Slow Travel : बड़े पर्यटन स्थलों की भीड़भाड़ में ट्रैवल को सही से महसूस नहीं किया जा सकता. इस के लिए स्लो ट्रैवल नया ट्रैंड बन गया है, जिस में जगह घूमने से अधिक महसूस की जाती है.

एक समय जब लोग उत्तराखंड में पहाड़ पर घूमने जाते थे तो मसूरी उन की सब से पसंदीदा जगह होती थी. वहां माल रोड, क्लौक टावर पर बहुत सारे होटल हैं, उन में ही वे रुकते थे. वहां से लाल टिब्बा और लैंडोर जैसी जगहें नजदीक थीं. अब माल रोड और क्लौक टावर जैसी जगहों पर भीड़भाड़ बढ़ गई है. पर्यटक उन जगहों पर रुकना नहीं चाहते. पर्यटकों के बदलते रुझान ने इस तरह की जगहों को विकसित करना शुरू कर दिया है जो शहर से दूर हैं.

इसी तरह की एक जगह झड़ीपानी है. वहां मसूरी कौटेज हैं. ये डुप्लैक्स बने कौटेज जैसे घर हैं जिन में अपना किचन, लौन है. 28 कौटेजों के समूह को कमल कौटेज के नाम से जाना जाता है. कभी यह नेपाल के राजा का महल होता था. इस के बाद अंगरेजों के समय में मिस ए फेयर नामक महिला ने इस को पहले लौन के रूप में विकसित किया. इस क्षेत्र को फेयर लौन के नाम से भी जाना जाता है.

अब यहीं पर खूबसूरत कौटेज बन गए हैं, जहां पर्यटक आराम से रहते हैं. इस के एक तरफ मसूरी है तो दूसरी तरफ देहरादून दिखता है. यहां क्लब हाउस भी है. वहां पर बिलियर्ड्स, स्नूकर, टेबल टैनिस, कैरम और कार्ड खेलने के साथ किचन की भी सुविधा है. जो लोग खाना बनाना नहीं चाहते वे खाना मंगवा कर खा सकते हैं. यहां रह कर मसूरी और आसपास घूमा जा सकता है.

यहां आने वाले ज्यादातर पर्यटक झड़ीपानी झरना देखने जाते हैं. वहां पैदल जाना पड़ता है. जो लोग पहाड़ पर ट्रेकिंग या हाईकिंग करने के शौकीन हैं उन को यह जगह खास पसंद आने वाली है. वहां रह कर उस जगह को महसूस किया जा सकता है. इस से दिल को सुकून मिलता है.

क्या है स्लो ट्रैवल

एक जगह पर ज्यादा समय बिताना, लोकल फूड, मार्केट और कल्चर को ठीक से समझने को स्लो ट्रैवल कहते हैं. आज के दौर में बहुत सारे ऐसे माध्यम हैं जिन के जरिए बिना कहीं जाए पर्यटन और इतिहास को जानासमझा जा सकता है. अगर आप लखनऊ घूमने के लिए आते हैं तो पुराने पर्यटक स्थल- इमामबाड़ा, रैजीडैंसी और घंटाघर आदि जैसे स्थानों को देखने में रुचि कम हो गई होगी. पर्यटक कोई ऐसी जगह जाना चाहता है जहां के बारे में लोगों को कम पता हो. यह जगह कोई खाने की चीज मिलने का केंद्र हो सकता है, कोई बाजार हो सकता है, कोई घूमने की जगह भी हो सकती है.

स्लो ट्रैवल लोकल जगह को गहराई से देखने और यात्रा के अनुभव को अधिक से अधिक तरह से शेयर करने का होता है. यह आज की भागदौड़भरी जिंदगी में से सुकून के पलों को तलाशने जैसा होता है. लोग बड़े होटल और महंगी जगह पर रुकने के बजाय भीड़भाड़ से अलग थोड़ा शांत जगह पर रहना पसंद करते हैं. पहले जब लोग पहाड़ पर रुकने जाते थे तो उन की चाहत होती थी कि मुख्य बाजार जैसे माल रोड के होटल में रुकें. अब माल रोड वाली जगहों पर भीड़भाड़ बढ़ गई है. ऐेसे में पर्यटक बड़े शहर से दूर शांत जगह पर रहना चाहते हैं. ऐसे में बड़े रिजौर्ट कई बार काफी महंगे होते हैं. अब छोटेछोटे घर, जो कौटेज टाइप के बने होते हैं, उपलब्ध रहते हैं. ये सस्ते और सकूनभरे होते हैं.

लोगों ने अपने घरों को तमाम जगहों पर होटल बना दिया है. सरकार के पर्यटन विभाग से इस को अनुमति मिली हुई है. एयर बीएनबी नाम के औनलाइन प्लेटफौर्म के जरिए इस तरह के घरों को किसी भी शहर में तलाश किया जा सकता है. यहां हफ्तों या महीनों तक रुका जा सकता है. इस से उस शहर को पूरी तरह से महसूस कर सकते हैं. इस से भीड़भाड़ वाले पर्यटन स्थलों से हट कर लोकल लोगों के साथ घुलनेमिलने, लोकल भोजन का आनंद लेने और वहां की संस्कृति के बारे में जानने का मौका मिलता है. इस से यात्रा को सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के बजाय उस स्थान को पूरी तरह से अनुभव करने का मौका मिलता है.

स्लो ट्रैवल का एक लाभ यह भी होता है कि जब आप किसी जगह पर ज्यादा समय बिताते हैं तो आप उस जगह को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं और वहां के लोगों से गहरे संबंध बना पाते हैं. भागदौड़ कम होने के कारण यात्रा का तनाव कम होता है. इस में लोकल बाजार के लोगों की आर्थिक मदद हो सकती है. वहां बिना किसी बड़ी योजना को बनाए घूमने का मौका मिलता है, जिस से सुकून महसूस होता है. इस तरह की यात्रा में बजट कम होने से घूमने का ज्यादा से ज्यादा आनंद लिया जा सकता है.

लाइफस्टाइल बनता जा रहा है स्लो ट्रैवल

स्लो ट्रैवल में एकसाथ 10 जगहों को नहीं घूमते, बल्कि कम जगहों को चुनते हैं. वहां ज्यादा समय बिताते हैं. इस में न तो दौड़भाग, न ही सोशल मीडिया के लिए फटाफट रील्स बनाते हैं. स्लो ट्रैवल में सफर को गहराई से महसूस करने पर जोर है. इसी वजह से ही कि यह सिर्फ एक ट्रैंड नहीं बल्कि लाइफस्टाइल बनता जा रहा है. इस में जिस जगह घूमने जाते हैं वहां की सिंपल लाइफ को महसूस करने लगते हैं फिर चाहे किसी गांव के परिवार संग खाना बनाना हो या समुद्र के किनारे किसी लाइब्रेरी में किताब पढ़ना. इस में जीवन को महसूस करने का भरपूर समय मिलता है.

अब लोगों की सोच बदल गई है. छुट्टियों में घूमने का मतलब सुकून पाना हो गया है. पार्टी क्लब में जो महसूस नहीं किया जा सकता वह यहां महसूस होता है. स्लो ट्रैवल मैंटली रिलैक्स रखता है. होटल के बजाय लोकल होमस्टे से लोकल लोगों की इनकम बढ़ती है. लंबे समय तक सफर से लोकल चीजों के प्रति ज्यादा समझ बनती है.

वर्क फ्रौम होम करने वाले प्रोफैशनल्स इस को बहुत पसंद करते हैं. फैमिली या कपल्स, जो भीड़ से दूर सुकून चाहते हैं, वे भी इस को पंसद करते हैं. ऐसे लोग जो सिर्फ टूरिज्म को महसूस करना चाहते हैं.

स्लो ट्रैवल को पसंद करने की खास वजह यह होती है कि कोई बड़ा खर्च या तैयारी करने की जरूरत नहीं होती, सिर्फ थोड़ी सोच बदलनी होती है. एक ही डैस्टिनेशन चुनें और वहां 7 से 10 दिन स्टे करें. रहने के लिए होटल की जगह होमस्टे चुनें. पैदल घूमें या साइकिल की सवारी करें. लोकल लोगों से बात करें. नई चीजें सीखें, खाना बनाना, लोकल भाषा, कोई कला आदि तो बेहतर अनुभव करेंगे. स्लो ट्रैवल घूमने से अधिक महसूस करने की जगह है. इस को सही से तभी समझ पाएंगे, जब इसे महसूस करेंगे.

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