Dupahiya : रेटिंग – तीन स्टार

भारत गांवों का देश है. इस के बावजूद भारतीय सिनेमा से गांव व ग्रामीण संस्कृति का सफाया हो गया है. ‘लापता लेडीज’ जैसी कुछ फिल्मों में जब ग्रामीण परिवेश की कथा पिरोई जाती है, तो इन फिल्मों के गांव अंगरेजीदां सोच के अनुरूप गांव नजर आते हैं, जिन का देश के गांवों से दूर दूर तक कोई वास्ता नजर नहीं आता लेकिन सात मार्च से अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज ‘दुपहिया’ में सही मायनों में भारतीय ग्रामीण परिवेश, रहनसहन, ग्रामीण सोच स्पष्ट रूप से नजर आती है, जबकि इस वेब सीरीज की निर्देशक पश्चिम बंगाल में पलीबढ़ी और न्यूयार्क, अमरीका से फिल्म विधा की शिक्षा ग्रहण करने वाली सोनम नायर है.

वर्तमान समय में गांवों के अंदर मुख्य सड़कें ईंट की या जिसे खड़ंजा कहते हैं, उस की बन गई है, तो इस फिल्म में उसी तरह का गांव है. गांव का अपना बाजार भी है. पंचायत भी है. इस सीरीज में दहेज की प्रथा, शहर में नौकरी के नाम पर दहेज की रकम का बढ़ना, शरीर का सांवला रंग, आपसी भाईचारा, एकता, गांव की छवि के खिलाफ न जाना वगैरह बहुत कुछ पिरोया गया है. पर कहीं कोई भाषणबाजी नहीं है. हल्केफुल्के हास्य व व्यंग के साथ 35 से 40 मिनट की अवधि वाले 9 एपीसोड में पूरी कहनी समेटी गई है.

इस सीरीज का अंत जिस मोड़ पर किया गया है, उस से यह साफ संकेत मिलता है कि इस का दूसरा भाग भी आएगा. सोनम नायर ने वेब सीरीज ‘दुपहिया’ में जिस तरह से गांव के परिवेश, रहनसहन, किरदारों की सोच, उन के पहनावे आदि को पेश किया है, उसे देख कर लगता है कि सोनम नायर अभी कल ही बिहार के किसी गांव से लौटी हैं. इस सीरीज की सब से बड़ी खासियत यह है कि इस में बंदूक, गोली, कट्टा यानी कि हिंसा, मारपीट और सैक्स का घोर अभाव है. यह पूरी तरह से पारिवारिक मंनोरंजक व विचारोत्तेजक सीरीज है.

सीरीज की कहानी के केंद्र में बिहार का एक काल्पनिक धड़कपुर गांव है, जहां की वार्ड लीडर पुष्पलता यादव (रेणुका शहाणे) का गांव के जीवन की सबसे अच्छी बात क्या है? के सवाल पर दिया गया जवाब है, ‘‘शहरों में अपना दुख अपना दुख, अपनी खुशी अपनी खुशी, गांव में अपना दुख, सब का दुख, अपनी खुशी सब की खुशी.’’ यह ग्रामीण भारत की सही तस्वीर है, जिसे इस के लेखकद्वय चिराग गर्ग और अविनाश द्विवेदी ने बाखूबी अपने लेखन से रेखांकित किया है.

हां! लेखकों की इस सोच पर आप को हंसी आ सकती है कि बिहार में कोई गांव है, जो 25 वर्ष से ‘अपराध मुक्त’ है. जी हां! दुपहिया की कहानी के केंद्र में 25 वर्ष से ‘अपराध मुक्त’ बिहार का एक काल्पनिक धड़कपुर गांव है, जहां लोगों को साफ पानी भी पीने को नहीं मिल रहा है. यहां की पंचायत की नेता पुष्पलता यादव (रेणुका शहाणे) है, जिन्हें अब सरपंच (योगेंद्र टिक्कू) ने अगली बार सरपंच का उम्मीदवार बनाने के अलावा गांव को बोरवेल लगाने की राशि दने का वादा किया जाता है. पर अहम सवाल है कि सरपंच महोदय अपनी कुर्सी आसानी से छोड़ेंगें? उधर गांव के स्कूल के अस्थाई प्रिंसिपल बनवारी झा (गजराज राव) स्थाई प्रिंसिपल बनने के लिए प्रयासरत है. तो वहीं वह अपनी 27 वर्षीय बेटी रोशनी (शिवानी रघुवंशी) की शादी प्रसाद त्रिपाठी (आलोक कपूर) के बेटे कुबेर त्रिपाठी (अविनाश द्विवेदी) से तय करते हैं.

वास्तव में रोशनी गांव की जिंदगी से हट कर शहर में जिंदगी बिताना चाहती है. इसलिए जब लड़का अपने परिवार के साथ उसे देखने उन के घर आता है तो रोशनी बड़े भाई दुर्लभ की बजाय शहर में रह रहे छोटे भाई कुबेर संग विवाह करने की बात करती है. अब इस में लड़के के परिवार को भी कोई दिक्कत नहीं होती अगर लड़की के परिवार वाले उसे 3 लाख की रौयल एनफील्ड और पेट्रोल खर्च के लिए 2 लाख और देने का वादा करते. रोशनी अपने पिता पर दबाव डालती है कि वह शहर में रहने के लिए दहेज की मांग पूरी करे. पिता हार मान लेते हैं और आखिरकार शादी तय हो जाती है.

बेचारे बनवारी झा किसी तरह अपनी सारी जमा पूंजी से रौयल एनफील्ड मोटर साइकल खरीद कर लाते हैं. रोशनी का भाई भूगोल झा (स्पर्ष श्रीवास्तव) को फिल्मों में हीरो बनने का भूत सवार है. जिस दिन मोटर साइकल गांव पहुंचती है, उसी दिन मोटर बाइक चोरी हो जाती है. मतलब 25 साल में पहली बार धड़कपुर में चोरी हो जाती है और गांव का 25 साल पुराना अपराध मुक्त रिकौर्ड टूट जाता है. अब बनवारी झा के सामने इनफीलड मोटर बाइक की भरपाई करने से ले कर गांव की अपनी छवि को बचाते हुए बेटी शिवानी की शादी को टलने नहीं देना है.

गांव की छवि को बचाए रखने के लिए बनवारी झा का परिवार इस बात को छिपाते हुए अपनी तरफ से खोजना शुरू करता है. उन का शक अमावस (भुवन अरोड़ा) पर जाता है, जो कि 7 वर्ष पहले रोशनी का प्रेमी था, पर उसे चोरी करने की ‘क्लेप्टोमोनिया’ नामक बीमारी है. बनवारी ने एक चोरी के मामले में पंचायत के आदेश से अमावस को गांव से तड़ीपार करा दिया था. इसी के साथ रोशनी व अमावस का प्रेम संबंध खत्म हो जाता है पर रोशनी को यकीन है कि अमावस उस से झूठ नहीं बोलेगा. लेकिन अमावस ने चोरी नहीं की है.

दूसरी तरफ पुष्पलता यादव की बेटी व रोशनी की 23 वर्षीय सहेली निर्मल यादव (कोमल कुशवाहा) सांवली है, उसे लगता है कि उस के सांवले रंग के कारण लड़के उसे पसंद नहीं करते. जबकि वह स्वयं पर्सनालिटी डेवलपमेंट व अंगरेजी की शिक्षा देने की क्लास चलाती हैं. निर्मल प्लास्टिक सर्जरी करा कर अपना चेहरा सुंदर करवाना चाहती है, इस में उसे प्रेम करने वाला और भूगोल का दोस्त पिंटू मदद करता है.

राजनीति में पुष्पलता यादव के खिलाफ सरपंच के साथ मिल कर कमलेश (मैक लारा) अपनी चाल चलता है. उधर पुलिस इंस्पेक्टर मिथिलेश पर दबाव है कि वह गांव की तरफ से कोई एफआईआर दर्ज करवाए. ऐसे में जब गांव में पहली चोरी होती है तब क्या गांव वासी घबरा जाते हैं? क्या वह एकदूसरे पर शक करने लगते हैं? क्या वह पीड़ित को नुकसान की भरपाई करने में मदद करते हैं? और अंत में चोर का पता चलता है या नहीं. रोशनी की शादी कुबेर से होती है या नहीं. यह कई सवाल हैं? यही सब दुपहिया सीरीज का हिस्सा है.

यह वेब सीरीज गांव की जिंदगी की एक झलक दिखाने के साथ ही गांव मे रहने वालों की सोच पर भी बात करती है. 9 एपीसोड की इस सीरीज का पहला एपीसोड खत्म होने पर पता चलता है कि रोशनी की शादी में 8 दिन बाकी हैं. यानी कि यह सीरीज धड़कपुर गांव में 8 दिन की यात्रा है. लेखक चिराग गर्ग और अविनाश द्विवेदी ने गांव के पूरे परिवेश, गांव के रहनसहन, गांव वालों का सुखदुख में शामिल होना सहित हर बारीक व मार्मिक बिंदुओं को छुआ है.

बिहार में ‘लौंडा नाच’ काफी प्रचलित है, जिसे कभी अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी करते रहे हैं, इसे भी अविनाश द्विवेदी व चिराग गर्ग ने इस सीरीज का प्रमुख आकर्षण बना दिया है. लौंडा नाच करते हुए अभिनेता स्पर्श श्रीवास्तव और भुवन अरोड़ा ने कमाल की प्रतिभा दिखाई है. पूरी सीरीज हंसाते व मनोरंजन करते हास्य व व्यंग के लहजे में कई गंभीर मसले भी उठाती है.

मसलन, शहर की ओर पलायन करने का लालच, शहर के प्रति मोहभंग होना, अखंडता,एक बड़े परिवार के रूप में रहने वाले गांव का सामुदायिक जीवन, एकदूसरे के सुखदुख का हिस्सा बनना, दहेज कुप्रथा, शरीरिक रंगत, एकदूसरे की रक्षा करना है. वहीं त्वचा के रंग से जुड़ा आत्मसम्मान जैसा सार्थक विषय उठाया गया है.

सीरीज ग्रामीण राजनीति के कुचक्र पर भी बात करने से पीछ नहीं रहती. कहानी व पटकथा इतनी अच्छी तरह से लिखी गई है कि इस का हर दृश्य एक सामाजिक टिप्पणी के रूप में कार्य करता है. मसलन, सांवले रंग की लड़की निर्मल प्लास्टिक सर्जरी कराने वाली लड़की से औपरेशन करने से पहले डाक्टर कहती है ‘‘इस दुनिया में हर रोज कुछ और हो जाती हूं मैं, बड़ा जोर लगता है खुद को खुद बनाए रखने में.” उस के बाद निर्मल अपना निर्णय बदल देती है.

इस सीरीज की सब से बड़ी समस्या इस की लंबाई है. 35 से 40 मिनट के 9 एपीसोड, अंतिम एपीसोड तक किरदारों का परिचय चलता रहता है. सबप्लोट और सहायक किरदारों की भरमार है, कुछ सिर्फ़ समय बिताने या विचित्रता को बढ़ाने के लिए हैं. जैसे रिश्तेदार जश्न मनाने के लिए जल्दी आ जाते हैं. असली पत्रकार बनने की चाहत रखने वाला इच्छुक रिपोर्टर को आज पत्रकारिता की स्थिति पर लेक्चर दिया जाता है, जिस से कुछ कटाक्ष प्रसारित होते हैं. संपादक कहता है, “आप खबर लिखो. कन्फर्म करना लोगों का काम है, हमारा काम है छापना है.’’ लेकिन लेखकों का कमाल है कि हर किरदार चमकता है. लेकिन कुछ दृष्य कमजोर हैं. तंबाकू पीटने जैसे कुछ दृष्य बेवजह के लगते हैं.

सीरीज की सब से बड़ी खूबी यह है कि हर गांव की खासियत के अनुरूप इस में दिखाया गया है कि हर मुसीबत में पूरा का पूरा गांव कैसे एक साथ आता है और मिल कर समस्या का समाधान खोजता है. पंचायत का निर्णय सभी मानते हैं. सभी के लिए पहले गांव की छवि को बरकरार रखना है.

शहरी संस्कृति में जीने व स्कर्ट जैसे कपड़े पहनने, लोग क्या कहेंगे यह न सुनने की लालसा के साथ ही अपने भावी पति द्वारा नजरअंदाज किए जाने और अपने पूर्व प्रेमी से पूर्ण समर्थन पाने की दुविधा के बीच फंसी रोशनी के किरदार को जीवंतता प्रदान करने में शिवानी रघुवंशी का प्रयास सराहनीय है.

शिवानी ने रोशनी के मन की दुविधाओं व अंतर्द्वंद को सकार करने में सफल रही हैं. बेटी की जिदंगी की खुशी के लिए सब कुछ न्योछावर करने वाले पिता बनवारी झा के किरदार में गजराज राव का अभिनय सराहनीय है. शहर जा कर हीरो बनने की इच्छा, सदा रील्स बनाते रहने वाले रोशनी के भाई भूगोल के किरदार में स्पर्श श्रीवास्तव छा जाते हैं. भूगोल के वफ़ादार दोस्त टीपू के किरदार में समर्थ माहोर अपनी चुटीली और मज़ेदार संवाद अदायगी से को प्रभावित करने में सफल रहे हैं.

पुष्पलता के किरदार में रेणुका शहाणे के अभिनय पर तो कभी कोई उंगली उठा ही नहीं सकता. पुष्पलता की बेटी और पहले एपीसोड से ही मुख्य संदिग्ध बन जाने वाली निर्मल यादव के किरदार में कोमल कुशवाहा अपनी छाप छोड़ जाती हैं. सांवलेपन से छुटकारा पाने के लालच में गलत रास्तें पर चलने के लिए मजबूर होने की मनोदशा को बखूबी पकड़ा है और लोगों के दिलों तक यह बात पहुंचाने में सफल रही हैं. रोशनी के पूर्व प्रेमी और क्लेप्टोमेनिया से जूझ रहे अमावस की मन की पीड़ा को उजागर करते हुए भुवन अरोड़ा याद रह जाते हैं. पुलिस इंस्पेक्टर मिथिलेश के किरदार में एक बार फिर यशपाल शर्मा ने साबित कर दिया कि वह हर किरदार को निभाने की क्षमता रखते हैं. देहज के लालची दूल्हे कुबेर के किरदार को अविनाश द्विवेदी अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान करने में सफल रहे हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...