Romantic Story in Hindi : एक पार्टी में देखा था उसे। सफेद चिकन का कुर्ता, बड़े इयररिंग्स, लाल बिंदी,नीली समुद्र सी गहराई लिए बड़ी– बड़ी आंखे,घुंघरू वाला ब्रेसलेट पहने, अपने लंबे खुले बालों की लट को संभालती हुई ,भीड़ में वह अलग सी रोशनी बिखेर रही थी।

उसकी उन्मुक्त हंसी ने ही रवि का ध्यान खींचा ।दोनों गालों पर पड़ते डिंपल उसकी मुस्कुराहट को दुगना खूबसूरत कर रहे थे।

उसकी छवि ने मानो रवि की आंखों को बांध रखा था। उसके सिवा उसे कोई नजर ही नहीं आ रहा था।

“अरे रवि !कोल्ड ड्रिंक लिया कि नहीं?” रवि ने यंत्र चलित सा नहीं में सर हिलाया।

“अरे तो चल ना यार! एक-एक लेते हैं” और सूरज उसे खींचता सा ड्रिंक काउंटर की तरफ ले गया।

रवि ने ड्रिंक लेकर पलट कर देखा तो वह नहीं थी। रवि बेचैनी से चारों तरफ ढूंढ रहा था,अभी तो उसे जी भरकर देखा भी नहीं पता नहीं कहां ओझल हो गई।

“जब बेटी उठ खड़ी होती है, तभी विजय बड़ी होती है” रवि ने अगले दिन, कॉलेज के थिएटर के अंदर जैसे ही प्रवेश किया, उसके कानों में एक बुलंद आवाज गूंजी।

रवि की नजर सीधा स्टेज पर खड़ी उस लड़की पर पड़ी,स्पॉटलाइट की रोशनी में जगमगाती,अपने संवादों का शायद अभ्यास कर रही थी। लंबे खुले बाल, सलवार कुर्ते में पसीने से तरबतर अपने पात्र में खोई हुई।

रवि उसे अवाक सा देखता रह गया।
“क्या ये वही है?नहीं–नहीं रवि! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.तुम्हे हर तरफ वही दिखाई दे रही है।”रवि खुद से ही बाते कर रहा था

तभी पीछे से उसकी सारी नाटक मंडली शोर मचाते हुए पहुंच गई। वह लड़की इन सबको देख सकुचाकर भाग गई।

रवि और उसके साथी कॉलेज में हो रही थिएटर प्रतियोगिता में शामिल होने आए थे।

प्रेक्टिस खत्म कर जब सब थिएटर से बाहर निकले,रवि को एक झुंड में से फिर वही आवाज सुनाई दी। रवि उस चेहरे को देखना चाह रहा था पर उसके साथी उसे खींचते हुए कैंटीन ले गए।

अगले दिन प्रतियोगिता थी।रवि उस लड़की को अपने विचारों से हटा नहीं पा रहा था। एक-एक कर सारे कॉलेज अपनी-अपनी प्रस्तुति दे रहे थे। तभी मंच पर रानी लक्ष्मीबाई नाटक का मंचन हुआ और वही लड़की रानी लक्ष्मी बाई के अवतार में थी।

उस लड़की ने अपने किरदार में जान डाल दी थी मानो साक्षात् रानी लक्ष्मीबाई सामने हो। नाटक के बाद अन्ततः पात्र परिचय में रवि को उस लड़की का नाम और शहर का पता लग ही गया।

“अपराजिता” यथा नाम तथा गुण.

आत्मनिर्भर और आत्म सम्मान से भरी हुई। अपराजिता इसी शहर के नर्सिंग कॉलेज की है जानकर रवि अनायास ही खुशी से भर उठा।
प्रतियोगिता समाप्त हुई. सब अपने घर वापस चले गए पर रवि अपराजिता की स्मृतियां भी वहां से साथ ले आया।

अगले दिन रवि कॉलेज के लिए निकला तो रास्ते में एक्सीडेंट के कारण ट्रैफिक जाम लगा था। उसने आगे बढ़कर मदद करनी चाही तो वहां अपराजिता पहले ही घायल को फर्स्ट एड दे रही थी।
रवि को देखकर अपराजिता ने घायल को अस्पताल ले चलने का निवेदन किया। दोनों ने घायल को अस्पताल पहुंचाया और वेटिंग लाउंज में इंतजार करने लगे।

“ हैलो…मैं अपराजिता. मैं इसी मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग की स्टूडेंट हूं। आपका मदद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ”।

रवि बस उसे देखे ही जा रहा था । “आपका शुभ नाम?” अपराजित ने बड़ी –बड़ी पलके झपकाते हुए पूछा. तब उसने हड़बड़ा कर उत्तर दिया “रवि,मैं इंजीनियरिंग कॉलेज का स्टूडेंट हूं।” तभी नर्स भागती हुई आई ।“
पेशेंट का काफी ब्लड लॉस हो गया है .क्या आप ब्लड डोनेट करना चाहेंगे?”

दोनों ने एक सुर में “हां” कहा और नर्स के साथ चल दिए ।फिर तो बस जैसे बातों का सिलसिला चल निकला, बातों – बातों में रवि ने अपराजिता से नाटक प्रतियोगिता का जिक्र किया.“ क्या सच में! आप उस प्रतियोगिता में शामिल थे? अपराजिता ने आश्चर्य से कहा।
“यह कैसा संयोग है?”
“आपने तो रानी लक्ष्मी बाई को मंच पर जीवंत कर दिया था!” रवि ने अपराजिता से कहा
“धन्यवाद” अपराजिता ने आंखे झुकाते हुए कहा अस्पताल से निकलते वक्त दोनों ने फिर मिलने का वादा कर फोन नंबर एक्सचेंज किए और अपनी अपनी राह पर चल दिए।

आज तो रवि जैसे सातवें आसमान पर था। उसे बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी कि अपराजिता से यूं मुलाकात हो जाएगी। घर आकर भी उसे नींद नहीं आ रही थी। वह अपराजिता के ख्यालों में ही खोया हुआ था।

फिर कुछ समय अपराजिता से कोई संपर्क ही नहीं हुआ। दोनों अपने एग्जाम्स की तैयारी में जुट गए।
अपराजिता का ख्याल रवि के मन में हमेशा ही रहता। एक दिन रवि एक स्टूडियो में, नाटक के लिए ऑडिशन देने पहुंचा। सारे हॉल में कोई इधर-उधर चहल कदमी कर रहा है,तो कोई अपनी स्क्रिप्ट याद कर रहा है, कोई अपने बाल बना रहा है, तो कोई डायलॉग्स की प्रैक्टिस कर रहा है।
तभी ऑडिशन रूम से तड़ाक की आवाज आई। थप्पड़ की गूंज दूसरे कमरे तक आ गई थी। दरवाजा जोर से खुला और रवि ने देखा ,अपराजिता वहां से बेहद गुस्से में बड़बड़ाती हुई हॉल से बाहर निकली। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। रवि उसे देखकर उसके पीछे भागता है।“अपराजिता.. अपराजिता रुको! क्या हुआ?”

अपराजिता गुस्से में तमतमाई हुई अपनी ही रौ में बोले चली जा रही थी “वह डायरेक्टर खुद को समझता क्या है? एक्टिंग करने आए हैं, तो क्या वह हमसे बदतमीजी कर सकता है ?उसने एक कोशिश की और मैंने उसे वही सबक सिखा दिया. अब वह ऐसी हरकत किसी और के साथ कभी नहीं करेगा.”

रवि ने उसे शांत किया और कहा “तुमने जो किया बिल्कुल ठीक किया. अब तुम घर जाकर आराम करो”.

“सॉरी रवि, मैंने अपनी परेशानी में तुम्हें भी इंवॉल्व कर लिया.वैसे क्या तुम भी यहां ऑडिशन देने आए थे?”
“हां, पर अब ऐसा कोई इरादा नहीं है.”रवि ने कहा।
“ओके, बाय…टेक केयर.” कहकर दोनों ने विदा ली .

रातभर रवि अपराजिता के बारे में ही सोचता रहा।वह ठीक तो होगी ना। सुबह सबसे पहले उससे मिलकर अपने दिल की बात रख दूंगा।

सुबह रवि ने अपराजिता को फोन कर हाल-चाल पूछा और शाम को पास के कैफे में मिलने की रिक्वेस्ट की। अपराजिता ने भी हामी भर दी। पूरे रास्ते रवि यही सोचता जा रहा था कि अपराजिता से कैसे कहे कि उसके व्यवहार और समझदारी से प्रभावित हो वह उसे पसंद करने लगा है और जीवन साथ गुजारना चाहता है।

रवि कैफे में पहुंचकर अपराजिता की राह देखता है। तभी उसे सामने से बलखाती , इठलाती नदी सा आता देखकर वह मंत्रमुग्ध हो जाता है। उसके परफ्यूम की मंद– मंद सुगंध कैफे में एक ताजा बयार का झोंका ले आई.
“हेलो रवि”
“हैलो ,तुम कैसी हो?”
“हां, अब मैं ठीक हूं. बताओ तुमने मुझे यहां क्यों बुलाया?”

“अपराजिता,मुझे पता नहीं तुम कैसे रिएक्ट करोगी पर मैं तुमसे अपने दिल की बात करना चाहता हूं. मैं तुम्हें पहले दिन से पसंद करता हूं और साथ जीवन गुजारना चाहता हूं.” यह कह कर रवि याचक की तरह अपराजिता की तरफ देखता है ।

अपराजिता को इस प्रपोजल की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। कुछ क्षण एक मौन सा पसार गया दोनों के बीच।रवि को खुद पर ही ग्लानि हो रही थी कि उसने इतनी जल्दी अपनी भावनाएं क्यों व्यक्त कर दी।एक –एक गुजरता सेकंड पहाड़ सा लग रहा था।

“रवि, मैं तुम्हारी भावनाओं की कद्र करती हूं ।हम अभी –अभी तो मिले हैं।मै तुम्हे अभी ठीक से जान भी नहीं पाई।मैंने अपना जीवन पहले ही अपने नर्सिंग प्रोफेशन को दे दिया है ।

मेरी मां को कैंसर था और मैं बचपन से उनके साथ हॉस्पिटल जाती थी। वहां पर नर्स जैसे मेरी मां की सेवा करती थी वह मुझे बहुत प्रेरणादायक लगा। तभी मैंने यह डिसाइड कर लिया था कि मैं अपना जीवन बीमारों की सेवा में लगाऊंगी।

थिएटर मेरा शौक है, पर नर्सिंग ही मेरा जीवन है। मेरे हिसाब से तुम्हें मेरा ख्याल छोड़कर जीवन का एक उद्देश्य बनाना चाहिए।”अपराजिता ने बहुत ही शांत स्वर में कहा

“तुम्हारे हिसाब से यह ठीक है, पर मैं तुम्हारे पथ की बाधा नहीं,तुम्हारा साथी बनना चाहता हूं। तुम्हे मजबूर नहीं करना चाहता, मजबूती से तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं। तुम्हे जितना चाहिए उतना वक्त लो। अच्छा चलता हूं।” रुंधे गले से यह कहकर रवि बाहर निकल आया।

मौसम बदले,साल बदले रवि का कभी न खत्म होने वाला इंतजार वही उसी कैफे में ठहरा हुआ था। रवि ने खुद को थिएटर में डुबा लिया था।हर किरदार को निभाते हुए उसे अपराजिता का इंतजार रहता।कभी अपने सहकलाकारो में,कभी दर्शकों में,जमीन–आसमान,भीड़ –एकांत उसे बस एक झलक की आस थी।किसी प्यासे चकोर सा चांद की याद में तड़प रहा था। फैंस की भीड़ में,पार्टीज, प्रमोशन में भी उसके मन में एक खालीपन था।

आज रवि अपने ६०वें जन्मदिन पर एक नाटक में एकाकी बुजुर्ग का किरदार निभा रहा था।दर्शक उसके साथ हँस,रो रहे थे।

तभी अचानक रवि स्टेज पर ही धड़ाम से गिर जाता है।कुछ सेकंड्स में नहीं उठने पर दर्शक उसकी एक्टिंग को प्रोत्साहित करने जोर से तालियां बजाते हैं।फिर भी कोई हरकत न होने पर स्टेज में भगदड़ मच जाती है।कोई रवि को उठाने की कोशिश करता है,कोई डॉक्टर और एम्बुलेंस बुलाता है।

रवि की आंख हॉस्पिटल में खुलती है।इतनी कमजोरी महसूस होती है मानो शरीर में जान ही नहीं।

“कैसे हो रवि?”

उफ्फ वही मधुर आवाज।इतने सालों में उसके कान तरस गए इस आवाज के लिए।

धीरे से आंखे खोलते हुए उसे वही सफेद धुंधली झलक दिखाई पड़ती है जो सालों से उसके हृदय कर छपी है।

“अपराजिता क्या ये तुम हो?”कमजोर सी आवाज में रवि ने कहा
“मै कोई सपना तो नहीं देख रहा!”
“मै कहां हूं ?मुझे क्या हुआ?”
“रवि अभी तुम आराम करो ।कल बात करते हैं ”अपराजिता ने उसके हाथों पर हौले से अपना हाथ रखते हुए कहा
“नहीं अपराजिता!मत जाओ”कहते हुए रवि फिर नींद के आगोश में चल गया।

अगली सुबह से ही रवि अपराजिता का इंतजार कर रहा था।उसे देखते ही रवि में जान आ गई।
“अब कैसी तबियत है रवि?कितने कमजोर हो गए हो।अपना बिल्कुल ध्यान नहीं रखते न!”
“किसके लिए रखता!”रवि की आवाज में नाराजगी का पुट था।
“तुम कहां चली गई थी,न फोन, न पता।कहां–कहां नहीं ढूंढा तुम्हे मैने”
“तुम्हारी निश्छल स्वीकारोक्ति ने मेरे मन में भी तुम्हारे लिए आकर्षण जगा दिया था।तुम्हारा कैफे से उठ के जाना ऐसा लग रहा था जैसे मेरा कोई हिस्सा मुझसे जुदा हो रहा हो”
“मै किसी भी रिश्ते में बंध कर अपने उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकती थी।यह दोनों के साथ अन्याय होता।”अपराजिता ने नीची नजरें किए एक उसांस छोड़ा
“तुम मुझ पर भरोसा तो करती!”रवि ने उदास होते हुए कहा
“पर ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें एक क्षण के लिए भुला पाई।तुम्हारे सारे नाटक,पुरस्कार समारोहों की एक–एक पेपर कटिंग मैने संजो कर रखी है।”अपराजिता ने कहा
रवि ने उसकी तरफ प्रशंसा की दृष्टि से देखा।
“रवि,क्या मै अब तुम्हारी सेवा का अधिकार मांग सकती हूं?”अपराजिता के शब्दों में याचना थी।
रवि ने धीमे से उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए हां में सर हिलाया। दोनों की आंखों से निर्मल अश्रुधारा के साथ सालों का इंतजार भी बह निकला। Romantic Story in Hindi 

लेखक : अश्विनी देशपांडे

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