दिल्ली विश्वविद्यालय ने अब 4 साल की अंडर ग्रेजुएट सैमैस्टर प्रणाली शुरू की है. वाइस चांसलर प्रोफैसर दिनेश सिंह ने लगभग जबरन, बहुत विरोधों के बावजूद इसे लागू कर ही डाला और अमेरिका की तरह अब शिक्षा 16 वर्ष की हो जाएगी. इस नई प्रणाली में कहा गया है कि छात्र 2 साल बाद चाहें तो आधी डिगरी ले कर पढ़ाई छोड़ सकते हैं जो बहुत मामलों में न्यूनतम शैक्षिक स्तर मानी जाएगी. जो ज्यादा पढ़ाई में इच्छुक होंगे वही 4 साल का कोर्स पूरा करेंगे.
इस नई प्रणाली से न तो छात्रों को कुछ लेनादेना लगता है न अभिभावकों को. जो शोर मचाया गया है कि यह अनैतिक, अलोकतांत्रिक है और अव्यावहारिक है, वह प्राध्यापकों व प्रोफैसरों द्वारा मचाया गया है. विश्वविद्यालय का इस की सफाई में कहना है कि जो विरोध कर रहे हैं वे असल में बढ़ते काम से चिंतित हैं.
कई दशकों से शिक्षा का काम हमारे यह शास्त्रीय गुरुओं की तरह होता था. शिक्षक शिक्षा के प्रति उत्तरदायी न था, उस का होना ही पर्याप्त था. वह कितना पढ़ाता है, खुद कितना पढ़ता है, कितनी फीस लेता है, इस से किसी को लेनादेना न था. पूरे देश में शिक्षक औसतन 1-2 घंटे विश्वविद्यालय में काट कर अपने काम की इतिश्री समझते रहे हैं. यह नई प्रणाली उन पर गधों की तरह का काम लाद सकती है क्योंकि अब छात्र बहुत विभिन्न तरह के कोर्स पढ़ेंगे और परीक्षाएं हर 3 माह में होंगी. यानी प्राध्यापकों को अब छुट्टी न के बराबर मिलेगी, रोज कालेज जाना होगा, देर तक काम करना होगा और परोक्ष रूप से उन का मूल्यांकन हर परीक्षा में होगा. भारत के गुरु इस मिट्टी के बने ही नहीं कि उन की परीक्षा ली जाए. वे तो राधे, ब्रह्मा, शिव, विष्णु हैं. उन से भला कोई कुछ कैसे पूछ सकता है?
कुछ प्राध्यापक अदालत भी गए. उच्च न्यायालय ने पल्ला झाड़ लिया कि यह क्षेत्र उन की ज्ञान की सीमा से बाहर का है. विश्वविद्यालय को शिक्षा व परीक्षा प्रणाली बदलने का कानूनन अधिकार हासिल है और अदालत कुछ नहीं कर सकती.
दिनेश सिंह का प्रयोग सफल हो या न हो पर इतना जानना होगा कि इस व्यक्ति ने अपनी बात मनवाई और उसे लागू किया. ज्यादातर नेता, प्रशासक अधिकारी सही बात को भी लागू करने से हिचकते हैं कि कहीं वे, जिन के हितों पर आंच आएगी बगावत न कर दें. प्रो. दिनेश सिंह ने टीचर्स के विद्रोह की चिंता किए बिना यह प्रणाली शुरू की है और यह सफल हो या न हो, कम से कम शिक्षा में से तो जड़ता को समाप्त करेगी. बढ़ना है तो नए रास्तों का उपयोग करना ही चाहिए. जो नहीं चाहते वे अपना अलग रास्ता अपनाने को स्वतंत्र हैं.