Nepal : नेपाल में जेनजी प्रोटेस्ट ने विद्रोह का रूप ले कर ओली सरकार का तख्ता पलट कर दिया है. यह प्रोटेस्ट 2 दिनों के भीतर इतना भड़का कि नेताओं को देश छोड़ कर भागना पड़ा. ऐसा ही पिछले साल बंगलादेश और श्रीलंका में हुआ. आखिर क्यों दक्षिण एशियाई देशों में जेनजी आंदोलन विद्रोहों में तब्दील हो रहे हैं?
लोकतंत्र अब नेताओं के लिए सिर्फ सत्ता पाने का खेल बन चुका है, लोकतंत्र के असली फायदे आम आदमी को नहीं मिल पा रहे हैं. लोकतांत्रिक देशों में अधिकांश नेता सिर्फ सत्ता का लुत्फ उठा रहे हैं और आम आदमी दो जून की रोटी को तरस रहा है. नेपाल में पिछले दिनों जेन-जी का जो बारूद फटा और जिस तरह नेपाल धूधू कर जला, वह नेताओं के भ्रष्टाचार और लालच का ही नतीजा है.
नेपाल का लोकतंत्र रेत पर बने घर की तरह ढह चुका है. इस से पहले बांग्लादेश और श्रीलंका की भी ऐसी ही हालत हुई थी. मिस्र (इजिप्ट) में भी लोकतांत्रिक सरकार बनने के प्रयास हुए, लेकिन हर बार वह भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग में फंसती रही. सरकार पर भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद और तानाशाही के गंभीर आरोप लगे. प्रशासनिक तंत्र आम जनता की बजाय अपने परिवार और चंद विशेष वर्गों को लाभ पहुंचाने में लगा रहा.
इंडोनेशिया और फ्रांस भी जल रहा है क्योंकि वहां भी सत्ता पर भ्रष्टाचार और अपने अपनों को रेवड़ियां बांटे जाने से जनता त्रस्त है. फ्रांस की जनता में काफी रोष है, वे सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर चुकी है और ये सिर्फ सरकार की गलत नीतियों, घोर भ्रष्टाचार, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता का परिणाम है.
नेपाल में सोशल मीडिया बैन को ले कर शुरू हुए प्रदर्शन की आग आज से नहीं, बल्कि काफी समय से धधक रही थी. सोशल मीडिया तो महज बहाना है, लोगों में आक्रोश दरअसल सरकार की नीतियों और कामकाज को ले कर ही था, जो सोशल मीडिया के माध्यम से उजागर हो रहा था और सरकार को नागवार गुजर रहा था.
नेपाल में सोशल मीडिया पर सरकार की करतूतों को उजागर करने का जिम्मा उठा रखा था जेन-जी ने. जेन-जी, यानी जेनेरशन-जी यानी वह युवा पीड़ी जो मिलेनियल्स के बाद आती है. 1997 से 2012 के बीच जन्में लोग जेन-जी कहे जाते हैं, जिन का बचपन और युवावस्था स्मार्टफोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल टैक्नोलौजी के साथ ही बीता है. यह वह जेनेरशन है जो दुनियाभर की ख़बरों, फैशन, विचारों और ट्रेंड्स से तुरंत जुड़ जाती है. वह जनरेशन जो सामाजिक मुद्दों पर जागरूक है, और सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे विश्व से कनेक्टेड है.
यह वह जेनेरशन है जो आज बढ़ते क्लाइमेट चेंज पर चिंतित है, जिस क्लाइमेट चेंज की कोई चिंता सरकार को नहीं है. यह वह जेनेरशन है जो एलजीबीटीक्यू+ के राइट्स के लिए सड़कों पर उतर पड़ती है. यह वह जेनेरशन है जो समाज में समानता की बात करती है जबकि राजनीतिक पार्टियां सत्ता पाने के लिए समाज में असमानता और विभाजन की गहरी खाईयां खोदती है.
4 सितंबर को जब नेपाल की ओली सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगाया तो देश भर में हिंसा की आग भड़क उठी. सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़का गुस्सा बेकाबू हुआ तो प्रदर्शनकारी युवाओं की भीड़ ने राष्ट्रपति भवन और राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर फूंक डाले. नेताओं को दौड़ादौड़ा कर कूटा. वित्त मंत्री बिष्णु पौडेल को तो प्रदर्शनकारियों ने नंगा कर पानी में दौड़ादौड़ा कर लातघूसों से पीटने के वीडियो वाइरल हुए. बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने में सेना की कार्रवाई में 20 से ज्यादा युवा मारे गए और 600 से ज्यादा घायल हुए.
इसके बाद तो सत्ता में ओली सरकार का टिका रहना मुश्किल ही था. गृहमंत्री के बाद एकएक कर सभी मंत्रियों ने पद से इस्तीफा दे दिया. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की हालत पतली हो गई और अंततः उन्हें भी काठमांडू छोड़ कर भागते देखा गया.
दरअसल नेपाल की ओली सरकार युवा वर्ग की अभिव्यक्ति की आजादी छीनने की कोशिश में थी. उस ने सोचा कि सोशल मीडिया पर काबू पा कर वह अपने कारनामे छुपा लेंगे और जेन-जी को काबू में कर लेंगे. मगर जेन जी के लिए सोशल मीडिया उस के खानेपीने और सांस लेने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. नतीजा युवाओं के आक्रोश ने पूरी सरकार ही ध्वस्त कर दी. संसद और सुप्रीम कोर्ट को आग के हवाले कर लोकतंत्र के परखच्चे उड़ा दिए.
दरअसल जेनेरशन जी की सोच, काम करने का तरीका और मनोरंजन सब कुछ तेज है. ये जेनेरशन ज्यादा प्रेक्टिकल है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती है. आज इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शौर्ट्स और स्नैपचैट जैसे प्लेटफौर्म पर यही जेनेरशन छाई हुई है. ये लोग दुनियाभर के ट्रेंड्स से जुड़ कर चलना चाहते हैं. चाहे वह कैरियर हो या लाइफस्टाइल. ये अपने फैसले खुद लेते हैं और काफी लिबरल हैं.
जेन जी पारम्परिक सरकारी नौकरी या खेती किसानी से हट कर स्टार्टअप, फ्रीलांसिंग, आईटी, क्रिएटिव इंडस्ट्री की तरफ जा रही है. विदेशों में शिक्षा और नौकरी के अवसर तलाशना भी नेपाल के जेन जी की बड़ी प्रवृत्ति है. नेपाल की लोकतंत्र संघीय व्यवस्था और संविधान की बहस में जेन जी का बड़ा रोल है. युवा मतदाता सोशल मीडिया के जरिये नेताओं को चुनौती देते हैं, ट्रेंड्स बनाते हैं और आंदोलन खड़े करने में आगे रहते हैं.
हाल ही में स्थानीय चुनावों में युवाओं की सक्रियता से नए, युवा और स्वतंत्र उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई. गौरतलब है कि नेपाल में इंटरनेट और स्मार्टफोन का प्रसार पिछले एक दशक में बहुत तेजी से हुआ है और यहां का युवा वर्ग इस के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय खुल कर जाहिर करता है. ऐसे में सोशल मीडिया पर बैन लगाकर सरकार ने जलते तवे पर पैर रख दिया.
नेपाल में सरकार और नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ जेन जी के विद्रोह का तात्कालिक कारण भले ही सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हो, मगर इस के पीछे एक बड़ी वजह रेमिटेंस पर निर्भर अर्थव्यवस्था भी है. नेपाल बहुत हद तक देश से बाहर रह कर काम कर रहे अपने नागरिकों की कमाई पर निर्भर है. यहां न तो युवाओं के लिए नौकरियां हैं और न ही दूसरे अवसर. अपनी आकांक्षाओं की आग में सुलग रहे जेन जी को इंटरनेट मीडिया का बड़ा सहारा है, जिस के माध्यम से उन की कुछ कमाई हो जाती है. यह पीढ़ी इंटरनेट के साथ पढ़ीबढ़ी है. फेसबुक और वाट्सएप जैसे ऐप लोगों के जीवन में बहुत अहम हैं.
ये ऐप युवाओं को रोजगार और आर्थिक अवसरों के अभाव के खिलाफ गुस्सा निकालने का मंच भी मुहैया करते हैं. इस के अलावा नेपाल के बहुत से नागरिक भारत के अलावा खाड़ी देशों और मलेशिया में काम करते हैं. फेसबुक और वाट्सएप के जरिये लोग अपने परिवार से संपर्क में रहते हैं. इस के अलावा इंटरनेट आधारित ऐसे ऐप भी हैं जिन के जरिये नेपाली अपने परिवार को पैसे भेजते हैं. ऐसे में सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध ने स्थिति को विस्फोटक बना दिया.
गौरतलब है कि नेपाल की 8 प्रतिशत से अधिक आबादी दूसरे देशों में काम कर रही है और वहां से वह जो पैसे भेजते हैं, उस का देश की जीडीपी में योगदान 33% से अधिक है. टोंगा, तजाकिस्तान और लेबनान के बाद किसी देश की जीडीपी में रेमिटेंस की यह चौथी बड़ी हिस्सेदारी है. देश में रोजगार के अवसर न होने की वजह से ही लोग बाहर काम कर रहे हैं.
पिछले एक दशक में नेपाली युवाओं का शिक्षा और रोजगार के लिए विदेश में पलायन तेज हुआ है. लगभग 2200 नेपाली प्रतिदिन खाड़ी देश और मलेशिया जा रहे हैं. एक आंकड़े के अनुसार 40 लाख नेपाली नागरिक भारत सहित विदेशों में काम कर रहे हैं. वे बाहर के देशों की चकाचौंध से प्रभावित हैं. और अपने देश की गरीबी का कारण सरकार की गलत नीतियों, कामकाज और भ्रष्टाचार को मानते हैं. सरकार परियोजनाओं का बहाना ले कर अपने खजाने को खाली बताती है जबकि लोगों को जमीन पर सरकार की कोई परियोजना उतरती दिखाई नहीं देती है.
इस के अलावा आक्रोश का एक और कारण है. नेपाल में अभी तीन प्रमुख दल हैं. ये तीनों पार्टियां आपस में तालमेल कर सरकार बना लेती हैं. इस से इन्हीं दलों से जुड़े लोगों को सरकारी टेंडर या योजनाओं का फायदा मिलता है. इन सब चीजों ने तनाव भड़काने में भूमिका निभाई है.
जेन जी के विद्रोह ने यह तो तय कर दिया है कि यह पीढ़ी अन्याय को अपनी नियति के रूप में स्वीकार करने को हरगिज तैयार नहीं है. यह पीढ़ी दुनिया भर में अब खुल कर सरकारों को चुनौती दे रही है. नेपाल से इंडोनेशिया, श्रीलंका से बांग्लादेश तक एशिया के युवा असमानता और अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. जेन जी का गुस्सा अब केवल चिंगारी नहीं बल्कि एक ऐसी आग बन चुका है जो सरकारों को हिला रही है, नेस्तनाबूद कर रही है. फिलहाल नेपाल के युवाओं ने वहां की सरकार को उखाड़ फेंका है. अब वहां नए सवेरे की उम्मीद है. नई सरकार कब बनेगी और कितनी स्थिर होगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है. मगर यह तय है कि नई सरकार जेन जी के सहयोग और उसकी राय से बनेगी.
अन्य देशों की बात करें तो सब से बड़े मुसलिम देश इंडोनेशिया में भी हालात बहुत खराब हैं. अगस्त के आखिरी हफ्ते में वहां सांसदों को मिलने वाले भारीभरकम आवास भत्तों के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई थी. ये भत्ते न्यूनतम मासिक वेतन से 10 गुना अधिक थे. कमर तोड़ मंहगाई से जूझती जनता के लिए यह अस्वीकार्य था. जनता में आक्रोश था और इस में जबरदस्त विस्फोट तब हुआ जब एक मोटरसाइकिल टैक्सी चालाक पुलिस की गाड़ी से कुचल कर मारा गया.
इस के बाद तो आक्रोशित युवाओं की भीड़ ने शीर्ष सांसदों के घरों में लूटपाट की, कारों को आग लगा दी, सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचाया. इंडोनेशिया में यह सब से हिंसक प्रदर्शन रहा जिस के बाद राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो ने सांसदों के बढे हुए भत्तों को वापस लिया और वित्त मंत्री मुल्यानी इंद्रावती को पद से हटा कर युवाओं के गुस्से पर पानी के छींटे मारने का प्रयास किया.
कई देशों में हो रहे इस तरह के प्रदर्शनों और उत्पात के पीछे साझा शिकायतें हैं. इंडोनेशिया की आधी आबादी 30 साल से काम उम्र की है जबकि नेपाल में यह आंकड़ा 56% है. दोनों देशों में बेरोजगारी और बढ़ती आय असमानता युवाओं में गुस्सा पैदा कर रही है. यह प्रदर्शन दर्शाते हैं कि युवाओं की एकजुटता सरकारों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर सकती है.
भारत में भी ऐसे प्रदर्शनों ने मोदी सरकार को कई नए और जनता पर जबरन थोपे गए कानून वापस लेने के लिए बाध्य किया. बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मामले में भारत के नेता-अधिकारी भी पीछे नहीं हैं. दुनिया में सब से बड़े और सबसे ज्यादा घोटाले भी भारत में ही होते हैं. पर अभी तक यहां जेन जी एकजुट नहीं हो पाया है क्योंकि सरकार ने बड़ी चालाकी से उस को हिंदूमुसलिम नफरत के प्रपंच और धार्मिक कर्मकांडों में उलझा रखा है. Nepal