Kajol And Rani Mukherjee : फिल्मिस्तान स्टूडियो अपने भीतर कई कहानियां समेटे हुए है. ये कहानियां आज भी जिंदा हैं मगर जो फिल्मिस्तान पहले था, अब वह नहीं रहा.

1930 में ‘बौम्बे टौकीज’ के साथ अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले काजोल और रानी मुखर्जी के दादा शशधर मुखर्जी ने 1943 में अपने बहनोई व अभिनेता अशोक कुमार, संगीतकार मदन मोहन के पिता राय बहादुर चुन्नीलाल और ज्ञान मुखर्जी के साथ मिल कर बंबई (अब मुंबई) में अपने स्टूडियो ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ की शुरुआत की थी. कहा जाता है कि 1943 में उस्मान अली खान ‘हैदराबाद के निजाम’ द्वारा दिया गया फंड भी फिल्मिस्तान स्टूडियो की स्थापना में लगा था.

इस स्टूडियो में फिल्मों की शूटिंग के लिए 14 सैट थे- गांव, जेल, मंदिर, बगीचा वगैरह सबकुछ था. इस के अलावा यहां गानों की रिकौर्डिंग, डबिंग, एडिटिंग आदि भी हुआ करती थी. लेकिन 3 जुलाई, 2025 को इस स्टूडियों को एक बिल्डर ‘आर्केड डैवलपर्स’ ने खरीद लिया. अब आर्केड बिल्डर यहां 2026 में 3,000 करोड़ रुपए का आलीशान गगनचुंबी इमारतों वाला प्रोजैक्ट शुरू करने वाला है. इस परियोजना में कथित तौर पर 50 मंजिलों वाले 2 ऊंचे टावरों में 3, 4 और 5 बीएचके आवासों के साथसाथ विशेष पेंटहाउस शामिल होंगे.

आर्केड डैवलपर्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अमित जैन ने इस खबर की पुष्टि अपने लिंक्डइन प्रोफाइल पर करते हुए लिखा, ‘यह सा?ा करते हुए रोमांचित हूं कि आर्केड डैवलपर्स ने एस वी रोड, गोरेगांव पश्चिम में प्रतिष्ठित 4 एकड़ के फिल्मिस्तान प्राइवेट लिमिटेड भूमि पार्सल को सफलतापूर्वक 183 करोड़ रुपए में हासिल कर लिया है. यह रणनीतिक अधिग्रहण मुंबई के सब से प्रसिद्ध पतों में से एक, जिसे फिल्मिस्तान स्टूडियो के नाम से जाना जाता है पर एक अल्ट्रालक्जरी आवासीय परियोजना का मार्ग प्रशस्त करता है.’

इसी के साथ हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग को आकार देने में मदद करने वाले स्टूडियो के एक युग का अंत हो गया. कभी अभिनेताओं, तकनीशियनों और प्रोडक्शन हाउस के लिए एक संपन्न आधार, गोरेगांव पश्चिम की यह संपत्ति अब अल्ट्रालक्जरी आवासीय टावरों में पुनर्विकास किए जाने के लिए तैयार है.

फिल्मिस्तान स्टूडियो मुंबई के गोरेगांव रेलवे स्टेशन से सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर स्वामी विवेकानंद रोड पर मौजूद है. इस तरह अब गोरेगांव का यह अति मशहूर और 82 साल पुराना स्टूडियो हमेशा के लिए जमीन में मिलने जा रहा है.

यों तो फिल्मिस्तान स्टूडियो से काजोल व रानी मुखर्जी के परिवार का रिश्ता 1950 में ही खत्म हो गया था जब 1950 में शशधर मुखर्जी ने फिल्मिस्तान स्टूडियो को तोताराम जालान के हाथों बेच कर मुंबई के अंधेरी इलाके में अपना निजी स्टूडियो ‘फिल्मालय’ खड़ा कर लिया था.

शशधर मुखर्जी ने फिल्मालय स्टूडियो में ‘लव इन शिमला’ (1960) और ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ (1962) जैसी फिल्मों का निर्माण जारी रखा. अफसोस 1990 में शशधर मुखर्जी का निधन हो गया और 20 साल बाद उन के बेटों व पोतों ने ‘फिल्मालय स्टूडियो’ को बेच डाला था. अब वहां पर पीछे की तरफ एक सैट बना हुआ है, जहां कभीकभी इक्कादुक्का शूटिंग हुआ करती है. मतलब यह कि ‘फिल्मालय’ का सांकेतिक नाम अभी जिंदा है.

फिल्मिस्तान ने 1940 और 1950 के दशक में कई सफल हिट फिल्में बनाईं, जिन में ‘शहीद’ (1948), ‘शबनम’ (1949) और ‘सरगम’ (1950) जैसी हिट फिल्में और ‘अनारकली’ (1953) व ‘नागिन’ (1954) जैसी सफल फिल्में शामिल हैं. अन्य उल्लेखनीय फिल्में ‘जागृति’ (1954) थी, जिस ने 1956 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार जीता और ‘मुनीमजी’ (1955), ‘तुम सा नहीं देखा’ (1957) और ‘पेइंग गेस्ट’ (1957).

1964 में बनी और नितिन बोस द्वारा निर्देशित ‘दूज का चांद’ फिल्मिस्तान स्टूडियो से निकली आखिरी फिल्मों में से एक थी. उस के बाद फिल्मों का निर्माण बंद हो कर केवल एक स्टूडियो के रूप में इस जगह पर काम होता रहा. ‘रा.वन’ (2011) और ‘बौडीगार्ड’ (2011) सहित तमाम फिल्मों के अलावा यशराज फिल्म्स के टैलीविजन धारावाहिक ‘खोटे सिक्के’ और डांस रिऐलिटी शो ‘झलक दिखला जा’ की शूटिंग भी यहीं हुईं.

भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम काल के साक्षी रहे फिल्मिस्तान स्टूडियो के बिकने के बाद औल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक खुला पत्र लिख कर उन से इस विध्वंस को रोकने और सिनेमाई विरासत के प्रतीक कहे जाने वाले स्टूडियो की रक्षा करने का आग्रह किया है.

एसोसिएशन ने स्टूडियो को सार्वजनिक सांस्कृतिक संपत्ति के रूप में संरक्षित करने के लिए सरकारी प्रस्ताव लाने की भी मांग की है. वैसे, बौलीवुड का अधिकांश तबका औल इंडियन सिने वर्कर्स एसोसिएशन के इस कदम को महज नौटंकी मान रहा है.

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