Lifestyle : ‘बेटा मुझे डाक्टर के पास ले चलो, मेरा ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया है.’ सुदर्शन लाल ने बेटे के ऑफिस से लौटते ही फरमान सुनाया.

‘कितना है ब्लड प्रेशर?’ अमित ने पिता से पूछा.

‘160/100’ सुदर्शन लाल ने जवाब दिया.

‘कब चेक किया था?’

‘दोपहर में.’

‘चलिए मैं एक बार फिर चेक कर लेता हूं.’ अमित ने पिता की अलमारी से ब्लड प्रेशर नापने वाला इंस्ट्रूमेंट निकालते हुए कहा.
सुदर्शन लाल का ब्लड प्रेशर 120/80 निकला. अमित बोला, “पापा, आप का बीपी तो बिलकुल ठीक है.”

“पर दोपहर में तो 160/100 था. यानी बीपी फ्लकचुएट कर रहा है. बेटा डाक्टर को दिखा ही लेते हैं.”

“पापा, बीपी बिलकुल ठीक है. बेकार में डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. 800 रुपये फीस ले लेगा कर 800 की दवाई लिख देगा, जबकि आप बिलकुल ठीक हैं.”

पर सुदर्शन लाल को लगा कि बेटा पैसे बचाने के लिए ऐसा कह रहा है. दूसरे दिन खुद ही डाक्टर के पास चले गए और दवा लिखवा लाए.

ऐसे बहुतेरे बुजुर्ग हैं, और युवा भी हैं जो इस भय से ग्रस्त रहते हैं कि उन के शरीर में कुछ गड़बड़ है. ये भय कोरोना महामारी के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गया है. जरा सी खांसी आई तो लोग समझने लगते हैं कि कंजेशन हो गया और फेफड़े संक्रमित हो गए हैं. फिर वे खुद को नेबुलाइज करने में लग जाते हैं. सुबह शाम नेबुलाइजर में दवा डाल डाल कर सांस के साथ खींचने लगते हैं.

पहले खांसी जुकाम होने पर मां किचन में रखे गरम मसालों का काढ़ा बना कर पिला देती थी. सारा जुकाम बह जाता था. या सरसों के तेल में अजवाइन जला कर छाती और पीठ की मालिश कर देती थी और खांसी छूमंतर हो जाती थी. साथ खेलने-पढ़ने वाले कुछ लड़कों की नाक तो बारहों महीने बहती थी, मगर कोई चिंता नहीं. तब कहां थे नेबुलाइजर? न इस बात का डर कि फेफड़े जाम हो जाएंगे. यह डर तो कोरोना ने पैदा किया और लोगों में नेबुलाइजर और स्टीमर खरीद कर घर में भर लिए. बड़े बुजुर्ग कहते थे मौसम बदलने पर सर्दी खांसी तो हो ही जाती है. चार पांच दिन में अपनेआप ठीक भी हो जाती है. मगर हम छींक आते ही घबरा उठते हैं.

जिन्हें शुगर की बीमारी है, या नहीं भी है, वे भी हर दिन अपना शुगर चेक करते दिखाई देते हैं. बाजार में शुगर चेक करने की अनेकों कंपनियों की मशीने धड़ाधड़ बिक रही हैं. किसी की शुगर थोड़ी हाई क्या हुई बस केमिस्ट शौप से शुगर चेक करने की मशीन और स्ट्रिप्स खरीद लाए और लगे उस पर खून के कतरे गिराने.

अमित के पिता पहले महीने में एक बार अपने फैमिली डाक्टर के पास जाते थे और वो उन का बीपी शुगर सब चेक कर देता था. उन्हें कभी इस के लिए दवा खाने की जरूरत नहीं पड़ी. डाक्टर का कहना था कि यह दोनों चीजें कुछ काम ज्यादा होती रहती हैं. खाने पीने से इसे कंट्रोल कर सकते हैं. आप चिंता में हैं, कहीं से लम्बी दूरी चल कर आ रहे हैं या मौसम गरम हो तो बीपी थोड़ा ऊपर हो जाता है. तनाव ख़त्म होने पर और मन शांत होने पर वह अपनेआप सामान्य हो जाता हो जाता है. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे दौड़ लगा कर आने पर हार्ट बीट बढ़ जाती है और आराम करने पर सामान्य हो जाती है. इसी तरह खाना खाने के बाद या अधिक मीठी चीज खाने के बाद ब्लड शुगर थोड़ा बढ़ जाता है. मगर इसका मतलब यह नहीं कि आप डाक्टर के पास भागे चले जाएं या सुबह शाम बीपी शुगर चेक करते रहें.

पहले घरों में बमुश्किल एक थर्मामीटर हुआ करता था. कभी किसी को बुखार आ गया तो नाप लिया ताकि डाक्टर को बता सकें. मगर आज बीपी की मशीन, शुगर की मशीन, नेबुलाइजर, औक्सीजन नापने की मशीन, वजन तोलने की मशीन, स्टीमर, इलैक्ट्रिक हौट वाटर बैग्स, मसाज इंस्ट्रूमेंट, डिजिटल थर्मामीटर, ग्लूकोमीटर और ना जाने किन किन मैडिकल उपकरणों से हम ने अपने घर की अलमारियों को भर लिया है. जैसे घर न हुआ कैमिस्ट की दुकान हो गई. अब खरीदा है तो इन का प्रयोग भी करते हैं और तनाव पाल कर सचमुच बीमार पड़ जाते हैं.

अभिषेक के पिताजी कैमिस्ट हैं. अभिषेक कभीकभी उन के साथ दुकान पर बैठता था. उस के पास फार्मा की कोई डिग्री नहीं है फिर भी उस ने बाप को बढ़िया कमाई कर के दी. दरअसल अभिषेक के पिता तो बस दवाएं बेचते थे मगर अभिषेक ने कोरोना के टाइम पर अनेकों तरह के मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स से अपनी केमिस्ट की दुकान भर ली और दोगुने दामों पर बेच कर खूब कमाई की. कोरोना के टाइम पर लोगों का डाक्टर्स और पैथलैब्स तक जाना मुश्किल था तो अभिषेक ने अपने ग्राहकों के बीच नएनए मैडिकल उपकरणों का बखान कर आपदा में अवसर खोज लिया. सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहने वाले अभिषेक ने औनलाइन ग्राहक भी खूब बना लिए. हर बीमारी की जांच के लिए उस के पास कोई ना कोई इंस्ट्रूमेंट मौजूद था. उस के पिता तो उसका बिज़नेस कौशल देख कर हतप्रभ थे. कोरोना काल के बाद अभिषेक ने मैडिकल इंस्ट्रूमेंट्स के होलसेल का काम शुरू कर दिया है.

अभिषेक जैसों के चक्कर में ही अमित के पिता जैसे लोग फंसते हैं और अपना पैसा और मन की शांति दोनों खोते हैं. अमित के पिता जी शारीरिक रूप से बिलकुल फिट हैं. मगर सारा दिन यूट्यूब पर विभिन्न इन्फ्लुएंसर्स के द्वारा प्रचारित की जा रही स्वास्थ्य सम्बन्धी बातें देख सुन कर खुद को बीमार समझने लगे हैं. दुनियाभर के मैडिकल उपकरण खरीद कर उन्होंने अपने बेडरूम की अलमारी में भर लिए हैं और आएदिन अपना शुगर, बीपी, औक्सीजन, वजन आदि नापते रहते हैं. सैर कर के आएंगे और बीपी चेक करने बैठ जाएंगे. ऐसे में बीपी तो बढ़ा हुआ दिखना ही है. इस से वे तनावग्रस्त हो जाते हैं और खुद को बीमार समझने लगते हैं.

होम मैडिकल उपकरणों का बाजार लगातार बढ़ रहा है. इस की एक वजह यह है कि अब लोगों की औसत उम्र बढ़ गई है. पहले जहां 60 – 65 साल तक लोग जीते थे वहीं अब 80 – 85 साल जीवन प्रत्याशा हो गई है. यानी समाज में बुजुर्गों की संख्या में इजाफा हो रहा है. पहले की अपेक्षा अब लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा भी ज्यादा है. इस के अलावा अनेक लोग बुढ़ापे में अकेला जीवन जी रहे हैं. फिर यूट्यूब और फेसबुक ने लोगों की सोच समझ को बुरी तरह प्रभावित किया है. खासकर बूढ़े लोगों की. सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर्स की बातों को वे बिलकुल सत्य समझने लगते हैं. सोशल मीडिया पर आने वाले विज्ञापनों के जरिए उन्हें नएनए उत्पादों के बारे में जानकारियां हासिल हो रही हैं. ऐसे में वे सोचते हैं कि डाक्टर के पास जा कर बारबार शरीर का चेकअप कराने से बेहतर है उपकरण खरीद कर घर में ही सारे टेस्ट कर लो. बहुतेरे लोग तो टेस्ट करने के बाद सोशल मीडिया पर ही दवाएं भी खोज लेते हैं. यह स्थिति काफी खतरनाक है.

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