Law Awareness: लखनऊ के महानगर में रहने वाले पति पत्नी कपिल और उन की पत्नी रोमा की मौत उन के ही घर में अचानक हो गई थी. वह दौर कोरोना का था. ऐसे में दूसरे दिन महल्ले वालों के जरीए पुलिस को पता चला. कपिल ने मरने से पहले अपनी कोई वसीयत नहीं की थी. हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत पत्नी प्रथम श्रेणी की वारिस होती है. लेकिन एक साथ मौत होने पर जब यह पता नहीं होता कि पहले कौन मरा तो स्थिति जटिल हो जाती है. इस को ‘कौमोरिएंट नियम’ के आधार पर हल किया जाता है.
कपिल और रोमा के मामले में रोमा ने अपनी वसीयत लिखवा कर रखी थी. वसीयत में रोमा ने अपनी भतीजी प्रभा को वारिस बना रखा था. कपिल और रोमा के अपनी कोई संतान नहीं थी. ऐसे में अगर रोमा की वसीयत सामने नहीं आती और कपिल की मौत बाद में होती तो यह संपत्ति कपिल के दूसरे श्रेणी के वारिसों यानि भतीजों को संपत्ति चली जाती.
कपिल और रोमा की मौत के बाद अचानक सवाल उठा कि जब दो लोगों की एक ही समय पर मृत्यु हो गई है तो संपत्ति का वारिस कौन होता है ? उत्तराधिकार के ऐसे मामलों में सबसे पहले यह देखा जाता है कि पहले किस की मृत्यु हुई थी. जो पहले मरता है उस की संपत्ति बाद में मरने वाले के नाम हस्तांतरित हो जाती है. उस के उत्तराधिकारी के नाम संपत्ति का दाखिला हो जाता है.
कपिल और रोमा के मामले में पहले कपिल की उत्तराधिकारी रोमा मानी जाएगी. इस के बाद रोमा ने जिस को अपनी संपत्ति की वसीयत की उस को इस पर अधिकार होगा. इस तरह के सवाल तब भी खड़े होते हैं जब एक ही परिवार के कई लोग सामूहिक आत्महत्या कर लेते हैं. कई बार सड़क और दूसरे हादसों में मौत हो जाती है. तब ऐसे सवाल खड़े हो जाते हैं. इस में एक सवाल और खड़ा हो जाता है कि जब यह पता ही न चले कि एक साथ मरने वालों में कौन पहले मरा और कौन बाद में तो उत्तराधिकार कैसे तय होगा ?
उत्तराधिकार का निर्धारण संपत्ति कानून अधिनियम 1925 की धारा 184 द्वारा ऐसे मामलों के लिए दिशानिर्देश दिया गया है. यह अधिनियम बताता है कि जब दो व्यक्तियों की एक साथ मृत्यु हो जाती है और यह निर्धारित करना संभव नहीं होता कि पहले किस की मृत्यु हुई, तो छोटे व्यक्ति को बड़े व्यक्ति से अधिक समय तक जीवित माना जाता है. इस को ‘कौमोरिएंट्स नियम’ के नाम से जाना जाता है.
सामान्य तौर पर यदि पतिपत्नी दोनों की मृत्यु हो जाती है, तो बच्चों को मातापिता की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार मिलता है. वे प्रथम श्रेणी के वारिस होते हैं. एक साथ मौत होने पर, संपत्ति बच्चों या अन्य निकटतम कानूनी वारिसों में बंट जाती है. संयुक्त संपत्ति के मामले में भी ‘कौमोरिएंट नियम’ के कारण जीवित रहने का अधिकार लागू नहीं होता और संपत्ति बच्चों को मिलती है.
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत यदि किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है तो उस की संपत्ति प्राथमिक रूप से उस के बच्चों और पति को विरासत में मिलती है. यदि पति या बच्चे मौजूद नहीं हैं तो संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाती है. जिन मामलों में पति का कोई उत्तराधिकारी नहीं हैं संपत्ति महिला के माता पिता या उन के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होती है.
जब संपत्ति किसी स्रोत जैसे मातापिता, ससुराल वाले से विरासत में मिलती है और यदि महिला की मृत्यु बिना किसी प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी के हो जाती है, तो वह उस मूल परिवार को वापस मिल जाती है. हिंदू पुरुषों के मामलो में जब किसी हिंदू पुरुष की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है तो उस की संपत्ति उस की पत्नी, बच्चों और मां के बीच बराबरबराबर बांट दी जाती है. अगर इन में से कोई भी उत्तराधिकारी मौजूद नहीं है तो संपत्ति पिता को मिल जाती है.
वरासत में कौन होते है उत्तराधिकारी:
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत प्रथम श्रेणी यानि क्लास 1 के उत्तराधिकारी सब से करीबी रिश्तेदार होते हैं जिन्हें बिना वसीयत मृत्यु होने पर संपत्ति में सब से पहले और समान हिस्सा मिलता है. इस में मुख्य रूप से विधवा, पुत्र, पुत्री, माता, और पूर्व मृत पुत्र या पुत्री के बच्चे पोतेपोतियां व विधवा शामिल हैं. यह सभी एक साथ संपत्ति के हकदार होते हैं. पुत्र, पुत्री में जैविक और गोद लिए हुए दोनों बच्चे शामिल होते हैं. प्रथम श्रेणी के सभी उत्तराधिकारी संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी पाते हैं.
यदि किसी व्यक्ति के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी मौजूद नहीं है तो द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. द्वितीय श्रेणी यानि क्लास 2 के उत्तराधिकारियो में वह रिश्तेदार होते हैं जो प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों के न होने पर संपत्ति के हकदार होते हैं. इन में मुख्य रूप से पिता, भाई बहन, दादा दादी, चाचा चाची, मामा मामी और इन के बच्चे भतीजे भतीजी, भांजेभांजी, भाई की विधवा, पिता के भाई बहन, माता के भाई बहन आदि शामिल होते हैं. एक श्रेणी के वारिसों के न होने पर ही अगली श्रेणी के वारिसों को संपत्ति मिलती है. यदि एक ही श्रेणी में एक से अधिक वारिस हों, तो वे संपत्ति को आपस में बराबर बांटते हैं.
अगर किसी मामले में पहली और दूसरी श्रेणी के कोई उत्तराधिकारी न हों, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति मृतक के सगोत्रों को मिलती है. इन में पुरुष वंश के माध्यम से जुड़े रिश्तेदार जैसे चचेरे भाई हैं. इन में यदि सगोत्र भी न हों, तो सजातीयों को मिलती है, जो किसी भी वंश पुरुष या महिला से जुड़े होते हैं. इन में मौसी, मामा, ममेरे भाई बहन शामिल होते हैं. अगर यह भी न हों, तो संपत्ति राज्य के पास चली जाती है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत पुरुष मृतक के लिए वरासत का क्रम प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, सगोत्र, सजातीय और राज्य सरकार का होता है. इसलिए यह जरूरी होता है कि लोग अपनी वसीयत कर के रखे जिस से उन के चाहने वालों को संपत्ति मिल सके. Law Awareness





