Women’s Freedom : अफगानिस्तान में 1 सितंबर, 2025 को नंगरहार और कुनार प्रांत में आए भूकंप के चलते तकरीबन 1,400 लोग मारे गए और लगभग 4 हजार लोग घायल हुए. इन में मर्दों की तुलना में औरतें ज्यादा थीं. कुछ स्रोतों के अनुसार इस भूकंप में मरने वाले लोगों में 1250 औरतें थीं और सिर्फ 150 मर्द थे.

भूकंप के बाद तुरंत पहुंचे बचाव दल में सिर्फ पुरुष थे. ये पुरुष भूकंप में घायल, भीतों के नीचे दबी हुई औरतों के लिए गैरमैहरम ही थे. बचाव दल के पुरुषों को शरिया की शर्त मालूम थी. शरिया की सख्त हिदायत थी कि किसी पराई स्त्री को नहीं छूना. बचाव दल ने भूकंप के मलबों से पुरुषों, किशोरों को तो निकाला मगर बच्चियों, महिलाओं को छोड़ दिया इसलिए कि क़ानूनन पराया शख्स किसी महिला को छू नहीं सकता.

भूकंप के वक़्त 90 प्रतिशत मर्द घरों से बाहर थे. भूकंप की खबर से मर्द इलाकों तक पहुंचे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. कुछ औरतें मलबों के नीचे घुट कर दम तोड़ चुकी थीं तो कुछ औरतें अपनी बच्चियों को बचाने की खातिर खुद ही मलबों के ढेर को हटाने में लगी थीं.

‘द डेली मेल’ के अनुसार तालिबान शासन के तहत ‘नो स्किन कौन्टैक्ट’ नियम के कारण मलबे में दबी महिलाओं को बचाने में देरी हुई जिस से महिलाओं की मृत्यु दर बढ़ी.

यह वही अफगानिस्तान है जहां लड़कियों को 6वीं कक्षा के बाद पढ़ने की इजाजत नहीं है. बिना पुरुष साथी के महिला यात्रा नहीं कर सकती है. उन्हें नौकरी की इजाजत नहीं है. सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को ढकना अनिवार्य है. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर रोक है. औरतों के लिए खेलना, नाचना और संगीत पर बैन है.

अफगानिस्तान एक उदाहरण है. जहां भी धर्म लोकतंत्र पर जीत हासिल करता है वहां सब से पहले औरतों को ही कंट्रोल किया जाता है. लोकतंत्र में औरत और मर्द बराबर होते हैं लेकिन धर्म हमेशा पितृसत्ता को मजबूती देता है जिस में औरतें दोयम दर्जे की नागरिक बन कर पुरुषों की गुलाम बन जाती हैं. यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि औरतों के लिए सभी धर्म लगभग एकजैसे ही हैं.  Women’s Freedom

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