Family Story : आशी का रवैया रोहन के प्रति दिनोंदिन चिड़चिड़ा होता जा रहा था. फिर एक दिन रोहन ने आशी को बड़े भाई होने की ऐसी परिभाषा बताई कि उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.
‘‘मौम, टूडे आई एम रियली वैरी हर्ट,’’ रोहन ने मां दिव्या से कहा.
‘‘क्यों, ऐसा क्या हुआ बेटा?’’
‘‘कल जो मैं ने होमवर्क किया था, किसी ने मेरी नोटबुक से सारा काटा हुआ था.’’
‘‘क्या कहा तुम ने, किसी ने काटा हुआ था?’’
‘‘हां मां.’’
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’
‘‘हुआ न,’’ रोहन ने मां को कौपी दिखाते हुए कहा.
‘‘कमाल है, यह किस ने किया?’’
‘‘यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जिस ने भी किया है मैं उसे छोड़ूंगा नहीं.’’
‘‘बेटा, इतना गुस्सा ठीक नहीं. पहले पता तो करो, आखिर है कौन?’’
बात वहीं खत्म नहीं हुई, अगले दिन फिर ऐसा हुआ.
रोहन ने स्कूल से आने के बाद मां को कौपी दिखाते हुए फिर शिकायत की.
‘‘अरे, आज फिर?’’
‘‘रोहन, तुम ने क्लास में किसी से झगड़ा किया क्या?’’
‘‘नहीं मां. मैं किसी से बिना वजह क्यों झगड़ूंगा.’’
बात फिर आईगई हो गई. 3-4 दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. रोहन परेशान रहा. रात के समय, डिनर के बाद, रोहन ने होमवर्क कर के बैग पैक कर दिया था और दूसरे कमरे में जा कर अपने दोस्त से मोबाइल पर बात करने लगा.
वापस आने पर देखता क्या है, उस की छोटी बहन आशी उस के बैग से नोट बुक निकाल कर, एक पैन से उस का किया हुआ होमवर्क काटे जा रही थी और बुदबुदा रही थी कि यह क्या किया तुम ने, तुम में इतनी भी समझ नहीं है. चलो, दोबारा करो. बारबार ऐसा ही बोले जा रही थी.
यह देख रोहन शौक्ड हुआ और आशी के पास जा कर कहा, ‘‘ओह, तो यह तुम हो, हर रोज यह तुम कर रही थीं? मैं कितना परेशान था, आशी. ऐसे क्यों किया तुम ने, मैं जानना चाहता हूं. आखिर क्यों, मुझ पता तो चले?’’
‘‘यह मैं ने आप से ही से तो सीखा है, भाई. आप भी तो ऐसे ही करते हो.’’
‘‘क्या कहा तुम ने, मैं और ऐसे ही करता हूं?’’
‘‘हां भाई, आप ऐसे ही करते हो.’’
‘‘यह क्या बोले जा रही हो, आशी. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा?’’
‘‘बताती हूं, मैं जो होमवर्क करती हूं उसे देख कर आप ही तो कहते हो न, ‘कोई तो काम ढंग से कर लिया कर, कुछ भी ढंग से नहीं करती. चल, दोबारा कर,’ ऐसा बोल कर मेरी नोटबुक से सब काटपीट कर चले जाते हो और मैं स्तब्ध देखती रह जाती हूं. ऐसे ही तो करते हो आप. आप का यह सब करना मुझ को बिलकुल अच्छा नहीं लगता, कम से कम मेरी गलतियों को बताया तो होता. अब समझ आया, भाई आप को कि कैसा लगता है.’’
इतना कह आशी मुंह बना कर वहां से चली गई. रोहन खड़ा देखता रह गया, सोचने लगा, आशी मुझ से 3 साल छोटी है, उस के मन में मेरे लिए इतना गुस्सा भरा हुआ है. मुझे गलत लगा, तभी तो काटा. फिर कुछ सोचते हुए, हां, ठीक ही तो है, मैं भी आवेश में आ कर उस का सबकुछ किया-लिखा, काटपीट देता था. मुझे उसे उस की गलती बतानी चाहिए थी, फिर काटना चाहिए था. मैं ने कभी उसे समझने की कोशिश ही नहीं की. शायद, मेरा तरीका ठीक नहीं था. वह वही दोहरा रही थी जो मैं कर रहा था.
आशी के मन में मेरे प्रति जलन का कारण शायद यही है. वह जिद्दी और मनमरजी करने लगी है. मैं जब मां के साथ बैठना चाहता हूं तो वह मुझे मां के पास से भी हटा कर किसी तरह खुद मां के साथ बैठ जाती है और मुझे धक्का दे कर दूर कर देती है.
यही सोचतासोचता रोहन मां के पास जा कर बोला, ‘‘मां, मेरी नोटबुक से होमवर्क काटने वाला और कोई नहीं, अपनी आशी है.’’
‘‘अरे, आशी ऐसा क्यों करेगी?’’
‘‘किया है न मां.’’
रोहन ने वे सारी बातें अपनी मां को बताईं और कहा, ‘‘पता नहीं, मां. शायद इन सब बातों की वजह से आशी के मन में मेरे प्रति इतनी नैगेटिविटी है. वह मुझ से सीधे मुंह बात नहीं करती.
‘‘यह मेरी गलती है कि मुझे उस की नोटबुक से काटने से पहले उस को बताना चाहिए था कि तुम यहां गलत हो.’’
‘‘बेटे, अभी वह छोटी है, धीरेधीरे सब समझ जाएगी.’’
बात वहीं खत्म हो गई थी.
रोहन फिर आशी के पास गया, देखा, आशी बैग खोले बैठी थी. वह आशी के नजदीक जा कर बोला, ‘‘क्या कर रही हो, आशी?’’
रोहन की सुन, आशी ने तुनक कर कहा, ‘‘तुम्हें दिख नहीं रहा कि मैं पढ़ रही हूं.’’
‘‘दिख रहा है लेकिन क्या पढ़ रही हो?’’
‘‘तुम से मतलब? जाओ यहां से.’’
‘‘चला जाऊंगा, चला जाऊंगा, नाराज क्यों होती हो, तेरा भाई हूं मैं?’’
‘‘भाई, भाई की परिभाषा जानते हो?’’
‘‘जो भाई अपनी बहन को सब से ज्यादा प्यार करे वह भाई हूं मैं.’’
‘‘आप तो बस रहने ही दो.’’
इतना कह आशी अपना बैग उठा कर वहां से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया.
रोहन स्तब्ध देखता रह गया. वह उठा और दूसरे रूम का दरवाजा धकेल कर आशी के बराबर में जा बैठा और आशी को प्यार से समझने की कोशिश करने लगा. लेकिन आशी के मन में रोहन के प्रति बहुत क्रोध था. उस ने क्रोध में आ कर अपना बैग उठा कर रोहन पर दे मारा.
रोहन सकपका गया. उसे आशी से ऐसी उम्मीद न थी. उसे चोट लगी. वह माथा पकड़ कर वहां से उठ खड़ा हुआ. बैग का बकसुआ उस के माथे पर जा लगा और खून बहने लगा. यह देख आशी डर गई और डर की वजह से जोरजोर से रोने लगी. रोने की आवाज सुन मां दौड़ी आई, यह देख वह स्तब्ध रह गई. रोहन के माथे पर खून देख पूछ बैठी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’
इतना कह मां ने मेड को फर्स्टएड बौक्स लाने को बोला.
‘‘तुम ने किया है न यह सब, आशी?’’ मां ने जानना चाहा. डर की वजह से आशी जवाब न दे कर मां से लिपट कर जोरोजोर से रोने लगी.
मां ने आशी को अपने से अलग करते हुए कहा, ‘‘कितना गलत किया है तुम ने, आशी? रोहन बड़ा भाई है तुम्हारा. भाई के साथ ऐसा करते हैं? अरे, भाईबहन तो एकदूसरे की परछाईं होते हैं.’’
रोहन ने मां से कहा, ‘‘मां, आशी से कुछ मत कहो. मैं इसे समझाने ही आया था लेकिन इस ने मेरी कुछ सुनी नहीं. लेकिन कोई बात नहीं, अब सब ठीक हो जाएगा. शायद मुझे चोट पहुंचा कर आशी का गुस्सा शांत हो गया होगा, आशी के मन का तूफान थम गया होगा.’’
इतना कह रोहन ने आशी से कहा, ‘‘तुम भाई की परिभाषा जानना चाह रही थीं न, भाई तो बहन की परछाईं होता है, भाई वह होता है जो बहन के साथ खुशियों और दुख को सांझ करता है. भाई बहन के खुश होने पर खुश और दुखी होने पर दुखी होता है. तुम मुझे जान से भी मार दोगी तो मेरे मुख से उफ तक न निकलेगी.’’
इस पर आशी ने कहा, ‘‘भाई, मेरा आप को चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था. बस, हो गया.
‘‘अब से मैं आप की सारी बातें मानूंगी. आप तो मेरे भले के लिए ही कहते हो कि ठीक से पढ़ाई कर. आखिर एक बड़ा भाई ही अपनी छोटी बहन के भले के बारे में सोच सकता है.’’
इतना कह आशी ने मां के हाथ से फर्स्टएड बौक्स लिया और भाई की ड्रैसिंग करने लगी.