Religious Extremism : धर्म के नाम पर सड़कों पर भीड़ का तमाशा सिर्फ भारत में ही नहीं होता. धर्म के नाम पर पूरी दुनिया में ऐसे तमाशे होते हैं. 14 दिसंबर 2025 को औस्ट्रेलिया के सिडनी में यहूदी हनुक्का मना रहे थे. इस धार्मिक हुड़दंग के दौरान यहूदियों की भीड़ पर हमला हुआ. इस हमले में कम से कम 15-16 लोग मारे गए और 40 से ज्यादा घायल हुए. हमला करने वाले बापबेटे की जोड़ी थी. 50 साल का साजिद अकरम और उस का 24 साल का बेटा नवीद अकरम. दोनों गाजा का बदला लेने औस्ट्रेलिया पहुंचे थे. दोनों बापबेटों को जन्नत में सीट रिजर्वड करवानी थी सो उन्होंने यहूदियों को भून दिया. आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने इस घटना को “एक्सट्रीमिस्ट आइडियोलौजी” बताया.

एक्सट्रीमिस्ट आइडियोलौजी का मतलब होता है यहूदी विरोधी भावना. 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले और उस के बाद इजरायल की कार्रवाई से आस्ट्रेलिया में एंटीसेमिटिक घटनाएं बढ़ीं. हमले से पहले बौन्डी इलाके में यहूदी बिल्डिंग्स पर हमले हुए. कोषर रेस्तरां में आगजनी और सिनेगाग पर फायरबौम्बिंग हुई.

हमलावरों के पास इसलामिक स्टेट के झंडे मिले. दोनों बापबेटे मिल कर दुनिया को इसलामिक स्टेट बनाने के रास्ते पर निकले थे. नवीद अकरम पहले से आस्ट्रेलियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस और्गेनाइजेशन की नजर में था लेकिन इंटेलिजेन्स से चूक हो गई और नतीजा यह हुआ की औस्ट्रेलिया में 1996 के बाद भय का ऐसा तांडव दूसरी बार देखा गया.

भारत के लिए भय का ऐसा तांडव कोई नई बात नहीं है. यहां धर्म के साथ जातियों का तांडव भी सनातन काल से जारी है. धर्म के नाम पर मौबलिंचिंग, जाती के नाम पर गांवों को फूंक देना आम बात है. बुलडोजर की दहशत अलग से पैदा हो गई है. यह सब आतंक के अलगअलग फ्लेवर हैं. भारत के दलित, ईसाई, आदिवासी और मुसलमान आतंक के इस फ्लेवर को रोज चखते हैं. वहीं पाकिस्तान के अहमदियों और ईसाईयों को इस आतंक की आदत सी हो गई है. आतंकवाद मजहबों की कोख से ही जन्मा है और पूरी दुनिया में आतंकवाद के अलगअलग बच्चे अपनेअपने तरीके से मौत का खेल खेल रहे हैं.

दुनिया में मजहबों के नाम पर बहुत तमाशा हुआ है और आज भी हो रहा है. कहने को मजहब सिखाता है हरामखोरी मत करो लेकिन दुनिया भर में सब से ज्यादा हरामखोरी और आरामखोरी मजहबों के नाम पर ही होती है. कहने को मजहब सिखाता है आपस में प्रेम रखना लेकिन यह भी कोरी बकवास बात है.
इंसानों के बीच सब से ज्यादा नफरत मजहब ही पैदा करता है. कहने को धर्म से शांति आती है लेकिन दुनिया के इतिहास में सब से ज्यादा अशांति धर्म ने ही फैलाई है. दुनिया भर में युद्ध, हिंसा, दंगे और अराजकता के पीछे मजहबों का बड़ा योगदान रहा है और आज भी तमाम मजहब अपने इस मिशन में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं.

यूरोप के इतिहास में यहूदियों के साथ ईसाईयों ने जुल्म ढाए. ईसाई और यहूदियों के बीच इस नफरत को बढ़ाने में चर्च ने बड़ी भूमिका अदा की. यहूदी ताकतवर हुए तो उन्होंने अपना मुल्क बना लिया और मुसलमानों पर जुल्म ढा कर अपनी कुंठा शांत कर ली. इतिहास में जब मुसलमानों का जोर था तो तलवार के दम पर पूरी दुनिया को फतह करने निकल पड़े थे लेकिन जब विज्ञान का दौर आया तब सारी हुकूमत चली गई. अब मुसलमानों के कुछ गिरोह तलवार की जगह आतंकवाद के रास्ते दुनिया फतह करने पर अमादा हैं.

धर्म और पूंजीवाद का चोली दामन का साथ हमेशा से रहा है इसलिए दोनों को ही इंसानियत की त्रासदी से कोई फर्क नहीं पड़ता. धर्म को बनाने और बेचने वाले जानते हैं की भक्तों की भीड़ से कैसे उल्लू सीधा किया जाता है? धर्म के नाम पर कोई भी मरे धर्म के धंधेबाजों को कोई फर्क नहीं पड़ता. धर्म के नाम पर लूटखसोट और हिंसा से धर्म को ऊर्जा मिलती है. इसी तरह हथियार बनाने और बेचने वाले जानते हैं कि उन के हथियार से इंसान ही शिकार बनेगा. उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उन के हथियार कोई सरकार खरीदे या गिरोह. सरकार भी तो एक तरह का गिरोह ही है जो डैमोक्रेसी की आड़ में लूटखसोट और हिंसा करती है.

राहुल सांस्कृतयायन ने लिखा था ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ यह सफेद झूठ है और इस सफेद झूठ का क्या ठिकाना? अगर मजहब बैर नहीं सिखलाता तो चोटीदाढ़ी की लड़ाई में हजार बरस से आज तक हमारा मुल्क पामाल क्यों हैं? पुराने इतिहास को छोड़ दीजिए, आज भी हिंदुस्तान के शहरों और गांवों में एक मजहब वालों को दूसरे मजहब वालों के खून का प्यासा कौन बना रहा हैं ? और कौन गाय खाने वालों को गोबर खाने वालों से लड़ा रहा है? असल बात यह है कि ‘मजहब तो है सिखाता आपस में बैर रखना, भाई को सिखाता है भाई का खून पीना’. Religious Extremism :

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