गायकी की दुनिया में बेशुमार शोहरत हासिल करने के बावजूद शमशाद बेगम ने भले ही खुद को इंडस्ट्री की चकाचौंध से दूर रखा हो पर उन की मधुर आवाज लोगों के दिल में बसती है. हाल ही में दुनिया को अलविदा कह चुकीं शमशाद के तराने उन्हें हमेशा संगीतप्रेमियों के दिलों में जिंदा रखेंगे. पढि़ए बुशरा का लेख
शमशाद बेगम, बुरके में सिर से पांव तक लिपटी एक अल्हड़ लड़की की खनखनाती आवाज ने भारतीय गायकी के नए आयाम स्थापित किए और हिंदी सिनेमा को ढेरों लोक प्रिय गीतों की सौगात दी.
शमशाद के गाए लगभग हर गीत ने लोकप्रियता के शिखर को छुआ और आज भी उन के गीत हमारे बीच गूंजते हैं. उन्होंने 500 से अधिक फिल्मों में हिंदी, पंजाबी, गुजराती, बंगाली, तमिल व मराठी भाषाओं में सैकड़ों गीत गाए.
‘सैंया दिल में आना रे…’ से ले कर ले कर ‘ले के पहलापहला प्यार…’ तक हो या ‘मेरे पिया गए रंगून…’ से ‘तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर…’ हर गाने में शमशाद ने अपनी अनोखी आवाज और खास अंदाज की अमिट छाप छोड़ी.
शमशाद की आवाज में गजब की खनखनाहट के चलते संगीतकार ओ पी नैयर उन्हें ‘टैंपल बेल’ कह कर पुकारते थे. उन्होंने अपनी मौलिक गायन शैली से एक अलग छाप छोड़ी.
शमशाद बेगम अविभाजित भारत के पंजाब के अमृतसर में एक मुसलिम परिवार में पैदा हुई थीं. उन के पिता मियां हुसैन बख्श ने शुरू में बेटी के गाने पर आपत्ति जताई लेकिन जब संगीत के प्रति बेटी का जनून देखा तो इजाजत दे दी. लेकिन इस शर्त के साथ कि वे बुरके में रिकौर्डिंग करेंगी और फोटो नहीं खिंचवाएंगी. यही कारण है कि 70 के दशक में उन की कुछ ही तसवीरें लोगों के सामने आई थीं.
हालांकि शमशाद ने संगीत की कोई परंपरागत ट्रेनिंग नहीं ली थी लेकिन सुरों पर उन की पकड़ गजब की थी.
10 साल की उम्र में शमशाद ने परिवार में शादीब्याह व त्योहारों के मौकों पर लोकगीत गाने शुरू किए. शमशाद के एक अंकल जो खुद संगीतप्रेमी थे, एक दिन उन्हें परिवार से छिपा कर एक म्यूजिक कंपनी में औडिशन के लिए ले गए. वहां संगीतक ार गुलाम हैदर ने जब शमशाद का गाना सुना तो वे दंग रह गए. उन की आवाज से प्रभावित हो कर गुलाम हैदर ने उन्हें 9 गानों का औफर दिया और साथ ही उन्हें वे सब सुविधाएं भी दीं जो उस समय के टौप गायकों को मुहैया होती थीं. शमशाद को गाने की इजाजत देने के लिए उन के पिता को मनाने का श्रेय भी शमशाद के अंकल को ही जाता है.
उस समय शमशाद को एक गीत गाने का 15 रुपए मेहनताना मिलता था. शमशाद की प्रसिद्धि तब चरम पर पहुंची जब उन्होंने आल इंडिया रेडियो पेशावर और लाहौर के लिए गाने की शुरुआत की.
रेडियो पर शमशाद की आवाज ने फिल्म निर्देशकों का ध्यान अपनी ओर खींचा और उन्होंने इस आवाज को फिल्मों में लेने का मन बनाया. गुलाम हैदर ने अपनी कुछ शुरुआती फिल्मों जैसे ‘खजांची’ फिल्म में उन की आवाज का बड़ी खूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया.
फिल्म ‘यमला जट’ में गाए उन के गीत ‘छीची विच पा के छल्ला…’ की लोकप्रियता ने न केवल शमशाद को बल्कि फिल्म के नायक प्राण को भी कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
इस के बाद निर्देशक महबूब खान ने शमशाद की आवाज को फिल्म ‘तकदीर’ में इस्तेमाल किया.
वर्ष 1944 में जब गुलाम हैदर मुंबई आ गए तो उन की टीम की मैंबर बन कर शमशाद भी उन के साथ मुंबई आ गईं. यहां नूरजहां, मुबारक बेगम, सुरैया, सुधा मल्होत्रा, गीता दत्त और अमीरबाई करनाटकी जैसी दिग्गज गायिकाओं के बीच शमशाद ने अपनी एक अलग जगह बनाई.
उन्होंने वर्ष 1946 से 1960 तक संगीतकार नौशाद, ओ पी नैयर, सी रामचंद्र और एस डी बर्मन के साथ काम किया. नौशाद ने अपने एक इंटरव्यू में अपनी प्रसिद्घि की वजह शमशाद बेगम को ही बताया था. उस समय तक एस डी बर्मन बंगाली म्यूजिक कंपोज किया करते थे. उन्हें देशव्यापी पहचान उन हिंदी फिल्मों से मिली जिन में उन्होंने शमशाद से गवाया. बर्मन ने उन्हें फिल्म ‘बाजार’, ‘बहार’, ‘मशाल’, ‘शहंशाह’, ‘मिस इंडिया’ सहित अनेक फिल्मों में गाने गवाए जो सभी सुपरहिट हुए. बर्मन दा के संगीत निर्देशन में उन्होंने एक गाने को 6 भाषाओं में एकसाथ गाया. यही नहीं, आवाज की विविधता साबित करते हुए उन्होंने पश्चिमी धुन पर आधारित गाने भी गाए.
म्यूजिक कंपोजर ओ पी नैयर से शमशाद की मुलाकात लाहौर रेडियो स्टेशन में एक गीत की रिकौर्डिंग के वक्त हुई. नैयर तब तक संगीतकार नहीं हुआ करते थे. लेकिन जब उन्हें बतौर म्यूजिक डायरैक्टर एक फिल्म करने का औफर मिला तो उन्होंने गाने केलिए शमशाद बेगम को ही चुना. शमशाद ने नैयर की ढेरों फिल्मों में अनेक हिट गीत गाए. यह वह समय था जब उन के गीत लोगों की जबान पर चढ़ चुके थे. उस समय के कुछ गीत जैसे ‘तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर…’, ‘मेरे पिया गए रंगून…’, ‘मिलते ही आंखें दिल हुआ…’, ‘बू?ा मेरा क्या नाम रे…’, ‘छोड़ बाबुल का घर…’ आदि ढेरों गीत जबरदस्त हिट हुए.
40 के दशक में मदन मोहन, लता मंगेशकर और किशोर कुमार शमशाद के गीतों के लिए उन के पीछे खड़े हो कर बतौर कोरस गाते थे. एक दिन बातोंबातों में उन्होंने मदन मोहन से वादा किया कि जब वे बतौर म्यूजिक डायरैक्टर अपना कैरियर शुरू करेंगे तो वे उन के लिए अवश्य गाएंगी और कम मेहनताना लेंगी. और बाद में जब मदन मोहन संगीतकार बने तो शमशाद ने अपना वादा पूरा भी किया. साथ ही, उन्होंने किशोर कुमार को देख कहा था कि यह लड़का एक दिन बड़ा गायक बनेगा. बाद में उन्होंने किशोर कुमार के साथ कई डुऐट गीत भी गाए.
लोग शमशाद की आवाज के दीवाने थे लेकिन खुद शमशाद के एल सहगल की आवाज और अदाकारी की मुरीद थीं. उन्होंने के एल सहगल अभिनीत फिल्म ‘देवदास’ 14 बार देखी थी.
संगीत के जानकारों का मानना है कि शमशाद की आवाज उन के साथ गाने वाले कई पुरुष गायकों पर भारी पड़ती थी.
पति की मौत के बाद शमशाद के रूप में भारत की यह कोयल काफी समय तक खामोश रही, कोई गीत नहीं गाया. लेकिन महबूब खान ने उन से संपर्क किया कि उन्हें ‘मदर इंडिया’ फिल्म में नायिका नरगिस के लिए उन की आवाज चाहिए. लंबे समय के अंतराल के बाद उन्होंने वापसी क रते हुए जो पहला गीत गाया. वह ‘पी के घर आज दुलहनिया चली…’ था. यह गीत जबरदस्त हिट हुआ और एक बार फिर जोरदार ढंग से शमशाद की वापसी हुई और फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘जाली नोट’, ‘लव इन शिमला’, ‘बेवकूफ’, ‘मुगल ए आजम’, ‘ब्लफ मास्टर’, ‘घराना’ व ‘रुस्तम ए हिंद’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अनेक हिट गीत गाए. इस के बाद रिटायरमैंट की घोषणा कर देने के बाद भी संगीतकार लगातार शमशाद को गाना गाने पर जोर देते रहे और उन्होंने कई फिल्मों में गाया भी और वे गीत जबरदस्त हिट हुए.
शमशाद ने खुद को इंडस्ट्री की चकाचौंधभरी दुनिया से हमेशा अलग रखा. अपने दौर की टौप गायिका होने के बावजूद वे लाइमलाइट में कभी नहीं रहीं.
वर्ष 2009 में शमशाद को पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया. 60 सालों तक अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरने के बाद 94 साल की उम्र में 23 अपै्रल, 2013 को वे हमेशाहमेशा के लिए खामोश हो गईं, पर उन की खनकती आवाज हमें गुनगुनाने पर हरदम मजबूर करती रहेगी.