाग जाता है और दीया को हासिल करने के लिए एक गांव में पहुंच जाता है, जहां दीया समाजसेवा में लगी है.
गांव में जिले के कलैक्टर लतेश भाई (अनुपम खेर) की ही चलती है. दीया गांव में एक पुल का निर्माण कराना चाहती है परंतु कलैक्टर रोड़ा अटकाता है. श्रीराम पुल के निर्माण में दीया की सहायता करता है और दीया का प्यार हासिल कर लेता है.
मध्यांतर तक तो इस कहानी का बखान निर्देशक ने ठीकठाक कर लिया है लेकिन गांव में पहुंचते ही कहानी भटकने लगती है. अनुपम खेर के कैरेक्टर को देख कर 70-80 के दशक में आई फिल्मों में कन्हैयालाल के किरदार की याद ताजा हो जाती है. निर्देशक ने गांव का खाका तो अच्छा खींचा है परंतु कहींकहीं इस में बनावटीपन आ गया है. फिल्म का निर्देशन साधारण है. क्लाइमैक्स में फिल्म उस के हाथों से फिसलती चली गई है.
करीना कपूर को सलवारसूट में दिखा कर निर्देशक ने उसे बहनजी टाइप का दिखाया है. कोई लटकेझटके नहीं, कोई सैक्सी अदा नहीं. हां, श्रद्धा कपूर बहुत सुंदर लगी है. इमरान खान में कोई बदलाव नहीं है, जैसा पहले था वैसा ही अब भी है.
फिल्म का गीतसंगीत पक्ष साधारण है. ‘ओ रे छोरे…’ गाना कुछ अच्छा बन पड़ा है. फिल्म का छायांकन ठीक है.