झारखंड में टाटा स्टील कंपनी से जुड़े सबलीज विवाद ने सबलीजधारियों को अधर में लटका दिया. करोड़ों के निवेश के बाद निर्माण कार्य रोकने का फैसला और मामले के सियासी पेंच से इतर क्या है, पूरा मसला बता रहे हैं बीरेंद्र बरियार.
झारखंड में टाटा स्टील कंपनी की सबलीज में गड़बड़ी का मामला स्टील फैक्टरी की ब्लास्ट फर्नेस की तरह गरम होता जा रहा है. इसे ले कर सियासी दल अपनीअपनी तलवारें खींच कर टाटा कंपनी को कठघरे में खड़ा करने में लगे हुए हैं. जबकि टाटा स्टील प्रबंधन ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है. टाटा स्टील कंपनी पर यह आरोप लगा है कि उस ने सरकार से लीज में मिली जमीन को दूसरी प्राइवेट कंपनियों को सबलीज पर दे कर सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए का चूना लगाया है. कीमती जमीनों को औनेपौने भाव पर बिल्डरों को सबलीज पर दे दिया गया है और बिल्डर मनमानी कीमतों पर दुकान, औफिस व फ्लैट बना कर उन को बेचने की तैयारी में हैं.
गड़बड़ी को ले कर रांची हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग भी उठने लगी है. टाटा स्टील कंपनी ने 59 प्राइवेट कंपनियों को जमशेदपुर में 482 एकड़ जमीन सबलीज पर दी थी और इस से महज 11 करोड़ 59 लाख रुपए ही राजस्व के तौर पर सरकारी खजाने में जमा किए गए, जबकि अनुमान लगाया जा रहा है कि जितनी जमीनों को सबलीज पर दिया गया है उन की कीमत करीब 6 हजार करोड़ रुपए है. इस मामले को ले कर पीआईएल दायर करने वाले एडवोकेट राजीव कुमार कहते हैं कि जिन इलाकों में सबलीज पर जमीनें दी गई हैं वहां 1 डेसिमल जमीन की कीमत 10 लाख रुपए है.
साल 1907 में जमशेदपुर में टाटा स्टील को 30 साल के लिए लीज पर जमीन मुहैया कराई गई थी. हर 30 साल पर लीज ऐग्रीमैंट का रिन्यूअल किया जाता है. साल 1995 में ऐग्रीमैंट की अवधि खत्म हो गई और सरकार कान में तेल डाल कर सोई रही. साल 2005-06 में जब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने टाटा लीज मामले का रिन्यूअल कराया.
इस मामले में गड़बड़ी होने के लिए विपक्षी दल अर्जुन मुंडा को भी घसीट रहे हैं. झारखंड विधानसभा में इस मामले को ले कर कई बार हंगामा भी हो चुका है. कांग्रेस के विधायक के एन त्रिपाठी कहते हैं कि टाटा सबलीज देने में करोड़ों रुपए की गड़बड़ी की गई है और सीबीआई जांच से ही दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है.
टाटा के सबलीजधारियों की जान हलक में फंसी हुई है. उन के लाखों करोड़ों रुपए निर्माण के कामों में लग गए हैं और अब प्रशासन के साथ टाटा स्टील ने भी निर्माण का काम रोकने का फरमान जारी कर दिया है. देवाशीष गुप्ता जांच कमेटी की सिफारिशों के आलोक में सरकार ने निर्माण कार्य रोकने का आदेश जारी किया. इस कमेटी ने साल 2010 में सरकार को जांच रिपोर्ट सौंपी थी.
उधर, टाटा का दावा है कि सबलीज आवंटन में पूरी तरह पारदर्शिता बरती गई थी और सबलीज देने का टाटा को कानूनी अधिकार है. 70 के दशक में कंपनी की ओर से 9 हजार लोगों को सबलीज दी गई. साल 2005 में लीज करार का रिन्यूअल करने और आवेदनों पर विचार करने के बाद 59 प्रस्तावों को एएमसी यानी एप्रोपिएट मशीनरी कमेटी के पास भेज दिया गया था.
राजस्व व भूमि सुधार विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, झारखंड सरकार के निर्देश पत्रांक 1876/ 12.07.2010 के तहत जमशेदपुर क्षेत्र में सबलीज बंदोबस्ती के संबंध में गड़बड़ी की जांच शुरू की गई थी. जांच कमेटी ने रिपोर्ट में लिखा है कि सिंहभूम चैंबर औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री ने भी सरकार को पत्र लिख कर कहा था कि व्यवसायी व्यक्ति द्वारा निजी मकसद के लिए तथाकथित सबलीज का आवेदन किया गया और बिना तय पारदर्शी प्रक्रिया के कीमती जमीनों को औनेपौने भाव में ले लिया गया. इस से सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है. गौरतलब है कि जमशेदपुर के लीज क्षेत्र होने की वजह से आमतौर पर वहां के औद्योगिक इलाके की जमीन को खरीदा और बेचा नहीं जा सकता है, उस पर कोई कारोबार या फैक्टरी शुरू करने के लिए टाटा कंपनी से ही सबलीज पर जमीन ली जा सकती है.
टाटा लीज डीड का रिन्यूअल 20 अगस्त, 2005 को हुआ था, जिस पर झारखंड सरकार की ओर से मुख्य सचिव पी पी शर्मा और टाटा की ओर से प्रबंध निदेशक बी मुत्थुरमण ने दस्तखत किए हैं. जमींदारी उन्मूलन के लिए बिहार भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा-2 में खनिज संबंधी लीज की श्रेणी में सबलीज को भी शामिल किया गया है ताकि इसे अमल में लाने में किसी तरह की परेशानी न हो.
सबलीज देने के लिए टाटा प्रबंधन को कंपनी की ओर से पारित प्रस्ताव को सरकार के पास भेजना चाहिए था. प्रस्ताव में यह लिखा जाना चाहिए था कि जिस कंपनी को सबलीज दी जाएगी उस की जरूरत क्या है? सबलीज देने में इस तरह की कोई जानकारी भी सरकार या क्षेत्रीय समिति को नहीं दी गई. सबलीज देने के एवज में किस से कितनी रकम ली जाएगी, इस में भी कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई.
जांच कमेटी ने सिफारिश की है कि सबलीज पर दी गई जमीनों का पट्टा रद्द कर के नए सिरे से सबलीज देने का काम किया जाए. इस के लिए खुली डाक का तरीका अपनाया जाए. सबलीज देने के तरीके से सरकार को अरबों रुपए का नुकसान हुआ है, इसलिए सबलीज देने की प्रक्रिया में सुधार की काफी जरूरत है, तभी मनमाने तरीके से जमीन का आवंटन बंद हो सकेगा.
जांच रिपोर्ट के आधार पर 25 सितंबर, 2012 को सरकार ने सबलीज पर दी गई जमीनों पर चल रहे सभी कंस्ट्रक्शन के कामों को बंद करा दिया है, जिस से सबलीज पर जमीन लेने वाले कारोबारियों और फैक्टरी मालिकों की जान हलक में फंस गई है. लाखोंकरोड़ों रुपए खर्च करने के बाद काम पर रोक लगाने से हड़कंप मचना लाजिमी है. सरकार के रोक के आदेश के बाद बिष्टुपुर इलाके में 300 करोड़ रुपए की लागत से बन रहे मौल, 15 करोड़ रुपए की लागत से बन रही औटोमैटिक ऐंड मल्टीलेयर पार्किंग और 450 करोड़ रुपए की लागत से बन रहे जुसको कंपनी के मौल बनने का काम बंद हो गया है. इसी तरह गोलमुरी इलाके में बन रहे फाइवस्टार होटल और एक्सएलआरआई के ग्लोबल एमबीए प्रोग्राम पर भी ताला लटक गया है.
वहीं, सिंहभूम चैंबर औफ कौमर्स के अध्यक्ष आर के अग्रवाल का मानना है कि अगर टाटा सबलीज का आवंटन रद्द किया जाएगा तो सूबे के विकास का काम ठप पड़ जाएगा. सबलीज आवंटन में किसी भी तरह की धांधली नहीं की गई है. टाटा स्टील को यह अधिकार है कि वह सबलीज करे. साल 2005 के लीज करार के बाद जमशेदपुर में सबलीज आवंटन हुआ तो तरक्की की कई योजनाएं धड़ाधड़ जमीन पर उतरने लगी थीं, ऐसे में सबलीज के आवंटन को रद्द करना ठीक नहीं है.