Midlife crisis : मेरी उम्र 45 साल है. हर दिन एक जैसे काम करतेकरते मेरी जिंदगी बोरिंग लगने लगी है. सुबह उठो, काम पर जाओ, शाम को लौटो और फिर वही खाना, सोना. फिर अगले दिन वही. सो, धीरेधीरे उत्साह खत्म होने लगा है जो कभी अंदर जिंदा था. क्या यह मिडलाइफ क्राइसिस है?
जवाब : इस सवाल का सामना आज की भागदौड़ वाली दुनिया में बहुत से लोग कर रहे हैं. सिर्फ 40 या 50 वर्ष की उम्र वाले नहीं, बल्कि 25-30 वर्ष के युवा भी इस ऊब और खालीपन को महसूस करते हैं. इस अनुभव को सीधे ‘मिडलाइफ क्राइसिस’ कह देना शायद जरूरी न हो लेकिन यह एक बहुत अहम संकेत है कि आप की जिंदगी में कोई नया रंग जुड़ने की जरूरत है.
अकसर जिम्मेदारियां निभातेनिभाते हम खुद से, अपनी पसंदनापसंद से, अपने सपनों से दूर हो जाते हैं. हम ‘जीना’ नहीं, बस ‘काम करना’ सीख लेते हैं. ऐसे में सवाल उठता है- आखिरी बार आप ने कब सिर्फ अपने लिए कुछ किया था, कब कोई किताब सिर्फ शौक के लिए पढ़ी थी, कब बेवजह कहीं घूमने निकल पड़े थे आदि?
आप को रूटीन से बाहर आ कर अपनी अपनी खुशियां फिर से खोजनी चाहिए. इस का मतलब यह नहीं कि आप सबकुछ छोड़ कर पहाड़ों पर भाग जाएं बल्कि इस का मतलब यह है कि आप हर दिन के ढर्रे में कुछ नया, कुछ अपना जोड़ें.
छोटेछोटे बदलाव बड़े असर डालते हैं. रोज 15-30 मिनट सिर्फ अपने लिए निकालिए चाहे संगीत सुनने, पेंटिंग करने, बागबानी करने या बस सुकून से टहलने के लिए. अगर हो सके तो दोतीन महीने में एक बार कहीं घूम आइए, किसी नए शहर या किसी पुराने दोस्त से मिलने. अकेले भी जाएं तो बेहतर, क्योंकि तब आप खुद से मिल पाएंगे.
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