वे अपने पिता की तरह दरगाहों पर सिर झुकाते हैं, चादर चढ़ाते हैं. भीड़ में खड़े किसी बड़ेबूढ़े के कंधे पर हाथ रख कर उस का हालचाल पूछते हैं, उस के पैर छू कर आशीर्वाद लेते हैं. मुसलिम टोपी पहन कर फोटो खिंचवाते हैं. पिछड़ी और दलित बस्तियों में घूमते हैं, गरीबों की झोंपडि़यों में जा कर पानी, दूध और लस्सी पीते हैं. भीड़ को देख हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं. गरीबों की तरक्की की बातें करते हैं. समाज के पिछड़े लोगों को इंसाफ और अधिकार न मिलने पर राज्य और केंद्र सरकारों को कठघरे में खड़ा करते हैं.
दरअसल, राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और लोक जनशक्ति पार्टी सुप्रीमो रामविलास पासवान के बेटे अपनेअपने पिताओं के सियासी हथकंडों को सीखने की कवायद में जुटे हैं. अपनेअपने पिताओं की दलितों और पिछड़ों की सियासत को आगे बढ़ाने व उन की लस्तपस्त पार्टी में नई जान फूंकने का बो झ इन्होंने अपनेअपने कंधों पर उठा लिया है. अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी इन्हें ही सौंपी गई है.
दिलचस्प बात यह है कि लालू और पासवान के बेटों का पहला शौक राजनीति नहीं है. पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के बजाय बेटों ने अलग राह बनाने की पूरी कोशिश की पर वे कामयाब नहीं हो सके. लालू के बेटे तेजस्वी यादव क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहते थे. दिल्ली अंडर-19 क्रिकेट टीम में खेलने के बाद उन्हें आईपीएल की दिल्ली डेयर डेविल्स टीम के लिए चुना गया लेकिन कुछ कमाल न दिखा सके. लालू यादव के एक और बेटे तेजप्रताप यादव भी राजनीति में सक्रिय हैं.
इसी तरह रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने बौलीवुड में फिल्म ‘मिले न मिले हम’ से ऐक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखा लेकिन असफल रहे. चिराग भी अपने पिता की पार्टी लोजपा की झोंपड़ी (लोजपा का चुनाव चिह्न) को रोशन करने की जुगत में लग गए हैं. वे पार्टी की सभाओं और जलसों में हिस्सा ले कर भाषण झाड़ रहे हैं.
लालू और पासवान के बेटों की नजर बिहार के युवा वोटरों पर है, जो राजनीति से कटा हुआ है और वोट डालने से कतराता है. बिहार में 1,71,09,728 युवा वोटर हैं. इन में 18 से 19 साल के वोटरों की संख्या 19 लाख के करीब है. 20 से 29 साल के वोटरों की संख्या 1 करोड़ 53 लाख के आसपास है. तेजप्रताप कहते हैं कि युवाओं को सियासत के प्रति जागरूक करने के बाद ही सियासत का तौरतरीका बदलेगा और सूबे की तरक्की हो सकेगी.
बिहार में लालू यादव और रामविलास पासवान की डगमगाती सियासी नैया को संभालने के लिए उन के बेटों ने पतवार थाम ली है. अपनेअपने पिताओं के ठेठ गंवई अंदाज से इतर बेटों ने अपने अलग अंदाज गढ़ते हुए अपनी पार्टियों को नए सिरे से एकजुट करने और राज्य सरकार पर हल्ला बोलने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है. लालू और पासवान ने अपनेअपने बेटों को खासी छूट भी दे रखी है और अब उन के बेटे मंच पर पिता की गैरमौजूदगी में भी पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.
पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गढ़ बिहारशरीफ में युवा राजद के कार्यकर्ता सम्मेलन में 23 साल के तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार पर जम कर हमला बोला. उन्होंने कहा कि बिहार में पढ़ाईलिखाई की व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है. अपराध बढ़ता जा रहा है. शासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. यह बात वे हर सभा में बोलते हैं, ‘बिहार बीमार है, बिहार लाचार है, इस का सही इलाज कराए जाने की जरूरत है, और यह काम युवा ही कर सकते हैं.’
लालू के लाल तेजस्वी और तेजप्रताप यादव केवल लफ्फाजी ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्होंने तो पार्टी के लिए नई रणनीति भी गढ़ ली है. तेजस्वी कहते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी 50-60 फीसदी टिकट युवाओं को देगी और उम्मीदवारों का चयन नेता नहीं बल्कि जनता करेगी. जनता के बीच सर्वे करा कर उम्मीदवार तय किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, जनता के बीच रह कर राजनीति का काम करेंगे. उन्होंने राहुल गांधी को मेहनती और अच्छा नेता करार देते हुए कहा कि वे बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे.
तेजस्वी इस बात पर जोर देते हैं कि महिला आयोग और बाल आयोग की तरह युवा आयोग बनाने की जरूरत है, इस से युवाओं को अपनी बात रखने का मौका मिल सकेगा.
पिछले दिनों चौहरमल महोत्सव में वे रामविलास के साथ चिराग भी मंच पर नजर आए. बारबार बातबेबात मुसकरा कर और हाथ जोड़ कर जनता को प्रणाम कर चिराग सियासत की एबीसीडी तेजी से सीख रहे हैं. चिराग कहते हैं कि नीतीश चिकनीचुपड़ी बातों से सत्ता पर कब्जा जमाए हुए हैं, पर जनता अब उन की चालों को सम झ चुकी है और अगले लोकसभा चुनाव में बिहार में राजग गठबंधन की हवा निकल जाएगी.
चिराग आगे कहते हैं कि वे बौलीवुड में जमने की कोशिश कर रहे हैं पर राजनीति तो उन की रगों में दौड़ती है. वे कहते हैं, ‘मैं राजनीति से न दूर था, न हूं और न रहूंगा.’
दलित और पिछड़ों की राजनीति कर बिहार से ले कर दिल्ली तक अपना रौब और धौंस गांठने वाले लालू यादव और रामविलास पासवान के बेटे आंखें मूंद कर अपने पिता के राजनीतिक फार्मूले के इस्तेमाल करने के मूड में नहीं हैं. पिता जहां दलित और पिछड़ों को आवाज देने को ही अपनी कामयाबी मानते हैं वहीं उन के बेटे साफ कहते हैं कि पिछड़ों को तालीम दिलाने के बाद ही असली तरक्की हो सकेगी. पढ़ने के बाद हर कोई अपना रास्ता खुद बना ही लेता है, उसे किसी बैसाखी की दरकार नहीं रहती है.
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. इन में से 32 पर राजग का कब्जा है. साल 2009 के आम चुनाव में जदयू के खाते में 20 सीटें गई थीं और 12 भाजपा की झोली में गई थीं. राजद को 4 सीटों पर जीत मिली जबकि लोजपा को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. कांगे्रस और निर्दलीय ने 2-2 सीटों पर कब्जा जमाया था. 2004 के आम चुनाव में राजद के खाते में 22 और लोजपा के पास 4 सीटें थीं. अब 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि लालू और पासवान के लड़के खुद को बाप से बढ़ कर साबित कर पाते हैं या नहीं.
तेजस्वी की चौपाल यात्रा
लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने राजद की परिवर्तन रैली के बाद ‘चौपाल यात्रा’ शुरू करने का ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि वे युवाओं को जगाने और उन्हें एक मंच पर लाने के लिए यात्रा पर निकलेंगे. गांवों और पंचायतों की चौपालों में सभा कर के युवाओं को राजनीति से जोड़ने व वोट के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाएगा.
अपने पिता को अपना रोल मौडल मानने वाले तेजस्वी कहते हैं कि बिहार में मतदान का प्रतिशत काफी कम होता है. इसलिए जब तक युवाओं को राजनीति से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक सियासत और सरकार का ढर्रा नहीं बदल सकता.
आरक्षण के मसले पर तेजस्वी कहते हैं कि यह जरूरी है पर समय के साथ इस में कुछ बदलाव करने की जरूरत है.