Diamond Value : दुनियाभर में हीरे की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसे स्टाइल और स्टेटस सिंबल शुरू से ही माना जाता था. अब आम स्वीकार्यता बढ़ने लगी है. महिलाएं इस की चमक के आगे सोने को भी फीका समझने लगी हैं.
अपने प्लौट पर घर बनवाने के चक्कर में अनुज की सारी बचत लगभग खत्म होने को थी. अभी सैकंड फ्लोर पर टाइल्स और वुड का सारा काम बचा हुआ था. फिर छत भी पड़नी थी. अनुज कर्ज नहीं लेना चाहता था. उस ने पत्नी के कुछ गहने बेचने की बात सोची. मगर अंजलि तो यह सुनते ही बिफर गई, ‘मैं अपने गहने हरगिज नहीं दूंगी.’
‘अच्छा, तुम अपने मत दो मगर अम्मा का वह नैकलेस-टौप्स ही निकाल दो जो हीरे का है,’ अनुज ने मनुहार की.
‘उन की तरफ तो तुम आंख उठा कर भी नहीं देखना. एक वही सैट तो है जिस को पहन कर लगता है कि हमारा भी समाज में कुछ स्टेटस है. वरना ये सोने के गहने तो हर किसी के पास हैं. तुम से तो उम्मीद नहीं कि तुम मुझे कभी वैसा हीरे का हार बनवा कर दोगे. जो है, वह भी बेच डालो,’ गुस्से से उलाहना देती अंजलि पैर पटकते हुए दूसरे कमरे में चली गई.
अंजलि ने गहने देने से साफ इनकार कर दिया तो अनुज मायूस हो गया. मरता क्या न करता, आखिर में उसे अपने बड़े भाई से 5 लाख रुपए उधार लेने पड़े. अगर अंजलि वह हीरे का हार और टौप्स दे देती तो वे कम से कम 8 लाख रुपए के बिक जाते. पुराने पुश्तैनी जेवर हैं, जिन में 10 बड़े हीरों के साथसाथ 4 लाल भी जड़े हैं. मगर अंजलि उस सैट को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है.
अंजलि की बात भी सही है. हीरे के जेवर सोने से ज्यादा कीमती होते हैं. इन से लोगों को आप का स्टेटस भी पता चलता है. हीरे का जेवर पहन कर कोई भी महिला खुद को गौरवान्वित महसूस करती है. हीरा सिर्फ एक आभूषण ही नहीं होता, बल्कि यह प्रतिष्ठा, सौंदर्य और आत्मविश्वास का भी प्रतीक माना जाता है. जब कोई महिला हीरा धारण करती है तो वह अपने व्यक्तित्व में एक अलग ही चमक महसूस करती है.
हीरे की चमक और दुर्लभता उसे अनमोल बनाती है. यह समृद्धि और शान का प्रतीक तो है ही, हीरा पहनने से महिला को लगता है कि वह भी उतनी ही खास और अनमोल है जितना कि वह रत्न. समाज में हीरे को हमेशा से रौयल्टी और गौरव से जोड़ा गया है, इसलिए इसे धारण करने से आत्मगौरव की भावना खुदबखुद आ जाती है. हीरे का हार किसी औरत के गले में हो तो लोगों की नजरें उस पर से हटती नहीं हैं.
ज्यादातर औरतें सोने की तुलना में हीरे के गहनों को ज्यादा पसंद करती हैं. इस के पीछे कई मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सौंदर्य कारण हैं. हीरे के जेवरों का आकर्षण, चमक और पारदर्शिता उसे सोने से कहीं अधिक आकर्षक बनाती है. हीरे की ‘फायर’ (रंगीन चमक) गहनों को और ग्लैमरस बनाती है. हीरा स्टेटस और लग्जरी का प्रतीक है. इस से आप की संपन्नता झलकती है. पश्चिमी संस्कृति में तो हीरे को ‘फौरएवर’ यानी हमेशा टिकाऊ प्रेम का प्रतीक कहा जाता है. इसलिए ज्यादातर इंगेजमैंट रिंग में हीरा ही जड़ा होता है.
मौडर्न ज्वैलरी डिजाइन में हीरे का इस्तेमाल ज्यादा होता है, जो हर ड्रैस और अवसर के साथ मेल खाता है. सोना कभीकभी ज्यादा पारंपरिक या भारी लग सकता है, जबकि हीरा एलीगेंट और मौडर्न दिखता है.
हीरे के गहने सोने से ज्यादा दुर्लभ और यूनीक लगते हैं. हर हीरा अलग कट, रंग और क्लैरिटी वाला होता है, जो पहनने वाले को खास एहसास देता है. बहुत सी औरतों के लिए हीरा सिर्फ गहना नहीं, बल्कि प्यार, रिश्ते और यादों की निशानी होता है. इंगेजमैंट रिंग या एनिवर्सरी गिफ्ट के तौर पर हीरा मिलने पर वे खुशी से झुम उठती हैं. औरतें पार्टियों में ही नहीं, बल्कि रोजमर्रा में पहनने के लिए भी हीरे को ज्यादा ग्लैमरस मानती हैं. सोना ‘सेफ्टी’ है, लेकिन हीरा ‘ब्यूटी और स्टेटस’ का प्रतीक है.
सोना निवेश के लिहाज से बेहतर है क्योंकि वह आसानी से बेचा जा सकता है और उस की कीमत अलगअलग दुकानों पर अलगअलग नहीं होती, जबकि हीरे को हर दुकानदार अपने हिसाब से परख कर उस की कीमत लगाता है.
असली हीरे की क्या पहचान है
हीरे की पहचान करना आसान नहीं होता, क्योंकि नकली हीरे जैसे क्यूबिक जरिकोनिया, अमेरिकन डायमंड, मोइसानाइट बिलकुल असली जैसे दिखते हैं. लेकिन कुछ परखने के तरीके हैं जिन से असली और नकली में फर्क समझ जा सकता है. सच्चे हीरे की पहचान उस की कठोरता से होती है.
हीरा दुनिया का सब से कठोर प्राकृतिक खनिज है. यह कांच, स्टील या धातु को भी आसानी से खुरच सकता है. नकली हीरे इतने कठोर नहीं होते हैं. इस के अलावा असली हीरा सफेद और रंगीन रोशनी को बहुत तीव्रता से परावर्तित करता है. नकली हीरे में यह चमक कम होती है या ज्यादा इंद्रधनुषी दिखाई देती है.
फौग टैस्ट से भी असली और नकली हीरे की पहचान की जाती है. असली हीरे पर सांस छोड़ने पर धुंध यानी फौग टिकती नहीं है, वह तुरंत गायब हो जाती है, जबकि नकली हीरे पर यह धुंध कुछ सैकंड तक टिकी रहती है. पानी में डाल कर भी हीरे की पहचान की जाती है. असली हीरा बहुत डैंस यानी घना होता है और पानी में डालने पर तुरंत नीचे डूब जाता है, जबकि नकली हीरा कई बार तैरता रहता है या धीरेधीरे नीचे बैठता है.
असली हीरे में हलकीफुलकी प्राकृतिक खामियां होती हैं, जबकि नकली हीरा बिलकुल साफ और एकदम परफैक्ट दिखता है. असली हीरे को कागज या अखबार पर रखने से शब्द साफ नहीं दिखते जबकि नकली हीरे से शब्द या अक्षर साफ दिखाई दे जाते हैं. वहीं असली हीरा बहुत ज्यादा गरम होने पर भी नहीं टूटता, जबकि नकली हीरा अचानक गरम करने पर टूट सकता है.
ये तो सब हीरे की परख के घरेलू तरीके हैं मगर सब से भरोसेमंद तरीका है जीआईए (जेमोलौजिकल इंस्टिट्यूट औफ अमेरिका) या आईजीआई जैसी अंतर्राराष्ट्रीय संस्था का सर्टिफिकेट लेना. साधारण परख घर पर हो सकती है, लेकिन असलीनकली का 100 फीसदी प्रमाण केवल जेमोलौजिस्ट या लैब टैस्ट से ही मिलता है.
बहुमूल्य हीरा कोहेनूर
सर्वविदित है कि कोहेनूर हीरा दुनिया के सब से मशहूर और बहुमूल्य हीरों में गिना जाता है. इस का इतिहास लगभग 800 साल पुराना माना जाता है. समयसमय पर यह हीरा अलगअलग शासकों और साम्राज्यों के हाथों में रहा और आखिरकार ब्रिटेन पहुंच गया. इस के कीमती होने के पीछे सिर्फ इस का आकार या चमक ही कारण नहीं है, बल्कि कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक पहलू भी जुड़े हुए हैं.
कोहेनूर अपने समय में दुनिया का सब से बड़ा हीरा था. इस का वजन मूलरूप से लगभग 793 कैरेट था, मगर काटने और पौलिशिंग के बाद यह अब करीब 105.6 कैरेट ही रह गया है. कोहेनूर की चमक और पारदर्शिता अद्वितीय मानी जाती है.
कोहेनूर हीरा भारत की खान से निकला और प्राचीन काल से ही शाही खजानों का हिस्सा रहा. यह कई राजवंशों, जैसे- मुगल, फारसी, अफगान, सिख, ब्रिटिश के हाथों से गुजरा और हर शासक इसे शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानता था.
कोहेनूर हीरे की यात्रा
13वीं शताब्दी (लगभग 1200:1300) में कोहेनूर हीरा काकतीय वंश (आंध्र प्रदेश, भारत) के काकतीय मंदिर (वारंगल के श्रीरामलिंगेश्वर मंदिर) में देवीदेवताओं के मुकुट में जड़ा हुआ था. इसे उस समय ‘राजा का रत्न’ कहा जाता था. 14वीं शताब्दी (1323) में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने वारंगल पर आक्रमण किया और कोहेनूर अपने कब्जे में लिया.
16वीं शताब्दी (1526) में यह हीरा मुगल सम्राट बाबर के पास पहुंचा. बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में इस हीरे का उल्लेख किया है. इस के बाद यह हीरा मुगलों की शाही धरोहर बन गया और शाहजहां ने इसे अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया.
वर्ष 1739 में जब फारस (ईरान) के शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया तब वह मयूर सिंहासन समेत कोहेनूर को लूट कर ईरान ले गया. नादिर शाह ने ही इस का नाम रखा ‘कोह-ए-नूर’ यानी ‘प्रकाश का पर्वत’. 1747:1751 में नादिर शाह की हत्या के बाद यह हीरा उस के सेनापति अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी वंश, अफगानिस्तान) के पास पहुंचा. बाद में कोहेनूर हीरा अब्दाली के वंशज शुजा शाह दुर्रानी के पास आ गया.
19वीं शताब्दी की शुरुआत में अफगानिस्तान में राजनीतिक संघर्ष के दौरान शुजा शाह को लाहौर भागना पड़ा और उस ने यह हीरा 1813 में सिख साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया. रणजीत सिंह ने इसे सिख साम्राज्य का शाही खजाना बना दिया.
दलीप सिंह पंजाब के अंतिम सिख महाराजा थे जिन के पास कोहेनूर हीरा था, जिन्हें 10 साल की उम्र में जबरन कोहेनूर अंगरेजों को देने के लिए फोर्स किया गया था.
1849 में प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध और द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर कब्जा कर लिया. तब लाहौर संधि 1849 के तहत कोहेनूर हीरा ब्रिटिशों के हवाले कर दिया गया. 1850 में महारानी विक्टोरिया के आदेश पर कोहेनूर हीरा इंगलैंड ले जाया गया और इसे महारानी विक्टोरिया के मुकुट में जड़ दिया गया.
आज भी कोहेनूर हीरा ब्रिटिश शाही परिवार के मुकुट में जड़ा हुआ है. इसे लंदन के टावर औफ लंदन में सुरक्षित रखा गया है.
आगे का अंश बौक्स के बाद
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भारत में हीरा कारोबार
भारत दुनिया के सब से बड़े हीरा व्यापारिक केंद्रों में से एक माना जाता है. भारत दुनिया का पहला देश था जहां से प्राकृतिक हीरों की खोज हुई. प्राचीन गोलकुंडा खान, आंध्र प्रदेश में पहली बार हीरा प्राप्त हुआ. कोहेनूर, दरिया ए नूर जैसे ऐतिहासिक हीरे भारत से ही निकले. मुगल काल से हीरा व्यापार दुनियाभर में फैला.
भारत आज कच्चे हीरों का सब से बड़ा काटछांट (कटिंग एंड पौलिशिंग) केंद्र है. विश्व के लगभग 90 फीसदी हीरे भारत में कट और पौलिश किए जाते हैं. सूरत (गुजरात) हीरा उद्योग की राजधानी है. यहां लाखों कारीगर कटिंग एंड पौलिशिंग में लगे हैं. मुंबई में हीरों का मुख्य व्यापारिक हब है. यहां भारत डायमंड बोर्स : दुनिया की सब से बड़ी डायमंड ट्रेडिंग बिल्ंिडग है.
भारतीय हीरा उद्योग का आकार लगभग 35:40 अरब अमेरिकी डौलर का है. यह भारत के कुल रत्न और आभूषण निर्यात का लगभग 70 फीसदी हिस्सा बनाता है. इस क्षेत्र में करीब 10 लाख से ज्यादा लोग रोजगार पाए हुए हैं.
भारत कच्चे हीरे मुख्य रूप से अफ्रीका, रूस, कनाडा जैसे देशों से आयात करता है. कटे और पौलिश किए हीरे अमेरिका, यूरोप, चीन, हौंगकौंग और यूएई को निर्यात होते हैं. अमेरिका भारत के हीरों का सब से बड़ा खरीदार है.
रूसयूक्रेन युद्ध के बाद रूस से हीरों की सप्लाई काफी प्रभावित हुई है. चीन और अन्य देशों की प्रतिस्पर्धा और हीरों की प्रामाणिकता (सिंथेटिक/लैब-ग्रोन डायमंड्स) आज हमारे सामने एक बड़ी चुनौती हैं.
लैब ग्रोन डायमंड्स में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है. सरकार इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए पीएलआई स्कीम और टैक्स रियायतें दे रही है. मगर क्रिसिल के विश्लेषण के अनुसार, नए अमेरिकी टैरिफ्स (25 फीसदी और बाद में 50 फीसदी) की वजह से भारत के पौलिश्ड डायमंड एक्सपोर्ट में 20:25 फीसदी की गिरावट की संभावना है, जिस से मार्जिन्स पर भी दबाव आएगा.
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हीरे और सोने की तुलना
सोना और हीरा दोनों ही बहुमूल्य रत्न/धातु माने जाते हैं, लेकिन उन की कीमत तय करने के मानदंड अलगअलग होते हैं. सोने की कीमत वजन (ग्राम/तोला/औंस) के हिसाब से तय होती है और यह अंतर्राष्ट्रीय बाजार (लंदन बुलियन मार्केट) और मांग-आपूर्ति पर निर्भर करता है. जैसे अगस्त 2025 में भारत में सोने की कीमत लगभग 10,090 रुपए प्रति ग्राम (24 कैरेट) है. वहीं हीरे की कीमत वजन से नहीं, बल्कि 4सी नियम: कट, क्लैरिटी, कलर, कैरेट वेट से तय होती है. 1 कैरेट (लगभग 0.2 ग्राम) हीरे की कीमत कुछ हजार रुपए से ले कर कई लाख रुपए या करोड़ों तक हो सकती है. उदाहरण के तौर पर 1 कैरेट का साधारण हीरे का मूल्य 70,000 रुपए से ले कर 1.5 लाख रुपए तक हो सकता है. 1 कैरेट का उच्च गुणवत्ता वाला हीरा 10 लाख रुपए से भी अधिक मूल्य का हो सकता है.
अगर सिर्फ वजन के हिसाब से तुलना करें तो 1 ग्राम सोना 7,000 रुपए का है तो वहीं 1 ग्राम हीरा (यानी लगभग 5 कैरेट) की कीमत 3 से 50 लाख रुपए तक हो सकती है. यह दाम उस की क्वालिटी को देख कर निकाला जाता है. मतलब, सामान्यतौर पर हीरा सोने से कई सौ गुना ज्यादा महंगा होता है.
सोना हमेशा लिक्विड एसेट (आसानी से खरीदा-बेचा जाने वाला) है, जबकि हीरे का पुनर्विक्रय मूल्य (रीसेल वैल्यू) उतना स्थिर नहीं होता. परंतु 1 कैरेट हीरा, भले ही वह निम्न गुणवत्ता वाला हो, सोने से लगभग 20:100 गुना महंगा होता है.
हीरा बनता कैसे है
हीरा वास्तव में शुद्ध कार्बन का क्रिस्टलीय रूप है. जैसे पैंसिल में इस्तेमाल होने वाला ग्रेफाइट भी कार्बन से बना होता है, वैसे ही हीरा भी कार्बन से ही बनता है. फर्क केवल उन के क्रिस्टल स्ट्रक्चर का है. हीरा बनने की प्रक्रिया बहुत ही अद्भुत और वैज्ञानिक है. यह धरती की गहराई में लाखोंकरोड़ों सालों में बनता है. हीरा धरती की सतह से लगभग 140:200 किलोमीटर गहराई में बनता है, जहां पर तापमान लगभग 1000:1200 डिग्री सैंटिग्रेड और दबाव 45:60 किलोबार (यानी लाखों गुना ज्यादा) होता है. इतनी ऊंची गरमी और दबाव के कारण कार्बन अणु एक खास तरीके से टेट्राहेड्रल संरचना में जम जाते हैं, जिस से हीरे का कठोर क्रिस्टल बनता है.
हीरे बनने के बाद वे धरती की गहराई में लाखों वर्षों तक रहे. लाखों साल पहले ज्वालामुखी विस्फोट हुए जिन्होंने इन हीरों को सतह तक पहुंचाया. यह ज्वालामुखी विशेष प्रकार की चट्टानों के साथ हीरों को भी ऊपर ले आया. आज हीरे अनेक खदानों में पाए जाते हैं. Diamond Value