Teenage Crime : टीनएज क्राइम नया तो नहीं है पर अब इस में इंटरनैट और सोशल मीडिया का एमलगेशन हो गया है और टीनएज छोटीछोटी बातों पर बेहद स्ट्रैस महसूस करने लगे हैं. ब्रिटिश मिनी सीरीज ‘एडोलोसैंस’ ने फिल्मक्राफ्ट, यंग ऐक्टर और अपने सब्जैक्ट के जरिए एक तरह का तहलका मचा दिया है. एक घंटे का एक एपिसोड बिना कैमरे को रोके फिल्माया गया है और कैमरा एक कैरेक्टर से दूसरे पर लैंड करता है लेकिन पता नहीं चलता जो टीनएजर्स की उल झी जिंदगी की मेज पर पेज खोलता चला जाता है.

आज के टीन्स जो भाषा यूज कर रहे हैं वह बड़ों के लिए मोहनजोदाड़ो वाली स्क्रिप्ट सी है. उन की लैंग्वेज ही जब सम झ नहीं आए तो उन की फीलिंग्स, उन के फीयर, उन के फेल्योर के रीजन, उन के छोटेछोटे अचीवमैंट, उन की पार्टियां, उन की ड्रग और सैक्स की हैबिट्स कैसे समझ आएंगी. आज बिस्तर में क्विल्ट ओढ़ कर टीन्स जो मैसेज पासवर्ड से चल रहे मोबाइल के जरिए एकदूसरे को पास कर रहे हैं वे एडल्ट्स को पता नहीं होते. अगर उन्होंने उन्हें डांटडपट कर मोबाइल खुलवा लिया तो भी मैसेजों की भाषा सम झ नहीं आएगी.

इस सीरीज में एक 13 साल का लड़का अपनी स्कूलमेट को किचन नाइफ से 7 गहरे जख्म कर के मार डालता है क्योंकि उसे लगता है कि वह उस से हेट करती है. आज के टीन लड़कों को लगता है कि 80 फीसदी लड़कियां केवल 20 फीसदी लड़कों को पसंद करती हैं क्योंकि बाकी 80 फीसदी लड़के अगली, इंपोटैंट, इग्नोरैंट होते हैं.

लड़कियां ऐसा सोचती हैं या नहीं, यह पक्का नहीं पर अगर ऐसा है भी तो सरप्राइजिंग नहीं क्योंकि आज का टीन और यंग बुरी तरह भटक गया है. सोशल मीडिया का हैंडल उस के हाथ में है तो फ्रैंडशिप की डैफिनिशन ही बदल गई है. फेसबुक, इंस्टाग्राम पर जिन्हें फौलो करते हो, जिन्हें फ्रैंड बनाते हो उन्हें जानते भी नहीं हो पर वे ही वर्चुअल फ्रैंड हैं और फिजिकल पेजैंट के साथ स्कूलमेट, स्पौर्ट्समेट, बसमेट, नेबर सब कामचलाऊ जानपहचान वाले हैं जिन्हें घंटों के लिए जरूरत के समय रखा जाता है.

ज्यादा इंपौर्टेंट फ्रैंड सोशल मीडिया वाले हो गए हैं जिन से मिले नहीं, जो टीन्स के घर को जानते नहीं, जिन्हें अपने सैकड़ों फ्रैंड्स में किसी के दुखसुख से मतलब नहीं. ये फ्रैंड सिर्फ इमोजी से काम करते हैं या अजबगजब एक्रोनिम इस्तेमाल करते हैं और तीनचार शब्दों के मैसेज में लव, हेट, डिसअपौइंटमैंट, ब्रेकअप कर डालते हैं. ऐसे टीन्स हर समय स्ट्रैस में रहते हैं क्योंकि किसी भी वर्चुअल फ्रैंड का मैसेज कभी भी आ सकता है और उस को सैकंडों में जवाब देना होता है.

यह स्ट्रैस आज के टीन्स को ड्रग्स और वायलैंस की ओर ले जा रहा है. पेरैंट्स सिर्फ घर, खाना या पौकेटमनी देने के लिए रह गए हैं. सोशल मीडिया से कमाई नहीं होती पर पेरैंट्स अब कुछ भी कर के बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं. सोशल मीडिया ऐसा ओपियम बन चुका है जिसे बेचने के लिए 1830 से 1860 तक ब्रिटेन ने चीन पर हमला किया और ट्रेड करने का राइट पाया. आज अमेरिकी कंपनियां इंटरनैट के जरिए गरीब और अमीर देशों के घरों में घुस कर सोशल मीडिया के सहारे डिजिटल ओपियम बेच रही हैं. दुनिया के सब से ज्यादा अमीर कपड़ा, खाना, मकान, गाड़ी नहीं बेच रहे, वे सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफौर्म बेच रहे हैं.

‘एडोलोसैंस’ मिनी सीरीज पेरैंट्स के लिए बनी है पर वे अब हैल्पलैस हैं क्योंकि वे खुद सोशल मीडिया के दूसरे अटैक रिलीजन के शिकार हैं. उन को सोशल मीडिया ने उसी तरह इग्नोरैंस, रौंग हिस्ट्री, वायलैंस, फौल्स नैशनलिज्म बेचा है जैसा टीन्स और यंग्स को सैक्स, ड्रग्स, फौल्स फ्रैंडशिप, फौल्स रिलेशनशिप बांटा है. आज के पेरैंट्स किसी को सपोर्ट करने लायक नहीं हैं. वे काम कर के पैसे कमा रहे हैं पर वे किसी भी तरह की नौलेज नहीं रखते. उन के लिए भी पार्टियां जरूरी हैं चाहे पौलिटिकल हों, रिलीजंस हों या ड्रिंक्स व डांस वाली.

पेरैंट्स भी आज वीक हैं और उन से यह एक्सपैक्ट करना कि वे टीन्स को सम झेंगे या सम झाएंगे, इंपौसिबल है. सोशल मीडिया अनचैक्ड, अनएडिटिड इन्फौर्मेशन या कहिए डिसइन्फौर्मेशन इस बुरी तरह परोस रहा है कि पेरैंट्स पावरलैस एडल्ट्स बन कर रह गए हैं जो अपने टीन या यंग बच्चों को प्रोटैक्ट नहीं कर सकते. दुनियाभर में अब लोग फिर से स्ट्रे डौग्स की तरह बनते जा रहे हैं जिन्हें खाने को तो मिल रहा है पर जीने की ट्रेनिंग नहीं मिल रही.

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