बहुत कम समय में पैसों को मोटे ब्याज के साथ कई गुना करने का सब्जबाग दिखा कर गरीब जनता को ठगने वाली चिटफंड कंपनियां निवेशकों से छोटीछोटी रकम एकत्र कर करोड़ोंअरबों रुपए डकार लेती हैं. गरीब जनता की परेशानियों से बेखबर सोती सरकारें और ऊंघता प्रशासन भी चिटफंड घोटाला में उतने ही जिम्मेदार हैं जितने कि घोटाला करने वाले. पढि़ए साधना शाह का विश्लेषणपरक लेख.

चिटफंड कारोबार में घालमेल के हालिया परदाफाश होने से पश्चिम बंगाल में विरोध प्रदर्शन, धरना, चक्का जाम, तोड़फोड़ का सिलसिला चला. इस बीच सबकुछ गंवा कर 3 लोगों ने आत्महत्या कर ली तो कई ने ऐसी कोशिश की. महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त लाखों लोगों ने अपना सबकुछ बेच कर 20 से 100 प्रतिशत तक लाभ कमाने के लालच में चिटफंड में निवेश किया और अब सब गंवा बैठे. धंधा बदलने के साथ चिटफंड कंपनियों के मालिकों ने अपनी राजनीतिक आस्था भी बदल ली थी और तृणमूल की छत्रछाया में आ गए थे.

कई चिटफंड कंपनियों ने तो अपना अखबार निकाल कर तृणमूल कांगे्रस का समर्थन भी शुरू कर दिया था. आरोप है कि पार्टी फंड में भी ये कंपनियां पैसे उड़ेलती रही हैं. शायद यही कारण है कि तृणमूल के मंत्री, सांसद ही नहीं, खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी समयसमय पर इन चिटफंड कंपनियों की वकालत करती नजर आईं और अब जब निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के मामले ने तूल पकड़ लिया तो तृणमूल कांगे्रस अपना पल्ला ?ाड़ रही है.

चिटफंड का कारोबार चलाने वाली एक कंपनी के विज्ञापन ‘सुमंगल सब का मंगल’ ने लोगों को खूब लुभाया. विज्ञापनदाता है सुमंगल इंडस्ट्रीज लिमिटेड. पिछले दिनों यह विज्ञापन तमाम टीवी चैनलों और दैनिक अखबारों में देखने को मिल रहा था. आलू पर निवेश के लिए कंपनी ने 2 स्कीमों की घोषणा की थी. पहली, 1 लाख रुपए निवेश पर 15 महीने में कंपनी 1 लाख 20 हजार रुपए से ले कर 2 लाख रुपए तक का रिटर्न देगी. दूसरी, 1 लाख रुपए निवेश करने पर कंपनी इतने ही समय के भीतर 1 लाख 40 हजार रुपए रिटर्न देगी.

सवाल बड़ा स्वाभाविक है कि कंपनी अपने निवेशकों को इतनी बड़ी रकम भला कैसे दे सकती है? इस के जवाब में कंपनी का कहना था बाजार में आलू की मांग बढ़ेगी, तब अधिक कीमत में बेच कर और जरूरत पड़ने पर विदेश में आलू निर्यात कर के जो मुनाफा होगा, उस से कंपनी निवेशकों के पैसे चुकाएगी. जाहिर है इस तरह की चिटफंड कंपनियों का मकसद आम लोगों की गाढ़ी मेहनत की कमाई पर डाका डालना होता है.

देश में गरीब और मध्यम वर्ग अपनी जरूरतों में से काटछांट कर के थोड़ीबहुत बचत कर लेता है. अब चूंकि आजकल बैंकों और डाकघरों में अल्प बचत योजना में मिलने वाला ब्याज दिनोंदिन कम होता जा रहा है इसलिए जाहिर है कम निवेश पर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के निवेशकों के लालच का फायदा चिटफंड कंपनियां उठाती हैं.

बहरहाल, जिस आलू के भरोसे कंपनी ने निवेशकों से वादा किया उसी आलू ने कंपनी को पटकनी दे दी. इस साल आलू की फसल पिछले साल की तुलना में कम हुई. कमोबेश अन्य राज्यों का भी ऐसा ही हाल रहा. वैसे भी निवेशकों को उन की रकम नहीं मिलनी थी, सो नहीं मिली. आलू की खराब फसल के बहाने को ले कर चिटफंड कंपनी मीआद पूरी होने पर टालमटोल करती रही. इस बीच सिक्योरिटी ऐंड ऐक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया यानी सेबी हरकत में आई और कई ऐसी कंपनियों को नोटिस भेजा गया. उन्हें कलैक्टिव इन्वैस्टमैंट स्कीम यानी सीआईएस के तहत कारोबार करने के प्रति आगाह किया. अपने सीमित अधिकार के तहत सेबी ने चिटफंड चलाने वाली कंपनियों के खिलाफ कदम उठाया तो ज्यादातर मामलों में देखने में आया कि कंपनी के होर्डिंग गायब होने लगे और फिर उन के दफ्तर में ताला ?ालने लगा. अपनी जेबें भर कर कंपनी के कर्ताधर्ता गायब होने लगे. पूरे देश में इसी तरह अनगिनत चिटफंड कंपनियां आम लोगों की जेब काट कर रफूचक्कर हो गईं.

सहारा से सेबी को सबक

सहारा इंडिया के मामले के बाद शेयर बाजार नियामक संस्था सेबी ने सबक लिया. इसलिए सेबी ने सुमंगल इंडस्ट्रीज जैसी कलैक्टिव इन्वैस्टमैंट स्कीम को चलाने वाली अन्य कंपनियों – एमपीएम ग्रीनरी, रोजवैली के प्रति भी कड़ा रुख अख्तियार किया. दरअसल, सहारा मामले में सेबी ने पाया था कि चिटफंड कंपनियां निवेशकों से पैसे वसूल कर के उस रकम को कहीं और निवेश करती हैं. निवेशकों का उस पर कोई नियंत्रण नहीं होता है.

मौजूदा व्यवस्था में अगर कोई कंपनी कलैक्टिव इन्वैस्टमैंट स्कीम चलाना चाहती है तो कानूनी तौर पर सेबी के अधीन कंपनी को पंजीकृत होना जरूरी है. सुमंगल सेबी में बगैर पंजीकरण और अनुमोदन के लुभावने विज्ञापन द्वारा आम लोगों को

20 से 100 फीसदी तक का रिटर्न देने का वादा कर के आकर्षित कर रही थी. सुमंगल इस के अलावा फ्लैक्सी पटैटो परचेज स्कीम भी चला रही थी. सुमंगल के ऐसे विज्ञापन पर सेबी की जब नजर पड़ी तो उस ने अक्तूबर 2012 को कानूनी धारा 11(1बी) और सेबी के कलैक्टिव इन्वैस्टमैंट स्कीम रेगुलेशंस 1999 के तहत सुमंगल इंडस्ट्रीज को निर्देश दिया कि वह उस के अनुमोदन के बगैर निवेशकों से वसूली नहीं कर सकती है.

इस के जवाब में सहारा की ही तर्ज पर सुमंगल ने कहा कि कंपनी आलू खरीदबिक्री का कारोबार कर रही है, न कि कंपनी कलैक्टिव इन्वैस्टमैंट स्कीम के तहत पैसों की वसूली कर रही है. इसीलिए सेबी के पंजीकरण या अनुमोदन की उसे जरूरत नहीं है. इस के साथ, कंपनी ने किसी तरह के दस्तावेज को सेबी को भेजने से भी इनकार कर दिया. लेकिन सेबी ने फ्लैक्सी पटैटो स्कीम का हवाला दे कर कंपनी के इस कारोबार को कलैक्टिव इन्वैस्टमैंट स्कीम बताते हुए कार्यवाही की.

पश्चिम बंगाल की रोजवैली और एमपीएम ग्रीनरी जैसी कंपनियों को भी सेबी ने नोटिस भेजा और रोजवैली को 1 करोड़ रुपए का जुर्माना भी किया. यही नहीं, इन कंपनियों को चेताया और निवेशकों का पैसा वापस करने का भी निर्देश दिया. ऐसे में कोलकाता समेत पश्चिम बंगाल के दूरदराज इलाकों में चलने वाली चिटफंड कंपनियां सतर्क हो गईं और आननफानन सारा मालमत्ता समेट कर निकल गईं. इस से दिहाड़ी से ले कर मध्यवर्गीय निवेशक में हताशा और दहशत का माहौल तैयार हुआ. इस के बाद पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में लोग सड़क पर उतर पड़े. ऐसी चिटफंड कंपनियों के साथ सत्ताधारी तृणमूल कांगे्रस के नेताओं की तथाकथित तौर पर सांठगांठ से मामला और भी बिगड़ गया. गुस्साए लोगों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास पर धरनाप्रदर्शन किया.

इस बीच लोगों के घरों में चौकाबरतन कर के कुछ पैसे बचा कर चिटफंड में निवेश करने वाली एक महिला ने आत्महत्या कर ली. उधर, बेटी के लिए दहेज के लिए जमा की गई राशि चिटफंड में डूब जाने से मायूस पिता के लापता हो जाने से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और राज्य की कानूनव्यवस्था पर इस का सीधा प्रभाव पड़ा.

चिटफंड का कारोबार

केवल पश्चिम बंगाल में नहीं, देश के कई दूसरे भागों में भी चिटफंड और फर्जी गैर बैंकिंग कंपनियां धड़ल्ले से अपना धंधा फैला रही हैं. अभी सहारा का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा है. आज भी सहारा के क्यू शौप के विज्ञापन टीवी चैनल में भी आ रहे हैं. इस से पहले एनमार्ट ने लाखों लोगों को चूना लगाया.

?ारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में बहुत सारी चिटफंड कंपनियां 1 साल में पैसे डबल करने का ?ांसा दे कर लोगों की जेबें काट रही हैं. हाल ही में ?ारखंड के देवघर, पाकुर जिले के अलावा ?ामरीतलैया में ऐसी कंपनियों को सील करवाया गया है.

2008 में कार्पोरेट मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों की मानें तो 10 हजार से भी अधिक चिटफंड कंपनियां देशभर में सक्रिय हैं.

अभी हाल ही में रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने देशभर में चल रही चिटफंड कंपनियों के कारोबार पर चिंता जताई थी. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में लगभग 5 चिटफंड कंपनियों को बंद करवाया गया था. लेकिन कुछ महीनों के बाद नाम बदल कर ऐसी कई कंपनियां फिर से मैदान में आ गईं.

दिशानिर्देश को अंगूठा

ये चिटफंड कंपनियां न तो रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश को मानती हैं, न ही सेबी के और न ही ऐसी कंपनियां सरकार से कारोबार करने के लिए कोई लाइसैंस बनवाती हैं. जाहिर है, ऐसी कंपनियों के बारे में राज्य सरकार के पास भी कोई पुख्ता आंकड़े नहीं हैं. बगैर लाइसैंस के ये चिटफंड कंपनियां विभिन्न योजनाओं के तहत आम जनता से बड़ीबड़ी रकम ऐंठ कर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं.

पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में जिलाधिकारियों के हाथ इन चिटफंड कंपनियों के केवल होर्डिंग और विज्ञापन ही लगे हैं. त्वरित कार्यवाही के लिए जिला सदर के हाथों इन का कोई पुख्ता पताठिकाना तक नहीं लग पाया है. ज्यादातर चिटफंड कंपनियों के मालिक व तमाम अधिकारी फरार हैं. उधर, पिछले कुछ दिनों में राज्य सरकार के पास लगभग 50 हजार से भी अधिक शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं.

रजिस्ट्रार औफ कंपनीज (आरओसी) की जांच में पाया गया कि शारदा रियल्टी, शारदा कंस्ट्रक्शन कंपनी, देवकृपा व्यापार प्राइवेट लिमिटेड, बंगाल प्राइवेट मीडिया लिमिटेड और बंगाल अवधूत एग्रो के बीच 2011-12 में कई तरह के क्रौस लोन दिए गए हैं. जानबूझ कर फाइनैंशियल गड़बडि़यों को छिपाने के लिए बड़े पैमाने पर ग्रुप कंपनियों के बीच फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन किए गए. इस तरह के ट्रांजैक्शन की गिनती अवैध ही नहीं, बल्कि आर्थिक अपराध की तरह होती है.

अर्थव्यवस्था और चिटफंड

कोलकाता के जानेमाने अर्थशास्त्री अभिरूप सरकार का कहना है कि चिटफंड कारोबार का देश और राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव पड़ता है. पिछले कुछ सालों में पश्चिम बंगाल में अल्प बचत में लगातार कमी आ रही है. वहीं चिटफंड का कारोबार दिन दूना, रात चौगुना फलफूल रहा है.

राज्य वित्त विभाग का मानना है कि 2010-11 वित्त वर्ष में राज्य में अल्प बचत से प्राप्त रकम लगभग 32 हजार करोड़ रुपए थी, जबकि 2011-12 में इस में खासी गिरावट आई और यह राशि लगभग 23 हजार करोड़ रुपए तक रह गई. इस के बाद 2012-13 में इस में और अधिक गिरावट दर्ज करते हुए यह रकम 16 हजार करोड़ रुपए तक ही रह गई.

गौरतलब है कि आम जनता द्वारा अल्प बचत योजना के तहत जमा की गई राशि ही राज्य सरकारें विकास कार्य में लगाती हैं. बजट में इस राशि को शामिल कर लिया जाता है. 2009-10 वित्त वर्ष में अल्प बचत परियोजना के तहत जमा हुई राशि से राज्य को 7,990 करोड़ रुपए ऋण प्राप्त हुआ था. इस के अगले वर्ष यानी 2010-11 में 12,190 करोड़ रुपए ऋण प्राप्त हुआ था. 2011-12 से इस में कमी आने लगी. इस साल राज्य को अल्प बचत योजना से महज 1,658 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए.

वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस साल इस मद में जितनी राशि जमा हुई उस से 210 करोड़ रुपए अधिक की राशि निवेशकों द्वारा निकाल ली गई.

पक्षविपक्ष का दोषारोपण

अब जब पानी सिर तक पहुंच गया है तो दोषारोपण का सिलसिला शुरू हो गया है. वहीं, इस तरह के कारोबार में मदन मित्र, मुकुल राय जैसे तृणमूल नेताओं, मंत्रियों और राज्यसभा के सदस्य और पत्रकार कुणाल घोष की भागीदारी को भी ले कर सवाल उठ रहे हैं. इन के इस्तीफे और गिरफ्तारी की भी मांग हो रही है. पर मुख्यमंत्री ने इन सब को न केवल क्लीन चिट दी, बल्कि इस बवाल के पीछे माकपा की साजिश होने का भी अंदेशा जताया और इस तरह का कारोबार वाम शासन के समय से चलने की बात कही.

वहीं, माकपा का दावा है कि भले ही यह कारोबार वाम शासन के समय से चल रहा है लेकिन इस के संभावित खतरों को देखते हुए लगाम लगाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एक कानून बना कर राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा था. पर इस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर नहीं किए. अब चिटफंड को ले कर राज्यवासियों के गुस्से और विरोध के कारण कानूनव्यवस्था में आई गिरावट से घबरा कर ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सहयोग की अपील की.

सरकार सोती रही

पश्चिम बंगाल में एक के बाद एक कई चिटफंड कंपनियों के कारोबार विस्तार को ले कर समयसमय पर चिंता जताई जाती रही है पर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

राज्य के पुलिस अतिरिक्त महानिदेशक नजरुल इस्लाम का कहना है कि उन्होंने 9 महीने पहले राज्य के गृह विभाग को पत्र लिख कर आगाह किया था. इस्लाम ने शारदा कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, शारदा रियलिटी इंडिया लिमिटेड, एलकैमिस्ट इन्फ्रा रियलिटी लिमिटेड, रोजवैली होटल ऐंड ऐंटरटेनमैंट लिमिटेड समेत और भी कई चिटफंड कंपनियों की एक सूची बना कर एक पत्र गृह विभाग को भेजा था जिस में विस्तार से बताया था कि किस तरह लोगों को बरगला कर ये कंपनियां पैसे वसूल रही हैं. पर उन के पत्र को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया.

पर्याप्त कानून पर अमल नहीं

यह सही है कि समय के साथ हो रहे बदलाव के तहत नए कानून भी बनने चाहिए या पुराने कानून में संशोधन किए जाने चाहिए. लेकिन चिटफंड का कारोबार बंद करने के लिए इस समय जो कानून है वह जानकारों की नजर में पर्याप्त है. नजरुल इस्लाम का भी कहना है कि चिटफंड कंपनियों से निबटने का जो कानून है वह पर्याप्त तो है लेकिन समस्या यह है कि उस का यथोचित इस्तेमाल नहीं हो रहा है.

वे बताते हैं कि 1978 में ‘द प्राइस चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स बैनिंग ऐक्ट’ के तहत कार्यवाही की जा सकती है. इसी कानून के तहत कई राज्यों में चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही हुई भी है. इस कानून की उपधारा 2 सी के तहत 80 के दशक में पश्चिम बंगाल में ‘संचियता’ नामक चिटफंड का कारोबार बंद हुआ था. ऐसा इसलिए हो पाया था क्योंकि राज्य के तत्कालीन वित्त मंत्री अशोक सेन की इच्छा थी. इस के बाद लगभग ढाई दशक तक राज्य के वित्त मंत्री रहे असीम दास गुप्ता ने भी शारदा ग्रुप पर नकेल कसने की कोशिश की थी. लेकिन पार्टी के दबाव में कुछ खास नहीं कर पाए.

कहा जा रहा है कि माकपा के शासन में न केवल शारदा के सुदीप्तो सेन ने अपना कारोबार फैलाया बल्कि एलकैमिस्ट नामक कंपनी के के डी सिंह को भी काफी छूट मिली. वाम मोरचा के सत्ता से जाने के बाद के डी सिंह अब ममता के करीब हैं.

पुलिस की गिरफ्त में फंसा लुटेरा

सुदीप्तो सेन, वह नाम है जिस ने लाखों लोगों को लूटा है. प्राथमिक जांच में मिली जानकारी के तहत पुलिस को इस नाम के असली होने में भी संदेह है. यह खलनायक लगभग 20 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक राशि के चिटफंड के कारोबार से जुड़ा होने के साथ बंगाल समेत पूर्वी भारत के कम से कम 30 लाख लोगों का लुटेरा है.

सुदीप्तो सेन इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि उस का कारोबार अवैध और गैरकानूनी है. किसी भी समय कुछ भी हो सकता है. इसीलिए हर पल वह चौकन्ना रहता था. उस ने आज तक कभी टे्रन या हवाई जहाज से सफर नहीं किया, क्योंकि वह अपनी गतिविधियों का कोई सुबूत छोड़ना नहीं चाहता था. चिटफंड के धंधे का जब भांड़ा फूटा तो वह रात के 3 बजे अपने 1 ड्राइवर और 2 सहयोगियों के साथ सड़क के रास्ते रफूचक्कर हो गया. पहले रांची फिर आगरा, दिल्ली, देहरादून, हरिद्वार, हलद्वानी, भटिंडा और फिर कश्मीर के ऊधमपुर होते हुए सोनमर्ग तक का सफर सुदीप्तो सेन ने टाटा सूमो से तय किया.

कश्मीर में जिस होटल में सुदीप्तो और उस के 2 सहयोगियों ने पनाह ली, वहां भी बुकिंग अपने एक सहयोगी अरविंद चौहान के नाम पर कराई. पर यहां थोड़ी चूक हो गई. होटल में इन लोगों ने अपने को दिल्लीवासी बताया. लेकिन टाटा सूमो पर पश्चिम बंगाल की नंबर प्लेट लगी हुई थी. इसी नंबर प्लेट की वजह से चिटफंड का यह धंधेबाज पुलिस के जाल में फंस गया.

सुदीप्तो का साम्राज्य

अरबपति सुदीप्तो सेन ने अपने कैरियर की शुरुआत एक ठेकेदार के रूप में की. 90 के दशक में शारदा गार्डेंस नामक एक रियल एस्टेट का कारोबार करने वाली कंपनी में काम करना शुरू किया. कंपनी के मालिक थे विश्वनाथ अधिकारी. यहां काम करते हुए जमीन की पहचान से ले कर जमीन से संबंधित तमाम कानूनी धाराउपधाराओं और कानूनी दांवपेंच का वह विशेषज्ञ बन गया. एक दिन अचानक रहस्यमय हालात में विश्वनाथ अधिकारी की हत्या हो गई. शक की सूई सुदीप्तो सेन की तरफ होने के बावजूद सुदीप्तो सेन बच निकला. इतना ही नहीं, विश्वनाथ अधिकारी परिवार के साथ सम?ौता कर के वह शारदा गार्डेंस का मालिक बन बैठा.

इस के बाद सुदीप्तो ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वर्ष 2004-05 में उस ने रियल एस्टेट को परे रख कर चिटफंड कारोबार में हाथ आजमाना शुरू किया. एक तय मीआद में 15 से 100 फीसदी तक का ब्याज देने के नाम पर उस ने लोगों से खूब पैसा बटोरा. यही नहीं, शारदा गार्डेंस के नाम पर एक ही जमीन और फ्लैट को 5-6 लोगों को बेचा. अब जब शारदा गु्रप का भांड़ा फूटा तो ऐसे फ्लैट और जमीन मालिकों को होश आया. शारदा गु्रप के मारफत जमीनफ्लैट खरीदने वाले अपनी ‘अचल संपत्ति’ की खबर लेने गए तो पता चला, वहां किसी और का ताला लटका हुआ है. जमीनफ्लैट के दस्तावेज और पंजीकरण के कागजात ले कर कम से कम 350 लोग विष्णुपुर थाने पहुंचे और अपने साथ हुई धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज की है.

पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे पूर्वोत्तर के राज्य असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम तक शारदा ग्रुप का पैसा पहुंचा है. सुदीप्तो सेन ने तरुण गोगोई के मंत्रिमंडल के एक मंत्री हेमंत विश्वकर्मा के जरिए नागालैंड के अलगाववादी संगठन एनएससीएन (आईएम) के साथ समझौता किया था ताकि पूर्वोत्तर में वह अपना धंधा फैला सके. खुफिया पुलिस को शक है कि इसी अलगाववादी संगठन के जरिए उल्फा के परेश बरुआ को भी मदद पहुंची.

नागालैंड के एनएससीएन के अलावा उल्फा, सलफा आसू जैसे पूर्वोत्तर के कई अलगाववादी संगठनों तक शारदा ग्रुप ने पैसा पहुंचाया है.

सुदीप्तो सेन ने रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा, जो बंगाल में मां शारदा के नाम से जानी जाती हैं और मां शारदा ही कंपनी की टे्रडमार्क हैं, के ही नाम चिटफंड साम्राज्य की स्थापना की. सुदीप्तो ने अपने मुख्यालय में मां शारदा के नाम पर एक सिंहासननुमा कुरसी रख छोड़ी है. प्रतीकात्मक रूप से यह कुरसी मां शारदा की है, जिस पर कोई नहीं बैठता.

बहरहाल, सीबीआई को लिखे पत्र में सुदीप्तो ने खुलासा किया है कि उस ने शारदा कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड समेत ग्लोबल आटोमोबाइल, पर्यटन, न्यूज चैनल, रियल एस्टेट समेत 160 कंपनियों की स्थापना की. इन सभी कंपनियों पर मालिकाना हक सुदीप्तो का है, ज्यादातर निदेशक और शेयरहोल्डर डमी हैं. अपने रसोइए तक को उस ने निदेशक बना कर रखा है. इतनी सारी कंपनियों को चलाने का हर महीने का खर्च 33 करोड़ रुपए है.

बंगला दैनिक ‘प्रतिदिन’ के मालिक और तृणमूल सांसद सृंजय बोस के अप्रत्यक्ष दबाव में आ कर सुदीप्तो ने ‘चैनल 10’ नामक एक न्यूज चैनल को 30 करोड़ रुपए में खरीदा. सुदीप्तो सेन के अनुसार, यही उस की सब से बड़ी गलती थी. चैनल को चलाने के लिए हर महीने

60 लाख रुपए के एवज में ‘प्रतिदिन’ अखबार को चैनल का सहयोगी बनाया. इस के अलावा बताया जाता है कि चैनल की ब्रैंडिंग और इस के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने, कर्मचारियों को वेतन देने के साथ तमाम पुरानी देनदारियों को मिटाने में अतिरिक्त 50 करोड़ रुपए का खर्च आया था. इस के बाद एक करार के तहत हर महीने 15 लाख रुपए वेतन पर टीवी चैनल को सीईओ के पद पर तृणमूल कांगे्रस के सांसद कुणाल घोष को बिठाया गया. 20 लाख रुपए हर महीने के करार पर मिथुन चक्रवर्ती को चैनल का ब्रैंड ऐंबैसेडर बनाया गया. इस तरह पिछले 2 साल में शारदा ग्रुप, ‘प्रतिदिन’ अखबार को 20 करोड़ रुपए से भी अधिक रकम दे चुका है.

चैनल चलाने के नाम पर सीईओ कुणाल घोष के कहने पर शारदा ग्रुप विभिन्न कंपनियों को पिछले 3 साल से हर महीने 2 करोड़ रुपए देता रहा है. सुदीप्तो का दावा यह भी है कि समाजसेवा के विभिन्न कार्यों का हवाला दे कर कुणाल घोष को हर महीने डेढ़ लाख रुपए अलग से देना पड़ता था. साथ ही उन्हें एक कीमती गाड़ी, गाड़ी के लिए पैट्रोल और गाड़ी के ड्राइवर का वेतन तक शारदा गु्रप को उठाना पड़ता था.

वाम मोरचा के शासन के समय में ही सुदीप्तो सेन ने मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा. बंगला (सकालबेला, एखन समय), अंगरेजी (द बंगाल पोस्ट), उर्दू अखबार (कलम और आजाद हिंद) और हिंदी (प्रभात वार्ता) प्रकाशित करना शुरू किया. कई टीवी चैनलों का नैटवर्क शारदा गु्रप ने खरीद लिया. कुल मिला कर पिं्रट मीडिया से ले कर इलैक्ट्रौनिक मीडिया तक सुदीप्तो सेन बंगाल का रूपर्ट मर्डोक बन बैठा.

सुदीप्तो सेन का मीडिया में आने का मकसद न केवल काले धन को सफेद बनाना था, बल्कि अपने व्यावसायिक हितों को साधने के साथ अपने लिए बचाव का रास्ता भी तैयार कर लेना था. राज्य में जब परिवर्तन की बयार चलने लगी तो सुदीप्तो ने तृणमूल के साथ अपने रिश्ते बनाने शुरू किए. उसी दौरान सृंजय बोस और कुणाल घोष से घनिष्ठता बढ़ी. तृणमूल के लिए शारदा गु्रप एक बड़ा भरोसा बना. शारदा गु्रप के बल पर ममता बनर्जी ने कोलकाता को लंदन, दार्जिलिंग को स्विट्जरलैंड और दीघा को गोआ बनाने का सपना संजोया था.

सुदीप्तो के चिटफंड कारोबार की शुरुआत कोलकाता के बजाय असम से हुई. तरुण गोगोई मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों ने स्थानीय अखबार और टीवी चैनल में हिस्सेदारी में मदद की. बाद में मीडिया का नशा सुदीप्तो के सिर चढ़ कर बोलने लगा. लेकिन जब कोलकाता में सुदीप्तो ने अपने चिटफंड का कारोबार फैलाया तो जल्द ही यह नशा अपनी खाल बचाने के लिए उस की जरूरत बन गया.

चूंकि सृंजय बोस का दैनिक बंगला अखबार ‘प्रतिदिन’ का एक संस्करण असमिया में भी है, इसीलिए असम के एक मंत्री मतंग सिंह और उन की पत्नी मनोरंजना सिंह के मारफत पूर्वोत्तर भारत में एक टीवी चैनल खोलने का प्रस्ताव आया. बताया जाता है कि चैनल खोलने के इस प्रस्ताव में सृंजय बोस का भी हाथ हो सकता है. इस सिलसिले में मतंग और मनोरंजना सिंह के कहने पर सुदीप्तो सेन की केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी एडवोकेट नलिनी चिदंबरम के साथ बैठक हुई. नलिनी ने मतंग और मनोरंजना सिंह को चैनल के लिए 42 करोड़ रुपए देने का अनुरोध किया. अब तक मनोरंजना के चैनल जीएनएन के लिए 25 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं और चैनल के लिए दस्तावेज तैयार करने के एवज में नलिनी चिदंबरम को पिछले 1 साल के दौरान 1 करोड़ रुपए बतौर फीस दिए गए हैं.

बहरहाल, बंगाल और असम के प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया में चिटफंड कंपनी का इतना पैसा लगा है. शारदा कांड से पहले किसी को अंदाजा नहीं था. अब जब मीडिया कारोबार में इस के तार दूरदूर तक फैले होने की बात सामने आ गई तब केंद्र सरकार एक नया कंपनी कानून बनाने जा रही है.

इस की घोषणा कंपनी मामले के केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट और सूचना व व प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने की. कहा जा रहा है कि चिटफंड कंपनी के अधीन अगर कोई मीडिया संस्थान है तो कंपनी मामले का मंत्रालय उस के इक्विटी शेयर के बारे में तमाम जानकारी इकट्ठा करेगा और मीडिया कारोबार चलाने के लिए जरूरी लाइसैंस लेने के समय दिए तथ्यों को मिला कर देखा जाएगा. अगर मिलान नहीं हो पाया तो उन के खिलाफ नए कानून के तहत कार्यवाही होगी.

रहनसहन साधारण

सौल्टलेक के सैक्टर फाइव में स्थित अपने मुख्य दफ्तर में सुदीप्तो सुबह के समय नहीं, बल्कि रात को 8 बजे आता था. अपने मुख्य सहयोगी देवयानी मुखर्जी समेत विभिन्न दफ्तरों के बड़े अधिकारियों के साथ बैठक कर के सुबह 4 बजे घर लौटता. सैक्टर-5 में शारदा ग्रुप के मुख्यालय के वौचमैन के अनुसार, ‘‘मैडम देवयानी सर (सुदीप्तो सेन) के दफ्तर छोड़ने से लगभग आधा घंटा पहले घर के लिए निकलती थीं.’’

कहते हैं कि शारदा ग्रुप के अधिकारियों को छोड़ कर अन्य कर्मचारियों ने सुदीप्तो को आमनेसामने से कभी देखा तक नहीं है. दरअसल, सुदीप्तो प्रचार से दूर ही रहता था.

गिरफ्तारी के समय सुदीप्तो सेन के पास से जो पासपोर्ट मिला उस में दक्षिण कोलकाता के सर्वे पार्क का पता है. पुलिस जांच में पाया गया कि इस पते पर सुदीप्त सेन नाम का कभी कोई रहता था. हां, इस पते पर शिलादित्य सेन और शंकर सेन नाम के 2 भाई रहा करते थे. लेकिन शंकर सेन पर महिलाओं की तस्करी के आरोप लगा कर स्थानीय ?ोंपड़पट्टी के लोगों ने इस घर को फूंक डाला था और सेन भाइयों को जान बचा कर यहां से भागना पड़ा. तब से इस घर का ताला बंद है. माना जा रहा है कि यही शंकर सेन नाम बदल कर सुदीप्तो सेन बन गया है.

भले ही सुदीप्तो सेन चिटफंड के करोड़ों के कारोबार में गोते लगा रहा था, पर यह आदमी हमेशा लो प्रोफाइल का आदी रहा. कंपनी के कर्मचारियों ने ज्यादातर इसे मारुति और नौन एसी में ही देखा. उस का रहनसहन व जीवनशैली बहुत ही सरल रही है. अखबार और चैनल चलाने के बाद भी उस ने कभी कहीं कोई तसवीर नहीं छपवाई. पार्टी वगैरह में भी कभी शिरकत नहीं की. यहां तक कि शारदा ग्रुप के कार्यक्रम में भी नहीं देखा गया.

देवयानी निकली सयानी

शारदा ग्रुप के दफ्तरों में ज्यादातर लड़कियां काम किया करती थीं, वह भी बहुत कम उम्र की. जिस देवयानी मुखर्जी का नाम सुदीप्तो के साथ आया है, उसे महज रिसैप्शनिस्ट के तौर पर शारदा ग्रुप में नियुक्ति मिली. लेकिन बहुत ही कम समय में तरक्की पर तरक्की करते हुए कंपनी में देवयानी की हैसियत सुदीप्तो के बाद की बन गई. हालांकि कंपनी में काम करने वाले एक कर्मचारी की मानें तो सुदीप्तो के कारोबार की तमाम रणनीति के पीछे देवयानी का दिमाग ही काम करता था. हर फैसले के लिए सुदीप्तो ‘मैडम’ यानी देवयानी की सलाह जरूर लिया करता था.

यह देवयानी दक्षिण कोलकाता के ढाकुरिया में स्थानीय तौर पर नामचीन और प्रतिष्ठित मुखर्जी परिवार की लड़की है. पारिवारिक कारोबार तेल मिल का था. लेकिन धीरेधीरे कारोबार का भट्ठा बैठने लगा और देवयानी के पिता को राशन की दुकान में नौकरी करनी पड़ी. बताया जाता है कि घर का खर्च चलाने के लिए कोई 5-6 साल पहले देवयानी अपनी मां के साथ महल्ले में घूमघूम कर अचार बेचा करती थी. इस के बाद 2007 में देवयानी रिसैप्शनिस्ट के तौर पर कंपनी के मुख्यालय से जुड़ी. कहते हैं कि प्रभावशाली व्यक्तित्व, बातचीत की कला में माहिर, नेतृत्व में बेजोड़, तेजतर्रार दिमाग वाली देवयानी के ‘हुनर’ को सुदीप्तो की पारखी नजर ने बखूबी पहचाना. और इस तरह देवयानी कार्यकारी निदेशक के पद तक पहुंच गई.

मार्च के पहले सप्ताह से देवयानी ने अचानक दफ्तर आना बंद कर दिया. इस से पहले इस साल की शुरुआत में पांचमंजिले शारदा ग्रुप के मुख्यालय में अपने चैंबर में जाने के बजाय देवयानी कंपनी के बैंकिंग विभाग में बैठने लगी थी. दफ्तर के कर्मचारियों का अब मानना है कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से हो रहा था. इस बीच बड़े पैमाने पर नकदी दफ्तर से हटा दी गई थी. पिछले 3 महीने से शारदा ग्रुप के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला और अब तक 30 लाख लोगों का पैसा डूब चुका है.

केंद्र व राज्य की राजनीति

अब इस पूरे मामले को ले कर केंद्र स्तर की राजनीति चल पड़ी है. इधर 2जी पर पीसी चाको की अध्यक्षता में तैयार जेपीसी की रिपोर्ट से विपक्ष नाराज है. इस मुद्दे पर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता है. मौजूदा स्थिति में यूपीए की

2 सहयोगी पार्टियों डीएमके और ममता पहले ही सरकार से अपने हाथ खींच चुकी हैं. उस पर तलवार लटक रही है. इधर, चिटफंड मामले में सेबी से ले कर वित्त मंत्रालय और कौर्पोरेट मंत्रालय तक केंद्र के काफी कुछ अख्तियार में है. ममता इस बात को भी जानती हैं और बारबार कह भी रही हैं. लेकिन चिटफंड के मामले में ममता के सांसद समेत वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी का नाम आने से तृणमूल के साथ कांगे्रस की भी जान आफत में है.

जाहिर है, चिटफंड मुद्दे पर तृणमूल और 2जी मुद्दे पर कांगे्रस के बचाव में बलि चढ़ जाएंगे सुदीप्तो सेन और उस के सहयोगी. सुदीप्तो सेन की लूटखसोट में पूरी तरह से भागीदारी करने के बाद भी ममता अपने सांसद को बचा लेने में भले ही सफल हो जाएं लेकिन वे अपनी पार्टी की इमेज को जनता की नजर से कैसे बचा पाएंगी, यह तो वक्त ही बताएगा.

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