Online Hindi Story : ‘कोकिल कुंज’ नाम के आलीशान भवन की बालकनी में बैठे अतिथि सामने बने दो कमरों वाले साधारण बेरंग मकान को देखकर नाक-भौं सिकोड़ने लगे.
आगन्तुक ने कहा भी, “यह किस फटेहाल घर के सामने तुमने अपना मकान बना लिया है अविनाश?”
अविनाश हौले से बोले, “क्या करें यार, यह फटीचर न जाने कहाँ से पाले पड़ गया.”
“तो और कहीं दूसरा प्लॉट नहीं था क्या?”
“नहीं था यार. इस शानदार कॉलोनी में यही एकमात्र प्लॉट बचा था.”
“मगर सामने एक और खाली प्लॉट भी तो दिख रहा है ना?”
अरे, यह भी तो उसी रामनिवास का है…मैं मुंहमांगी कीमत देने को तैयार था, लेकिन वह तो टस से मस नहीं हुआ.”
“क्यों भई, यह आखिर काम क्या करता है?”
“फ्रूट्स का होलसेल व्यापारी है रामनिवास.”
“हद हो गई यार, पूरी कॉलोनी में एक से बढ़कर एक मकान हैं, बस इस एक मकान के कारण कॉलोनी की भद्द उड़ गई.”
“ठीक कह रहे हो भाई.”
इस बार आगन्तुक के साथ आई महिला ने पूछा, “तो यह दो प्लॉट के पैसे कहां से ले आया?”
“दरअसल, ये दोनों प्लॉट्स इसने 20 साल पहले ही खरीद लिए थे, कौड़ियों के भाव. तब तो यह जगह जंगल जैसी ही थी.”
आगन्तुक पति-पत्नी हँस पड़े. पति ने कहा, “बंदा बहुत दूरदर्शी निकला.”
इसी समय उस मकान से एक 18 वर्षीय लड़का बाहर निकल कर आया, उसके हाथ में साईकिल थी.
आगन्तुक महिला ने पूछा, “यह कौन है?”
“फल व्यापारी का ही लड़का है.”
“पर, आजकल साईकिल कौन चलाता है!” आगन्तुक महिला ने व्यंग्य से कहा.
“जवाब अविनाश की पत्नी अभिलाषा ने दिया, “स्कूल का टॉपर है यह.”
“अच्छा..? स्कूल कौन सी है भई?”
“गवर्नमेंट स्कूल है कोई.” अविनाश बोले.
“तभी, वर्ना इंग्लिश स्कूल में तो फिसड्डी होता.” कहते हुए आगन्तुक महिला ने ठहाका लगाया.
“अरे, इसने ऑल डिस्ट्रिक्ट इंग्लिश डिबेट कॉम्पटीशन में टॉप किया है, जबकि उसमें भाग लेने वाले सभी इंग्लिश स्कूल्स के बच्चे थे, सिवाय इसके.” अभिलाषा ने स्पष्ट किया तो अतिथि महिला के मुंह से फूटा, “वाव, तो तुम्हारा उदात्त कौन सा कम है?”
“उदात्त ने उसमें भाग नहीं लिया था क्या?” अतिथि पुरुष का सवाल.
अभिलाषा मुस्कुराई, “कान्वेंट स्कूल के बेस्ट डिबेटर ने उसमें भाग लिया था इसलिए उदात्त का नंबर कैसे आता?”
“ओह…” कहते हुए अतिथि पति-पत्नी उठ खड़े हुए.
“बैठो न यार.” अविनाश की बात को खारिज करते हुए महिला बोल उठी, “नहीं जी, बहुत काम छोड़कर आई हूं घर में.”
“ठीक है जी, मिलते रहा करो आप लोग.”
“तुम महीने में दो दिन के लिए तो आते हो, तुम्हारा समय अधिक कीमती है भई.” कहते हुए वे कार में जाने के लिए बैठ गए थे.
उनके जाने के बाद अविनाश आराम मुद्रा में बैठ गए और पत्नी से गपशप करने लगे.
“एक बात बताओ, वह…क्या नाम है उसका?” अविनाश ने पूछा.
“वह, कौन?”
“अरे वही, रामनिवास फ्रूट वाले का लड़का…”
“अच्छा हां, सहिष्णु नाम है उसका.”
“अरे, बहुत बढ़िया नाम रखा है, रामनिवास ने तो अपने बेटे का!”
“हां, सो तो है. उसका परिवार भले सम्पन्न न हो, पर है सुशिक्षित.”
“तुम्हें क्या मालूम?”
“एक बार मिली थी मुझको उनकी पत्नी, बहुत शालीनता से बात करती है मुझसे.”
“तो करेगी क्यों नहीं, आखिर तुम एक आरएएस अफसर की पत्नी हो भई.”
“बात वह नहीं, यह जरूर उसके संस्कार ही हैं.”
“अच्छा, क्या हम संस्कारी नहीं हैं?”
“मैं जब कॉलेज में पढ़ती थी न, तो हमारी एक मैम ने कहा था कि पद, पैसा और प्रसिद्धि व्यक्ति को अभिमानी बना देती है इसलिए हम इन तीनों को हमारे व्यवहार पर हावी न होने दें.”
“तुम्हें लगता है, मैं अभिमानी हूं?”
“मैंने अभी श्रीमती व श्री वर्मा के साथ वार्तालाप में देखा, रामनिवास जी के लिए कौन, क्या बोल रहा था?”
“बताओ, क्या?” अविनाश ने पूछा.
“वर्मा जी ने रामनिवास जी को फटेहाल बोला और आपने फटीचर.”
“यार, तो रामनिवास सामने तो नहीं खड़ा था?”
“देखिए, मैं किसी की गरीबी का मजाक नहीं उड़ा सकती. उसकी पीठ पीछे भी नहीं!”
इस बीच उदात्त आ गया था.
“कहां से आ रहे हो, बेटा?” अविनाश ने पूछा.
“पा..पा, मैं अपने फ्रेंड के यहाँ गया था.”
“सुनो, तुम कभी सहिष्णु से मिले हो?”
“कौन सहिष्णु, वह सामने वाला? अरे, उससे क्या मिलना, उसकी औकात ही क्या है?”
अभिलाषा इस बात पर उखड़ गई, “तुमसे ज्यादा औकात है उसकी…”
“अरे, मॉम, वह डिबेट विनर क्या हो गया, आप तो उसकी लट्टू ही हो गईं!”
“अच्छा, टेन्थ में वह 95% लाया था न!”
“कम ऑन मम्मी, मार्क्स ही सब कुछ नहीं होते, आदमी का स्टेटस भी तो कुछ होना चाहिए कि नहीं? वह गवर्नमेंट स्कूल वाला किसी कान्वेंट वाले का मुकाबला करेगा भला?”
“सुनो, तुम भी तो किसी गरीब के घर में पैदा हो सकते थे, नहीं?” अभिलाषा का क्रुद्ध स्वर.
“हाहाहा…” उदात्त ने ठहाका लगाकर अपनी मम्मी की बात को हवा में उड़ा दिया.
खाना खाकर अविनाश आराम से बेडरूम में आकर लेट गए. उदात्त अपने कमरे में दोस्तों से फोन पर बतला रहा था और अभिलाषा भी रसोई का काम शीघ्रता से निपटा कर बेडरूम में आ गई.
बेडरूम की खिड़की से ही उसे पूर्णिमा का चन्द्रमा अपनी छटा बिखेरता प्रतीत हुआ. यह देखकर अभिलाषा का खिड़की से हटने का मन ही न हुआ तो अविनाश ने टोका, वहाँ खिड़की में ऐसे किसको निहार रही हो अभि?”
अभिलाषा हंसते हुए बोली, “देखिए, क्या दृश्य है…चौदहवीं का चांद आज हमारी खिड़की से जैसे मुझसे बातें कर रहा है मानो मैं उसकी पक्की सहेली हूँ!”
“तुम वाकई अच्छी हो, एकदम शिष्ट और सलोनी, बिल्कुल पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह.”
“अच्छा, यह प्रशंसा किसलिए?”
“इधर बैठो, एक बात कहनी है मुझे.”
“अभी आई…” कह कर डबल बेड पर आलथी-पालथी मार कर बैठ गई वह.
“कुछ देर पहले जो तुमने कहा था, तुम्हारी कॉलेज की मैडम को लेकर…सुन रही हो ना?”
“सुन तो रही हूँ, बोलो भी!”
“वह बात मुझे बहुत पसंद आई.”
“सच?”
“हां, अभिलाषा. इन तीनों बातों- पद, पैसा और प्रतिष्ठा से जो ऊपर उठ जाता है, वही सच्चा मानव है. मैं इस कथन पर भविष्य में खरा उतरने की कोशिश करूंगा.”
यह सुनकर तो अभिलाषा गद्गद हो उठी. वह नम आंखों से बोली, “आपने तो यह कहकर सचमुच मेरा मन जीत लिया.”
मुझे दु:ख हुआ कि अपना इकलौता बेटा लाड़-प्यार या स्कूल के वातावरण में या अमीर दोस्तों के साथ रहकर असभ्य व असंस्कारित हो गया है, उसे लाइन पर लाने की कोशिश करनी पड़ेगी वरना वह हाथ से निकल जाएगा.”
अविनाश के जाने के बाद अभिलाषा सोच में पड़ गई, ‘सुबह-सवेरे अविनाश तो 150 किमी. दूर अपनी ड्यूटी पर निकल गए और मुझ पर उदात्त को सुधारने का दुष्कर उत्तरदायित्व छोड़ गए.’
एक दिन अचानक बीच रास्ते में अभिलाषा को सहिष्णु मिल गया. उसे देखकर वह अपने स्कूटर की गति शून्य पर ले आई थी. वह उसके आगे-आगे पैदल ही घर की ओर जा रहा था.
“मुझे पहचाना बेटे?”
वह हाथ जोड़कर खड़ा रह गया. बोला, “नहीं पहचाना, आंटी.”
“अरे, तुम्हारे घर के सामने ‘कोकिल कुंज’ वाला मकान है न?”
“जी आंटी, अब पहचान लिया. सॉरी, आंटी.”
“वेलकम, सहिष्णु। तुम्हारी मम्मी से तो मिल चुकी हूँ मैं.”
“जी, जी.” वह बहुत ही आदरपूर्वक बोला.
“लो, आओ. मैं घर ही तो जा रही हूं. मेरे पीछे बैठ जाओ.”
“आंटी, आप परेशान न हों, मैं चला जाऊँगा.”
“चलो बेटे, मैं भी तो तुम्हारी मां जैसी ही हूं.”
अब वह बैठ गया तो वह सीधे घर पर पहुंच कर ही रुकी.
उस समय उदात्त भी घर पर नहीं था.
सहिष्णु हाथ जोड़कर जाने की अनुमति लेने लगा तो अभिलाषा ने उसे जबरन रोका.
“नहीं, दो मिनट के लिए ही घर पर चलो बेटे.”
अब वह मना नहीं कर सका.
अभिलाषा ने आज खीर बनाई थी. वह बड़े प्यार से उसके लिए एक कटोरी खीर ले गई तो सहिष्णु आनाकानी करने लगा.
“आंटी की बात के लिए मना नहीं करते. और हां, तुम्हारी गर्व करने योग्य डिबेट कॉम्पटीशन की सफलता के लिए खूब बधाई!”
वह अभिलाषा द्वारा बधाई पर उसके चरणों में झुक गया था.
अभिलाषा ने उस पर आशीर्वाद की स्नेह वर्षा कर पूछा, “अब सीनियर सेकेण्डरी के बाद क्या करोगे?”
“आंटी, अब नीट का एग्जाम दूंगा.”
“बहुत आशीर्वाद बेटे.” कहते हुए उसने सहिष्णु को विदा किया.
उदात्त भी इस वर्ष सीनियर के बाद नीट की परीक्षा में बैठने वाला था. वह तो साल भर से कोचिंग भी कर रहा था जबकि सहिष्णु तो बिना कोचिंग के केवल गाइड बुक्स के भरोसे तैयारी में जुटा था.
अभिलाषा आज सहिष्णु से मिलकर खूब खुश हो रही थी. इतने विनम्र और संस्कारी बच्चे तो अब अपवाद स्वरूप ही बचे हैं, वह यही सोच रही थी.उसने यह सब आज अविनाश को भी फोन पर बताया था. वे भी सुनकर बहुत खुश हुए थे. पर उदात्त को कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं था. नीट का परिणाम आया तो अपने बलबूते पढ़ने वाले सहिष्णु को प्रथम 500 में ऑल इन्डिया रैंकिंग मिली जबकि लाखों कोचिंग पर खर्च करने वाले उदात्त को रैंकिंग मिली 3500 वीं.
सहिष्णु को इसी शहर के कॉलेज में प्रवेश मिल गया था जबकि उदात्त को साउथ में जाना पड़ा. इधर अविनाश का भी काफी दूर ट्रांसफर हो गया तो अभिलाषा के पास अब घर के लाॅक करने के सिवा कोई चारा न था. वह अकेले रहकर करती भी क्या?
पति के साथ जाने से पहले वह सहिष्णु व उसकी मम्मी से मिले बिना न रह सकी थी. उसने बहुत प्यार से बाहर की ओर बने अपने सुविधाजनक अतिथि कक्ष की चाबी सहिष्णु को उसके बहुत मना करने पर भी सौंप दी और कहा कि उसके वहाँ रहने से उसे मकान की चिंता भी न रहेगी.
अभिलाषा इस बात से तो परेशान थी कि उसे अपना घर छोड़कर जाना पड़ रहा था, कितने समय के लिए; उसे कुछ भी पता न था. बावजूद उसे खुशी थी कि वह अपने पति से दूर नहीं रहेगी. जब तक बेटा उसके पास पढ़ रहा था उसके पास पति से दूर रहने का ही विकल्प था. घर का क्या, वह तो ईंट-पत्थर से बना निर्जीव भवन ही तो होता है. बेटा बहुत खुश था कि वह अब हमेशा दोस्तों के बीच रहेगा और यह एक आनंद से भरा अनुभव होगा.
अभिलाषा अब पति के पास उनके पदस्थापन स्थान बांसवाड़ा जिले के घाटोल कस्बे में आ गई थी जो उसके जयपुर स्थित मकान से बहुत दूर था. लेकिन फिर भी यहां उसका मन लग गया क्योंकि छोटी जगह और वह भी एक प्रशासनिक पद पर कार्यरत व्यक्ति की पत्नी की किसी भी समस्या का लोग तुरंत समाधान निकाल देते थे.
अभिलाषा सहिष्णु का वाट्सएप नम्बर ले आई थी जिससे वह कभी-कभी उसकी कुशलक्षेम पूछ लेती. वह अभिलाषा से अपनी मम्मी की भी बात करा देता था.
बेटे उदात्त को अपने मम्मी-पापा की कोई परवाह न थी. उसे तो बस पैसों से मतलब था जो वह मनमर्जी से खूब खर्च कर ही रहा था.
समय तो तेजी से भागता जा रहा था. अभिलाषा पति की व्यस्तता को समझती थी अत: स्वयं को व्यस्त रखने का प्रयास करती. लेकिन कभी-कभी जब पति फुर्सत में होते तो भावातिरेक में अपने बंद मकान का जिक्र कर लेती. आखिर उन्होंने कुछ लोन तो कुछ जमा पूंजी उसे बनाने में खर्च की थी.
पति अविनाश उसे समझाते, “अभि, तुम जीवन के इस स्वर्णिम काल का आनंद लो क्योंकि अपनी सेवानिवृत्ति के बाद जब हम अपने मकान में लौटेंगे तब हम इन प्यारे से दिनों को और साथ ही हमारी इस समय स्वस्थ देह वाले अतीत का स्मरण कर रहे होंगे.”
अभिलाषा अब मुस्कुरा उठी थी क्योंकि उसे समझ आ गया था कि समय के फलक पर सब कुछ अपनी मर्जी से नहीं होता और कोई न कोई कमी हमें सदैव खलती रहती है.
वह अब हमेशा खुश रहने का प्रयास करती अन्यथा पैंतालीस की आयु के समीप ऐसी कुंठाएं प्राय: व्यक्ति को विचलित कर देती हैं.
समय बहुत तेजी से बदल रहा था. इस बीच अविनाश पहले एसडीएम व बाद में एडीएम पद पर नये-नये स्थानों पर स्थानांतरित होकर सम्पूर्ण राजस्थान की माटी से सामंजस्य बिठाते हुए सपत्नीक जीवन के इस दशक को आत्मसात करते रहे. बहुत कम ऐसा हुआ जब उन्होंने दीपावली घर जाकर मनाई हो.
बीते आठ-नौ वर्षों में उदात्त ने पहले एम.बी.,बी.एस., फिर एम.एस. (सर्जरी) करके सूरत शहर की लड़की जो गायनी में स्नातकोत्तर थी, शादी कर ली फिर सूरत में ही अपना नर्सिंग होम खोल लिया. अब उसका जयपुर से कनेक्शन बिल्कुल कट गया था और वह सूरत का ही होकर रह गया.
सहिष्णु के भावनाओं से परिपूर्ण संदेश कभी-कभी अभिलाषा को रुला देते. एक दिन उसने लिखा, “आंटी, अब आप कोई चिंता न करें, आपके इस बेटे को डी.एम. कार्डियो की डिग्री बस मिलने ही वाली है. अंकल को बीपी की दवा देते रहें. मेरा जयपुर के ही खाली पड़े प्लॉट में प्रेक्टिस करने का विचार है. मैंने लोन ले लिया है और भवन निर्माण का कार्य भी प्रगति पर है. अंकल जब तक सेवानिवृत्त होकर जयपुर स्थायी रूप से आ जाएँगे, उसके पूर्व ही मैं अपना काम आरम्भ चुका हूँगा. फिर आप दोनों के दिल का ख्याल मेरी प्राथमिकता होगी.”
अभिलाषा ने यह संदेश अविनाश को बताया तो पढ़कर उनकी आंखें भी भीग गईं. वे दोनों एक दूसरे से मिल कर खूब रोए. शायद बेटे को खोने का गम इन आंसुओं में बह गया था.
अभिलाषा अनुमान न लगा सकी कि ये आंसू खुशी के थे अथवा दु:ख के?
लेखक : डा.अखिलेश पालरिया