Men’s Fashion : सौंदर्य का मसला अब सिर्फ औरतों से सम्बंधित नहीं रह गया है. मीडिया कंपनियों, प्राइवेट फर्म्स, मल्टीनैशनल कंपनियों ने स्मार्ट लुक वाले पुरुषों को नौकरी में प्राथमिकता दे कर पुरुषों को भी खुद पर खर्च करने के लिए मजबूर किया है, तो वहीं बाजार ने भी पुरुषों को सौंदर्य प्रसाधनों का गुलाम बना दिया है.

श्यामली एक कंपनी में सेल्स मैनेजर के पद पर कार्यरत है. उस का पति अंकुर भी एक कंपनी में सीनियर मैनेजर है. दोनों ही काफी अपटूडेट रहते हैं. अपने लुक्स और कपड़ों को ले कर अंकुर श्यामली से ज्यादा टाइम और पैसा खर्च करता है. श्यामली जब शौपिंग के लिए जाती है तो 10-12 हजार रुपए में उस की कई मौर्डर्न ड्रैसेस आ जाती हैं. 5-6 हजार रुपए वह महीने दो महीने में ब्यूटीपार्लर, फुटवियर, पर्स आदि पर खर्च कर देती है. मगर अंकुर जब भी अपने लिए शौपिंग करता है 25-30 हजार रुपए किसी मौल में ब्रांडेड कपड़ों की खरीदारी में ही फूंक आता है. फिर उस के ब्रांडेड जूते, सैलून का खर्च, ब्रांडेड परफ्यूम-पाउडर आदि का खर्च अलग. हर पांच छह महीने में वह अपना लैपटौप बैग भी बदल देता है. बौडी शेप में रखने के लिए वह रोज सुबह जिम जाता है, जिस का खर्च अलग होता है.

इस खर्च को ले कर कई बार दोनों में कहासुनी भी हो जाती है. श्यामली कहती है, “औरतों पर बेकार ही आरोप लगते हैं कि वे अपने पतियों की कमाई लुटाती हैं, मगर यहां तो उलटा है. तुम जितना पैसा खुद को सजाने संवारने में लगाते हो उतना तो तीन औरतें मिल कर नहीं उड़ातीं हैं. अगर मैं नौकरी ना करूं तो तुम्हारी अकेले की सैलरी में तो घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाए.”

अंकुर हिसाब लगाता है तो श्यामली की बात ठीक भी लगती है मगर क्या करे औफिस और आएदिन होने वाली औफिस की मीटिंग-पार्टियों में स्मार्ट दिखना भी जरूरी है. इस के लिए जब तक ब्रांडेड कपड़े न हों, ब्रांडेड जूते, ब्रांडेड पर्स आदि न हों, परफैक्ट लुक ही नहीं आता है. अब ब्रांडेड चीजें तन पर हों तो चेहरा और फिजीक भी तो अच्छा दिखना चाहिए इसलिए सैलून में जा कर सिर्फ हेयर-कट करा लेने से बात नहीं बनती, चेहरे पर ब्लीच-फेशियल, हेयर स्पा, हेयर कलर, मेनिक्योर-पेडीक्योर भी बहुत जरूरी होता है. स्वस्थ रहने के लिए जिम जाना भी जरूरी लगता है. न जाए तो वजन बढ़ने लगता है.

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में पुरुष भी फैशन के मामले में पीछे नहीं है. आज फैशन का परिदृश्य काफी बदल गया है. पहले के दिनों में पुरुषों के लिए फैशन सिर्फ सादे शर्टपैंट तक सीमित था, लेकिन अब वे अपने स्टाइल और लुक के प्रति बहुत जागरूक हो गए हैं. इस में बुराई भी नहीं है. पुरुषों में फैशन सेंस का बढ़ता चलन एक सकारात्मक बदलाव है. यह पुरुषों को अपनी व्यक्तिगत शैली विकसित करने और अपने व्यक्तित्व को व्यक्त करने का अवसर भी प्रदान करता है.

सौंदर्य का मसला अब सिर्फ औरतों से सम्बंधित नहीं रह गया है. मीडिया कंपनियों, प्राइवेट फर्म्स, मल्टीनैशनल कंपनियों ने स्मार्ट लुक वाले पुरुषों को नौकरी में प्राथमिकता दे कर पुरुषों को भी खुद पर खर्च करने के लिए मजबूर किया है, तो वहीं बाजार ने भी पुरुषों को सौंदर्य प्रसाधनों का गुलाम बना दिया है. बड़ीबड़ी कंपनियों के सौंदर्य उत्पाद का प्रचार जब शाहरुख खान या अक्षय कुमार जैसे बड़ेबड़े अभिनेता छोटेबड़े परदे पर करते हैं, तो हर पुरुष चाहता है कि वह ब्रांड उस की अलमारी में भी हो.

वैसे अच्छे कपड़े पहनने और स्मार्ट दिखने से इंसान का खुद पर कान्फिडेंस भी बढ़ता है. इस से कार्यक्षमता भी बढ़ती है. स्मार्ट लुक वाले पुरुषों से सभी मेलजोल बढ़ाना चाहते हैं, बात करना चाहते हैं. औफिस में चुस्त और स्मार्ट वर्कर को प्रमोशन आसानी से मिल जाता है. वह बौस की नजरों में भी रहता है. यदि औफिस के किसी काम से या किसी से डील करने के लिए बौस किसी कर्मचारी को भेजना चाहे तो वह सब से पहले यह देखता है कि कौन ज्यादा स्मार्ट और अच्छे कपड़े पहने है. तो आज के समय में पुरुष यदि खुद को बेहतर दिखाने के लिए पैसे खर्च कर रहे हैं, तो इस में बुराई नहीं है.

हाल ही में एक सर्वे में पाया गया है कि आजकल औरतों से ज्यादा पुरुष खुद को संवारने, देखभाल करने और सोने व जिम करने में वक्त और पैसा खर्च करते हैं. पुरुष अपने मनोरंजन के लिए भी काफी समय निकाल लेता है. वह टीवी, वीडियो गेम, खेलकूद, जिम आदि में समय व्यतीत करता है और खुद को तनावमुक्त रखने में सफल होता है, जबकि औरत यदि नौकरीपेशा है तो उसे इन चीजों को करने के लिए वक़्त ही नहीं मिलता है. क्योंकि औफिस जाने से पहले का तमाम समय और औफिस से लौटने के बाद का पूरा समय उसका किचन में ही बीतता है. इस काम में ज्यादातर पुरुष अपनी पत्नियों की कोई मदद नहीं करते हैं. यहां तक कि जिन घरों में बच्चे हैं वहां बच्चों की पढ़ाई और अन्य क्रियाकलापों की भी पूरी जिम्मेदारी औरत के कंधे पर होती हैं. ऐसे में उसे अपनी साजसंवार के लिए कोई ख़ास समय भी नहीं मिलता है.

अब रफ-एंड-टफ वाला समय नहीं रहा. घर पर भी लड़के अब कुर्ते पायजामे में नहीं दिखते बल्कि ट्रैक सूट, बरमूडा-टी-शर्ट में नजर आते हैं. कुर्ते पायजामे वाला लुक उन को ज्यादा गंभीर और प्रौढ़ बनाता है जबकि बरमूडा जवान और चुस्त लुक देता है. आज किशोरावस्था से ही पुरुष स्मार्ट लुक पाने के लिए प्रयासरत हो जाता है. सैलून में जा कर बालों को कलर करवाना, नईनई हेयर कटिंग ट्राय करना, फेशियल आदि करवाना तो कम आय वाले निम्न तबके के पुरुषों के लिए भी आम बात होती जा रही है, फिर मध्यम और उच्च वर्ग की बात क्या कहें.

जवान ही नहीं अब तो 50 पार के प्रौढ़ और 70 पार के बूढ़े भी दो दशक पहले पहने जा रहे परिधानों को त्याग चुके हैं. 40-50 की उम्र में पैंटशर्ट की जगह टाइट जींस और टीशर्ट पहन कर खुद को 30-35 का महसूस करते और फिर उसी चुस्ती फुर्ती से काम करते लोग बड़ीबड़ी कम्पनीज में खूब दिखते हैं. अब सुबह की सैर पर जाते बूढ़ों पर निगाह डालिए. कुरता पायजामा पहने शायद ही कोई नजर आता हो. अधिकतर बूढ़े ट्रैक सूट, बरमूडा या हाफ पैंट टीशर्ट में ही दिखेंगे. पैरों में स्पोर्ट्स शूज और आंखों पर गौगल्स चढ़ाए पार्क में टहलते बुजुर्गों को देख कर ख़ुशी होती है कि बुढ़ापे की नीरसता त्याग कर जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी वे जोश से ओतप्रोत हैं. शायद यही वजह है कि अब इंसान की उम्र भी बढ़ रही है. पहले जहाँ पचास साल के आदमी के चेहरे पर बुजुर्गियत के भाव झलकने लगते थे और साठ के करीब आतेआते वह बीमार सा नजर आने लगता था, अब 80 साल की उम्र में भी चुस्त दुरुस्त दिखता है. ऐसे में पुरुष का खुद पर पैसे खर्च करना और खुद की साजसंवार पर ज्यादा समय लगाना अच्छा ही है. औरतों को इस पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.

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