Hindi Story : इंसान अपने कर्मों की वजह से ऊंचा बनता है. मयंक को आज लग रहा था कि पढ़ालिखा और साहबबाबू होने के बावजूद अपने कर्मों और नीयत की वजह से वह अनपढ़जाहिल रिकशेवाले के सामने बौना है.
मयंक की नजर जैसे ही हौल में प्रविष्ट होते लालजी प्रसाद पर पड़ी तो उस की बांछें खिल गईं. तकरीबन 60 वर्षीय लालजी प्रसाद अपना प्रौविडैंट फंड निकलवाने के लिए पिछले 6 महीनों में पंद्रह से बीस चक्कर प्रौविडैंट फंड औफिस के लगा चुके थे. मयंक था कि हर बार कोई न कोई अड़ंगा लगा ही देता था और साथ ही, यह इशारा भी कर देता था कि अगर सेवापानी नहीं करोगे तो इसी तरह चक्कर ही लगाते रह जाओगे, फंड नहीं मिलेगा. लेकिन शायद या तो लालजी प्रसाद इतने सीधे थे कि मयंक का इशारा नहीं पकड़ पाते थे या फिर जानबूझ कर अनजान बने हुए थे. कारण कुछ भी हो, बात वहीं की वहीं रहती थी और मयंक झुंझला कर रह जाता था.
लालजी प्रसाद के इस रवैए से परेशान हो कर, उन की लास्ट विजिट पर मयंक ने उन से साफसाफ ही कह दिया कि, ‘अंकलजी, आप बात को समझ क्यों नहीं रहे हैं, बारबार चक्कर पर चक्कर लगाने से आप का काम नहीं होने वाला क्योंकि इस औफिस का तो सीधा सा सिद्धांत है कि फंड का 10 प्रतिशत दो और फंड लो. मैं पिछले 5-6 महीने से यही बात आप को बारबार इशारों में समझने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन आप हैं कि समझने का नाम ही नहीं ले रहे. सो, मुझे लगा कि आप को खुल कर बता देना ही उचित होगा, बाकी आगे आप की मरजी.’
कहने को तो मयंक ने साफसाफ कह दिया था लेकिन साथ ही उस के मन में यह संशय भी था कि कहीं ऐसा न हो कि उस की बात सुन कर लालजी प्रसाद बुरी तरह से बिफर न जाएं या कोई सीन न क्रिएट कर दें जिस की वजह से लेने के देने पड़ जाएं. लेकिन उस समय उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब उस ने लालजी प्रसाद को कहते सुना, ‘अगर यही बात थी बेटा तो पहले बता देते, बेकार में इतना वक्त तो न बरबाद होता. खैर, अब तुम ने जब साफसाफ समझ ही दिया है तो अगली बार मैं तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’ यह कह कर लालजी प्रसाद उस दिन औफिस से चले गए.
उस दिन के बाद से आज 10 दिनों बाद फिर लालजी प्रसाद के कदम औफिस में पड़े थे और उन पर नजर पड़ते ही उन का पिछला कथन मयंक के कानों में गूंज गया था. इसीलिए उन्हें देखते ही उस का मन खुशी से झूम उठा था कि देर से ही सही आखिरकार उस का बकरा हलाल होने को तैयार हो कर तो आया.
लेकिन उस के भीतर की खुशी कहीं उस के चेहरे से न उजागर हो जाए, इस के लिए लालजी प्रसाद पर नजर पड़ते ही न सिर्फ उस ने अपनी नजरें उन से हटा कर सामने टेबल पर रखी कंप्यूटर स्क्रीन पर जमा दीं बल्कि अपने चेहरे पर ऐसे भाव भी ले आया जैसे काम के बोझ के मारे उसे सिर उठाने की भी फुरसत न हो और उसे पता ही न हो कि औफिस में कौन आया और कौन गया.
मयंक की टेबल के नजदीक पहुंच कर लालजी प्रसाद ठिठक कर रुक गए. उन्हें उम्मीद थी कि उन के कदमों की पदचाप जरूर मयंक के कानों में पड़ी होगी, लिहाजा, वे उम्मीद कर रहे थे कि मयंक सिर उठा कर देखेगा कि कौन उस के पास आ कर खड़ा हो गया है. लेकिन मयंक ने भी ठान लिया था कि जब तक लालजी प्रसाद खुद नहीं बोलेंगे, तब तक वह यों ही कंप्यूटर स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखेगा जैसे उसे पता ही न हो कि कोई उस की टेबल के पास खड़ा भी है.
कुछ पल यों ही बीते और फिर आखिरकार लालजी प्रसाद को ही मयंक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हलके से खांसना पड़ा. उन के हलके से खांसते ही मयंक ने तपाक से अपनी नजरें कंप्यूटर स्क्रीन से हटा कर सामने कीं और लालजी प्रसाद को देखते हुए यों आश्चर्यचकित हो कर दिखाया जैसे लालजी प्रसाद को उस ने पहली बार देखा हो. ‘‘अरे, अंकलजी आप, कब आए?’’
‘‘बस, थोड़ी देर पहले ही,’’ अपने होंठों पर एक फीकी सी मुसकान बिखेरते हुए लालजी प्रसाद ने कहा, ‘‘लगता है आज कुछ ज्यादा ही बिजी हो?’’
‘‘अरे अंकलजी, आज क्या और कल क्या, यहां तो हर रोज काम का इतना बोझ रहता है कि क्या बताएं,’’ अपने चेहरे पर थकान के भाव लाते हुए मयंक ने अपनी टेबल के सामने पड़ी कुरसियों पर बैठने का इशारा करते हुए आगे कहा, ‘‘यह सब तो खैर चलता ही रहेगा. आप बताइए मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’
‘‘हमारी तो बस एक ही सेवा है और वह तुम अच्छी तरह से जानते हो,’’ लालजी प्रसाद ने एक कुरसी पर बैठते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘और अब तो मैं सेवा शुल्क भी देने को तैयार हूं, लिहाजा तुम्हें सेवा करने में कोई परेशानी भी नहीं होनी चाहिए.’’
लालजी प्रसाद की बात सुन कर पलभर को तो मयंक सकपका गया लेकिन फिर तत्काल अपने को संभालता हुआ ऐसे स्वर में बोला जैसे बड़े ही भारीमन से यह बात कह रहा हो, ‘‘आप भी कैसी बात कर रहे हैं अंकलजी. मेरी तो दिली इच्छा होती है कि मैं निश्च्छल भाव से हर किसी की सेवा करूं लेकिन हम भी क्या करें, हमारी भी तो मजबूरी है. अब दफ्तर का जो सिस्टम है, हमें तो उसी के हिसाब से चलना पड़ेगा न.’’
‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है, दफ्तर के सिस्टम को तो तुम इग्नोर नहीं कर सकते,’’ लालजी प्रसाद ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘खैर, तुम मुझे बताओ कि मुझे कितना देना है?’’
‘‘बताया तो था, फंड का 10 प्रतिशत,’’ मयंक ने तत्परता से कहा, ‘‘आप मुझे अपना अकाउंट नंबर बताइए. मैं चेक कर के बताता हूं कि आप का कितना बनता है.’’
लालजी प्रसाद द्वारा अपना अकाउंट नंबर बताते ही मयंक की उंगलियां कीबोर्ड पर खेलने लगीं और कुछ ही सैकंड के बाद उस ने कहा, ‘‘सबकुछ मिला कर आप का फंड बनता है 13 लाख रुपए और इस हिसाब से आप को देना है 1.3 लाख रुपए.’’
‘‘यह तो बहुत ज्यादा है,’’ लालजी प्रसाद के स्वर में निराशा साफ झलक रही थी.
‘‘आप फंड भी तो देखिए, 13 लाख रुपए.’’
‘‘बेटा, वह मेरी मेहनत की कमाई है, कोई सरकारी खैरात नहीं है,’’ मयंक की बात सुन कर थोड़ा उत्तेजित हो उठे थे लालजी प्रसाद, ‘‘हर महीने की तनख्वाह में से पैसे कटे हैं तो यह फंड जुटा है और बची हुई तनख्वाह से हम कैसे गुजारा करते थे, यह हम ही जानते हैं.’’
मयंक को भी एहसास हुआ कि वह कुछ गलत बोल गया है, लिहाजा, अपनी भूल को सुधारने की चेष्टा करते हुए वह बोल उठा, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था अंकलजी. खैर, अब आप यह बताइए कि करना क्या है?’’
‘‘1 लाख 30 हजार रुपए की रकम तो बहुत ज्यादा है,’’ लालजी प्रसाद ने निराशाजनक स्वर में कहा, ‘‘मैं तो ज्यादा से ज्यादा 30-40 हजार रुपए देने की उम्मीद कर रहा था.’’
‘‘अब आप मजाक कर रहे हो अंकलजी,’’ लालजी प्रसाद की बात सुनते ही मयंक ने हंसते हुए कहा, ‘‘भले ही आप को एक्जैक्ट फिगर न पता हो लेकिन अंदाजा तो होगा ही कि आप का फंड कितना बनता है और 10 प्रतिशत की बात मैं आप को बता ही चुका था. इस के बावजूद अगर आप 30-40 हजार की बात सोच रहे थे तो फिर मैं क्या ही कहूं.’’
‘‘देखो भाई, मैं अपनी क्षमता आप को बता चुका हूं और ज्यादा से ज्यादा मैं इस में 5-10 हजार और जोड़ सकता हूं. इस से आगे मेरी हिम्मत नहीं है,’’ दोटूक स्वर में कहा लालजी प्रसाद ने.
पिछली बार जब मयंक ने लालजी प्रसाद से दस प्रतिशत वाली बात कही थी तो उसे अच्छी तरह से पता था कि लालजी प्रसाद का टोटल फंड कितना है. मयंक इस खेल का पुराना खिलाड़ी था और बखूबी जानता था कि ऐसे मामलों में बार्गेनिंग होती ही है, इसलिए उस ने जानबूझ कर लालजी प्रसाद से 10 प्रतिशत की मांग की थी क्योंकि वह जानता था कि 10 प्रतिशत मागूंगा तो 5-6 प्रतिशत मिलेगा.
अब जब लालजी प्रसाद ने अपनी बात दोटूक कह दी तो मयंक समझ गया कि अब डील फाइनल करने का मौका आ चुका है. लिहाजा, उस ने भी अपने स्वर में थोड़ी गंभीरता डालते हुए कहा, ‘‘देखिए अंकलजी, जो रकम आप बोल रहे हैं उस में तो काम होने से रहा क्योंकि हमारे ऊपर भी अधिकारी हैं और हमें उन को भी जवाब देना होता है, लेकिन चूंकि आप 5-6 महीने से परेशान हो रहे हैं, इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा यह कर सकता हूं कि ऊपर के 30 हजार रुपए छोड़ दूं.’’
यह सुनते ही लालजी प्रसाद समझ गए कि अभी भी बार्गेनिंग की गुंजाइश बनी हुई है, लिहाजा उन्होंने भी अपना दांव चलाते हुए कहा, ‘‘भाई, मैं ज्यादा से ज्यादा 60-65 कर सकता हूं. अगर इतने में तुम लोग तैयार, तो ठीक, वरना…’’ जानबूझ कर उन्होंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
लालजी प्रसाद की बात सुनते ही मयंक समझ गया कि अब बात फाइनल होने वाली है, लिहाजा उस ने कहा, ‘‘अंकलजी, केवल एक बात 75 हजार, हां या न?’’
लालजी प्रसाद भी समझ चुके थे कि रकम अब इस से ज्यादा और कम नहीं हो सकती है, लिहाजा उन्होंने भी कह दिया, ‘‘रकम तो अभी भी ज्यादा है लेकिन क्या करें, मजबूरी है, जैसी तुम्हारी मरजी. 75 फाइनल.’’
लालजी प्रसाद के फाइनल करते ही मयंक ने टेबल की साइड में रखी फाइलों के बंडल में से एक फाइल निकालते हुए कहा, ‘‘आप की फाइल तैयार है, केवल मेरे साइन होने बाकी हैं. इधर आप ने अपना काम किया और उधर मैं ने फाइल पर साइन करे और 10 मिनट के अंदर रकम आप के बैंक खाते में.’’
‘‘लेकिन अभी मेरे पास तो इतने पैसे नहीं हैं,’’ मयंक के बात खत्म करते ही संकोचपूर्ण स्वर में कहा लालजी प्रसाद ने, ‘‘जैसा कि मैं ने पहले ही कहा था कि मुझे 25-30 की उम्मीद थी. लिहाजा, फिलहाल मेरे पास इतने ही पैसे हैं और मेरा एटीएम कार्ड भी घर पर ही छूट गया है.’’
लालजी प्रसाद की बात सुनते ही मयंक तिलमिला उठा. उसे लगा जैसे उस के मुंह में जाते निवाले को लालजी प्रसाद ने छीन लिया हो. लिहाजा, न चाहते हुए भी उस के स्वर में तल्खी सी आ गई, ‘‘अब आप ही बताइए कि मैं क्या करूं? पैसे आप के पास हैं नहीं और एटीएम आप लाए नहीं तो फिर कैसे बनेगा काम?’’
‘‘अगर एतराज न हो तो एक बात कहूं?’’ लालजी प्रसाद ने हिचकते हुए कहा.
‘‘कहिए.’’
‘‘बैंक की ब्रांच और एटीएम मेरे घर के पास ही हैं. मैं अभी घर जा कर पैसों का इंतजाम कर लेता हूं और अगर आप बुरा न मानें और आप को परेशानी न हो तो आप शाम को औफिस के बाद घर जाते हुए पैसे मेरे घर से उठा लीजिए,’’ लालजी प्रसाद ने डरतेडरते अपना प्रस्ताव रखा.
औफिस के रिकौर्ड में लालजी प्रसाद का जो एड्रैस लिखा था वह मयंक के घर के रास्ते में ही पड़ता था. लिहाजा, कुछ क्षण तक लालजी प्रसाद के प्रस्ताव पर विचार करने के बाद मयंक ने कहा, ‘‘आप उसी एड्रैस पर रहते हैं जो इस औफिस के रिकौर्ड में दर्ज है?’’
‘‘जी हां.’’
‘‘ठीक है फिर, मैं शाम को आप से आप के घर पर मिलता हूं,’’ मयंक ने प्रोग्राम फाइनल करते हुए कहा, ‘‘मैं शाम को 7 बजे के आसपास आप के पास पहुंचता हूं और अगर प्रोग्राम में कुछ ऊपरनीचे होता है तो मैं आप को फोन कर लूंगा. हम दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर तो हैं ही.’’
‘‘ठीक है फिर, तो शाम को मिलते हैं,’’ कहते हुए लालजी प्रसाद उठे और मयंक का अभिवादन कर के बाहर की ओर चल दिए.
लालजी प्रसाद के बाहर जाते ही मयंक के पास वाली सीट पर बैठने वाले शर्माजी बोल उठे, ‘‘बधाई हो मयंक बाबू. मान गए आप को भी. भले ही 5-6 महीने लग गए लेकिन आप भी बकरा हलाल कर के ही माने.’’
‘‘भाई क्या करें, अगर बकरा हलाल करने से चूकेंगे तो फिर सूखी दालरोटी पर ही पलेंगे,’’ मयंक ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘और अगर सूखी दालरोटी पर ही पलना है तो लानत है ऐसी सरकारी नौकरी पर.’’
‘‘सही कहते हो भाई,’’ शर्माजी ने भी हंसते हुए मयंक का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘तो फिर इसी बात पर हो जाए आज शाम को पार्टी?’’
‘‘अरे आज नहीं, कल.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘भाई, अभी माल कहां आया है,’’ मयंक ने खुलासा करते हुए शर्माजी को पूरी बात बताई.
मयंक की बात सुनते ही शर्माजी गंभीर होते हुए बोले, ‘‘भाई, सतर्क रहना, किसी लफड़े में न फंस जाना.’’
‘‘कैसा लफड़ा?’’ चौंक उठा मयंक.
‘‘भाई, न्यूज में स्टिंग के बारे में तो देखतेसुनते ही होगे,’’ शर्माजी ने अपनी शंका व्यक्त की, ‘‘कहीं ऐसा न हो कि वह अपने घर में पूरा जाल फैला कर बैठा हो और आप रंगेहाथ धर लिए जाएं.’’
‘‘सतर्क करने के लिए आप का धन्यवाद शर्माजी, लेकिन चिंता मत करो, ऐसा कुछ नहीं होगा,’’ मयंक ने पूरे विश्वास के साथ कहा, ‘‘मैं ने कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैं ने कोई ऐसे ही हामी नहीं भर दी है. वह गांधीनगर में स्टेट बैंक के पास रहता है और मेरा एक रिश्तेदार भी उस के घर के आसपास रहता है. मैं सीधा अपने रिश्तेदार के घर पर जाऊंगा और लालजी प्रसाद को वहीं बुलवाऊंगा और जो भी बातचीत व लेनदेन होगा, सब उसी रिश्तेदार के घर पर होगा.’’
‘‘फिर ठीक है,’’ मयंक की बात सुन कर शर्माजी कुछ आश्वस्त हुए, ‘‘लेकिन फिर भी सतर्क रहना, आजकल मोबाइल से भी बहुतकुछ हो जाता है.’’
‘‘चिंता मत करो शर्माजी, मैं पूरी तरह सतर्क रहूंगा.’’
उस समय शाम के 7 बज रहे थे जब मयंक ने गांधीनगर मैट्रो स्टेशन के बाहर कदम रखा. भले ही मैट्रो स्टेशन का नाम गांधीनगर था लेकिन वास्तव में गांधीनगर उस मैट्रो स्टेशन से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर था और वहां के लिए मैट्रो स्टेशन के बाहर से ही रिक्शे चलते थे. अभी थोड़ी देर पहले ही बारिश हो कर हटी थी और आसमान में अभी भी काले बादलों का जमघट था. वातावरण में जबरदस्त उमस थी और हवा बिलकुल बंद थी. साफ जाहिर था कि थोड़ी ही देर में बारिश फिर से शुरू हो सकती थी.
स्टेशन के बाहर ही रिक्शे वालों का स्टैंड था जहां 8-10 रिक्शेवाले मौजूद थे और आवाज लगालगा कर सवारियों को बुला रहे थे. मयंक सीधा उस रिक्शेवाले के पास पंहुचा जिस का पहला नंबर था और उस से पूछा, ‘‘हां भाई, चलोगे
गांधीनगर, स्टेट बैंक के पास?’’
‘‘चलेंगे साहब.’’
‘‘कितने पैसे?’’
‘‘जी, 50 रुपए.’’
‘‘पागल हो गए हो क्या?’’ 50 रुपए की बात सुनते ही मयंक भड़क उठा, ‘‘रोज के आनेजाने वाले हैं. गांधीनगर में चाहे कहीं भी जाओ, 20 रुपए सवारी का खुला रेट है. तुम में या तुम्हारे रिक्शे में ऐसे कौन से चारचांद लगे हैं जो तुम 50 रुपए मांग रहे हो?’’
‘‘आप की बात ठीक है साहब कि 20 रुपए सवारी का खुला रेट है लेकिन अभी थोड़ी देर पहले बारिश हो कर हटी है और आप को तो पता ही होगा कि जरा सी बारिश होते ही गांधीनगर जाने वाली सड़क पर घुटनेघुटने पानी भर जाता है और ऐसे में रिक्शा चलाना कितना मुश्किल होता है, आप समझ सकते हैं.’’
‘‘ठीक है लेकिन 50 रुपए तो बहुत ज्यादा हैं.’’
‘‘मरजी है आप की साहबजी,’’ यह कहने के साथ ही रिक्शेवाले ने बातचीत का अंत कर दिया.
मयंक ने बाकी रिक्शेवालों को टटोला लेकिन नतीजा शून्य ही रहा. जहां कुछ रिक्शेवालों ने जाने से साफसाफ मना कर दिया वहीं जो रिक्शेवाले जाने को तैयार भी हुए वे 50 रुपए से ज्यादा मांग रहे थे. जब कोई रिक्शेवाला तैयार नहीं हुआ तो मयंक की समझ में आया कि पहले रिक्शेवाले को ठुकरा कर उस ने गलती कर दी है.
बाकी रिक्शेवालों से बात करता हुआ मयंक थोड़ा आगे तक आ चुका था. उस ने वहीं से मुड़ कर देखा. पहले रिक्शेवाले को अभी तक सवारी नहीं मिली थी, लेकिन उस से फिर से बात करने पर मयंक को अपनी हेठी महसूस हो रही थी, इसलिए वह वहीं एक ओर खड़ा हो कर सोच ही रहा था कि क्या करे कि पहले रिक्शेवाला उस के पास आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘चलिए साहबजी, आप को छोड़ ही देते हैं, आप 40 रुपए दे देना.’’
मयंक तो मौके का इंतजार कर ही रहा था, लिहाजा वह लपक कर रिक्शे में बैठता हुआ बोला, ‘‘नहींनहीं भई, कोई बात नहीं, हम 50 ही दे देंगे.’’
मयंक के बैठते ही रिक्शेवाले ने अपने पूरे शरीर का जोर लगा कर रिक्शे को गति दे दी.
‘‘ऐसा है बाबूजी कि हम तो खुद ही किसी सवारी से ज्यादा पैसा नहीं लेना चाहते हैं लेकिन क्या करें बारिश में ऐसी मजबूरी हो जाती है कि रेट बढ़ाने पर मजबूर हो जाते हैं,’’ रिक्शे के गति पकड़ते ही रिक्शेवाले ने बिना मांगे अपनी सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘अभी आप वहां पहुंचेंगे तो देखिएगा कि कितना बुरा हाल है. हमें पैदल रिक्शा खींचना पड़ेगा तब कहीं जा कर आप अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे.’’
मयंक का दिमाग तो लालजी प्रसाद से मिलने वाली रकम और औफिस के साथियों के साथ उस के बंटवारे के हिसाबकिताब में उलझ था, इसलिए उस का ध्यान रिक्शवाले की बातों की तरफ नहीं था और वह अनमने भाव से केवल ‘हूं-हूं’ कर रहा था. जबकि इन सब से बेखबर रिक्शेवाला पूरी तन्मयता से अपनी सफाई दिए जा रहा था.
थोड़ी ही देर में स्टेट बैंक का बोर्ड चमकने लगा. जैसेजैसे रिक्शा आगे बढ़ रहा था वैसेवैसे बैंक की बिल्डिंग नजदीक आती जा रही थी. अभी तक पूरे रास्ते में पानी के हलकेफुलके जमाव के अलावा ऐसा कोई जलभराव नजर नहीं आया जिस का कि अंदेशा रिक्शेवाले जाहिर कर रहे थे. लिहाजा, रिक्शा बड़ी आसानी से स्टेट बैंक तक पहुंच गया. अपने ही हिसाबकिताब में उलझे हुए मयंक को पता ही नहीं चला कि स्टेट बैंक आ चुका है. वह तो तब चौंका जब उस के कानों से रिक्शेवाले का स्वर टकराया, ‘‘बाबूजी, स्टेट बैंक आ गया. अब बताइए किधर जाना है?’’
‘‘ओह, स्टेट बैंक आ भी गया.’’ रिक्शेवाले की आवाज सुनते ही मयंक ने चौंक कर अपने इधरउधर देखा तो उसे पता चला कि वह कहां पहुंच चुका है.
‘‘अब बताइए बाबूजी, आगे किधर जाना है?’’ रिक्शवाले ने अपना प्रश्न दोहराया.
मयंक ने कुछ पल सोचा और फिर बोला, ‘‘ऐसा है, तुम मुझे यहीं उतार दो.’’
‘‘ठीक है बाबूजी,’’ कहते हुए रिक्शेवाले ने रिक्शा साइड में लगा कर रोक दिया.
रिक्शे से उतर कर मयंक ने जेब से पर्स निकाला और सौ रुपए का एक नोट निकाल कर रिक्शवाले की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो, पैसे काट लो.’’
सौ का नोट देख कर रिक्शेवाले ने अपने कुरते की जेब से पैसे निकाले और बाकी पैसे वापस करने के लिए गिनने लगा.
गिनने के बाद उस ने पैसे मयंक को दे दिए और मयंक से सौ का नोट ले कर अपनी जेब में रख लिया व रिक्शे को वापस मोड़ने लगा.
मयंक ने जैसे ही रिक्शेवाले से मिले पैसे गिने तो वह चौंक गया और हंसते हुए रिक्शेवाले से बोला, ‘‘क्यों भई,
हर सवारी के साथ ऐसा ही करते हो क्या?’’
‘‘क्या हुआ बाबूजी?’’ मयंक की बात सुन कर आगे बढ़ने को तत्पर रिक्शेवाले ने रिक्शा रोक कर मयंक की ओर सवालिया नजरों से देखते हुए पूछा.
‘‘भाई, तुम ने मुझे 50 के बजाय 80 रुपए वापस कर दिए हैं,’’ मयंक ने हंसते हुए अपनी बात जारी रखी, ‘‘और अगर तुम ऐसा हर सवारी के साथ करते हो तो चल लिया तुम्हारा घर. पाल लिया तुम ने अपना और अपने बीवीबच्चों का पेट. लो, पकड़ो बाकी के पैसे,’’ मयंक ने 30 रुपए उस की ओर बढ़ाए.
‘‘नहीं बाबूजी, हम ने सही पैसे काटे हैं,’’ मयंक की बात सुन कर रिक्शेवाले ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘50 रुपए तो हम ने इसलिए मांगे थे कि रास्ते में पानी भरे होने की उम्मीद थी लेकिन जब रास्ते में पानी ही नहीं भरा है तो काहे के ज्यादा पैसे? सूखे रास्ते पर तो हिसाब से 20 ही रुपए बनते हैं न.’’
रिक्शवाले के शब्दों ने मानो मयंक को झझकर कर जगा दिया. एकाएक वह अपनेआप को उस रिक्शवाले के सामने बहुत बौना महसूस करने लगा. रिक्शेवाले के शब्दों से अपने भीतर पैदा हुई आत्मग्लानि से उबरने के प्रयास में उस ने कहा, ‘‘पानी नहीं भरा हुआ था तो क्या हुआ, हमारीतुम्हारी बात तो 50 रुपए की हुई थी न, इसलिए लो ये पैसे रख लो.’’
‘‘नहीं बाबूजी, हम ये पैसे नहीं ले सकते. हमारी मेहनत के केवल 20 रुपए बनते हैं और वह हम ले चुके हैं,’’ हाथ जोड़ कर वह आगे बोला, ‘‘हम तो अनपढ़ व जाहिल हैं लेकिन आप तो काफी पढ़ेलिखे बाबूसाहब हैं. आप तो हम से कहीं ज्यादा अच्छी तरह से समझते होंगे कि जो बरकत और सुकून मेहनत की कमाई में है वह हराम की कमाई में नहीं है और ये 30 रुपए हमारे लिए हराम की कमाई होंगे जिस के कि हम कतई तलबगार नहीं हैं.’’ और अपनी बात खत्म करने के साथ ही रिक्शेवाला वहां से चल दिया.
रिक्शेवाले के मुंह से निकला एकएक शब्द मयंक को अपने गालों पर तमाचों की तरह महसूस हो रहा था. उसे लग रहा था कि जैसे रिक्शेवाले ने अपने शब्दों से उसे भरे बाजार पूरी तरह से नंगा कर दिया हो. उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे. वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा दूर जाते रिक्शेवाले को देखता रह गया.
वह महसूस कर रहा था कि इस रिक्शवाले के मुकाबले वह कितना घटिया और नीच इंसान है. एक तरफ यह रिक्शेवाला है जो तय होने के वावजूद ज्यादा पैसे लेने के लिए इसलिए तैयार नहीं है क्योंकि रास्ते में पानी नहीं भरा था और दूसरी तरफ वह है जो अपनी पोजीशन का नाजायज फायदा उठा कर लोगों की जेबों से जबरदस्ती पैसे निकाल लेता है. एकएक कर के पिछले तकरीबन 10 वर्षों की उस की नौकरी का एकएक लमहा चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने से गुजरने लगा था.
वह देख रहा था कि कैसे लोग उस के सामने अपनी बेटी की शादी, अपना इलाज, पैसे की कमी की वजह से जीवनयापन में आ रही परेशानियों तथा और भी न जाने किनकिन मजबूरियों का रोतेरोते जिक्र करते हुए अपना फंड रिलीज करने की गुहार लगाते रहते थे. लेकिन मजाल है कि उस ने किसी का भी काम बिना पैसे लिए किया हो. लेकिन आज इस रिक्शेवाले के सामने वह अपनेआप को पराजित सा महसूस कर रहा था. उसे लग रहा था कि पढ़ालिखा और साहबबाबू होने के बावजूद अपने कर्मों और नीयत की वजह से वह उस अनपढ़जाहिल रिक्शेवाले के सामने कहीं नहीं ठहरता.
अपने पिछले कर्मों का बोझ उसे इस कदर महसूस हो रहा था कि उस का मन कर रहा था कि वह रेल की पटरी पर अपना सिर रख दे या फिर मैट्रो की ऊंची बिल्डिंग से छलांग लगा दे ताकि उसे अपने अंतर्मन पर लदे इस बोझ से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए. कुछ देर वह वहीं खड़ा हुआ पता नहीं क्याक्या सोचता रहा और फिर अपने अंतर्मन पर लदे इस बोझ को लिएलिए वह सिर झुकाए धीरेधीरे एक ओर चलता चला गया.
सुबह के साढ़े 10 बज चुके थे और लालजी प्रसाद की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. कल शाम को जब 8 बजे तक भी न तो मयंक आया और न ही उस का कोई फोन आया तो उन्होंने उस के मोबाइल पर 2-3 बार कौल की. हर बार घंटी तो बजी लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो सारी बातें तय होने के बाद न तो मयंक घर ही आया और न ही उस का फोन उठा रहा है. आज सुबह से भी वे 3-4 बार फोन लगा चुके थे लेकिन हर बार घंटी बजती थी, फोन नहीं उठा.
लालजी प्रसाद सोच रहे थे कि अगर एक बार बात हो जाती तो सारी बात साफ हो जाती कि आखिर माजरा क्या है. अभी वे यह सोच ही रहे थे कि पीएफ औफिस जाएं या न कि उन के फोन पर मैसेज आने का पिंग बजा. उन्होंने फोन उठा कर मैसेज पढ़ा तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ. उन्हें लगा कि उन से पढ़ने में गलती हो रही है लिहाजा उन्होंने एक बार फिर ध्यान से मैसेज पढ़ा-गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. मैसेज साफ था कि उन का फंड उन के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर हो चुका था.
लेखक : संजीव कुमार सरीन