कुछ वर्ष पहले मुझे अपनी बेटी के प्रसव के लिए अमेरिका जाना पड़ा. वह वर्जीनिया स्टेट के रिचमंड शहर में रहती थी. पुत्र जन्म के 3-4 दिन बाद ही मालूम हुआ कि दामादजी को किसी अन्य प्रोजैक्ट के लिए कैनक्टिकट के स्टेमफोर्ड शहर में जाना पड़ेगा. इतने छोटे बच्चे को ले कर यात्रा करना संभव न था.

हम लोगों ने निश्चित किया कि1 महीने बाद ही हम लोग वहां जाएंगे. मुझे वहां की रेलयात्रा का भी अनुभव लेना था इसलिए हम ने हवाई यात्रा न कर रेल को ही चुना. घरगृहस्थी का सारा सामान हम ने 1 हफ्ते पहले ही ट्रक से भेज दिया. पर हमारा स्वयं का और छोटे बच्चे का बहुत सा आवश्यकअनावश्यक सामान हमारे ही पास रहा. निश्चित समय पर टे्रन आई. टे्रन पर सारा सामान चढ़ाना अकेले दामादजी के लिए भी संभव न था. पर टे्रन के ड्राइवर और उन के सहायक ने हमारा पूरा सामान ट्रेन पर चढ़वाया.

करीब 6-7 घंटे की हमारी यात्रा बहुत ही सुखद रही. पर तभी पता लगा कि टे्रन स्टेमफोर्ड स्टेशन पर 2 मिनट ही रुकती है. हम सभी घबरा गए कि इतना सारा सामान व बच्चे को ले कर कैसे उतरेंगे. पर तभी टे्रन की महिला गार्ड वहां आई. उस ने हमारी परेशानी समझी और कहा कि जब तक आप सभी लोग व छोटा बच्चा सुरक्षित नहीं उतरेगा, टे्रन आगे नहीं बढ़ेगी.

सच में जब स्टेमफोर्ड स्टेशन आया तब सब से पहले उस ने मुझे और छोटे बच्चे को उतारा, फिर बेटी को, फिर और सहयात्रियों की सहायता से सारा सामान उतारा गया.हम दिल से अमेरिकन रेलवे के उस स्टाफ को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने कठिन समय में हमारी इतनी सहायता की.

ज्योत्सना खरे, लखनऊ (उ.प्र.)

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मैं जयपुर से अपने शहर लखनऊ टे्रन से अपने पति के साथ वापस आ रही थी. हम लोगों के सामने वाली सीटों पर अधिकतर कालेज में पढ़ने वाले छात्रछात्राएं बैठे थे. हम लोग काफी घुलमिल गए. रात का खाना भी हम लोगों ने साथ खाया. फिर सो गए.

अचानक रात के 12 बजे हमारे डब्बे की लाइट जली और वे लोग मुझे उठाने लगे. जोरजोर से चीख कर कह रहे थे, ‘आंटी जी, जन्मदिन मुबारक हो.’ फिर अपने पास से ही मिठाई निकाली और मुझे खिलाई.

दरअसल, बातोंबातों में मैं ने उन्हें बताया था कि कल मेरा जन्मदिन है. मैं इस बात से इतनी खुश थी कि आज भी ऐसे लोग हैं जो एकदूसरे की खुशी का ध्यान रखते हैं. फिर सब लोगों ने गाने सुनाए. अंत्याक्षरी हुई और चुटकुले भी सुनाए गए. उन छात्रछात्राओं ने मेरा जन्मदिन इतनी अच्छी तरह से विश किया कि वह सफर मेरे लिए हमेशा याद रखने वाला हो गया.

अदिति मेहरोत्रा, लखनऊ (उ.प्र.)

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