Pahalgam Terrorist Attack : लगातार हो रहे आतंकी हमले देश की सुरक्षा और सरकारी विफलता की ओर इशारा करते हैं मगर मजाल कि इस पर सवाल उठाए जाएं, बल्कि अपनी कमियों को छुपाते हुए सत्तापक्ष पहलगांव आतंकी हमले के बाद अब उल्टा देशभर में सांप्रदायिक रंग दे रही है और स्थिति को और बुरा कर रही है.

22 अप्रैल की दोपहर सऊदी अरब में जद्दा के आकाश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा और सम्मान में सऊदी एयर फोर्स के रौयल लड़ाकू एफ-15 फाइटर जेट्स उन के विमान को स्कोर्ट कर रहे थे. इस रौयल सम्मान को देख कर प्रधानमंत्री के चेहरे पर अनोखी चमक उभर आई थी. जद्दा की जमीन पर सऊदी अरब के युवराज और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान अल सऊद ने गले लग कर उन का इस्तकबाल किया. मोदी को 21 तोपों की सलामी दी गई और ‘ऐ वतन…’ गीत के साथ उन का भव्य स्वागत हुआ. कितने गर्व का क्षण था, लेकिन लगभग इसी समय भारत पर एक जबरदस्त आतंकी हमला हुआ. कश्मीर के पहलगाम में मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से प्रसिद्ध खूबसूरत घास के मैदान बैसरन में 4 आतंकियों ने 28 लोगों को उन के नाम और धर्म पूछपूछ कर मौत के घाट उतार दिया और 20 से ज्यादा लोग आतंकियों की गोलियों से घायल हुए. घाटी में जहांतहां लाशें ही लाशें नजर आने लगीं. चंद मिनट पहले जो हराभरा मैदान घुड़सवारों की मौजमस्ती, बच्चों की किलकारियों और महिलाओं की हंसी से गुलजार था, वह गोलियों की तड़तड़ाहट, घायलों की चीखोंचीत्कारों और औरतोंबच्चों के करुण रुदन से थरथरा उठा.

दहशत में डूबी महिलाएं अपने पति, बेटे, पिता की लाशों से लिपटी हुईं, भय से इधरउधर चीखतेभागते पर्यटक, घायलों की खून में लथपथ काया, कहीं बिलखती हुई बुजुर्ग महिलाएं, कांपती टांगों पर झुके हुए बूढ़े, डर से थरथराते मासूम बच्चे, पति की लाश के पास बैठी नि:शब्द महिला. इन तस्वीरों को देख कर पूरा देश सिहर उठा.

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने एक बार फिर वहशियाना खूनी खेल खेला. आतंकियों ने अपने खूनी मंसूबों को अंजाम देने के लिए ऐसा दिन चुना था जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी दो दिन के दौरे पर जद्दा पहुंचे थे और अमेरिका के उप राष्ट्रपति जे.डी. वेन्स अपनी पत्नी ऊषा और तीनों बच्चों के साथ भारत आए हुए थे. वेन्स इस घटना के वक़्त जयपुर में मौजूद थे. इस के बाद वे आगरा गए और आतंकी हमले की खबर कान में पड़ते ही रात का डिनर कैंसिल कर अपनी और अपने बीवी बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर अमेरिका लौट गए जबकि उन्हें एक दिन और रुकना था. कितनी शर्म की बात हुई. मेहमान के रूप में अमेरिका से आए वेन्स हों या कश्मीर में देश दुनिया के कोनेकोने से आए पर्यटक, वे जब अपनी और अपनों की जान के डर से घाटी छोड़छोड़ कर भागे, वह दृश्य कतई अच्छा नहीं था. सब के दिल में एक ही बात थी, कहां आ गए?

पहलगाम में आतंकियों ने जिन लोगों को मारा वे सभी टूरिस्ट थे. इन में से कोई हनीमून मनाने आया था तो कोई परिवार सहित कुछ दिन सुकून और खुशियों की तलाश में पहुंचा था. 44 साल के शैलेश कलठिया मुंबई से अपनी पत्नी शीतल, बेटी नीति और बेटे नक्षत्र के साथ खास अपना जन्मदिन मनाने के लिए कश्मीर पहुंचे थे. लेकिन यह उन का आखिरी जन्मदिन हो गया. वे उस वक्त घुड़सवारी का आनंद ले रहे थे जब एक आतंकी ने पौइंट ब्लैंक से उन के सीने पर गोली मार दी और एक क्षण में इस हंसतेखेलते परिवार की खुशियां चकनाचूर हो गईं.

कानपुर के शुभम द्विवेदी की शादी अभी 2 महीने पहले फरवरी में हुई थी. वह अपनी नई नवेली पत्नी और परिवार के साथ कश्मीर घूमने आए थे. पत्नी के सामने ही आतंकियों ने शुभम को मौत के घाट उतार दिया. उन की पत्नी ने आतंकवादियों से कहा कि मुझे भी गोली मार दो, मगर आतंकवादी ने कहा, ‘जा कर अपनी सरकार को बता दो कि हम ने क्या किया है.’

सेना में लैफ्टिनेंट विनय नरवाल की शादी तो अभी 6 दिन पहले ही 16 अप्रैल को हुई थी. वे अपनी पत्नी हिमांशी के साथ हनीमून मनाने पहलगाम आए थे. सोचिए, एक नवविवाहित जोड़े ने कितने उत्साह से कश्मीर से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की प्लानिंग की होगी. मगर आतंकवादियों ने हमेशा हमेशा के लिए उन की खुशियां ख़त्म कर दी.

कर्णाटक की पल्लवी और उन के बेटे की तस्वीरें अख़बारों में छपी हैं. उन के पति मंजुनाथ की भी हत्या कर दी गई. पहलगाम के ही आदिल हुसैन शाह को आतंकवादियों ने मार दिया क्योंकि आदिल हुसैन शाह ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी तरफ बढ़ते एक आतंकी को ललकारा और उस की बंदूक छीनने का प्रयास किया.

पहलगाम के रहने वाले आदिल पर्यटकों को घुड़सवारी कराते थे. उन्होंने जब देखा कि आतंकी पर्यटकों की तरफ बन्दूक तान कर बढ़ रहे हैं तो वे उन्हें ललकारते हुए उन पर टूट पड़े और बंदूक छीनने की कोशिश की. पर आतंकी ने उन का सीना गोलियों से छलनी कर दिया. मगर आदिल की हिम्मत के कारण कुछ पर्यटकों की जान बच गई और वे वहां से बच कर भागने में सफल हुए.

सुशील नाट्याल, सैयद आदिल हुसैन शाह, हेमंत जोशी, विनय नरवाल, भारत भूषण, सुमित परमार, मंजुनाथ श्रीकांत मोनी, नीरज, प्रशांत कुमार सत्पथी, मनीष रंजन, एम रामचंद्रन, संजय लक्समन, दिनेश अग्रवाल, समीर, दिलीप दसलि, सचंद्र मोली, मधुसूदन, संतोष जगधा जैसे अनेक लोग आतंकियों की गोलियों का शिकार हो कर असमय ही मौत की नींद सुला दिए गए. इन में नौसेना के अधिकारी, आईबी और सेना के लैफ्टिनेंट, आम कारोबारी, सरकारी कर्मचारी सभी थे, जो यह सोच कर वादी में छुट्टी बिताने आए थे कि अब वहां सब ठीक है, जैसा कि मोदी सरकार दावा कर रही थी.

मगर इस आतंकी हमले ने बता दिया कि कश्मीर में कुछ भी ठीक नहीं है. मोदी सरकार के ‘सब कुछ ठीक’ होने के दावे सिर्फ झूठे जुमले हैं. इस से पहले हुए आतंकी हमले या तो सेना पर हुए या स्थानीय नागरिकों पर, मगर इस बार के आतंकी हमले ने अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा. तेलंगाना. कर्नाटक. केरल, तमिलनाडु. गुजरात, चंडीगढ़ और नेपाल तक कितने परिवारों और कितने राज्यों तक अपनी दहशत पहुंचा दी है. जिस समय यह हमला हुआ बैसरन में कोई 2000 पर्यटक मौजूद थे. इतनी बड़ी तादात में जहां पर्यटक मौजूद हों वहां एक भी सुरक्षाकर्मी का न होना राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों को सवालों के कटघरे में खड़ा करता है.

जहां एक दिन में दोदो हजार सैलानी घूमने के लिए आते हों, वहां सुरक्षा का कोई इंतजाम न होना बड़े आश्चर्य का विषय है. बैसरन में 20 मिनट तक गोलीबारी होती रही और एक भी सुरक्षाकर्मी निकल कर सामने नहीं आया. और इस से भी बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि इस बात का पता आतंकियों को भलीभांति था कि वे आराम से वहां गोलीबारी कर लाशों के ढेर लगा सकते हैं और उन को पकड़ने के लिए दूरदूर तक सेना या पुलिस का कोई आदमी नहीं होगा. इसीलिए तो वे आराम से लोगों के नाम और धर्म पूछपूछ कर गोलियां सीनों पर दागते रहे, क्योंकि उन को पकड़े जाने का कोई डर ही नहीं था. खूनखराबा कर के वे आराम से चलते बने. उन्होंने बाकायदा उस जगह की रेकी की थी. स्थानीय दहशतगर्दों की मदद भी उन्हें मिली, मगर हमारी खुफिया एजेंसियां इतनी निकृष्ट है कि देश में कौन आ रहा है कौन जा रहा है, उन्हें कुछ खबर नहीं है.

आतंकवाद जब जब देश पर हमला करता है तो पुराने हमलों में मारे गए लोगों के परिवारों के जख्म भी हरे हो जाते हैं. आम नागरिक से ले कर सेना, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस के परिवार 22 अप्रैल को एक बार फिर हमले के दर्द से जरूर छटपटाए होंगे. मगर हर बार आतंकी घटना के बाद प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, मुख्यमंत्री इस आश्वासन के साथ अपने कार्य की इतिश्री कर लेते हैं, कि पूरा देश पीड़ितों के साथ खड़ा है, हम आतंकियों को करारा जवाब देंगे. आखिर कब देंगे? और किस तरह देंगे? इस का इन के पास कोई जवाब नहीं है. हमला होने और निर्दोष जानें जाने के बाद ये मुंह पर उदासी लपेट कर दोचार लाइन का छोटा सा भाषण राष्ट्र के नाम – हम करारा जवाब देंगे. और बस जिम्मेदारी पूरी.

आखिर सरकार अपनी कमी, अपनी लापरवाही, अपनी खुफिया एजेंसियों का निकम्मापन नाकामी और अपनी जवाबदेही कब तय करेगी? मोदी सरकार ने नोटबंदी के समय बड़ा शोर मचाया था कि इस से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी. इस के बाद मोदी सरकार ने जब धारा 370 हटाई थी तब भी सीना ठोंक कर कहा था कि इस से घाटी में शांति आएगी और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा, कश्मीरी पंडितों को इंसाफ मिलेगा, वे घर वापसी करेंगे. क्या हुआ इन दावों का? क्या घाटी में शांति आ गई? कश्मीरी पंडितों को इंसाफ मिल सका? उन की घर वापसी हुई? नहीं. बल्कि कश्मीरी पंडितों पर हमले बढ़ गए.

धारा 370 को हटाए जाने के दो साल बाद मोदी सरकार ने खुद संसद में जानकारी दी कि 14 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई. फिर आतंकी बिहार और यूपी से आए मजदूरों पर गोलियां दागने लगे. सितम्बर 2023 में अनंतनाग में जम्मू कश्मीर के पुलिस उपाधीक्षक हुमायुं भट्ट की मौत हुई. सेना के दो अधिकारी भी इस एनकाउंटर में मारे गए. 2024 में अलग अलग घटनाओं में बिहार के राजा शाह और अशोक चौहान की हत्या कर दी गई. 2024 में ही एक टनल प्रोजैक्ट में काम कर रहे जम्मू कश्मीर, पंजाब और बिहार के छह मजदूरों की हत्या कर दी गई. इस हमले में मडगाम के डाक्टर शाहनवाज को भी मार दिया गया. सितम्बर 2024 में जम्मू कश्मीर पुलिस के हेड कांस्टेबल बशीर अहमद की कठुआ एनकाउंटर में मौत हो गई. जब आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाना शुरू किया तब भी उन्हें पता था कि उन का धर्म क्या है. तब उन्होंने धर्म नहीं पूछा था. मगर इस बार आतंकियों ने पर्यटकों से उन के धर्म पूछे और फिर गोली मारी. क्यों?

क्योंकि केंद्र की भाजपा सरकार ने पूरे देश में धर्म के नाम पर जो गंदगी फैला रखी है, समाज को जिस तरह हिंदूमुसलमान में बांट दिया है उस से अब देश के दुश्मनों को भी समझ में आ गया है कि यहां धर्म को हथियार बना कर बड़ी आसानी से लोगों को आपस में लड़वाया जा सकता है और देश को कमजोर किया जा सकता है. उन्होंने इस बार हमला किया और लोगों से उन का धर्म इसलिए पूछा ताकि धर्म के नाम पर उबाल पैदा हो जाए. वे जानते हैं कि उन्हें तो सिर्फ चिंगारी भर छोड़नी है, बाकी का काम खुद सरकार में बैठे मंत्री-विधायक, उन का भगवाधारी गैंग और उन के हाथों की कठपुतली बना गोदी मीडिया पूरा कर देगा.

पहलगाम हमला 2019 के पुलवामा हमले के बाद घाटी में सब से घातक हमलों में से एक है. पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान मारे गए थे. मगर आज तक पुलवामा के अपराधियों को मोदी सरकार जेल की सलाखों में नहीं पहुंचा पाई. पुलवामा क्यों हुआ? इस सवाल पर खामोशी है. इतनी बड़ी मात्रा में आरडीएक्स वहां कैसे पहुंचा? इस सवाल पर भी खामोशी है. पुलवामा पर क्या किसी की जिम्मेदारी तय हुई? पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने इतने सारे आरोप लगाए उन का क्या हुआ? सब पर सरकार ने खामोशी ओढ़ ली. मोदी सरकार के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह सरकारें गिराने, पार्टियों को तोड़ने, विपक्षी नेताओं की जासूसी करवाने, उन के पीछे ईडी और सीबीआई छोड़ने और चुनावों में धांधली करवाने में व्यस्त हैं. मुसलमानों को टारगेट करने, हिंदूओं की भावनाएं भड़काने, किसानों को कुचलने से उन्हें फुर्सत नहीं मिल रही है. पूरा देश साम्प्रदायिकता का जहर पी कर तड़प रहा है, मणिपुर से ले कर कश्मीर तक जल रहा है, चीन भारत पर चढ़ा चला आ रहा है और नीरो चैन की बंसी बजा रहा है.

पुलवामा से पहले पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ था क्या कोई जवाबदेही तय हुई? इतने कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई क्या किसी की जवाबदेही तय हुई? मोदी सरकार में कई शीर्ष पदों पर खास तरह के लोग लम्बे समय से बैठे हुए हैं. उन की कोई जवाबदेही क्यों नहीं तय होती है? आखिर ऐसे समय में एनआईए प्रमुख अजीत डोभाल कहां गायब हो जाते हैं?

जब जब कश्मीर में आतंकी हमले होते हैं तब तब स्थानीय लोगों को पुलिस उठा लेती है. कश्मीर में हर आतंकी घटना के बाद अनेक परिवारों के लोगों को अपनी निष्ठा साबित करनी पड़ती है क्योंकि वे बड़ी आसानी से संदेह के घेरे में आ जाते हैं. इस घटना के बाद भी हजार से ऊपर कश्मीरियों को हिरासत में लिया गया है और उन से पूछताछ की जा रही है. इन में ज्यादातर निर्दोष होंगे. मगर उन के परिवार वाले परेशान हैं क्योंकि सरकार ‘कुछ काम होते’ दिखाने के लिए कइयों को जेल में डाल देगी. हर घटना की इन्वेस्टीगेशन जरूरी है मगर वह सही दिशा में होना चाहिए, न कि दिखावे के लिए.

कश्मीर की सड़कें इस हमले के बाद वीरान हो गई हैं. दुकानें बंद हैं, होटल खाली हो चुके हैं और टूरिस्ट निकल चुके हैं. सब की संवेदना उन परिवारों के साथ है जो इस आतंकी हमले के बाद उजड़ गए, मगर संवेदना उन कश्मीरियों के साथ भी होनी चाहिए जिन की रोजीरोटी और सुकून इस आतंकवाद ने ख़त्म कर दिया. अब की सीजन में कश्मीर की झोली खाली ही रहेगी. बच्चे फांकें करेंगे.

भाजपाई नेताओं के बयानों के बाद इस आतंकी हमले को हिंदूमुसलमान में बांट कर देखा जा रहा है. मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है कि जो लोग वहां बचाए गए और जिन्होंने उन्हें बचाया वे तमाम लोग मुसलमान ही थे. चाहे वे घोड़ेवाले थे या पालकी वाले. जिन्होंने अपने घोड़ों और पालकियों में बिठाबिठा कर लोगों को रेस्क्यू किया और उन्हें आर्मी के पास पहुंचाया.

आतंकवादी तो चाहता ही है कि हम हिंदूमुसलमान के नाम पर लड़ें और एक दूसरे को मारें. एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं. इस से उन का काम आसान हो जाएगा और आतंकवाद अपने इरादे में कामयाब हो जाएगा. दुश्मन हमारी कमजोर नसों को जान गया है लेकिन अफ़सोस हम आतंकवादियों के इरादों को ठीक से नहीं पहचान रहे हैं. उस के पीछे खड़े मुल्क पाकिस्तान की सेना के मंसूबों को नहीं समझ पा रहे हैं.

कश्मीर में बंद का आह्वान हुआ. पूरा कश्मीर बंद रहा मगर अच्छा होता कि जिस तरह कश्मीर बंद किया गया, उस की आवाज से आवाज मिलाते हुए देश के अन्य राज्य भी बंद का आह्वान करते. लगता पूरा देश कश्मीर के साथ है मगर अफसोस कि इतने बड़े हमले की शाम भी आईपीएल का मैच चलता रहा. अगले दिन भी मैच चला और स्टेडियम खचाखच भरे रहे. हर चौके छक्के पर तालियों की गड़गड़ाहट आसमान हिला रही थी.

इस से भी शर्मनाक यह था कि पटना में वायुसेना का एयर शो रद्द नहीं किया गया. ऐसी घटना के बाद एयर शो हुआ ही क्यों? क्या इसलिए की वहां चुनाव होने हैं? पहलगाम में आतंकी हमला हुआ और पटना में मुख्यमंत्री एयर शो का लुत्फ़ उठाते दिखाई दिए. क्या भाजपा को, बिहार सरकार को घटना का सदमा नहीं लगा? इसी तरह जब पुलवामा हमला हुआ था उस वक्त नरेंद्र मोदी सफारी का मजा ले रहे थे. अगर यही तस्वीर कहीं राहुल गांधी की होती तो गोदी मीडिया छाती पीटपीट कर मातम मना रहा होता.

मोदी सरकार लाख छाती पीटे कि कश्मीर देश का अभिन्न अंग है मगर सच तो यह है कि कश्मीर और कश्मीरी आज खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहा है. वह कतई सुरक्षित नहीं है. आतंक का साया उसे हर तरफ से घेरे हुए है. वहां आएदिन किसी न किसी कोने में आतंकियों के साथ सेना और पुलिस की मुठभेड़ हो रही है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...