Best Hindi Story : अविजीत की इंगेजमैंट फोटो देख सब अटकलें लगाने लगे. विदेश में रहते हुए भारतीय संस्कृति, परंपरा की दुहाई देने लगे लेकिन सिमरन और अभय को बेटे अविजीत के इस रिश्ते से खुश होते देख सभी हैरान रह गए.
खबरों का बाजार गरम था. आस्ट्रेलिया की भारतीय कम्युनिटी में किसी के घर में पहली बार ऐसा हो रहा था. अभी तक तो ये बातें सुन कर घृणा का भाव मन में उभरता था, लगता था कि ये सारे चोंचले अंगरेजों के घर में ही होते हैं. हमारे यहां की संस्कृति में पलेबढ़े बच्चे इन सब चीजों से दूर ही रहते हैं.
खबर फैलतेफैलते सिमरन की सहेलियों तक पहुंच गई थी.
कैसे, आखिर क्यों?
सब को अजीब लग रहा था. एक ऐसी बात जो वैस्टर्न सोसाइटी में ही सुनते आए थे. अब जब अपने किसी मित्र के परिवार में घटने जा रही थी तो गले के नीचे नहीं उतर रही थी. औरतें जब किटी पार्टी में मिलतीं तो सब प्रश्न यही करते-
‘यह कैसे हो सकता है?’
‘क्या गुजर रही होगी सिमरन पर?’
‘समझाबुझा कर अभी भी रोक लें तो अच्छा रहेगा.’
‘और लाओ बच्चों को आस्ट्रेलिया?’
‘पैसे कमाने से फुरसत मिलती, तभी तो बच्चों को संस्कार दे पाती.’
तरहतरह के फिकरे सुनाई दे रहे हैं. लोग अटकलें लगा रहे हैं. अब तक सब का आदर्श बना सिमरन और अभय का जोड़ा अचानक प्रश्नों के कठघरे में कैद हो गया था.
उमा को याद है कि 30 साल पहले उस के पति विपिन को इनफोसिस के दफ्तर में अन्य भारतीयों के साथ भेजा गया था. अच्छी बात यह थी कि कुछ लोगों से मित्रता पहले से ही थी. कुछ से औफिस में मुलाकात के बाद हो गई थी. मित्रों की सहायता से सब पता तो लग गया था कि अपने दोनों बच्चों को किस स्कूल में पढ़ाया जा सकता है, भारतीय मसाले और दालें कहां से खरीदे जा सकते हैं आदिआदि.
तब आस्ट्रेलिया प्रवास की अपनी दिक्कतें थीं. आज की तरह उतने भारतीय नहीं थे और भारतीय भोजन भी उपलब्ध नहीं था. मिठाइयों का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था.
लेकिन जैसे ही विपिन आस्ट्रेलिया में सैटल हुए, उमा को भी सपरिवार बुला लिया. सप्ताहांत में अनौपचारिक रूप से लोग एकदूसरे के घर चले जाते थे या कोई बुला लेता था. सब के बच्चे लगभग एक ही उम्र के थे. वे आपस में खेलते रहते और बड़े बैठ कर पकाते, खाते, पीते व आस्ट्रेलिया के रीतिरिवाजों पर चर्चा भी करते. फिल्मों के गीत गाए जाते, कराओके का प्रचलन तो नहीं था पर लोग ढोलक, हारमोनियम आदि बजा लेते या टीवी पर गाने लगा दिए जाते.
सारा खाना घर में ही बनाया जाता, भारतीय मिठाइयां मिलती नहीं थीं, सो घर में ही बनाई जातीं. आस्ट्रेलियन इंग्लिश की नक्ल करना भी खासा मनोरंजक था. यहां लोग अंगरेजी में टुडे को वाई का एक्सैंट लगाते हुए टुडाई कह देते थे. जैसे, ‘आई हैव कम हियर टुडाई.’ सब ठहाके लगाते और अच्छाखासा मनोरंजन हो जाता.
उन्हीं दिनों अभय विपिन के दफ्तर में नया आया था. आईटी सैक्शन में था जिस की बहुत डिमांड थी. उस की पत्नी सिमरन न सिर्फ खूबसूरत थी, बल्कि सच कहें तो गुणों की खान थी. खाना पकाना, बुनाई, कढ़ाई और नाचगाने में तो उस का मुकाबला कोई नहीं कर सकता था. सब से मीठा बोलती और हरेक का दिल जीत लेती. लोग कहते थे, बहुत अच्छे घर से है. धीरेधीरे सिमरन और अभय सब को बुला कर हर त्योहार होली, दीवाली आदि अपने घर में मनाने लगे और मजाल कि कोई भी मित्र छूट जाए.
उन का इकलौता बेटा अविजीत हमारे सामने ही पैदा हुआ था. हम सभी ने मिल कर उस का घर संभाला था. हम सब एक परिवार की तरह बन चुके थे. कभीकभी कुछ लोगों में गलतफहमी, लड़ाईझगड़ा भी हो जाता था पर बाद में सब के समझौता करा देने से फिर सब एक हो जाते थे.
हम सब ने घर खरीद लिए थे. अब तक सब का लोन उतर गया था और सब मोर्टगेज फ्री भी हो चुके थे. कुछ के बच्चों की तो शादी भी हो गई थी पर सिमरन और अभय के घर की बात ही अलग थी. पूरा घर एंटीक और क्लासी फर्नीचर से सजा था. अब अविजीत भी 28 साल का हो गया था. पिता की तरह हैंडसम और बुद्धिमान व मां की तरह अल्पभाषी. जिस तरह हम सब को अपने बच्चों पर गर्व था वैसे ही अभय को भी था. लौ की पढ़ाई पूरी करने के बाद अविजीत वकील बन गया था और अब सौलिसिटर था. रिश्तों की लाइन लगी हुई थी अवि के लिए.
अच्छा घर और अच्छा वर कौन नहीं चाहता अपनी बेटी के लिए पर आज यह खबर? देखने में तो अवि नौर्मल लगता है. किसी को विश्वास नहीं हो रहा है कि अपने हाथों में खिलाया हुआ अवि ऐसा निकल जाएगा.
जब से अवि ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने पार्टनर के साथ फोटो लगाई है, तब से सब सकते में हैं, खासकर 40 से 60 साल के लोगों वाली पीढ़ी. कुछ में आक्रोश है कि देखो, इस ने मां, बाप, बहन, दादा, दादी का भी खयाल नहीं रखा. करना ही था तो छिपा कर करता. इस ने तो खुलेआम फेसबुक और इंस्टाग्राम में इंगेजमैंट रिंग पहन अपनी और अपने पार्टनर की फोटो लगा दी है. नाखूनों पर रंगबिरंगी नेलपौलिश के बीच बड़े से सौलिटेयर हीरे से जड़ी अंगूठी सब को मुंह चिढ़ा रही है. लोगों के मन में मिलेजुले भाव थे.
सब अपने बच्चों से और सूचना निकलवाना चाहते हैं.
रश्मि ने भी धीरे से अपनी बेटी से पूछा, ‘तुझे पता था, ईशा?’
ईशा ने चिढ़ कर कहा, ‘आप लोगों को चैन नहीं है. उन की लाइफ है, जीने दो उन्हें.’ और भन्नाती हुई वह अपने कमरे में चली गई.
उधर सुमन भी अपने लड़के आकाश से पूछने की कोशिश करने से नहीं चूकी, ‘तेरे साथ पढ़ता था न अवि, तुझे कभी कुछ नहीं लगा?’
‘मां आप भी न, बेकार की बातें पूछती रहती हो. मैं किसी की प्राइवेट लाइफ में नहीं घुसता और आप लोगों को क्या मिल जाएगा जान कर?’ कहते हुए आकाश बाहर निकला गया.
सच में आजकल के बच्चे बहुत सयाने हैं. दोस्तों की बात और सीक्रेट्स तो ऐसे छिपा कर रखते हैं जैसे उन के ही हों. क्या मजाल कि मां, बाप और अंकल, आंटियों को कोई भनक भी पड़ जाए.
अब बच्चों का क्या करें? भारत तो है नहीं जहां रिश्तेदार और मित्र समझाते हैं और बच्चे सुन भी लेते हैं. परिवार की मर्यादा के चलते बच्चे मान भी जाते हैं पर यहां आस्ट्रेलिया? यहां तो 18 साल के होते ही बच्चों के निजी जीवन में दखलंदाजी नहीं कर सकते. परिवार वाले बैंक जा कर उन का अकाउंट चैक नहीं कर सकते. उन के कमरे में भारत की तरह कभी भी धड़धड़ाते प्रवेश नहीं कर सकते. हमेशा खटखटा कर ही जाना होता है. चिट्ठियां नहीं खोल सकते. खोल लीं तो घर में कुहराम मचेगा ही. उन के ड्राइविंग आदि के मोटेमोटे फाइन देख कर चक्कर आने लगेंगे.
जब से अवि की खबर मिली है तब से जिन के बच्चों की शादी नहीं हुई थी वे चौकन्ने हो गए थे.
यों तो भारतीय समुदाय के लोग इस तथ्य से अनजान नहीं थे. आस्ट्रेलिया में तो हर वर्ष वैसे भी ‘मार्डी ग्रा’ समलैंगिक गे और लैस्बियन लोगों की परेड निकलती है, जिसे अनेक वर्षों से सब लोग रुचि ले कर शहर जा कर देखते रहे हैं पर वे तो तमाशे वाली बात लगती थी. टीवी पर भी इस का हर साल प्रसारण होता है.
जब समलैंगिक जोड़ों ने 1978 में अपने अधिकारों की मांग के लिए परेड निकाली थी तब न्यू साउथ वेल्स पुलिस ने न जाने कितने लोगों को गिरफ्तार किया था पर आज तो दुनियाभर के टूरिस्ट इस परेड को देखने और इस में हिस्सा लेने आते हैं. पिछले कुछ सालों से तो बच्चे भी इस में पीछे नहीं रहे हैं और अब तो इस देश में सेम सैक्स मैरिज को वैसे भी दिसंबर 2017 से कानूनी स्वीकृति मिल गई है. सो, ऐसे जोड़े कहीं भी आलिंगनबद्ध चुंबन लेते दिखाई दे जाते हैं और उन्हें देख कर भी अनदेखा करना पड़ता है.
पर, हमारा अवि? नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता. कितना खुश रहता था वह लड़कियों के साथ. ऐसा महसूस भी नहीं हुआ कि उस की रुचि सिर्फ लड़कों में है. समझ नहीं आता कि यह सब स्वाभाविक भी है या नहीं? हर देश और हर काल में शायद मान्यता के बगैर ऐसा होता तो रहा है और अब तो कानून ने अपनी मुहर लगा दी है. कई लोग तो लगता है बिना किसी बात अपनी बसीबसाई शादी छोड़ कर खुलेआम स्वीकार कर रहे हैं कि वे समलैंगिक हैं.
आज सिमरन के यहां पार्टी है, सब को पता है कि चर्चा का विषय यही होगा. शाम होते सब तैयार हो कर अभय और सिमरन के घर पहुंच गए. लौन हमेशा की तरह रंगबिरंगी सोलर लाइट्स से जगमगा रहा है. करीने से सजी क्यारियों में गुलाब खिल रहे थे. कालेस्लेटी आसमान में आज पूरा चांद दिख रहा था. सितारे जगमगाते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे चांद की बरात में नाचतेगाते शामिल होने चल पड़े हैं. चांदनी रात ने जैसे लौन में शामियाना बिछा दिया हो. घर में हलका सा संगीत चल रहा था और फायर पिट के चारों तरफ बैठे मित्र हलकी सर्दी का आनंद ले रहे थे.
बीच में रखी टेबल्स पर नमकीन काजू, बादाम और पिस्ते सजे थे. बड़ी मेज पर चीज प्लेटर सजा हुआ था. 3 तरह के औलिव, 4 तरह के चीज, क्रैकर्स, चिप्स और हमस, बीटरूट डिप्स के साथ अंगूर, ब्लू बेरीज और स्ट्राबेरीज भी सजी थीं. महिलाओं के लिए उम्दा ड्रिंक, पर आज पहली बार खातेपीते हुए ठहाके लगाने के बजाय औरतें आपस में फुसफुसा कर बातें कर रही थीं, कुछ मोबाइल पर अवि के पार्टनर की फोटो देख हंस रही हैं, कुछ उन के कौमन फ्रैंड्स ढूंढ़ने में लगी थीं. सब उत्सुक थे कि सिमरन और अभय आज क्या कहेंगे.
‘‘शर्म नहीं आएगी उन को अपने इकलौते बेटे की करतूत पर?’’ रमा ने धीरे से कहा.
‘‘छि:छि:, यह भी कोई बात हुई मांबाप का खयाल तो किया होता,’’ दिव्या ने आंखें मटका कर कहा.
उमा ने हस्तक्षेप किया, ‘‘क्यों, जब तुम लोग परेड देखते हो तो खराब नहीं लगता, शर्म नहीं आती?’’
राशि गुस्से में बोली, ‘‘अगर तुम्हारे बच्चे गे निकल जाएं तो पता लगेगा.’’
उमा ने भी तीखे स्वर में उत्तर दिया, ‘‘यह तुम्हारे, मेरे और किसी और के घर में भी हो सकता है. हमारे देश में पहले भी यह सब होता था और अब फिर हो रहा है.’’
‘‘रामायण, महाभारत, वेद, पुराण वाले हमारे देश के बारे में ऐसा कहते हुए शर्म नहीं आती?’’ दिव्या ने बीच में ही टोका.
‘‘इस्मत चुगताई ने इतने साल पहले कहानी लिख दी थी, ‘लिहाफ’. उस में भी दो लैस्बियन महिलाओं का ही जिक्र है.’’
रीता ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘तो क्या लगता है तुम्हें, सिमरन उसे ऐक्सैप्ट कर लेगी?’’
राशि हंसी, ‘‘यू मीन, अपने दामाद को?’’
सब औरतें हंसने लगीं. तभी किसी की नजर पड़ी, ‘‘देखोदेखो, सिमरन और अभय आ रहे हैं.’’
2 मिनट के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया. फिर सब ने खुद को नौर्मल दिखाने की कोशिश की. सब की आंखें जैसे सिमरन और अभय के हावभाव भांपने में लगी थीं.
तभी अभय ने माइक्रोफोन के पास जा कर कहा, ‘‘अटैंशन फ्रैंड्स.’’
सिमरन ने भी उसे जौइन किया, ‘‘हैलो फ्रैंड्स.’’
कुछ सैकंड में ही कमरे में शांति छा गई.
‘‘इतने लंबे इंतजार के बाद यह शुभ दिन आया है. मैं और सिमरन आप को यह बताना चाहते हैं कि हमारे बेटे अवि की इंगेजमैंट हो गई है. उस का पार्टनर एलन डाक्टर है. दोनों बहुत खुश हैं और हमारे लिए भी यह बहुत प्रसन्नता का अवसर है. यह पार्टी हम ने इसी खुशी में रखी है.’’
अभय ने जिस तरह बिना किसी झिझक और शर्म के अपनी खुशी का इजहार किया, सब के मुंह खुले के खुले रह गए.
तभी सिमरन ने आगे आ कर कहा, ‘‘हमें अपने अवि और एलन पर बहुत गर्व है. उन्होंने अपनी आइडैंटिटी को पहचाना ही नहीं बल्कि हम से खुल कर बात भी की और डिस्कस कर के समाज के सामने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी इंगेजमैंट की खबर शेयर की. आप भी सोचते होंगे कि आखिर ऐसा क्यों? पर मैं यही कहना चाहती हूं कि यह सब आजकल नौर्मल है. बदलते वक्त के साथ बच्चों को अपनी बात कहने व मन का करने का अधिकार देना आवश्यक है. हमें लगा कि बच्चों की खुशी का ध्यान रखना सब से जरूरी है. हम ने उन्हें प्रपोज करने के लिए उत्साहित किया, नाउ, दे आर इंगेज्ड. शीघ्र ही हम आप सब मित्रों को शादी का निमंत्रण देंगे.’’
तालियों की गड़गड़ाहट से सब ने अनाउंसमैंट का स्वागत किया.
2 मिनट पहले ही सिमरन और उस के परिवार की बुराई करने वाली महिलाएं अब सिमरन को घेर कर बधाई दे रही थीं और इस अद्भुत शादी में जाने के सपने देख रही थीं.
लेखिका : रेखा राजवंशी